Wednesday, April 24, 2024

ऑपरेशन ब्लू स्टार: जनरल कुलदीप सिंह बराड़ के बयान के असली मायने क्या हैं?    

दुनिया भर में चर्चा का विषय बना रहा ऑपरेशन ब्लू स्टार 39 साल पहले हुआ था। भारतीय फौज ने श्री स्वर्ण मंदिर साहिब में पनाह लिए हुए अतिवादी संत जरनैल सिंह भिंडरांवाला और उनके हथियारबंद साथियों के सफाए के लिए अभियान चलाया था। सेना की इस कार्रवाई को ‘ऑपरेशन ब्लू स्टार’ का नाम दिया गया था और इसका नेतृत्व जनरल (अब सेवानिवृत्त) कुलदीप सिंह बराड़ ने किया था।

39 साल बाद जनरल कुलदीप सिंह बराड़ ने यह कहकर पूरी दुनिया में हलचल पैदा कर दी है कि संत जरनैल सिंह भिंडरांवाला को तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की शह हासिल थी। एक न्यूज़ एजेंसी को दिए साक्षात्कार में जनरल बराड़ ने कहा कि भिंडरांवाला को सरकारी शह मिलने के बाद पंजाब का माहौल बिगड़ रहा था और खालिस्तान की मांग जोर पकड़ने लगी थी। सूबे में भिंडरांवाला का रुतबा बढ़ने लगा था। उसे बेकाबू होता देख तत्कालीन प्रधानमंत्री ने श्री स्वर्ण मंदिर साहिब पर हमला करने के आदेश फौज को दिए थे।

जनरल कुलदीप सिंह बराड़ ने कहा कि ऑपरेशन ब्लू स्टार की अगुवाई के लिए उन्हें चुना गया था और एक बार भी यह नहीं देखा गया कि वह किस समुदाय से वाबस्ता हैं। जनरल बराड़ का उक्त इंटरव्यू पूरी दुनिया में वायरल हो रहा है लेकिन पंजाब में इसके अलग मायने हैं। खासतौर से इसलिए भी कि राहुल गांधी की बहुचर्चित भारत जोड़ो यात्रा पंजाब में काफी कामयाब रही।

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जनरल कुलदीप सिंह बराड़

2024 के लोकसभा चुनाव सामने हैं और भाजपा का ‘मिशन पंजाब’ रफ्तार पकड़ने को है। कनाडा, ऑस्ट्रेलिया, अमेरिका, इंग्लैंड तथा पाकिस्तान में विचर रहे खालिस्तान समर्थक पंजाब को नए सिरे से ‘पुराने हालात’ में धकेलने की साजिश कर रहे हैं। राज्य में गैंगस्टरों का आतंकवादियों के साथ गठजोड़ सामने आ रहा है और गैंगस्टर सूबे की भगवंत मान सरकार को कानून-व्यवस्था के मोर्चे पर चुनौतीपूर्वक टक्कर दे रहे हैं।

संदेहास्पद परिस्थितियों में अमृतपाल सिंह (जिसे कुछ लोग दूसरा भिंडरांवाला मानते हैं) नामक एक नए गरमपंथी युवा की सक्रियता अचानक बढ़ी और बंदी सिखों की रिहाई के लिए कई पंथक संगठनों ने मोहाली के पास पक्का मोर्चा लगाया हुआ है। इस सबके बीच जनरल कुलदीप सिंह बराड़ का साक्षात्कार पंजाब के लिए बेहद गंभीर मामला है।                                       

ऑपरेशन ब्लू स्टार को अगले साल लगभग तीन दशक पूरे हो जाएंगे लेकिन वह दुनिया भर के सिखों के लिए प्रेतछाया की मानिंद है। इसी ऑपरेशन के प्रतिशोध में इंदिरा गांधी की हत्या हुई और उसके बाद देशव्यापी सिख कत्लेआम हुआ। पीढ़ी-दर-पीढ़ी इससे सब वाकिफ हैं।

ऑपरेशन ब्लू स्टार के खलनायकों में जनरल कुलदीप सिंह बराड़ का नाम भी आता है और वह आज भी आतंकियों की हिटलिस्ट में हैं। उन पर कातिलाना हमला हो चुका है, जिसमें वह अपनी पत्नी के साथ बाल-बाल बचे थे। इतने साल बीत जाने के बावजूद जनरल बराड़ इस तरह मीडिया के सामने पहली बार आए हैं। या ‘लाए’ गए हैं? ऑपरेशन ब्लू स्टार का नेतृत्व करने वाले जनरल का खुलासा कहीं न कहीं किसी ‘खास सियासी’ रंग से रंगा हुआ है।

