Thursday, April 25, 2024

‘केरल स्टोरी’ से प्रेरित शिवराज सरकार ने गंगा-जमुना स्कूल को बताया धर्मांतरण का केंद्र

मध्य प्रदेश के दामोह जिले में एक स्कूल की मान्यता रद्द कर दी गई है। स्कूल का नाम गंगा-जमुना हायर सेकेंडरी स्कूल है। इस स्कूल को लेकर पिछले 10 दिनों से मध्य प्रदेश की राजनीति गरमाई हुई है। ताजा खबर है कि गंगा-जमुना स्कूल की न सिर्फ मान्यता रद्द कर दी गई है, बल्कि हिजाब मामले पर स्कूल की कमेटी के 11 सदस्यों के खिलाफ पुलिस ने आईपीसी की विभिन्न धाराओं सहित जेजे एक्ट के तहत मामला दर्ज कर लिया गया है।

हालांकि हाल के महीनों में मध्य प्रदेश के गृहमंत्री नरोत्तम मिश्रा के बालीवुड फिल्मों को लेकर आने वाले बयान लगातार देश की मीडिया के लिए एक जरूरी खबर बन चुके थे, लेकिन अब चूंकि राज्य में विधानसभा चुनाव की घड़ी नजदीक आ गई है, इसलिए अब बालीवुड से काम नहीं चल सकता। अब मसालेदार विभाजनकारी मुद्दों के स्थान पर उन स्थानीय मुद्दों से हिंदू-मुसलमान राजनीति की डेग पर जायकेदार भोजन तैयार किया जा सकता है, जिससे राज्य के हिंदू बहुल समुदाय में अपने बच्चों के भविष्य के प्रति भय उत्पन्न हो सके।

और यह मसाला दे दिया है गंगा जमुना स्कूल ने, जिसके पोस्टर से यह मामला शुरू हुआ था। हुआ यूं कि गंगा-जमुना स्कूल ने अपने स्कूल के विद्यार्थियों की सफलता को प्रदर्शित करते हुए एक पोस्टर निकाला जिसमें स्कूल के प्रतिभावान छात्र एवं छात्राओं की फोटो के साथ उनके अंक जारी किये गये थे। इन तस्वीरों में छात्राओं का चेहरा तो दिख रहा है, लेकिन सभी मुस्लिम-हिंदू छात्राओं ने सिर को कपड़े से ढका हुआ है।

इस पोस्टर पर निगाह पड़ते ही कुछ का माथा तब ठनका, जब उन्होंने पाया कि इसमें से तो कुछ नाम हिंदू लड़कियों के हैं।

हालांकि स्कूल की एक छात्रा ने कहा कि सलवार कुर्ता और स्कार्फ हमारे स्कूल का ड्रेस कोड है। स्कूल में किसी धर्म का कुछ भी नहीं सिखाया जाता।

दामोह के जिलाधिकारी की 30 मई की एक ट्विटर पोस्ट में गंगा जमुना स्कूल के बारे में कहा गया है, “गंगा जमुना स्कूल के एक पोस्टर को लेकर कुछ लोगों द्वारा फैलाई जा रही जानकारी को लेकर थाना प्रभारी कोतवाली और जिला शिक्षा अधिकारी से जांच कराने पर तथ्य गलत पाए गये। जांच समिति ने अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की।”

इस ट्वीट को मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और मध्य प्रदेश जनसंपर्क को टैग किया गया था।

इसके जवाब में दामोह के एसपी ने अपनी टिप्पणी देते हुए लिखा है, “जांच पर आरोप सिद्ध नहीं हुए।”

जब 30 मई को ही संबंधित अधिकारियों द्वारा स्कूल की तहकीकात कर आधिकारिक टिप्पणी कर दी गई थी, उसके बावजूद इस मुद्दे को तूल क्यों दिया गया?

