Thursday, April 25, 2024

विशेष लेख: हिटलर के रास्ते पर बढ़ चले हैं मोदी!

दुनिया का क्रूरतम् तानाशाह एडोल्फ हिटलर 20 अप्रैल, 1889 को यूरोप के एक छोटे से देश ऑस्ट्रिया के एक छोटे से शहर वॉन में पैदा हुआ था। उसने द्वितीय विश्वयुद्ध में इस दुनिया में जुल्म, बर्बरता, क्रूरता और वहशीपना की एक अकथनीय इबारत लिख दी थी। वह 15 लाख नन्हें यहूदी बच्चों सहित 60 लाख यहूदी महिलाओं, पुरुषों और विकलांगों को गैस चैंबर में दम घोंटकर मार दिया। इसके अतिरिक्त उसके द्वारा पूरी दुनिया को भीषणतम् युद्ध में झोंकने की वजह से सैन्य विशेषज्ञों के अनुसार दुनिया भर में लगभग 7 करोड़ लोग अपने जीवन से हाथ धो बैठे। केवल जर्मनी जैसे छोटे से देश के 80 लाख सैनिक और 40 लाख असैन्य लोग तथा मित्र राष्ट्रों के 1 करोड़ 60 लाख सेना के जवान और 4 करोड़ 50 लाख जनता मरी।

लेकिन दुनिया भर पर अपना साम्राज्य स्थापित करने का सपना देखने वाला एडोल्फ हिटलर सोवियत संघ की बहादुर लाल सेना से बुरी तरह घिर जाने के बाद 30 अप्रैल, 1945 को बर्लिन शहर में जमीन से 50 फुट नीचे अपने अति सुरक्षित बंकर में अपने सिर में खुद ही गोली मारकर और अपनी मंगेतर को पोटैशियम साइनाइड खिलाकर सदा के लिए इस दुनिया को छोड़कर आत्महत्या कर रुखसत हो गया। वैसे कटु सच्चाई यह भी है कि द्वितीय विश्वयुद्ध में चूंकि हिटलर हार गया इसलिए विश्व मानवता की हत्या का सारा दोष हिटलर पर ही मढ़ दिया गया, लेकिन कटु सच्चाई यह भी है कि द्वितीय विश्वयुद्ध की शुरुआत कराने, क्रूरता करने और विश्व मानवता की हत्या करने में ब्रिटिश साम्राज्यवादियों का भी हिटलर से कोई कम हाथ नहीं है।

भारत के मौजूदा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी उसी एडोल्फ हिटलर के रास्ते पर बढ़ गए हैं। दोनों में अंतर केवल यही है कि जर्मनी की जगह यह भारत है, यहूदियों की जगह यहां मुसलमान, ईसाई और सिख हैं और बाकी सभी चीजें समान हैं मसलन हिटलर का झूठातंत्र, एक ही झूठ को बार-बार कहना, मीडिया पर कब्जा, मजदूरों, किसानों, मजदूर यूनियनों, यूनिवर्सिटी के छात्र यूनियनों, विरोध में मुद्दों को उठाने वाले वकीलों, प्रोफेसरों, कवियों, लेखकों, मानवाधिकार कार्यकर्ताओं आदि को फर्जीवाड़े केस में लादकर उन्हें जेल में डालकर उनको शारीरिक-मानसिक तौर पर तोड़ने के लिए टॉर्चर करना। इसके अतिरिक्त अपने पालतू मीडिया और आईटीसेल के पेड चमचों द्वारा उन्हें देशद्रोही, पाकिस्तान परस्त, आतंकवादी, अर्बन नक्सलवादी आदि अभद्रतापूर्ण और अमर्यादित गाली-गलौज देना तथा अल्पसंख्यकों की अपने गुंडों से मॉब लिंचिंग करवाना ,दंगे फैलाकर अल्पसंख्यकों में भय का वातावरण पैदा करना आदि-आदि बहुत सी बातें हैं। सारी बातें हिटलर और मोदी में बिल्कुल साम्य हैं।

