Wednesday, April 24, 2024

मेधा पाटकर मानती हैं कि अभी काम बाकी है

नर्मदा बचाओ आंदोलन की नेता मेधा पाटकर ने भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की आठ बरस पुरानी सरकार और उनकी भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की विभिन्न राज्य सरकारों द्वारा प्रोत्साहित फिल्म कश्मीर फाइल्स की सच्चाई संबंधी वैश्विक विवाद पर तंज में कहा कि गुजरात फाइल्स फिल्म भी बनाई जानी चाहिए। उनके मुताबिक इस फिल्म से मोदी जी के गृह राज्य गुजरात में उनके ही मुख्यमंत्रित्व काल में 2002 में हुए गोधरा कांड और अन्य सांप्रदायिक दंगों की सच्चाई लोगों के सामने लाई जानी चाहिए। उन्होंने हरियाणा के रोहतक शहर में शिक्षाविद और दिल्ली विश्वविद्यालय के एक कालेज के अंग्रेजी विभाग के दिवंगत प्रोफेसर डीआर चौधरी के निधन की पहली बरसी पर उनकी स्मृति में 4 जून 2022 को आयोजित एक लेक्चर में ये बात जोर देकर कही। उन्होंने लेक्चर के बाद पत्रकारों से अनौपचारिक बातचीत में भी मोदी सरकार के कामकाज की तीखी आलोचना की। उनके मुताबिक भारत में ही नहीं बल्कि दुनिया भर में पूंजीपति वर्ग अपने पांव पसार रहा है। शासक भी इसमें उनका साथ दे रहे हैं। इसके चलते हमारे समाज में गैर-बराबरी बढ़ती जा रही है। यह गैर बराबरी देश के लिए बहुत घातक है। इस गैर बराबरी को चुनौती देना जरूरी है।

इसके लिए किसान आंदोलन जैसे जन आंदोलन की आवश्यकता है। जन आंदोलन से ही इसमें कामयाबी हासिल की जा सकती है। भारत में पूंजीपतियों और सरकार का गठबंधन चल रहा है। सत्ताधारियों के माध्यम से कानून भी बदलवाए जाते हैं। कुछ कानून देश की जनता पर थोपे जा रहे हैं। मोदी सरकार के बनाये तीन कृषि कानून इसका उदाहरण हैं। पर इसके खिलाफ जोरदार किसान आंदोलन चला और अप्रतिम एकजुटता से उसमें सफलता भी मिली है। जनआंदोलन के माध्यम से देश के विकास की दिशा में बदलाव लाया जा सकता है। उन्होंने देश को बचाने शिक्षाविदों ,सामाजिक कार्यकर्ताओं, पूर्व प्रशासनिक अधिकारियों, महिला कार्यकर्ताओं , छात्रों आदि से आगे बढ़ने का आह्वान किया। उनका कहना था इन सबकी निर्णायक भूमिका है जो उन्हें अदा करनी चाहिए। उनके मुताबिक किसान आंदोलन देश की जनता की क्षमताओं की जीवंत गाथा है।

उन्होंने कहा जल, जंगल, जमीन को बचाना एक बड़ी चुनौती बन गई है। 13 माह के किसान आंदोलन के शीर्ष नेतृत्व में शामिल रहीं मेधा पाटकर ने कहा कि यह ऐतिहासिक आंदोलन जमीन बचाने का ही आंदोलन था। लेकिन तीन कृषी कानूनों की मोदी सरकार द्वारा वापसी के कदम के बावजूद सत्ताधारी वर्ग चोर दरवाजे से बड़े पूँजीपतियों की कारपोरेट परस्त नीतियों को थोपकर जनता को भुखमरी की तरफ धकेलने के रास्ते पर चल रहा है। हाईवे और फ्लाईओवर का निर्माण ही विकास नहीं होता बल्कि आम लोगों की आजीविका की स्थाई व्यवस्था करके ही देश को मजबूत किया जा सकता है। आंदोलनकारियों को सरकार की विकास की नीति की मौजूदा अवधारणा को चुनौती देकर बुनियादी परिवर्तन लाने के लिए लोगों को लामबंद करना होगा। देश में खाद, बीज, दवाई आदि पर पहले से ही कारपोरेट का वर्चस्व है। मोदी जी के बहुत नजदीकी उद्योगपति गौतम अडानी के इन कृषि कानूनों के पारित होने के पहले से बनाए बड़े-बड़े साइलोस यानि अन्न भंडारों को उन कानूनों के संसद में किये गए निरस्तीकरण के बाद केंद्र सरकार के अधीन भारतीय खाद्य निगम यानि एफसीआई ने ऊंची दरों पर किराए पर ले लिया है।