मध्य प्रदेश के अखबार नई दुनिया ने 6 जून को जिला शिक्षा अधिकारी के ऊपर स्याही फेंके जाने के वीडियो को ट्वीट करते हुए लिखा: “जिला शिक्षा अधिकारी ने गंगा जमुना स्कूल को दी थी क्लीन चिट, भाजपा नेताओं ने फेंकी स्‍याही।”

इसके साथ ही स्कूल के ऊपर आरोप लग रहे हैं कि यहां पर लव जिहाद अभियान चल रहा है। इस स्कूल की लड़कियों का धर्मांतरण कराकर उन्हें हिंदू धर्म से मुस्लिम बनाया जा रहा है। इस पर तीन महिलाओं ने आगे आकर जिलाधिकारी के कार्यालय में अपना पक्ष रखा है। दैनिक भाष्कर की 7 जून की ग्राउंड रिपोर्ट का शीर्षक है: “गंगा जमुना स्कूल की टीचर्स बोलीं- मर्जी से बदला धर्म।” 

मुख्यमंत्री शिवराज सिंह ने अपने बयान में कहा है, “प्रदेश में कुछ जगह धर्मांतरण के कुचक्र चल रहे हैं। लेकिन हम उनको कामयाब नहीं होने देंगे। इस संबंध में हमने विशेषकर शिक्षण संस्थानों में जांच के भी निर्देश दे दिए हैं। भले ही मदरसे चलते हों, लेकिन यदि गलत ढंग से शिक्षा दी जा रही होगी तो हम उसकी जांच करेंगे। लेकिन दमोह की घटना में तो हमारे पास जो रिपोर्ट आ रही है, उससे पता चलता है कि यह तो बेहद गंभीर मामला है।”

एएनआई के 8 जून के वीडियो ट्वीट में मदरसों को लेकर पत्रकारों के सवाल पर मुख्यमंत्री ने कहा था, “किसी को भी धर्मांतरण की कोशिश करने की इजाजत नहीं दी जायेगी। ऐसी किसी ड्रेस कोड को जबरदस्ती लादने की इजाजत नहीं दी जा सकती जो भारतीय परंपरा और मूल्यों के अनुरूप न हो। घटना की जांच हो रही है, एफआईआर हो चुकी है, हम सभी मामलों की जांच करेंगे, और दोषियों को हम छोड़ेंगे नहीं।”

इस संदर्भ में जब जनचौक संवावदाता ने जानकारी जुटाने का जब प्रयास किया तो पता चला कि मुख्य रूप से सबसे पहले इस मामले का संज्ञान बाल अधिकार मामलों के राष्ट्रीय अध्यक्ष प्रियांक कानूनगो के द्वारा लिया गया। उनके 30 मई के ट्वीट में इस मुद्दे पर कहा गया है कि मध्यप्रदेश के दमोह ज़िले में एक स्कूल द्वारा हिंदू और अन्य ग़ैर मुस्लिम बच्चियों को स्कूल यूनीफ़ॉर्म के नाम पर जबरन बुर्का व हिजाब पहनाये जाने की शिकायत प्राप्त हुई है। इसका संज्ञान लिया जा रहा है एवं आवश्यक कार्रवाई हेतु कलेक्टर व पुलिस अधीक्षक दमोह को निर्देश प्रेषित किए जा रहे हैं। ट्वीट में मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री को टैग किया गया है।

लेकिन 31 मई को जब एक ट्विटर यूजर ने दमोह जिलाधिकारी एवं एसपी के ट्वीट का हवाला देते हुए प्रियांक कानूनगो को लिखा कि इस मामले में स्थानीय प्रशासन ने इसे गलत पाया है तो कानूनगो ने जवाबी ट्वीट में लिखा। “हिंदू और अन्य ग़ैर मुस्लिम बच्चों को इस्लामिक प्रथाओं का अभ्यास करवाना भारत के संविधान के अनुच्छेद 28 का उल्लंघन है, नोटिस भेज रहे हैं कलेक्टर को।

31 मई को ही राज्य के गृहमंत्री नरोत्तम मिश्रा ने संवाददाताओं को बताया “जिला शिक्षा अधिकारी से जांच कराई है। उनके परिवार वालों ने जांच में ऐसी कोई शिकायत नहीं की है। जिला शिक्षा अधिकारी स्वंय गये थे। इसके बावजूद मैंने पुलिस अधीक्षक को इसकी गहन जांच के लिए कहा है।”