वास्तव में हिटलर और उसके नाजी विचारधारा को मोदी की पितृ संस्था राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ अपना आदर्श मानती है। और कुख्यात जर्मन तानाशाह एडोल्फ हिटलर जो पैशाचिक, अमानुषिक तथा बर्बर व्यवहार यहूदियों के साथ किया था, उसकी पुनरावृत्ति मोदी के नेतृत्व में भारत में अल्पसंख्यकों यथा मुसलमानों, ईसाइयों, बौद्धों और सिखों के साथ की जा रही है। अब हम इस लेख में अपने नाजी दौर में हिटलर द्वारा वहाँ के अपने से वैचारिक मतभेद रखने वाले राजनैतिक विरोधियों और विशेषकर यहूदियों के साथ उसने जो लोमहर्षक और रूह को कंपा देने वाले अत्याचार किए उसकी उपलब्ध ऐतिहासिक साहित्यिक साक्ष्यों के आधार पर एक शब्द चित्र प्रस्तुत कर रहे हैं। बाकी आप उसकी तुलना वर्तमान समय में भारत की सत्ता पर विराजमान मोदी सत्ता द्वारा की गयी क्रूरताओं ,यातनाओं और वहशीपना के व्यवहार से खुद तुलना कर लीजिए।  

अब मोदी की पितृ संस्था राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संस्थापक डॉक्टर केशव बलिराम हेडगेवार, जिन्होंने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना 27-9-1925 को किया था। वास्तव में उन्होंने जर्मनी में विरोधियों के कठोर दमन के लिए बनाए गए गेस्टापो पुलिस जिसे रॉयल सीक्रेट सर्विस भी कहते हैं को बदलकर भारतीय नाम राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ रख दिया था। अब उनके गुरू और मित्र डॉक्टर बालकृष्ण शिवराज मुंजे यानी बीएस मुंजे के इटली के फॉसिस्ट तानाशाह बेनिटो मुसोलिनी से संबन्ध और उसके फॉसिस्ट विचारधारा से प्रभावित होकर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना की कहानी को क्रम बद्ध रूप से अध्ययन करते हैं।

डॉक्टर बालकृष्ण शिवराज मुंजे 1931 में लंदन में हुए गोलमेज सम्मेलन से लौटते हुए 15 मार्च से 24 मार्च 1931 तक इटली में रुके थे। इटली के इस क्रूर तानाशाह बेनिटो मुसोलिनी को फॉसीवाद का संस्थापक माना जाता है। डॉक्टर बालकृष्ण शिवराज मुंजे बेनिटो मुसोलिनी और उसके फॉसीवादी विचारधारा के घोर प्रशंसक थे। इटली के लेखक गार्जिया कोसालेरी के एक लेख ‘Hindutv’s Foreign tie-up in the 1930‘s Archival evidence ‘ में यह स्पष्ट रूप से लिखा है कि डॉक्टर बालकृष्ण शिवराज मुंजे पहले हिन्दुत्ववादी नेता थे जो बेनिटो मुसोलिनी की फॉसीवादी सरकार के संपर्क में आये। बेनिटो मुसोलिनी ही वह व्यक्ति था जो इटली में लोकतंत्र को खत्म कर तानाशाही सरकार बनाई थी। डॉक्टर बालकृष्ण शिवराज मुंजे 19 मार्च 1931 को रोम में स्थित मिलिट्री कॉलेज, सेंट्रल मिलिट्री स्कूल ऑफ फिजिकल एजुकेशन और द फॉसिस्ट एकेडमी ऑफ फिजिकल एजूकेशन का दौरा किया। इसके अतिरिक्त वह इटली के दो प्रमुख फॉसीवादी केन्द्रों क्रमशः द बाल्लिया और अवांगार्दिस्त ऑर्गानाइजेशन सेंटर पर भी गये थे। कोसालेरी के अनुसार इटली के उन कुख्यात फॉसिस्ट संस्थानों की प्रशिक्षण पद्धति और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की प्रशिक्षण पद्धति में अद्भुत समानताएं हैं।

मुंजे और मुसोलिनी।

डॉक्टर बालकृष्ण शिवराज मुँजे ने अपनी डायरी में लिखा कि फॉसीवाद का विचार स्पष्ट रूप से जनता में एकता स्थापित करने की परिकल्पना को साकार करता है। भारत और विशेषकर हिन्दुओं को ऐसे संस्थानों की अत्यंत जरूरत है, ताकि उन्हें भी सैनिकों के रूप में ढाला जा सके। नागपुर स्थित डॉक्टर हेडगेवार द्वारा स्थापित राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ऐसा ही एक संस्थान है ‘,डॉक्टर बालकृष्ण शिवराज मुँजे ने फॉसीवादी कार्यकर्ताओं की पोशाक और उनकी शैली की भूरि-भूरि प्रशंसा करते हुए लिखा कि मैं उन लड़के और लड़कियों की सैन्य पोशाकों को देखकर मंत्र-मुग्ध हूँ। वर्ष 1931के 19 मार्च को दुनिया के क्रूरतम् नाजी तानाशाह एडोल्फ हिटलर के परम् मित्र इटली के फॉसिस्ट तानाशाह बेनिटो मुसोलिनी की फॉसीवादी सरकार के मुख्यालय पलाजो वेनेजिया में दोपहर 3 बजे डॉक्टर बालकृष्ण शिवराज मुंजे बेनिटो मुसोलिनी से मिले थे।