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ऑपरेशन ब्लूस्टार का नेतृत्व करते जनरल कुलदीप सिंह बराड़

बेशक जनरल कुलदीप सिंह बराड़ ने कोई नई बात नहीं कही है। सैकड़ों दस्तावेज और किताबों में यह सब पहले से ही दर्ज है। इन किताबों में से कईयों के लेखक ऑपरेशन ब्लू स्टार से जुड़े पूर्व सैन्य, पुलिस और प्रशासनिक अधिकारी भी रहे हैं। लेकिन सबने यह कहने से गुरेज किया जो जनरल बराड़ ने दो-टूक कह दिया।

जून 1984 में ऑपरेशन ब्लू स्टार को अंजाम दिया गया था। इसके लिए सिखों के एक बड़े तबके ने भारतीय राज्य-व्यवस्था और इंदिरा गांधी को माफ नहीं किया। यह जानते हुए भी कि दोनों तरफ से ऐसे हालात बनाए गए। आलम यह है कि आज भी गांधी परिवार के किसी भी सदस्य को श्री स्वर्ण मंदिर साहिब में परंपरागत सम्मान नहीं दिया जाता और सिख धर्म के मूल उसूलों के खिलाफ जाकर उनकी उपेक्षा की जाती है। हाल ही में राहुल गांधी और प्रियंका गांधी के पति रॉबर्ट वाड्रा के साथ यह सुलूक किया गया।

पहले-पहल संत जरनैल सिंह भिंडरांवाला को इंदिरा गांधी ने नहीं बल्कि ज्ञानी जैल सिंह ने तरजीह दी, जो पहले पंजाब के मुख्यमंत्री थे और फिर केंद्र में गृहमंत्री का ओहदा संभालने के बाद देश के पहले सिख राष्ट्रपति बन गए लेकिन पंजाब में उनकी ‘राजनीतिक दिलचस्पी’ खत्म नहीं हुई। अकालियों को सियासी मात देने के लिए दमदमी टकसाल से जुड़े हुए गुरुवाणी प्रचारक संत जरनैल सिंह भिंडरांवाला को ज्ञानी जैल सिंह ने 1980 में आगे किया था। तब तक इंदिरा गांधी ने इस ‘संत’ का नाम तक नहीं सुना था।

संत भिंडरांवाला ने गुरदासपुर और अन्य जगहों पर चुनाव के दरमियान कांग्रेस प्रत्याशियों के हक में वोट मांगे थे। तब पंजाब के एक अन्य कद्दावर नेता थे दरबार सिंह। वह बाद में मुख्यमंत्री बनाए गए और छत्तीस का आंकड़ा होने की वजह से ज्ञानी जैल सिंह ने उन्हें बर्खास्त करवा कर राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू करवा दिया था।

दरबार सिंह ने तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को कई बार सचेत किया था कि अकालियों को हाशिए पर धकेलने की ज्ञानीजी की कवायद के गंभीर नतीजे निकल सकते हैं और संत जरनैल सिंह भिंडरांवाला बेकाबू हो सकता है। यही हुआ भी। आखिरकार संत जरनैल सिंह भिंडरांवाला ने पवित्रतम श्री स्वर्ण मंदिर साहिब को अपनी अंतिम पनाहगाह बना लिया। वह और उसके साथी जान गए थे कि अब उन्हें काबू करने के लिए भारतीय राज्य-व्यवस्था किसी भी हद तक जा सकती है। (इसलिए भी कि पाकिस्तान से उन्हें हथियार और पैसे मिलने शुरू हो गए थे)।

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स्वर्ण मंदिर में जरनैल सिंह भिंडरांवाला

इंदिरा गांधी ने कई विकल्प इस्तेमाल किए। अशांत पंजाब में सीआरपीएफ और बीएसएफ की तैनाती बड़ी तादाद में की गई। राज्य पुलिस न केवल नाकाम साबित हो रही थी बल्कि अवाम में उसका इकबाल एकदम खत्म हो गया था। हालात सीआरपीएफ और बीएसएफ की तैनाती के बाद भी बेकाबू रहे तो सुगबुगाहट उठने लगी कि इंदिरा गांधी श्री स्वर्ण मंदिर साहिब में सैन्य कार्रवाई के आदेश दे सकतीं हैं। तब पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर उन्हें यह सलाह देने गए थे कि वह ऐसा कदम हरगिज न उठाएं। इससे पूरे सिख समुदाय की भावनाएं बेहद आहत होंगीं।

