पुतिन के बयान के मायने और यूक्रेन युद्ध रुकवाने में मोदी की भूमिका 

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रूस के राष्ट्रपति व्लादीमीर पुतिन का यह बयान दुनिया भर में सुर्खियों में आया है कि यूक्रेन में शांति के लिए भारत, चीन और ब्राजील मध्यस्थ की भूमिका निभा सकते हैं।

इस बारे में पश्चिमी मीडिया में यह अनुमान भी लगाया गया है कि अब पुतिन संभवतः युद्ध से थक गए हैं और वे इससे निकलने का रास्ता तलाश रहे हैं। क्या सचमुच पुतिन की पेशकश को इस रूप में समझा जाना चाहिए?

बहरहाल, इस बात अथवा पुतिन की पेशकश के अर्थ को समझने के लिए उचित यह होगा कि उस संदर्भ पर गौर किया जाए, जिसमें पुतिन ने उपरोक्त महत्त्वपूर्ण बयान दिया है।   

सबसे पहले पुतिन के शब्दों पर गौर करते हैं, जो रूसी शहर व्लादीवोस्तोक में ईस्टर्न इकॉनमिक फोरम (ईईएफ) के सम्मेलन में एक पैनल डिस्कसन के दौरान उन्होंने कही। पुतिन ने कहा- ‘अगर यूक्रेन में बातचीत की इच्छा हो, तो मैं इसके लिए तैयार हूं। हम अपने दोस्तों और सहभागियों- खास कर चीन, ब्राजील और भारत का सम्मान करते हैं, जो मेरी राय में इस टकराव से संबंधित सभी मुद्दों को हल करने के प्रति गंभीर हैं।’

पुतिन के यह कहने के बाद क्रेमलिन (रूसी राष्ट्रपति कार्यालय) के प्रवक्ता दिमित्री पेस्कोव ने रूस के अखबार इजवेस्तिया से बातचीत में भारत की उस संभावित भूमिका के बारे में बताया, जिसकी रूस को अपेक्षा है। उन्होंने कहा कि यूक्रेन से बातचीत शुरू करवाने में भारत मददगार हो सकता है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और पुतिन के बीच ‘अति रचनात्मक, बल्कि दोस्ताना संबंध’ का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि भारतीय प्रधानमंत्री इस स्थिति में हैं कि लड़ाई में शामिल दोनों पक्षों से वे सीधी सूचना प्राप्त कर सकते हैं। वे पुतिन, जेलेन्स्की (यूक्रेन के राष्ट्रपति) और अमेरिका से ‘मुक्त संवाद’ कर सकने की स्थिति में हैं। लेकिन लगे हाथ पेस्कोव ने स्पष्ट किया कि इस मुद्दे पर मध्यस्थता की भारत की कोई ‘विशिष्ट योजना’ अभी मौजूद नहीं है।

इस सिलसिले में उल्लेखनीय है कि चीन और ब्राजील यूक्रेन युद्ध खत्म कराने के लिए अपनी तरफ से अलग-अलग शांति योजना पेश कर चुके हैं। फिर दोनों ने एक साझा पहल की इच्छा भी जताई थी। चीन ने 12 सूत्री शांति योजना अपनी वैश्विक सुरक्षा पहल (Global Security Initiative) के दायरे में तैयार की है।

इस पहल का केंद्रीय बिंदु यह है कि दुनिया की सुरक्षा अविभाज्य है- यानी अलग-अलग देश को अपने हितों के अनुरूप सुरक्षा को परिभाषित नहीं करना चाहिए। सबकी सुरक्षा तभी सुनिश्चित हो सकती है, जब सभी देश एक का लाभ दूसरे के लिए हानि (zero sum game) की सोच बाहर निकलें। 

चीन ने फरवरी 2023 में 12 सूत्री योजना पेश की। इसके साथ ही उसने एक शांति दूत भी नियुक्त किया था। लेकिन इन पहल से बात कहीं आगे नहीं बढ़ी है। चीनी योजना के कुछ खास पहलू हैः