वर्ष 1933 में जर्मनी में भी हिटलर के सत्ता में आने के बाद हिटलर द्वारा जर्मन जनता को यह सम्मोहक आश्वासन दिया गया कि उनके शीघ्र ही अच्छे दिन आने वाले हैं। हिटलर सत्ता में आते ही इस बात की बार-बार घोषणा करने लग गया कि यहूदियों का सफाया जर्मनी के राष्ट्रहित में है। वह अपनी मन की बातों में कई बार इस बात को जोरदार तरीकों से पूरे जर्मन राष्ट्र को रेडियो के माध्यम से बताता था। इसके अतिरिक्त वह पूरे जर्मनी में राष्ट्रवाद की भावना को कूट-कूटकर भरा इसके अंतर्गत वह हर जर्मन पुरुष को अपने देश के लिए जान देने के लिए और हर जर्मन स्त्री को अधिक से अधिक बच्चे पैदा करने के लिए प्रेरित किया, ताकि दुनिया भर में कथित सर्वश्रेष्ठ जर्मन आर्य जाति खतरे में न रहे।

उस समय जर्मनी में भी ऐसे बहुत से बुद्धिजीवी थे जो हिटलर की उक्त बातों से सहमत नहीं थे और वे हिटलर की इन दुर्नीतियों का विरोध कर रहे थे, लेकिन उसी दौरान हिटलर के बहुत से अंधभक्त भी पैदा हो गए थे जो इन बुद्धिजीवियों को अपने कुतर्कों से चुप करा देते थे। हिटलर को यहूदियों के खात्मे से पहले जर्मनी की खस्ती आर्थिक व्यवस्था को सुधारना था, जर्मनी में कुछ आर्थिक सुधार हुआ भी, लेकिन हिटलर के अंधभक्तों को यह जल्दी ही अहसास हो गया कि हिटलर के आर्थिक विकास और राष्ट्रीयता उभारने का उद्देश्य कुछ और ही था। प्रथम विश्वयुद्ध में बुरी तरह परास्त होने के बाद हिटलर को उसके लिए एक बलि का बकरा बनाने के लिए किसी की सख्त जरूरत थी और वह बलि के बकरे यहूदियों के रूप हिटलर को मिल चुके थे। जर्मनों में प्रथम विश्वयुद्ध के बाद से यह भावना जोर-शोर से भरी जाने लगी थी कि यहूदियों के विश्वासघात की वजह से ही जर्मनी प्रथम विश्वयुद्ध हार गया या यहूदियों की वजह से जर्मन राष्ट्र बहुत ही खतरे में है। हिटलर की असफलता पर उससे कोई प्रश्न पूछा जाता तो वह इसका सारा दोष यहूदियों पर मढ़ देता। हिटलर ने यह जोर-शोर से प्रचारित किया कि समस्त यहूदी समुदाय ही जर्मनी के परजीवी दीमक हैं, जो जर्मन राष्ट्र को अन्दर ही अन्दर खोखला किए जा रहे हैं।

हिटलर ने सत्ता में आते ही 28 ट्रेड यूनियनों को भंग कर दिया, 58 ट्रेड यूनियन के नेताओं को गिरफ्तार करके उनके घरों में कैद कर दिया, उनकी संपत्ति जब्त कर ली। हिटलर के दौर में यहूदियों के प्रति अत्यंन्त घृणा की बात हर नाजी विचारधारा के समर्थक जर्मनों के दिमाग में ठूँस-ठूँसकर भरा जाने लगा। इस प्रकार अनवरत प्रचार के बल पर पूरे जर्मन राष्ट्र में यहूदियों को Anti National या राष्ट्र विरोधी होने का ठप्पा बड़ी धूर्तता और कुटिलता से लगा दिया गया। हिटलर ने सत्ता में आते ही यहूदियों को कमजोर करने के लिए उनका आर्थिक बहिष्कार करना शुरू कर दिया। कुछ ही दिनों बाद उसने वहां की संसद से बाकायदा एक कानून पास करवाकर यहूदियों को सरकारी नौकरी में प्रवेश से भी वंचित कर दिया।