बहुत बाद में इन पंक्तियों के लेखक को चंद्रशेखर ने खुद बताया था कि इंदिरा गांधी नहीं चाहतीं थीं कि गोल्डन टेंपल में फौज भेजी जाए लेकिन उनकी मंशा थी कि वह जगह संत जरनैल सिंह भिंडरांवाला और उनके साथी छोड़ दें। नहीं तो अंतिम विकल्प सैन्य कार्रवाई होगी। आखिरकार ऑपरेशन ब्लू स्टार हुआ। इसके नेतृत्व के लिए जनरल कुलदीप सिंह बराड़ को चुना गया जो 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के नायक रहे थे।

जनरल कुलदीप सिंह बराड़ 16 दिसंबर 1971 को ढाका में प्रवेश करने वाले पहले भारतीय सैनिक अधिकारी के तौर पर भी अपनी अलहदा पहचान रखते थे। ऑपरेशन ब्लू स्टार से क्या हासिल हुआ और क्या नहीं, इससे सब बखूबी वाकिफ हैं। इसके नतीजे मुफीद कम, नागवार ज्यादा साबित हुए। अलबत्ता तत्कालीन राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह के अतिप्रिय तथा उनकी विशेष ‘खोज’ संत जरनैल सिंह और उनके हथियारबंद सहयोगी ऑपरेशन ब्लू स्टार में खेत रहे। सैनिकों के साथ-साथ कई बेगुनाह श्रद्धालु भी मारे गए।

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ऑपरेशन ब्लूस्टार / स्वर्ण मंदिर

बड़ा सवाल है कि ऑपरेशन ब्लू स्टार के तकरीबन तीन दशक के बाद जनरल कुलदीप सिंह बराड़ यह कहने के लिए आगे क्यों आए कि जरनैल सिंह भिंडरांवाला को इंदिरा गांधी ने शह दी? अपने मूल अर्थों में यह एक राजनीतिक टिप्पणी है और इसके निहितार्थ भी बेहद सियासी हैं। पूछा जा सकता है कि जनरल बराड़ इतने साल खामोश क्यों रहे। अपवाद छोड़ दें तो आमतौर पर कुछ सैन्य अधिकारी अतीत में हो चुके अहम ऑपरेशनों की बाबत आमतौर पर खामोश रहते हैं।

लेकिन तकरीबन तीन दशक के बाद, ‘गोदी मीडिया’ का हिस्सा बनी समाचार एजेंसी के जरिए एकाएक सामने आकर और यह सब कुछ बोल कर जनरल बराड़ ने साबित कर दिया कि वह अपवाद नहीं हैं। एक आला फौजी अफसर ने तत्कालीन सरकार के आदेशानुसार एक अति संवेदनशील ऑपरेशन को सिरे चढ़ाया और अब अपनी टिप्पणियों के जरिए राजनीतिक संदेश दे रहा है। वह भी तब जब सरहदी सूबे पंजाब को अशांत करने की कोशिशें नए सिरे से जारी हैं और सुदूर विदेशों में खालिस्तान के लिए अभियान चलाया जा रहा है।

केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार लोकसभा चुनाव की दहलीज पर है और राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा से वो बेतहाशा बौखलाई हुई है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का ‘सिख जोड़ो’ अभियान अपने शिखर पर है। इस सबके बीच जनरल कुलदीप सिंह बराड़ अपनी टिप्पणियों के जरिए क्या किसी के इशारे पर कोई निशाना साध रहे हैं? प्रसंगवश, प्रमुख राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल भी ऑपरेशन ब्लू स्टार का ब्लूप्रिंट बनाए जाने से पहले उसका एक हिस्सा रहे हैं।

जनरल कुलदीप सिंह बराड़ के इंटरव्यू के चंद घंटों के बाद ही पूरी दुनिया से सवाल उठने शुरू हो गए हैं कि क्या अजीत डोभाल जनरल बराड़ के इंदिरा गांधी की संत जरनैल सिंह भिंडरांवाला को शह के बयान पर कुछ बोलेंगे? यहां यह भी याद रखना प्रासंगिक होगा कि भाजपा के तब के दिग्गज नेता और पूर्व उप प्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी ने ऑपरेशन ब्लू स्टार का खुला समर्थन किया था और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने भी।

देखना होगा कि भाजपा और संघ जनरल कुलदीप सिंह बराड़ के कथन पर क्या रुख अख्तियार करते हैं? जो हो, जनरल बराड़ ने अपनी टिप्पणियों से बारूद के ढेर में एक तीली तो जाने-अनजाने फेंक ही दी है।

(अमरीक वरिष्ठ पत्रकार हैं और पंजाब में रहते हैं)

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