Friday, March 29, 2024

फासिस्ट हो गई है केंद्र की मोदी सत्ता!

सभ्य और लोकतांत्रिक दुनिया में एक बहुत ही घृणित व बदनाम ‘फासिस्ट’ शब्द इटली के सिसिली द्वीप के 19वीं सदी के क्रांतिकारियों को पुकारे जाने वाले नाम ‘फास़ेज’ शब्द से बना है, परन्तु आज फासिस्ट शासन का शब्दार्थ बहुत बदल चुका है, अब फासिस्ट शासन का आशय उस शासन से लगाया जाता है, जो बिल्कुल क्रूर, अमानवीय, मजदूर, किसान व आमजन विरोधी और मानवविरोधी, मानवहंता शासन को ही फासिस्ट या उसके समानार्थी तानाशाही हुकूमत जैसे परिलक्षित होते शासन से है। उस समय मूलरूप से यह समाजवाद या साम्यवाद के विरूद्ध नहीं था, अपितु उदारवाद के ख़िलाफ़ था। प्रथम विश्वयुद्ध के बाद 1919 में इटली के तानाशाह शासक बेनिटो मुसोलिनी ने इस फासिस्ट शासन व्यवस्था की नींव डाली थी, इस फासिस्ट शासन का संसदीय शासन पद्धति का क्रूर दमन करना ही मुख्य उद्देश्य था, मुसोलिनी के नेतृत्व में तत्कालीन फासिस्ट सरकार ने इटली के संविधान में अपनी सुविधा के अनुसार बहुत से परिवर्तन कर दिए थे।

बेनिटो मुसोलिनी का परम् मित्र जर्मनी का कुख्यात समकालीन नाजी तानाशाह एडोल्फ जो करोड़ों मानवों का हत्यारा नाजी तानाशाह था। नाट्सी या नाज़ी शब्द का जर्मन में शाब्दिक अर्थ होता है ‘दस नत्सीस्तिशे दोम्च्लन्द् ‘मतलब’ सहस्रवर्षीय साम्राज्य’ । क्रूर मानव हत्यारे हिटलर का यही उद्देश्य भी था कि वह दुनिया का कथित श्रेष्ठतम् आर्य रक्त का शासक है, उसे या उसके समान विचारधर्मी व्यक्तियों को ही हजारों वर्षों तक इस दुनिया पर शासन करने का इकलौता अधिकार है। इटली और जर्मनी के ये दोनों कुख्यात, क्रूर, अमानवीय और दरिंदे तानाशाह इस दुनिया में बेकसूर मानवप्रजाति का सबसे ज्यादे कत्लोगारद मचाने वाले, रक्तपिपासु शासक थे और दोनों ही फासिस्ट विचारधारा के क्रूरतम् शासक थे।

क्या हमारा देश वर्तमान समय में वास्तव में लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था से फासिज्म शासन मतलब तानाशाही शासन व्यवस्था की तरफ नहीं बढ़ रहा है? पश्चिमी दुनिया के एक वैज्ञानिक – लेखक डॉक्टर लॉरेस व्रिट ने फासिस्ट मनोवृत्ति के तानाशाह शासकों मसलन जर्मनी के क्रूर तानाशाह शासक एडोल्फ हिटलर, जिसने करोड़ों लोगों को मौत के घाट उतार दिया था, इटली का तानाशाह बेनिटो मुसोलिनी, चिली के शासक पिनोकेट, इंडोनेशिया का सुहार्तो, स्पेन का फ्रैंको आदि तानाशाहों और क्रूर फासिस्ट शासकों के स्वभाव और उनकी शासन पद्धति का बहुत सूक्ष्मता और बारीकी से अध्ययन किया और इन सभी शासकों के कुछ लक्षण और इनके आम जनता को प्रताड़ित और दमन करने के कुछ सामान्य तौर-तरीकों को बहुत बढ़िया ढंग से विश्लेषित व सूत्रबद्ध किया है।

