Saturday, April 20, 2024

बिहार: शराबबंदी की आड़ में तेजी से बढ़ रही है गांजे और चरस की खपत

किशनगंज। किशनगंज जिला के ठाकुरगंज प्रखंड के कनकपुर के रहने वाले कन्हैया किशनगंज नशा मुक्ति केंद्र में लगभग 1 साल से इलाज करा रहे हैं। वह पहले शराब का सेवन करते थे। शराबबंदी के बाद उन्होंने गांजा का सहारा लिया। कन्हैया बताते हैं कि, “शराबबंदी के बाद गांजे का नशा ही एकमात्र सहारा था। क्योंकि गांजा का नशा सस्ता भी था और आसानी से मिल भी जाता था। पूरे दिन काम करने के बाद अगर नशा ना करूं तो नींद नहीं आती थी। अभी स्थिति ऐसी हो गई है कि एक भी दिन अगर गांजा का नशा ना करूं तो शरीर में अजीब सी सिहरन होने लगती है।”

बिहार में कन्हैया जैसे लोगों की तादाद लगातार बढ़ती जा रही है जो ‘स्विच ओवर ऑफ़ ड्रग्स’ की समस्या से जूझ रहे हैं। ‘स्विच ओवर ऑफ़ ड्रग्स’ मतलब शराब नहीं मिलने पर दूसरे तरह के नशे का सेवन करने लगना। किशनगंज नशा मुक्ति केंद्र में काम कर रहे विवेक बताते हैं कि, “जब शराब खुलेआम बिकती थी, तब एक भी मरीज नहीं आता था। शराबबंदी के बाद जो लोग आ रहे हैं वह शराब से ज्यादा गांजे और कोरेक्स का सेवन करने वाले आ रहे हैं। इसकी मुख्य वजह है कि बिहार में गांजे की एक पुड़िया 30 से 50 रुपये में तो चरस की एक पुड़िया 500 रुपये में उपलब्ध है।”

आंकड़े से ज्यादा कड़वी है हकीकत

भारत सरकार के नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो की साल 2018 की सालाना रिपोर्ट के अनुसार साल 2016 के बाद बिहार राज्य के विभिन्न जिलों से गांजे और कोरेक्स की बड़ी मात्रा में जब्ती की गई है। सरकारी रिपोर्ट की मानें तो बिहार में 13897.09 किलो गांजा, 251.43 किलो चरस, 3.2 किलो हेरोइन और 5.5 किलो अफीम बरामद किया गया था।

सुपौल जिला में जब्त गांजा

वहीं नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे -5 के मुताबिक़ क़ानूनी तौर पर ड्राइ स्टेट बिहार में महाराष्ट्र की तुलना में शराब ज़्यादा पी जा रही है। जहां शहरी क्षेत्रों में पुरुषों के बीच 15 साल से ऊपर के आयु वर्ग के 14 फ़ीसद लोग शराब का सेवन करते हैं वहीं ग्रामीण इलाक़ों में ये 15.8 फ़ीसदी है।

राजधानी पटना से 220 किलोमीटर दूर सुपौल जिले में एक्साइज डिपार्टमेंट की एक महिला अधिकारी नाम न बताने की शर्त पर बताती हैं कि, “सरकारी आंकड़े की पूर्ति करने के लिए हम लोग शराब, गांजा और अफीम बेचने वालों को पकड़ रहे हैं। हकीकत में शराब पीने वाला पकड़ा जा रहा है और बेचने वाला। लेकिन बेचने वाले तक शराब पहुंचाने वाले को क्यों नहीं पकड़ा जा रहा है? आज तक किसी बड़ी मछली को क्यों नहीं पकड़ा जा सका है? जहरीली शराब से जो इतने लोग मरे हैं। कितने लोगों को गिरफ्तार किया गया है? सब खानापूर्ति के लिए होता है।”

पागलपन की संख्या ज्यादा बढ़ रही है

बिहार के सीमांचल और कोसी इलाके में पूर्णिया शहर को स्वास्थ्य व्यवस्था के लिए सबसे बेहतर माना जाता है। पूर्णिया के मानसिक रोग विशेषज्ञ आशुतोष कुमार झा बताते हैं कि, “कोसी और सीमांचल बहुत ही पिछड़ा इलाका है। इस इलाके में अपने जीवन यापन की चिंता को लेकर पहले लोगों को पागलपन का दौरा ज्यादातर आया करता था। लेकिन विगत 1-2 सालों में सबसे ज्यादा मरीज नशा की वजह से आए हैं। कोरेक्स की वजह से 20-25 साल के अधिकतर युवा डिप्रेशन के शिकार हो रहे हैं या एग्रेसिव मोड में आकर गलत दिशाओं की तरफ जा रहे हैं।”

बिना चिकित्सक की पर्ची के ऊंची कीमत पर बिक रहा है सिरप

मधेपुरा जिले के सिंहेश्वर थाना क्षेत्र स्थित पटोरी पंचायत वार्ड संख्या दो के हरिशंकर यादव बताते हैं कि, “गांव में मेडिकल दुकान में सबसे ज्यादा बिक्री कफ सिरप की होती है। खासकर कॉरएक्स की। अब तो मोबाइल रिपेयरिंग सेंटर, किराना और यहां तक कि पान की गुमटियों पर भी आसानी से कफ सिरप मिल जाता है। गांव के हाई स्कूल वाले चापाकल पर प्रत्येक सप्ताह 40 से 50 डिब्बा फेंका हुआ मिलेगा। हाई स्कूल कोने पर है, इसलिए गांव और अगल-बगल इलाके के लड़के वहां आसानी से कफ सिरप का सेवन करते हैं।”