31 मई के इस बयान में गृहमंत्री विभागीय जांच से संतुष्ट नजर आ रहे हैं, लेकिन अगले 3-4 दिनों में ऐसा क्या हुआ जो अचानक से पूरा मन्त्रिमंडल और देश का समूचा गोदी मीडिया गंगा-जमुना स्कूल की एक-एक ईंट को सूंघने में व्यस्त है। कुछ मीडिया के लोग तो दमोह में घूम-घूम बच्चों का मुह ढंककर उनसे सवाल-जवाब कर रहे हैं।

2 जून को एक अन्य ट्वीट में कानूनगो स्कूल के संचालक हादी इदरीस के नाम एक ट्वीट करते हैं: “स्कार्फ़ नहीं था हिजाब था, झूठ मत फैलाओ हाजी इदरीस। जांच चल रही है, आज राज्य बाल आयोग की टीम दमोह पहुंचेगी, जो कहना है वहीं कहना, मीडिया को प्रभावित कर जनभावनाएं भड़काकर सहानुभूति हासिल करने का ड्रामा चलने वाला नहीं है।”

गोया राष्ट्रीय बाल आयोग ही अब दमोह मामले की जांच कर रहा हो और राज्य सरकार सहित पुलिस प्रशासन को आवश्यक दिशा निर्देश दे रहा है।

2 जून को ही एक अन्य ट्वीट में कानूनगो जिलाधिकारी पर आरोप लगा रहे हैं: “चार्ल्स डारविन के मानव विकास क्रम के वैज्ञानिक सिद्धांत के विपरीत इस स्कूल में मानव उत्पत्ति का रूढ़िवादी इस्लामिक सिद्धांत बच्चों को सिखाया जा रहा है। शिक्षा विभाग के जिन अधिकारियों ने इस स्कूल को मान्यता देते समय इन गम्भीर मुद्दों को नज़रंदाज़ किया उन पर कार्रवाई की जाएगी। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान जी के निर्देश पर दमोह कलेक्टर द्वारा की जा रही जांच को प्रभावित करने के उद्देश्य से जांच के बीच में हाजी इदरीस बिल्डिंग की पुताई करवा कर साक्ष्य मिटा रहा है, इस सम्बंध में NCPCR द्वारा नोटिस जारी की जा रही है।”

2 जून को मुख्यमंत्री शिवराज सिंह ने दमोह के स्कूल की घटना का संज्ञान लिया और महिलाओं के लिए चलाए जा रहे एक कार्यक्रम, जिसकी पहली किश्त के तौर पर 1000 रुपये दिए जाने की शुरुआत करनी है, में घूम-घूमकर बेहद नाटकीय अंदाज में बोलते हुए शिवराज सिंह ने कहा कि “एक स्कूल मध्य प्रदेश की बेटियों को सिर पर स्कार्फ या उस जैसी चीज पहनने पर विवश कर रहा है, और भारत के बंटवारे के लिए जिम्मेदार व्यक्ति की कविता पढ़ाई जा रही है। मैं सावधान करना चाहता हूं कि एमपी की धरती पर में ऐसी चीजें नहीं चलेंगी। पीएम मोदी द्वारा लाई गई नई शिक्षा नीति को ही लागू करना होगा। यदि किसी ने दूसरी चीज पढ़ाई या शुरू की तो ऐसा स्कूल मध्य प्रदेश में चल नहीं पायेगा।”

यही वह भाषण था, जिसके बाद दमोह की यह खबर मध्य प्रदेश और देश की जानकारी में आई। तत्काल स्कूल की मान्यता निलंबित कर दी गई। हालांकि निलंबन का आधार स्कार्फ, हिजाब या अल्लामा इकबाल की “लब पे आती है दुआ बन के तमन्ना मेरी” न होकर प्रयोगशाला, टॉयलेट एवं अन्य इन्फ्रास्ट्रक्चर में अनियमितता को आधार बनाया गया था।