मसलन ‘फासिस्ट प्रवृत्ति के शासक कुछ देशभक्ति के आदर्श वाक्यों, गीतों, प्रतीकों आदि जैसे राष्ट्रवाद, देशभक्त – देशद्रोही आदि का बार-बार प्रयोग करते हैं, मानव अधिकारों का हनन जैसे विरोधी विचारधारा के समर्थकों पर तरह – तरह के अत्याचार करना, उन्हें जेल में डालना, पुलिस द्वारा जबर्दस्त पिटाई कराना और हत्या तक कर देना उनके लिए सामान्य बात है, देश के उदारवादी, कम्युनिज्म या समाजवादी विचारधारा के लोगों को प्रायः देश का दुश्मन या गद्दार करार देना, सेना को सर्वोच्च प्राथमिकता देना, फासिस्ट मानसिकता के शासक पुरूष वर्चस्ववादी और नारी विरोधी भावना के प्रबल पक्षधर होते हैं, फासिस्ट शासन व्यवस्था में मीडिया और प्रेस की स्वतंत्रता का सबसे पहले गला घोंटने का काम होता है, इसके लिए पत्रकारों को धमकाना, उन्हें प्रताड़ित करना और उनकी हत्या तक कर देना, ऐसे फासिस्ट व क्रूर शासकों के लिए एक बहुत ही साधारण घटना की तरह ली जाती है, राष्ट्रीय सुरक्षा के खतरे का एक काल्पनिक भ्रम की बात समूचे देश में फैला दी जाती है, सरकार के कर्णधारों और धर्म के पाखण्डी व धूर्त ठेकेदारों के बीच एक मजबूत गठबंधन तैयार हो जाता है, फासिस्ट मानसिकता के नेताओं द्वारा अपनी सत्ता बचाने के लिए एक जबर्दस्त धार्मिक शब्दाडंबर का धुंआधार प्रयोग करना शुरू हो जाता है, फासिस्ट सरकारें आम जनता, गरीबों, मजदूरों, किसानों, छोटे व्यापारियों आदि सामान्य लोगों की घोर उपेक्षा और कुछ चन्द बड़े – बड़े पूँजीपतियों को खूब संरक्षण देना शुरू कर देते हैं, मजदूर संगठनों, मजदूर यूनियनों, यूनिवर्सिटी के छात्र संगठनों आदि का तो गला ही घोंट दिया जाता है, क्योंकि फासिस्ट शासकों की नज़रों में मजदूर श्रम संगठन और यूनिवर्सिटी के छात्र संगठन ही इनके वास्तविक दुश्मन होते हैं, फासिस्ट सरकारों के कर्णधार मानवाधिकार कार्यकर्ताओं, बुद्धिजीवियों, वकीलों, लेखकों, कवियों, विश्वविद्यालय के प्रोफेसरों व समाज के प्रबुद्ध लोगों को अपना दुश्मन समझकर उन्हें पुलिस द्वारा लॉकअप में बन्द करना, टॉर्चर करना, जेल में बन्द करना, झूठे मुकदमें दर्ज कराकर अपने कथित पालतू न्यायालय के जजों से कठोर सजा दिलवाकर जेल में बन्द करवाना, जमानत न होने देना शुरू कर देते हैं, फासिस्ट शासक कथित कानून-व्यवस्था के नाम पर पुलिस को असीमित अधिकार दे देते हैं, आम जनता की अभिव्यक्ति की आजादी को कथित देशभक्ति के नाम पर उसका गला घोंट दिया जाता है, उग्र भाई-भतीजावाद, भ्रष्टाचार, रिश्वतखोरी आदि अपने चरम पर पहुँच जाती है, सत्तारूढ़ नेताओं द्वारा सरकारी खजाने और राष्ट्रीय संसाधनों की निर्लज्जतापूर्वक लूट – पाट शुरू कर दी जाती है, कभी – कभी चुनाव भी दिखावे के रूप में करा दिए जाते हैं, वैसे फासिस्ट शासन में चुनाव मात्र एक धोखाधड़ी व फ्रॉड बनकर रह जाता है, विरोधियों के विरूद्ध नीचता की हद तक लाँछन लगाए जाने लगते हैं, उनकी पुलिस मुठभेड़ में या जहर देकर उनकी हत्या तक कराई जाने लगती है।

