जम्मू-कश्मीर को दो टुकड़ों में बांट दिया गया है। जम्मू-कश्मीर व लद्दाख के रूप में दो केंद्र शासित प्रदेश होंगे। जम्मू-कश्मीर में विधानसभा होगी और दिल्ली की तरह उप राज्यपाल संवैधानिक प्रमुख होंगे।
जब दुबारा प्रचंड बहुमत से मोदी सरकार बनी तो लोगों को लगा कि कश्मीर समस्या का स्थायी समाधान निकाला जायेगा जो सरकार द्वारा फैसला लिया गया है वो मुझे लगता है कि जल्दबाजी में लिया गया है! इसके दूरगामी परिणाम होंगे।
राज्य का अलग संविधान नहीं होगा, अलग झंडा नहीं होगा! दोहरी नागरिकता नहीं होगी। देश का संविधान ही जम्मू-कश्मीर में लागू होगा, भारतीय नागरिक होंगे और तिरंगे का अपमान अब अपराध होगा। ये प्रावधान कश्मीरी लोगों को भारत के साथ जुड़कर बेहतर भविष्य की तरफ ले जायेगा।
आम नागरिक लंबे समय से मारकाट, स्थायित्व के अभाव में कुछ भविष्य के लिए तय नहीं कर पा रहे थे उनको बेहतर रास्ता चुनने का अवसर मिलेगा।
जो रास्ता सभी राजनीतिक दलों व स्थानीय नेताओं के बीच आम सहमति बनाने के बिना प्रयास के अपनाया गया है उसके साइड-इफ़ेक्ट भविष्य में नजर आएंगे। कभी-कभी अच्छा फैसला व अच्छी मंशा भी गलत तरीके से बर्बाद हो जाती है!
सरकार द्वारा समस्या के समाधान की तरफ बढ़ाये कदम स्वागत योग्य हैं। 70साल से जो नासूर बन चुका था उसमें हजारों किसानों के बेटे अपनी जान गंवा चुके हैं। हजारों स्थानीय लोगों ने अपनी जिंदगियां खपाई है। बस मौतों का सिलसिला रुकना चाहिए।
अलगाववादी नेताओं ने कश्मीरी युवाओं की मौतों पर खूब खेल खेला है। पाकिस्तान प्रेम व ऐशो-आराम के कारण स्थानीय लोगों को भी खूब गुमराह करके बर्बाद किया है। अब पाक की नापाक कोशिश आमने-सामने होगी और उसमें भारत बेहतर तरीके से जवाब दे सकता है। वैसे आमने-सामने का मौका शायद ही आये!
चिंता का विषय यह है कि तमाम राजनैतिक दलों व स्थानीय प्रतिनिधियों को जिस तरह दरकिनार करके तानाशाही पूर्ण फैसला लिया गया है वो भारी न पड़ जाएं! दूसरी चिंता यह है कि पाकिस्तान सहित अंतरराष्ट्रीय लॉबी का क्या रुख रहेगा क्योंकि कश्मीर का मसला यूएन में है! तीसरी चिंता यह है कि देश आर्थिक संकट से जूझ रहा है व यह मसला लंबा खिंचता है तो विदेशी निवेशकों को दूर कर देगा!
जिस तरह की प्रतिक्रिया इस फैसले के बाद आ रही है वो कतई समस्या के समाधान का माहौल बनाती नजर नहीं आती है। कश्मीरियों को दरकिनार करके कश्मीर में जमीन/प्लाट खरीदने की भेड़ों की भावना कश्मीरियों के जख्मों को कुरेदने वाली है! याद रखा जाना चाहिए कि कश्मीर के लिए नियम कश्मीर की विधानसभा बनायेगी और उप राज्यपाल के माध्यम से केंद्र को मंजूरी देनी होगी। ऐसे में केंद्र व कश्मीर के बीच टकराव का रास्ता सदा खुला रहेगा जैसे दिल्ली व केंद्र के बीच चल रहा है!
देश के लोगों को कश्मीरियों का भरोसा जीतने का प्रयास करना होगा! मरकजी सरकार को कश्मीरी लोगों की भावना, हकों व अवसरों का सरंक्षक बनकर खड़ा होना होगा अन्यथा अलगाववादी राज्यों की संख्या में मात्र इजाफा होगा!
(मदन कोथुनियां पत्रकार हैं और जयपुर में रहते हैं।)