सन् 1936 के बर्लिन ओलंपिक में दुनिया भर के अन्य देशों के लोगों से छिपाने के लिए यहूदियों के खिलाफ प्रचार करते बैनर,पोस्टर आदि को रातों-रात हटा दिया गया, ताकि दुनिया के लोगों को यह पता ही न चल सके कि हिटलर और उसके समर्थक नाजियों में यहूदियों के प्रति कितनी नफरत भरी पड़ी है, उसे पूरी तरह छिपा दिया गया, दुनिया के लोगों और यहूदियों के बीच एक अभेद्य दीवार खड़ी कर दी गई। हिटलर ने यहूदियों के खिलाफ कानून बनाने, उनके खिलाफ दुष्प्रचार करने, उनकी आर्थिक स्थिति खराब करने, उन्हें दोयम दर्जे का नागरिक बनाने से आगे बढ़कर यहूदियों को जर्मन नागरिक मानने से ही इंकार कर दिया ताकि वह जर्मनी को दुनिया का कथित सर्वश्रेष्ठ आर्य राष्ट्र बना सके। हिटलर यहूदियों को गैस चैंबरों में ठूँसकर मारने के लिए डिटेंशन कैंप बनाने की शुरूआत भी काफी समय पूर्व से ही बहुत गुप्त रूप से बनवाना शुरू कर दिया था। हिटलर मीडिया का प्रयोग अपने धुंआधार प्रचार करने के लिए करता था। उस समय की जर्मन मीडिया हिटलर का ही गुणगान करती रहती थी।

सन् 1933 के 26 अप्रैल को हिटलर द्वारा अपने विरोधियों को ठिकाने लगाने के लिए कुख्यात गेस्टापो पुलिस या गुप्त राज्य पुलिस की स्थापना हरमन गोरिंग की अध्यक्षता में शुरू करवाया। लेकिन एक साल बाद ही गेस्टापो का कमांडर हेनरी हिमलर को बना दिया, 30 अप्रैल 1944 तक कम से कम अपने 6639 राजनैतिक विरोधियों को गेस्टापो पुलिस ने गिरफ्तार कर जेलों में डाल दिया। गेस्टापो पुलिस वास्तव में हिटलर की एक गुप्त राजनैतिक पुलिस फोर्स थी, जिसने एक और संस्था एसएस के साथ मिलकर 15 लाख यहूदी बच्चों सहित 60 लाख यहूदियों को गैस चैंबर में ठूँसकर मौत के घाट उतार दिया था। गेस्टापो पुलिस का मुख्य लक्ष्य ही यही था कि जर्मनी में हिटलर के जितने राजनैतिक विरोधी हैं, उन सभी को मौत के घाट उतार दिया जाय।

गेस्टापो पुलिस के गिरफ्त में आने का मतलब ही यह था कि बस अब तड़प-तड़पकर मर जाना ही है। जर्मनी में कोलोन नामक एक ऐतिहासिक महत्व का शहर है, इसी कोलोन शहर में हिटलर की कुख्यात गेस्टापो पुलिस का विख्यात नेशनल सोश्लिस्ट डॉक्यूमेंटेशन सेंटर नामक एक भवन था जो आज भी खड़ा है, जहाँ हिटलर के बर्बर युग में लाखों लोगों को तड़पा-तड़पाकर मारे गए लोगों की दर्दनाक यादें उसकी मूक गवाह हैं। साधारण से दिखने वाले इस इस भवन में सन् 1930 से 1940 के दौरान जर्मन तानाशाह एडोल्फ हिटलर की कुख्यात सीक्रेट पुलिस यानी गेस्टापो का मुख्यालय हुआ करता था। यहाँ के कोठरियों में हिटलर के राजनैतिक विरोधियों को घोर यातनाएँ देकर अंततः उन्हें मौत के घाट उतार दिया जाता था। ये गेस्टापो पुलिस हिटलर का खास हथियार थी, जो उस समय सत्ता की केन्द्र बन गई थी, इस मुख्यालय के एक अधिकारी के अनुसार इस भवन में 10 कमरे हैं, इन्हीं कमरों में हजारों लोगों को उन्हें घोर यातनाएँ दी जाती थीं, इन कमरों की दीवारों पर उन यातनाग्रस्त बहुत से कैदियों ने अपने हृदयविदारक व्यथा कथा लिख रखे हैं, इन कमरों की दीवारों पर लिखी उनकी भावनाएं हिटलर की क्रूरता, एक ऐसे अंधे सोच का वीभत्स चेहरा दिखातीं हैं, जिसमें हिटलर के दौर में कथित राष्ट्रवाद, नस्लवाद और बर्बर अत्याचार की सारी हदें पार कर गईं थीं।