छवि – आनन्द तेलतुंबड़े

डॉक्टर लॉरेस व्रिट द्वारा उक्तवर्णित फासिस्ट शासन के कुछ चरित्रों और पहलुओं पर विचार किए गये कुछ उदाहरणों और हमारे देश के वर्तमान समय में प्रबुद्ध लोगों और डॉक्टरों – प्रोफेसरों के प्रति किए जा रहे क्रूर और अमानुषिक कुकृत्यों में अद्भुत और आश्चर्यजनक रूप से बहुत ही साम्यताएं हैं, मसलन महाराष्ट्र के 70 वर्षीय डॉक्टर आनन्द तेलतुंबडे जो आईआईएम अहमदाबाद के प्रोफेसर रह चुके हैं, अत्यंत विलक्षण प्रतिभा के धनी यह व्यक्तित्व अब तक 30 उच्च कक्षाओं में पढ़ाई जाने वाली पुस्तकें लिख चुके हैं, ये महाराष्ट्र के अत्यंत गरीब परिवार में पले-बढ़े उस दलित माँ – बाप के बेटे हैं, जो दिहाड़ी मजदूरी करके भी अपने इस होनहार बेटे को इतना पढ़ाए कि इनकी लिखी तमाम पुस्तकों का अन्य भारतीय भाषाओं में अनुवाद हुआ है, रिपब्लिक ऑफ कास्ट जैसी बहुत सी किताबें वे भीमराव अंबेडकर के विचारों से अनुप्राणित होकर लिखे हैं, जिन्हें अम्बेडकर पर शोध करने वाले विद्यार्थी एक प्रामाणिक पुस्तक के रूप में उद्धृत करते हैं। उनके विचारों और किताबों का संदर्भ दुनियाभर के विश्वविद्यालयों के प्रोफेसर अपने शिक्षार्थियों के सामने उदाहरण के रूप में देते हैं।

वे पिछले 40 सालों से जनसरोकार के कार्यों, मसलन सुनामी के बाद गरीब लोगों की पुनर्वास की क्या वास्तविक स्थिति है ? या भारत में जातिगत वैमनस्यता कितनी भयावह है ? या इंडियन ऑयल में दिहाड़ी मजदूरों का कितना शोषण होता है ? आदि समस्याओं पर वे सरकार के भ्रामक और झूठे नजरिए से बिल्कुल अलग और हटकर बिल्कुल सच्चाई भरी व कटुसत्य अपनी रिपोर्ट देते रहे हैं। क्या आज भारत में गरीबों, मजदूरों, किसानों, वंचितों के ह़क – हूकूक के लिए लड़ना और संघर्ष करना भी वर्तमान समय के सत्ता के कर्णधारों की नजरों में एक गंभीर अपराध की श्रेणी में आ गया है ? डॉक्टर प्रकाश तेलतुंबडे द्वारा अपने गुजरात और चेन्नई में पोस्टिंग के दौरान वहाँ की स्थानीय झुग्गी -झोपड़ियों में जाकर हजारों गरीबों और दिहाड़ी मजदूरों के बच्चों को पढ़ाना भी इस सरकार के समय में अपराध की श्रेणी में आ गया है ?

जब 28 अगस्त 2018 को जब डॉक्टर प्रकाश तेलतुंबडे सहित पाँच राज्यों के छः सामाजिक कार्यकर्ताओं के घर छापे पड़ते हैं, तब डॉक्टर आनन्द तेलतुंबडे अपने घर गोवा में नहीं अपितु उस समय संयोग से मुंबई में होते हैं, फिर भी उनकी अनुपस्थिति में ही गोवा स्थित उनके घर पर छापा डलवाया जाता है और उन पर भी यूएपीए मतलब अनलॉफुल ऐक्टिविटीज प्रिवेंशन ऐक्ट की वे धाराएं लगाईं जातीं हैं, जो अक्सर आतंकवादियों और उग्रवादियों पर लगाईं जातीं हैं। आज आनन्द तेलतुंबडे उम्र की इस सांन्ध्य बेला में कई कष्टकारी व असाध्य बिमारियों से ग्रस्त हैं, उनको इस उम्र में और अपने जर्जर शारीरिक बिमारी की अवस्था में उन्हें अपने परिवारजनों के बीच रहना बहुत जरूरी है, ताकि उनकी समुचित देखभाल हो सके, लेकिन इस उम्र में यह वर्तमान समय की सरकार उन पर मिथ्यारोपण करके पिछले कई सालों से जेल में ठूँस रखी है, जहाँ उनके खाने की, पीने की, दवा की, सेवा की कोई समुचित व्यवस्था ही नहीं है।

कितने दुःख की बात है कि पिछले काफी लम्बे समय स नेशनल इनवेस्टिगेशन एजेंसी कोर्ट में उन पर कोई चार्जसीट दाखिल नहीं कर पाई है, इस पर कायदे से तो कोर्ट के जजों द्वारा नेशनल इनवेस्टिगेशन एजेंसी के अफसरों को कड़ी फटकार लगानी चाहिए थी, लेकिन आज भारतीय न्यायालयों के कथित न्यायाधीश भी सत्ता के सामने सत्ता के कर्णधारों के अनुसार फैसले दे रहे हैं, चूँकि 70 वर्षीय डॉक्टर आनन्द तेलतुंबडे को प्रताड़ित करना ही सरकार के कर्णधारों का उद्देश्य है, इसलिए जज साहबान ने नेशनल इनवेस्टिगेशन एजेंसी को चार्जशीट दाखिल करने के लिए 90 दिन का अतिरिक्त समय और दे दिया। मतलब डॉक्टर आनन्द तेलतुंबडे 90 दिन और जेल में सड़ते रहेंगे।