किशनगंज नशा मुक्ति केंद्र, जहां जब शराब खुलेआम बिकता था, तब एक भी मरीज नहीं आता था।

नाम न बताने की शर्त पर एक लड़का, जो कोरेक्स का सेवन करता है, कहता है कि, “सौ मिलीलीटर दवा की कीमत 126 रुपये है। जबकि यह दवा बाजार में 200 से 300 रुपये तक का नशा करने वाले को बेची जाती है। अधिक मुनाफा के लिए दवा दुकानदार डॉक्टर की पर्ची के बिना ही इसे नशेड़ी को बेच देते हैं। कानून को ताक पर रखकर थोक विक्रेता भी कच्चे बिल पर माल की आपूर्ति कर देते हैं। इसकी सबसे ज्यादा तस्करी नेपाल के रास्ते हो रही है।”

आखिर लड़के क्‍यों करते हैं इसका सेवन?

“कोरेक्स और बेनाड्रिल कफ सिरप का उपयोग नशेड़ी लोग करते हैं। खांसी ठीक होने के लिए चिकित्सक इस दवा का उपयोग प्रतिदिन दो से तीन बार पांच-पांच एमएल करने को कहते हैं। प्रतिबंधित होने की वजह से ज्यादातर डॉक्टर इसका उपयोग नहीं करने के लिए बोलते हैं। खासकर कोरेक्स दवा के सेवन से नशा जैसा महसूस होता है। इस वजह से नशेड़ी लोग जल्द ही इसके आदी होने लगते हैं। खांसी नहीं होने पर भी लोग इसका सेवन करने लगते हैं। यह काफी नुकसानदायक है। पीने से नार्मल से काफी ज्यादा नींद आने लगती है।” डा. विनय कुमार झा, वरीय फिजीशियन, भागलपुर बताते हैं।

घातक भी हो सकता है कफ़ सिरप

पटना शहर के बोरिंग रोड में अपना निजी हॉस्पिटल खोले फिजिशियन एमके झा कहते हैं कि, “फेंसिड्रिल कफ सिरप में कोडीन फॉस्फेट रहता है। इसलिए तय मात्रा से ज्यादा लेने पर खुमारी छाने लगती है। और अगर इस दवा को कोई तय मात्रा से ज्यादा ले तो उसे इसकी लत लग सकती है और कुछ एक मामलों में यह घातक भी हो सकता है।”

बॉर्डर इलाके में कोरेक्स और गांजे की सप्लाई बढ़ी

अभिषेक गुप्ता पश्चिम चंपारण और नेपाल सीमा स्थित बाजार में दवाई का व्यापार करते हैं। अभिषेक बताते हैं कि, ” यह बाजार नेपाल से लगभग 5 किलोमीटर दूर पर स्थित है। मैं अक्सर दवाई खरीदने और पेट्रोल भरवाने नेपाल जाता हूं। शराबबंदी के तुरंत बाद एक-दो साल तक शराब की तस्करी ज्यादा होती था। लेकिन वक्त के साथ शराब की जगह गांजा और कोरेक्स ने ले लिया। चरस और अफीम भी अच्छी मात्रा में आने लगी हैं। आपको जानकर आश्चर्य होगा कि इस काम के लिए महिलाओं का एक वर्ग भी तैयार हो गया है।”

महिलाओं पर प्रभाव

नीतीश कुमार के शराबबंदी का सबसे ज्यादा सपोर्ट महिलाओं ने किया था। सुपौल की सामाजिक संस्था चलाने वाली नीता बताती हैं कि, “मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ये कहते रहे हैं कि महिलाओं और जीविका दीदियों की मांग पर शराबबंदी का फ़ैसला लिया गया। आज नीतीश कुमार को उन महिलाओं का आंसू नहीं दिख रहा है जिनके पति जहरीली शराब की वजह से मर रहे हैं। अगर हाल के सालों में कुछ घटनाओं को देखें तो शराब की होम डिलेवरी करने वाला महिलाओं का एक वर्ग तैयार हो गया है।”

(किशनगंज से राहुल की रिपोर्ट।)

जनचौक से जुड़े

0 0 votes
Article Rating
Subscribe
Notify of
guest
0 Comments
Inline Feedbacks
View all comments

Latest Updates

Latest

लोकतंत्र का संकट राज्य व्यवस्था और लोकतंत्र का मर्दवादी रुझान

आम चुनावों की शुरुआत हो चुकी है, और सुप्रीम कोर्ट में मतगणना से सम्बंधित विधियों की सुनवाई जारी है, जबकि 'परिवारवाद' राजनीतिक चर्चाओं में छाया हुआ है। परिवार और समाज में महिलाओं की स्थिति, व्यवस्था और लोकतंत्र पर पितृसत्ता के प्रभाव, और देश में मदर्दवादी रुझानों की समीक्षा की गई है। लेखक का आह्वान है कि सभ्यता का सही मूल्यांकन करने के लिए संवेदनशीलता से समस्याओं को हल करना जरूरी है।

Related Articles

लोकतंत्र का संकट राज्य व्यवस्था और लोकतंत्र का मर्दवादी रुझान

आम चुनावों की शुरुआत हो चुकी है, और सुप्रीम कोर्ट में मतगणना से सम्बंधित विधियों की सुनवाई जारी है, जबकि 'परिवारवाद' राजनीतिक चर्चाओं में छाया हुआ है। परिवार और समाज में महिलाओं की स्थिति, व्यवस्था और लोकतंत्र पर पितृसत्ता के प्रभाव, और देश में मदर्दवादी रुझानों की समीक्षा की गई है। लेखक का आह्वान है कि सभ्यता का सही मूल्यांकन करने के लिए संवेदनशीलता से समस्याओं को हल करना जरूरी है।