यह बात बहुत सुकून पहुँचाने वाली है कि वर्तमान समय में जर्मनी में हिटलरयुग के हत्याकांड का गवाह यह भवन अब एक म्यूजियम में बदल दिया गया है, आज जर्मनी के लोग हिटलर के समय की गई क्रूरताओं को छिपाना नहीं चाहते, वह अपने वर्तमान समय की पीढ़ी और दुनिया भर के लोगों को हिटलर के नाजी दौर की क्रूरता की कहानियों की नग्न सच्चाई को खुलकर विस्तृत रूप में बताना चाहते हैं। हिटलर के पैशाचिक कुकृत्यों के गवाह इस भवन को साक्षात देखने के लिए दुनियाभर से यहाँ आने वाले लोगों की सुविधा के लिए संदेश लिखने वालों के विभिन्न भाषाओं के संदेश को अंग्रेजी और जर्मन भाषाओं में अनुवाद कर दिया गया है। उन संदेशों में उसे कौन लिखा है, इसके बारे में बहुत कम ही जानकारी है, लेकिन उस दौर में उन्होंने जो वीभत्सता की इंतहा जुल्म सही उसका बहुत ही सजीव व मार्मिक वर्णन इन दीवारों पर लिखकर एक उस क्रूर दरिंदे तानाशाह द्वारा इस दुनिया से जबरन मौत के घाट उतार दिए गए।

उदाहरणार्थ एक 15 वर्षीय लड़के को गेस्टापो के एजेंट इसलिए इस मौत के नरक में धकेल दिए, क्योंकि उन्हें शक था कि उस किशोर के पास कम्युनिस्ट साहित्य है, वह किशोर अपने सिद्धांतों के प्रति इतना अडिग व प्रतिबद्ध था कि अपने मरते दम तक हिटलर के बर्बर गेस्टापो पुलिस वालों के सामने नहीं झुका। उस बहादुर किशोर ने दीवार पर जो लिखा वह वाक्य एक अजर-अमर और अद्भुत स्मारिका बन गया है। उस 15 वर्षीय किशोर के लिए उसकी माँ रोज शाम को खाने के लिए ब्रेड लेकर आती थी, ताकि उसके लाडले को भूखे पेट न सोना पड़े। शारीरिक रूप से नाबालिग लेकिन मानसिक रूप से अत्यंत जागरूक और विलक्षण उस किशोर ने दीवार पर कोयले से या कंकड़ से यह लिखा कि अगर आपके बारे में कोई नहीं सोचता तो इतना तय है कि आपकी माँ आपके बारे में अवश्य सोचेगी

इसी प्रकार मेरिनेट नामक फ्रांस की एक युवा महिला इस यातना शिविर में बंद थी, इस महिला ने इस यातना शिविर में बंद रहते हुए अपने माता-पिता और अपने अन्य परिजनों को बहुत से पत्र लिखे, उस समय वह महिला गर्भवती थी, उनकी बच्ची का जन्म इसी काल कोठरी में हुआ था, उनकी सेविका उसकी बच्ची को पालने के लिए अपने साथ ले गई, हिटलर के पतन के बाद जब अमेरिकी सेना ने इस महिला को आजाद करवाया, तब वे अपनी बेटी के साथ अपने देश फ्रांस को लौट गईं, लेकिन इस भद्र महिला ने जेल में बंद अपनी यातना कथा को अपनी बेटी को कभी नहीं बताया। लेकिन सन् 1990 में फ्रांसीसी मीडिया ने इस यातना शिविर पर आकर एक बहुत बड़ी डाक्यूमेंट्री फिल्म और रिपोर्ट बनाई, बाद में फ्रांस के समाचार पत्रों में इसकी विस्तृत रिपोर्ट प्रकाशित हुई, तो उस महिला की बेटी क्रिस्टियाना ने उस समाचार को पढ़कर यह ठीक-ठीक अंदाजा लगा लिया कि यह तो मेरी मां की लिखी हुई कहानी ही है।