कितनी हास्यास्पद, क्षुब्ध और हतप्रभ करने वाली बात है कि डॉक्टर आनन्द तेलतुंबडे के ख़िलाफ़ एक पुलिस महानिदेशक एक प्रेस कान्फ्रेंस करके सार्वजनिक रूप से निर्लज्जता से एक पत्र दिखाते हुए कहता है कि उनके यहाँ एक पत्र मिला है, जिसमें उन्हें कामरेड शब्द से संबोधित किया गया है, इसका मतलब डॉक्टर आनन्द तेलतुंबडे का संबंध सीपीआई और माओवादियों से है। ज्ञातव्य है कि इसी तरह का एक और मूर्खतापूर्ण आरोप महाराष्ट्र पुलिस ने मुंबई के सामाजिक कार्यकर्ता गोंजाल्विस पर भी लगाया था कि वे विश्व प्रसिद्ध नोबेल पुरस्कार से सम्मानित लियो टॉलस्टॉय का कालजयी उपन्यास युद्ध और शांति अपने घर में क्यों रखे हैं ?

कानून और संवैधानिक व्यवस्था के खिलाफ अपने ऊपर हो रहे अत्याचार के खिलाफ डॉक्टर आनन्द तेलतुंबडे अपनी बेगुनाही के लिए न्याय का दरवाजा खटखटाने हाईकोर्ट चले गये, लेकिन वहाँ भी उसी मानसिकता के दब्बू जज बैठे हैं, उन्होंने उनकी याचिका तुरंत ख़ारिज कर दी, फिर वे सुप्रीमकोर्ट चले गये, जहाँ उनकी गिरफ्तारी पर  11 फरवरी 2019 तक रोक लगा दी गई, परन्तु 11 फरवरी 2019 के बाद उन पर जो आतंकवादियों और उग्रवादियों के लिए लगाई जानेवाली धारा युएपीए मतलब अनलॉफुल ऐक्टिविटीज प्रिवेंशन ऐक्ट लगाकर राष्ट्रीय जाँच एजेंसी के द्वारा गिरफ्तार कर उन्हें जेल में डाल दिया गया।

छवि : सुधा भारद्वाज, शोमा सेन, गौतम नवलखा, रोमा विल्सन

गिरफ्तारी से पूर्व उन्होंने देश की जनता के नाम एक चिट्ठी लिखी है जिसमें उन्होंने लिखा है कि लोगों के बीच ध्रुवीकरण करने और असहमतियों को खत्म करने के लिए राजनीतिक वर्ग द्वारा उन्मादी व उत्तेजक राष्ट्रवाद को हथियार बनाया गया है। व्यापक उन्माद ने अर्थों को विवेक से परे कर उल्टा कर दिया है, जहां राष्ट्र के विध्वंसक देशभक्त बन गये हैं और लोगों की निःस्वार्थ सेवा में लगे रहने वाले देशभक्त लोग आज देशद्रोही कहला रहे हैं। मैं अपना भारत बर्बाद होते देख रहा हूं और धुंधले उम्मीद के साथ इस भारी क्षण में मैं डॉक्टर प्रकाश तेलतुंबडे आपको यह चिट्ठी लिख रहा हूँ हालांकि मुझे पूरी उम्मीद है कि आप अपनी बारी आने से पहले ज़रूर बोलेंगे।