मेधा पाटकर हरियाणा आती रही हैं। वह किसान आंदोलन के दौरान राज्य के एक प्रमुख केंद्र सिरसा गई थीं। भारत की कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया मार्क्सवादी यानी सीपीएम से जुड़े जनसंगठनजनवादी महिला समिति की राष्ट्रीय उपाध्यक्ष जगमति सांगवान ने सामाजिक बदलाव में जन आंदोलनों की भूमिका विषय पर इस लेक्चर के आयोजन की सभा की अध्यक्षता की। कार्यक्रम में दिवंगत डीआर चौधरी की पत्नी परमेश्वरी देवी, बड़े पुत्र प्रो. भूपेंद्र चौधरी, छोटे पुत्र और बहुचर्चित फिल्म धूप के निर्देशक फिल्मकार अश्विनी चौधरी, बेटी प्रो. कमला चौधरी , नई दिल्ली के जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) में पढ़ने के बाद महर्षि दयानन्द विश्वविद्यालय, (रोहतक) में प्राध्यापक रहे प्रख्यात कवि मनमोहन भी मौजूद थे। इस मौके पर नर्मदा बचाओ आंदोलन की एक अंग्रेजी पुस्तक के चिन्मय मिश्र द्वारा हिंदी अनुवाद नर्मदा घाटी से बहुजनगाथाएं का विमोचन किया गया। 247 पेज और 350 रुपये मूल्य की इस पुस्तक को दिल्ली के नवारूण प्रकाशन ने छापा है। इस अवसर पर मेधा पाटकर को डीआर चौधरी द्वारा लिखित पुस्तकें भेंट की गईं।

मेधा पाटकर ने उनके खिलाफ लंबी कानूनी लड़ाई लड़ चुके दिल्‍ली के नए उपराज्यपाल के रूप में विनय कुमार सक्सेना की नियुक्ति को लेकर भी मोदी सरकार की तीखी आलोचना की जो 2015 में खादी एवं ग्रामोद्योग आयोग का अध्यक्ष बने थे। उपराज्यपाल सक्सेना ने गुजरात में मेधा पाटकर और सामाजिक कार्यकर्ता तीश्ता सेतलवाड को मुकदमों में घसीटा था। मेधा पाटकर ने जब सक्सेना पर सरकारी योजनाओं से बेजा व्यक्तिगत लाभ उठाने का आरोप लगाया तो उन्होंने उन पर मानहानि का मुकदमा दाखिल कर दिया था। इस पर पाटकर ने भी सक्सेना के खिलाफ मुकदमा दाखिल किया था। इन मुकदमों को बाद में गुजरात से दिल्ली स्थानांतरित कर दिया गया। सक्सेना ने मानवाधिकार कार्यकर्ता तीश्ता सेतलवाड पर गुजरात के दंगा पीड़ितों के लिए राहत के नाम पर विदेशों से धन लेकर उसका अवैधानिक इस्तेमाल करने का मुकदमा दाखिल किया। पायलट की डिग्री लेने के बाद कानपुर विश्वविद्यालय से उच्च शिक्षा हासिल करने वाले सक्सेना को 2019 में जेएनयू के अकादमिक यूनिवर्सिटी कोर्ट में नामित किया गया था। वह राजस्थान में सहायक अधिकारी से कैरियर शुरु करने के बाद गुजरात में बंदरगाह महाप्रबंधक भी रहे। वह और दिल्ली के मौजूदा पुलिस आयुक्त राकेश अस्थाना विगत में गुजरात में अपनी तैनाती के दिनों से गहरे मित्र हैं।

मुंबई में 1 दिसम्बर 1954 को पैदा हुईं मेधा पाटकर पर्यावरण आंदोलन में भी लगी हैं। उनके पिता स्वतंत्रता सेनानी थे। नर्मदा नदी महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश तथा गुजरात से बहकर अरब सागर में मिलती है। सरकार ने इस नदी पर अनेक छोटे बांध और विशाल धनराशि के खर्च से सरदार सरोवर बांध बनाने की अनुमति दी थी। इस बड़े बांध से हज़ारों आदिवासियों और किसानों का अहित हो रहा था। आदिवासियों का विस्थापन हो रहा था। उसके लिये उन्हें मुआवजा भी नहीं दिया जा रहा था। मेधा पाटकर ने इस अन्याय से लड़ने के लिए अपना पूरा समय, नर्मदा आंदोलन को समर्पित कर दिया।

इसके लिए उन्होनें मुंबई के टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइन्सेज (टिस) से एमए करने के बाद पीएचडी की पढ़ाई अधूरी छोड़ दी। वह लोकसभा के 2014 के चुनाव में दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल की आम आदमी पार्टी (आप) की प्रत्याशी के तौर पर मुंबई उत्तर पूर्व सीट पर अपनी चुनावी किस्मत आजमाई थीं। लेकिन तब वह चुनाव जीतने में विफल रहीं। बहरहाल, वह चुनावी हार के बाद घर नहीं बैठीं और जगह-जगह जाकर जन आंदोलनों को प्रोत्साहित करती रहती हैं। उन्होंने खुद समझ लेने के बाद सभी आन्दोलनकारियों को भी यह समझाना शुरू कर दिया है कि ‘अभी बहुत काम बाँकी है, बहुत आगे बढ़ना है।

(सीपी नाम से चर्चित पत्रकार,यूनाईटेड न्यूज ऑफ इंडिया के मुम्बई ब्यूरो के विशेष संवाददाता पद से दिसंबर 2017 में रिटायर होने के बाद बिहार के अपने गांव में खेतीबाड़ी करने और स्कूल चलाने के अलावा पुस्तक लेखन और स्वतंत्र पत्रकारिता करते हैं।)

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