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एक बार क्रिस्टियाना ने अपनी माँ से यह जरूर पूछा था कि आखिर वह कोलोन में क्यों पैदा हुई ? लेकिन डॉक्टरों ने उनकी बेटी से इस बारे में बात करने से इसलिए मना किया, क्योंकि इससे उनकी जान को खतरा था। इस यातना शिविर में केवल यहूदी ही नहीं थे, अपितु इसमें पोलैंड, फ्रांस, यूक्रेन और रोमानिया जैसे देशों के नागरिक भी बंद थे, जिन पर भीषण अत्याचार करके उनकी निर्दयता से उन्हें मौत के मुँह में धकेल दिया गया। इसी यातना शिविर के एक अधिकारी ने बताया कि हिटलर के गेस्टापो के एजेंटों द्वारा सन् 1940 के दौरान रोमानिया के 250 बच्चों को पकड़कर यहाँ लाया गया और उन पर जाइक्लोन- वी नामक जहरीली गैस का टेस्टिंग के लिए प्रयोग कर उन्हें मौत की नींद सुला दिया गया। इसी जाइक्लोन – वी नामक जहरीली गैस से बाद के वर्षों में हिटलर द्वारा लाखों यहूदी बच्चों सहित औरतों, वयस्कों और अन्य लोगों को निर्दयतापूर्वक मारा गया।

वर्ष 1938 के 9 नवम्बर को रात को अचानक यहूदियों के घरों, दुकानों पर हमला किया गया, उनके घरों और दुकानों में आग लगा दी गई, उनकी हत्याएं की गईं, उनकी सुनियोजित तरीके से मॉबलिंचिंग की गई, बहुतों को डिटेंशन सेंटरों में भिजवा दिया गया, यह सब कुछ हिटलर के गुप्त आदेशों के तहत बड़े ही सुनियोजित व गोपनीय तरीके से किया गया, इसमें हिटलर की तरफ से यहूदी समुदाय को यह परोक्ष रूप से संदेश दिया गया कि तुम अब अपना विरोध करना छोड़ दो, अब तुम्हारी तकदीर हमारे हाथों में है। यह दंगा पूरे 50 घंटों से भी ज्यादे समय तक चलता रहा, इस दंगे में 90 यहूदी बच्चों, महिलाओं और पुरूषों का बेरहमी से कत्ल कर दिया गया, सैकड़ों लोग बुरी तरह घायल, लहूलुहान और अपंग हुए। इसमें हिटलर के नाजी गुंडे सिविलियन कपड़ों में यहूदियों के घरों, दुकानों और पूजास्थलों को तबाह करते रहे। 3000 से ज्यादा यहूदियों को डिटेंशन कैंपों में भेज दिया गया। बाद में हिटलर की चमची मीडिया ने इसका सारा दोष यहूदियों पर मढ़ दिया, जिससे उनको उनके बीमा का पैसा भी नहीं मिला। यह सुनियोजित दंगा हिटलर द्वारा भविष्य में किए जाने वाले गैसचैंबरों में बड़े और लाखों यहूदियों के हत्याकांड का पहला सोपान था।

हिटलर ने अपने वैचारिक व राजनैतिक विरोधियों को ठिकाने लगाने के लिए एक भूरे वस्त्रधारी स्टॉर्म ट्रूपर्स या पैरामिलिट्री फोर्स का भी गठन किया था,जिनका मुख्य काम चुनावों के वक्त विरोधियों को धमकाने, नात्सी रैली में भाग लेने आदि का होता था। ये ब्राउन शर्ट और हिंसा का अटूट रिश्ता हिटलर के समय से ही चला आ रहा है। इन भूरे ड्रेस पहनने वाले स्टॉर्म ट्रूपर्स का आइडिया भी हिटलर का ही था, यह जर्मनी के संविधान में कहीं नहीं लिखा है, इनकी भी प्रतिदिन शाखाएं लगतीं थीं, ये हिटलर के समर्थन में रैलियां निकालते थे, इनकी संख्या दिन-दूनी-रात-चौगुनी बढ़ाई गई,जहां वर्ष 1931 में इनकी संख्या मात्र 4 लाख थी शीघ्र ही इनकी संख्या बढ़ाकर 20 लाख तक कर दी गई। ये वास्तव में हिटलर के प्राइवेट संघी थे।