  • संप्रभुता का सम्मानः सभी देशों की स्वतंत्रता और प्रादेशिक अखंडता की गारंटी
  • रूस और यूक्रेन के बीच सीधी बातचीत की शुरुआत
  • सभी परमाणु संयंत्रों की सुरक्षा को सुनिश्चित करना
  • रासायनिक, जैविक या परमाणु हथियारों के इस्तेमाल पर निषेध
  • और, (रूस पर लगाए गए) सभी एकतरफा प्रतिबंधों की समाप्ति

ब्राजील ने अपनी शांति योजना इसी वर्ष मई में पेश की। इसकी खास बातें हैं

  • शांति वार्ता के लिए मध्यस्थता हेतु देशों के एक समूह की स्थापना। इस समूह में चीन, भारत और इंडोनेशिया को रखा जा सकता है। 
  • युद्ध में तेजी ना आए, इसे सुनिश्चित करना
  • रूस और यूक्रेन प्रत्यक्ष वार्ता करें और साथ ही एक अंतरराष्ट्रीय शांति सम्मेलन का आयोजन हो। 
  • परमाणु संयंत्रों पर हमला ना करने का वादा दोनों देश करें। 

इस वर्ष मई में ही चीन के विदेश मंत्री वांग यी और ब्राजील के राष्ट्रपति के मुख्य सलाहकार सेल्सो एमोरिम बीजिंग में मिले। इसके बाद ब्राजील और चीन की तरफ से छह सूत्री साझा शांति योजना पेश की गई। इसमें मुख्य रूप से दोनों देशों की अलग-अलग पेश शांति योजना का सार है। (https://www.gov.br/planalto/en/latest-news/2024/05/brazil-and-china-present-joint-proposal-for-peace-negotiations-with-the-participation-of-russia-and-ukraine)

इसी महीने दक्षिण अफ्रीका ने चीन और ब्राजील की छह सूत्री साझा शांति योजना को अपना पूरा समर्थन देने का एलान किया है। (South Africa supports China and Brazil’s peace plan to end war in Ukraine (msn.com)) इस सिलसिले में हमने दक्षिण अफ्रीका का उल्लेख इसलिए किया, क्यों वह भी ब्रिक्स समूह का सदस्य है।

ब्रिक्स का जिक्र इसलिए यहां जरूरी है, क्योंकि पुतिन ने जिन देशों की मध्यस्थता को गंभीरता से लेने की बात कही है, वे तीनों ब्रिक्स के संस्थापक सदस्य हैं। ब्रिक्स अपने मूल रूप में ब्रिक था। दक्षिण अफ्रीका इसमें बाद में शामिल हुआ, तब यह ब्रिक्स हो गया। इस साल जनवरी में पांच नए सदस्यों के इससे जुड़ने के बाद से इस मंच को ब्रिक्स प्लस के नाम से जाना जाता है। 

यह महत्त्वपूर्ण है कि पुतिन ने किसी संभावित शांति पहल को ब्रिक्स के दायरे में समेट कर देखा है। इस तरह उन्होंने साफ किया है कि वे इस विवाद के हल में ब्रिक्स की केंद्रीय भूमिका देखते हैं। पुतिन की विश्व दृष्टि में ब्रिक्स दुनिया का संभवतः सबसे अहम मंच हो गया है।

ईईएफ और यूरेशियन इकॉनमिक यूनियन (ईएईयू) जैसे मंचों को ब्रिक्स के बड़े दायरे से जोड़ कर अमेरिका और नाटो केंद्रित विश्व ढांचे के समानांतर एक नई विश्व व्यवस्था कायम करना पुतिन का अब घोषित उद्देश्य बन गया है।

इस मकसद से चूंकि उन्होंने चीन के साथ ऐसी ‘दोस्ती’ की है, ‘जिसकी कोई सीमा नहीं है’, तो चीन की केंद्रीय भूमिका वाले शंघाई सहयोग संगठन जैसे मंचों को भी वे इस पहल का प्रमुख हिस्सा मानते हैं।