2 जून के बाद उड़ीसा में ट्रेन हादसे ने कुछ समय तक इस मामले को आगे नहीं बढ़ने दिया, लेकिन 7 जून से इस पर तेजी से कार्रवाई आगे बढ़ी और कानूनगो के एक और ट्वीट से जानकारी साझा की गई कि गंगा जमुना स्कूल ने भारत के नक्शे से छेड़छाड़ की है।

पूरे पैटर्न को देखने पर ऐसा जान पड़ता है कि राष्ट्रीय बाल अधिकार आयोग के अध्यक्ष प्रियांक कानूनगो इस पूरे अभियान को अपनी निगरानी में चला रहे हैं। इसके लिए वे राष्ट्रीय मीडिया चैनलों के कार्यक्रमों में भी जा रहे हैं। टीवी 9 भारतवर्ष के एक कार्यक्रम का वीडियो उनके टाइमलाइन पर देखा जा सकता है।

उनके पास गंगा जमुना स्कूल प्रबंधन की एक-एक हरकत की खबर है, ऐसा उनके टाइमलाइन को देखने से पता चलता है। उनके अनुसार, प्रशासन द्वारा अपने खिलाफ प्राथमिकी को वापस लेने के लिए उसका प्रबंधन जुमे के दिन एक बड़ा धार्मिक जुलूस निकालने की योजना बना रहा है। वे एमपी प्रशासन को दिल्ली से सूचित कर रहे हैं।

“दमोह मध्य प्रदेश में बच्चों का इस्लाम में धर्मांतरण करने के लिए ग्रूमिंग करने वाले स्कूल के संचालकों द्वारा सरकार पर FIR वापस लेने व धर्मांतरण विरोधी अधिनियम के तहत कार्रवाई न करने के लिए सरकार पर दबाव बनाने के उद्देश्य से जुम्मे की नमाज़ के बाद एक बड़ा धार्मिक जुलूस निकाले जाने की सूचना मिल रही है। जानकारी मिली है कि हाजी इदरीस बच्चों के अभिभावकों के छद्म आवरण में असमाजिक व अराजक तत्वों का भारी जमावड़ा कर सकता है एवं बच्चों उपयोग भी कर सकता है। प्रशासन को जानकारी दी जा रही है।

इतना ही नहीं 8 जून को प्रियांक कानूनगो के द्वारा ट्विटर स्पेस पर शुक्रवार रात 9:30 बजे चर्चा भी की गई, जिसे दैनिक भाष्कर ने कवर किया है।

बता दें कि प्रियांक कानूनगो मध्य प्रदेश के विदिशा जिले से आते हैं। भाजपा के सत्ता में आने के बाद 2015 से आप राष्ट्रीय बाल अधिकार के सदस्य और दो बार अध्यक्षता का पदभार संभाल रहे हैं। दूसरी बार इस पद का चेयरमैन बनाये जाने का प्रावधान न होने के बावजूद उन्हें 2021 में यह पद दिया गया है।

तमाम समाचार पत्रों एवं सोशल मीडिया की पड़ताल के बाद पता चलता है कि स्कार्फ में कुछ हिंदू परिवार की छात्राओं की तस्वीर पर उद्वेलित कुछ लोगों की शिकायत पर इस अंग्रेजी माध्यम वाले स्कूल की पहले मान्यता को निलंबित किया गया। हालांकि जिला शिक्षा अधिकारी एवं जिलाधिकारी (दोनों ही हिंदू हैं) की आरंभिक रिपोर्ट में स्कूल के खिलाफ कोई अनियमितता नहीं पाई गई, लेकिन भाजपा राज में दबाव और इस मुद्दे को तूल दिए जाने के बाद जब इसे तथाकथित राष्ट्रीय मीडिया ने अपने हाथ में ले लिया तो स्थानीय प्रशासन सहित मध्य प्रदेश के नेताओं ने भी इसमें बड़ा फायदा ढूंढ निकाला है।