उस दौर में फॉसिज्म और नात्सीज्म के लिए सीमा पर लड़ने वाले सैनिकों के लिए आम जनता को गर्व करना सिखाया जाता था, जो ऐसा नहीं करता था, उसे हिटलर के अंधभक्तों और उसकी चमची मीडिया द्वारा तुरंत एंटीनेशनल या देशद्रोही घोषित कर दिया जाता था। वर्ष 1934 के 4 अगस्त को जर्मनी के राष्ट्रपति वॉन हिंडनवर्ग की मौत के बाद हिटलर ने तुरंत अपने को जर्मनी का राष्ट्रपति और वहाँ की मिलिट्री का हेड घोषित कर लिया। उसके बाद हुए चुनाव में हिटलर की दुम हिलाऊ मीडिया ने बड़े ही शातिराना ढंग से यह प्रश्न उछाल दिया कि हिटलर के बाद आखिर है कौन ? ‘, मतलब इस जर्मनी में फिलहाल सबसे काबिल हिटलर ही है। हिटलर ने जर्मनी में अपने वैचारिक व राजनैतिक विरोधियों को खत्म करने और वहाँ की मीडिया को पालतू बनाने के बाद अपना असली चेहरा दिखलाना शुरू कर दिया। वह पहले पूर्वी जर्मनी के एक मिलिट्री बेस पर कथित सर्जिकल स्ट्राइक किया, फिर ऑस्ट्रिया और फ्रांस पर हमला किया, हिटलर के इन कुकृत्यों पर तत्कालीन जर्मनी में उसके चमचे और अंधभक्त जोरदार तालियां बजाकर उसका खूब उत्साह वर्धन करते थे। इसके अतिरिक्त हिटलर की गेस्टापो पुलिस वर्तमान समय के भारत की बीजेपी की आईटीसेल और पेगासस जैसे हर जर्मन नागरिक पर कड़ी नजर रखती थी।

ऐतिहासिक साक्ष्यों पर आधारित हिटलर के दौर की जर्मनी के बारे में उक्त वर्णित तथ्यों और घटनाओं की वर्तमान समय में मोदी सत्ता के कुकृत्वों की तुलना करिए,तो आप पाएंगे कि भारत की वर्तमान समय की परिस्थितियाँ भी हिटलर द्वारा किए गए फॉसिस्ट कुकृत्यों की नकल करती प्रतीत हो रही हैं यथा अल्पसंख्यकों का चरित्रहनन, मुसलमानों, ईसाइयों और सिखों को बदनीयत भरी बदनाम करने की साजिश, मुसलमानों, दलितों, आदिवासियों की सुनियोजित मॉबलिंचिंग, फर्जी सर्जिकल स्ट्राइक, सेना के पराक्रम पर खुद की वाहवाही, अल्पसंख्यकों के खिलाफ नागरिकता संसोधन बिल, असम में डिटेंशन कैंपों का गुपचुप निर्माण, सभी वैचारिक मतभेद रखने वाले लोगों को एंटीनेशनल या देशद्रोही घोषित करना, संविधान की धज्जियां उड़ाते हुए उसकी समीक्षा करने की बात कहना, सरेआम अल्पसंख्यकों की सामूहिक हत्या करने का फतवा जारी करना, स्वयं के लिए कथित हिंदूहृ दयसम्राट, कथित श्रेष्ठ हिंदू राष्ट्र, विश्वगुरु, आध्यात्मिक गुरू, कर्मचारियों, मजदूरों,किसानों का दमन, गुजरात और दिल्ली के सुनियोजित दंगे, विरोध करने वाले डॉक्टरों, लेखकों, विद्यार्थियों, कवियों, वकीलों, बुद्धिजीवियों, मानवाधिकार कार्यकर्ताओं आदि को फर्जी केस में फँसाकर जेलों में ठूँस देना, रिजर्व बैंक, सीबीआई, इनकम टैक्स विभाग, चुनाव आयोग, सुप्रीमकोर्ट तक को बेशर्मी से धमकाना आदि सारे कुकृत्य तत्कालीन तानाशाही हिटलरयुग के जर्मनी से मेल खाते हैं।

(निर्मल कुमार शर्मा पर्यावरण संरक्षक और लेखक हैं। आजकल आप गाजियाबाद में रहते हैं।)

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