पुतिन को यह मालूम है कि निकट भविष्य में यूक्रेन युद्ध का कोई समाधान नहीं है। इसकी वजह यूक्रेन संबंधी नीतिगत निर्णयों का कीव (यूक्रेन की राजधानी) में स्थित ना रह जाना है। ये निर्णय सीधे वॉशिंगटन में लिए जाते हैं।

इस बात का स्पष्ट उदाहरण 2022 में युद्ध शुरू होने के दो महीने बाद इंस्ताबुल में तुर्किये की पहल हुई शांति वार्ता है, (The Sticking Points That Kept Russia and Ukraine Apart – The New York Times (nytimes.com)), जिसमें लड़ाई खत्म करने की शर्तों पर सहमति बन गई थी। लेकिन तब अमेरिकी शह पर तत्कालीन ब्रिटिश प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन ने कीव की यात्रा की और उसके बाद यूक्रेन समझौते से मुकर गया। (U.S. repeatedly blocked Ukraine peace deals; is it rethinking its strategy yet? – People’s World (peoplesworld.org))

जहां तक चीन और ब्राजील के शांति प्रस्तावों की बात है, तो अमेरिका उन्हें पहले ही ठुकरा चुका है। चीन के निष्पक्ष मध्यस्थ हो सकने की संभावना पर संदेह जताते हुए उसने बार-बार कहा है कि वह अंतिम घड़ी तक यूक्रेन को अपना समर्थन जारी रखेगा। (Putin’s Mediation Proposal: Can China, Brazil, And India Navigate The Ukraine Crisis? – Analysis – Eurasia Review). 

अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन कह चुके हैं कि नाटो “अंतिम यूक्रेनी” (यानी जब तक एक भी यूक्रेनवासी जीवित बचेगा) तक समर्थन जारी रखेगा। 

यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदीमीर जेलेन्स्की अपनी संसद से ऐसा कानून पारित करवा चुके हैं, जिसके मुताबिक व्लादीमीर पुतिन प्रशासन से बातचीत करना अपराध है। वैसे भी जेलेन्स्की की डोर वॉशिंगटन में है और उनसे इस्तांबुल में वार्ता कर रूस एक बार अपने हाथ जला चुका है।

इस बीच जब हाल में यूक्रेन ने रूसी इलाके कर्क्स पर हमला किया, तो उसके बाद रूस यह एलान कर चुका है कि अब यूक्रेन से बातचीत की कोई संभावना नहीं बची है।

इस पृष्ठभूमि में कहा जा सकता है कि पुतिन का भारत, चीन और ब्राजील की मध्यस्थता में भरोसा जताना महज एक दांव है। इससे यूक्रेन युद्ध खत्म होने या शांति स्थापित होने की कोई नई संभावना नहीं जगी है। 

निकट भविष्य में ऐसी संभावना सिर्फ एक स्थिति में बन सकती है, अगर अमेरिका में नवंबर में होने वाले राष्ट्रपति चुनाव में डॉनल्ड ट्रंप विजयी हो जाएं। ट्रंप ने एलान किया है कि ह्वाइट हाउस में प्रवेश करने (अर्थात 21 जनवरी 2025) से पहले यह युद्ध वे रुकवा देंगे।

उनकी बात को इसलिए गंभीरता से लिया गया है, क्योंकि ट्रंप अमेरिकी शासक वर्ग के उस हिस्से की नुमाइंदगी करते हैं, जिसकी राय में बाइडेन प्रशासन ने अपनी रणनीतिक भूल के जरिए रूस को चीन के करीब धकेल दिया है। 

इस समूह की राय में अमेरिका का हित रूस और चीन में दूरी बनाए रखने में है। समझ यह है कि अमेरिका के लिए बुनियादी खतरा रूस नहीं, बल्कि चीन है।

वैसे बाइडेन प्रशासन ने भी अपने सुरक्षा नीति दस्तावेज में कहा है कि चीन अकेला देश है, जिसके पास दुनिया पर अमेरिकी वर्चस्व तोड़ने की इच्छाशक्ति और क्षमता है। ऐसे में रूस और चीन की धुरी बन जाने को यह समूह अमेरिकी हितों के खिलाफ मानता है। 