इसी प्रकार हैदराबाद के जनकवि वामपंथी विचारधारा के श्री वरवर राव, मुंबई के सामाजिक कार्यकर्ता वेरनॉन गोंजाल्विस जिन पर नोबेल पुरस्कार प्राप्त लेखक लियो टॉलस्टॉय लिखित विश्वप्रसिद्ध पुस्तक युद्ध और शांति रखने का कथित गंभीरतम् आरोप महाराष्ट्र पुलिस ने लगाया है, अरूण फरेरा जो मूक – बधिर अनाथ बच्चों को पढ़ाने का पुनीत कार्य करने में संग्लग्न थे, फरीदाबाद की मानवाधिकार व गरीब आदिवासियों के लिए अपना जीवन समर्पित करने वाली सुधा भारद्वाज, दिल्ली के मानवाधिकार कार्यकर्ता गौतम नवलखा, इसके अतिरिक्त मानवता की सेवा करने वाले व गरीबों के हक – हूकूक के लिए लड़ने वाले सुरेन्द्र गाडगिल, रोमा विल्सन, सुधीर धवले, शोमा सेन आदि जैसे लोगों को अनावश्यक आरोप लगाकर वर्तमान सत्ता के कर्णधार जेल में ठूंस रखे हैं। इस देश में सबसे हतप्रभ व दिलदहलाने वाला कुकृत्य तो स्वर्गीय प्रोफेसर कलबुर्जी, प्रोफेसर कामरेड पनसारे, डॉक्टर नरेन्द्र दाभोलकर, दुर्गेश नन्दिनी आदि बुद्धजीवियों की वर्तमान समय के फॉसिस्ट सत्ता के कर्णधारों की शह पर सशस्त्र गुंडों द्वारा दिनदहाड़े हत्या कर दी जाती है। और उन हत्यारे गुंडों को आज तक पकड़ा नहीं गया है।

रिजर्व बैंक के संचित राशि की खुलेआम लूटपाट लगातार जारी है, जो विरोध में बोलता है, उसे फासिस्ट सत्ता के कर्णधारों द्वारा पालित आईटी सेल के गुँडों द्वारा सरेआम देशद्रोही, पाकिस्तान परस्त आदि गालियों की बौछार करके उन्हें फजीहत करके रख दिया जाता है, सभी कुछ इस लेख के शुरुआत में पश्चिमी लेखक, वैज्ञानिक डॉक्टर लॉरेस व्रिट द्वारा वर्णित फासिस्ट तानाशाही के सभी लक्षण भारत में वर्तमान समय के कथित लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था में दिखाई दे रहे हैं, सिर्फ कहने को फाँसी पर लटका कर अपने विरोधी विचारधर्मियों को मौत के घाट नहीं उतारा जा रहा है उसके बदले डॉक्टर दाभोलकर, कामरेड पनसारे, इंस्पेक्टर सुबोध कुमार सिंह जैसों को अपने पालित गुँडों द्वारा सीधे गोली मारकर, प्रोफेसर कलबुर्गी जैसों को दरवाजे पर ही पेट्रोल छिड़ककर जिंदा जलाकर, रोहित वेमुला को आत्महत्या करने को बाध्य कर, जेएनयू छात्र नजीब अहमद को गायब कराकर आदि – आदि ढंग से लोगों की हत्याएं की जा रहीं हैं।

अभी पिछले दिनों गरीब आदिवासियों के हक और अधिकार के लिए जीवन भर अनथक कानूनी लड़ाई लड़ने वाले तमाम रोगों से ग्रस्त अत्यंत वृद्ध स्टेट स्वामी के पैर को मोटे लोहे के जंजीरों में जकड़ कर रखने वाले वर्तमान समय के सत्ता के क्रूर व असभ्य कर्णधारों द्वारा अंततः मौत के घाट उतार दिया गया। इसके अतिरिक्त 2014 से 2019 के बीच अपने पत्रकारिता के पावन कर्तव्य का निर्वहन करते समय 21 पत्रकारों को भी मौत के घाट उतारा जा चुका है। यहाँ सब कुछ एक छद्म कथित एक रामराज्य और एक लोकतंत्र का लबादा ओढ़कर किया जा रहा है। आश्चर्य की बात है कि यहाँ की वर्तमान संसद 43 प्रतिशत दंगाईयों, हत्यारों, माफियाओं, बलात्कारियों आदि से भरी पड़ी है। आज भारत की सत्ता के महत्वपूर्ण प्रतिष्ठान पर सजायाफ्ता, जेल की सजा भुगत चुके अपराधी बैठे हुए हैं, और वे अच्छे-भले, शरीफ लोगों को अनाप – शनाप मिथ्या आरोप लगाकर जेल में बन्द करके उन्हें हर तरह से अपमानित, प्रताड़ित और धीरे-धीरे मौत के मुंह में धकेल रहे हैं, भारत की स्थिति आजकल बहुत ही भयावह व नारकीय बनी हुई है। उक्त वर्णित तमाम तथ्यों के मद्देनजर हम यह मानने को बाध्य हो रहे हैं कि यह देश फासिज्म की तरफ तेजी से बढ़ रहा है।

(निर्मल कुमार शर्मा स्वतंत्र लेखक और पर्यावरणविद हैं। आजकल गाजियाबाद में रहते हैं।)

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