जिला शिक्षा अधिकारी, एसके मिश्रा के ऊपर स्याही फेंककर उनका मुह काला किया जा चुका है, क्योंकि भाजपा कार्यकर्ताओं के अनुसार जिला शिक्षा अधिकारी ने गंगा जमुना हायर सेकेंडरी स्कूल को क्लीन चिट देने का अपराध किया था। मध्य प्रदेश के शिक्षा मंत्री इंदर सिंह परमार ने दमोह के जिला शिक्षा अधिकारी को बर्खास्त करने के आदेश मंगलवार को ही दे दिए थे। उनका आरोप है कि ‘डीईओ ने एक निजी स्कूल प्रशासन का पक्षपोषण किया है, जिसके खिलाफ छात्राओं को जबरन स्कार्फ पहनाने का गंभीर आरोप है। इतना ही नहीं शिक्षा मंत्री जिलाधिकारी मयंक अग्रवाल की भूमिका को लेकर भी सवाल उठा रहे हैं। स्कूल में कई गैरकानूनी गतिविधियां भी चल रही हैं। धर्मांतरण से लेकर आतंकी फंडिंग का मामला भी सामने आ रहा है।’

जिन 3 महिलाओं ने इस्लाम धर्म कबूला है, उनकी भी जांच करने की बात सामने आ रही है। मध्य प्रदेश प्रशासन उनके मौखिक बयानों से ही अब संतुष्ट होकर नहीं बैठने जा रहा है। उसके अनुसार धर्म परिवर्तन के लिए अर्जी दिए जाने की पड़ताल करके इसकी सत्यता की जांच की जायेगी। जाहिर सी बात है, अब जब पूरा मामला ही कथित राष्ट्रीय मीडिया ने संभाल लिया है, तो उसके द्वारा अब ‘केरल स्टोरी’ की तर्ज पर मध्य प्रदेश वर्जन की जीती-जागती तस्वीर भला कैसे नहीं आ सकती है।

विडंबना यह है कि मध्य प्रदेश में मुख्य विपक्षी पार्टी कांग्रेस स्वयं भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और आरएसएस के नक्शेकदम पर चलकर अगले विधानसभा चुनावों में जीत के ख्वाब देख रही है। उसके लिए कर्नाटक के चुनाव परिणामों का कोई अर्थ नहीं है। पिछले दिनों प्रदेश के सबसे बड़े नेता और मुख्यमंत्री पद के सबसे बड़े दावेदार कमलनाथ को एक नए-नए अवतरित बाबा धीरेन्द्र शास्त्री के चरणों में देखा गया था। दो दिन पहले ही बजरंग सेना की टुकड़ी गाजे-बाजे के साथ मध्य प्रदेश कांग्रेस में शामिल हुई है। ऐसे में इस बात की दूर-दूर तक संभावना नहीं लगती कि भाजपा के हिन्दुत्ववादी एजेंडे के खिलाफ मध्य प्रदेश में लोकतांत्रिक धर्मनिरपेक्षता के लिए कोई जगह बनती हो।

यह सिर्फ किसी एक स्कूल की मान्यता के रद्द कर दिए जाने का ही मसला होता तो कोई गंभीर बात नहीं थी। मध्य प्रदेश सहित उत्तर भारत में हजारों की संख्या में सरकारी स्कूलों के मानचित्र से गायब होते जाने की खबरों से देश वाकिफ है। यह मामला देश में तेजी से सिकुड़ते विवेक, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और देश की विविधता के खात्मे से संबंध रखता है। यह आजादी सिर्फ अल्पसंख्यक समुदाय के लिए ही नहीं खत्म की जा रही है, इसका असली मुआवजा असल में बहुसंख्यक समुदाय को ही भुगतान करना है, जिसके बारे में वह बेखबर होकर मूक दर्शक बना है।

मध्य प्रदेश में चंद स्वतंत्र सोच के प्रशासकीय अधिकारियों के लिए असल में यह खतरे की घंटी है, यदि उन्हें जिला शिक्षा अधिकारी और जिलाधिकारी का अंजाम पसंद नहीं तो वे भी कतार में शामिल होकर प्रतिष्ठा, प्रोन्नति और सफलता के शिखर को छू सकते हैं।

(रविंद्र पटवाल जनचौक की संपादकीय टीम के सदस्य हैं।)

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