पहले रूस को युद्ध की तरफ धकेल कर और फिर उस पर सख्त से सख्त प्रतिबंध लगा कर बाइडेन प्रशासन ने अमेरिका को एक बड़ा नुकसान यह पहुंचाया कि इससे डॉलर मुक्त अंतरराष्ट्रीय व्यापार व्यवस्था के ठोस रूप लेने का मार्ग प्रशस्त हो गया है। विभिन्न देशों के बीच आपसी मुद्रा में व्यापार करने का चलन आज एक मजबूत परिघटना बन गया है। 

संभावना है कि कजान में होने वाले ब्रिक्स शिखर सम्मेलन के दौरान आपसी मुद्राओं में अंतरराष्ट्रीय भुगतान के ब्लॉकचेन तकनीक पर आधारित एक सिस्टम को लॉन्च किया जाएगा। यह संभावित व्यवस्था डॉलर आधारित भुगतान के सिस्टम स्विफ्ट ( Society for Worldwide Interbank Financial Telecommunications) के विकल्प के तौर पर काम करेगी।

यह सिस्टम कारगर रहा, तो उसे डॉलर के वर्चस्व पर एक तगड़ा प्रहार माना जाएगा। डॉलर का वर्चस्व दुनिया पर अमेरिकी वर्चस्व का सबसे मजबूत स्तम्भ रहा है। इसके कमजोर पड़ने का अमेरिकी अर्थव्यवस्था पर बेहद नकारात्मक प्रभाव होगा। 

यूक्रेन युद्ध शुरू होने के बाद पुतिन प्रशासन डॉलर के विकल्प की तलाश में रहा है। पहले ब्रिक्स की अपनी करेंसी जारी करने पर विचार हुआ। लेकिन उसे व्यावहारिक ना पाकर ऐसे सिस्टम को शुरू करने का प्रयास शुरू हुआ, जिससे विभिन्न देश अपनी मुद्राओं में भुगतान कर सकें। 

तो कुल मिलाकर कहानी यह है कि पुतिन चीन के साथ मिल कर एक ऐसी धुरी तैयार करने में जुटे हैं, जो पश्चिम के वर्चस्व से ग्लोबल साउथ के देशों को मुक्त कर सके। इस प्रयास में उन्होंने ब्रिक्स को केंद्रीय भूमिका में रखा है। यह हकीकत है कि पिछले दो वर्षों में ब्रिक्स के विस्तार के लिए जितना उत्साह रूस ने दिखाया है, उतना बाकी सदस्य देशों ने नहीं दिखाया है।

पिछले वर्ष पांच नए सदस्य देशों को जोड़ने के बाद पुतिन इस बार कई नए सदस्य बनाना चाहते हैं। यह हो पाएगा या नहीं, यह काफी कुछ भारत (और चीन) के रुख पर निर्भर करता है। ब्रिक्स में फैसले सर्व-सहमति से होते हैं, इसलिए कोई एक भी देश किसी निर्णय को रोकने की स्थिति में रहता है। 

व्लादीवोस्तोक में पुतिन ने जो कहा, उसे इसी बड़े संदर्भ में देखना चाहिए। यह संभवतः उनको भी मालूम है कि यूक्रेन युद्ध निकट भविष्य में खत्म नहीं होने जा रहा है। लेकिन ये बात दो टूक कह कर वे ब्रिक्स में अपने सहभागी देशों- भारत, चीन और ब्राजील को मायूस नहीं करना चाहते हैं।

इसीलिए इन देशों के शांति प्रयासों को उन्होंने अपना समर्थन दिया है। वैसे शायद उन देशों को भी यह मालूम होगा कि उनकी पहल और प्रयास फिलहाल एक सदिच्छा भर हैं- उनसे जमीनी सूरत नहीं बदलने जा रही है।

(सत्येंद्र रंजन वरिष्ठ पत्रकार हैं।)

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