सेंट्रल विस्टा की बलिवेदी पर राष्ट्रीय अभिलेखागार

Estimated read time 1 min read

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के असीमित अहंकार का भयावह प्रतीक बन चुकी “सेंट्रल विस्टा परियोजना” कोरोना की महामारी में बढ़ते मृतकों की संख्या को अनदेखा करते हुए बदस्तूर जारी है। सेंट्रल विस्टा के चलते राष्ट्रीय संग्रहालय, इन्दिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र, शास्त्री भवन समेत जिन राष्ट्रीय महत्व की इमारतों को ज़मींदोज़ किया जाना है, उनमें राष्ट्रीय अभिलेखागार (नैशनल आर्काइव्ज़) भी शामिल है। 

राष्ट्रीय अभिलेखागार में न केवल राष्ट्रीय आंदोलन से जुड़े ऐतिहासिक महत्त्व के दस्तावेज़ ही संरक्षित हैं बल्कि यहाँ मुग़ल काल और कंपनी काल के दस्तावेज़ भी सुरक्षित हैं। राष्ट्रीय अभिलेखागार के संग्रह में 45 लाख फाइलें, 25 हजार दुर्लभ पांडुलिपियाँ, एक लाख से अधिक मानचित्र और हज़ारों निजी पत्र-संग्रह तो हैं ही। साथ ही, यहाँ आधुनिक काल से पूर्व के भी 280,000 दस्तावेज़ भी संरक्षित हैं।   

समुचित देख-रेख के अभाव में राष्ट्रीय अभिलेखागार में बहुत-से दस्तावेज़ पहले ही नष्ट हो चुके हैं या अपठनीय हैं। और अब मोदी सरकार की मनमानी और लापरवाही से भरे रवैये के चलते इस अभिलेखागार और यहाँ संरक्षित दस्तावेज़ों पर नष्ट हो जाने का ख़तरा मंडरा रहा है। बता दें कि राष्ट्रीय अभिलेखागार की स्थापना उन्नीसवीं सदी के आखिरी दशक में 11 मार्च 1891 को हुई थी। तब इसे ‘इंपीरियल रिकार्ड्स डिपार्टमेन्ट’ कहा जाता था और यह कलकत्ता के इंपीरियल सेक्रेटेरियट बिल्डिंग में स्थित था। 

उल्लेखनीय है कि एल्फिंस्टन कॉलेज (बंबई) के प्रो. जीडबल्यू फॉरेस्ट को भारत सरकार के विदेश विभाग के दस्तावेजों के परीक्षण और उनसे संबंधित सुझाव देने का काम सौंपा गया। प्रो. फॉरेस्ट ने ईस्ट इंडिया कंपनी से जुड़े हुए सभी दस्तावेजों को एक केंद्रीय संग्रहालय में स्थानांतरित करने की पुरजोर सिफ़ारिश की। नतीजतन ‘इंपीरियल रिकार्ड्स डिपार्टमेन्ट’ की स्थापना की गई। 

प्रो. फॉरेस्ट को इस विभाग का ऑफिसर-इन-चार्ज नियुक्त किया गया। उनका मुख्य काम था : सभी विभागों के दस्तावेजों की जाँच करना, उन्हें व्यवस्थित करना और उनकी एक विस्तृत विवरण-सूची तैयार करना तथा विभागीय पुस्तकालयों की जगह एक केंद्रीय ग्रंथालय निर्मित करना। प्रो. फॉरेस्ट के बाद एससी हिल, सीआर विल्सन, एनएल हालवार्ड, ई डेनिसन रॉस, आरए ब्लेकर, जेएम मित्र, रायबहादुर एएफ़एम अब्दुल अली आदि ने ‘इंपीरियल रिकार्ड्स डिपार्टमेन्ट’ की ‘कीपर ऑफ रिकार्ड्स’ की ज़िम्मेदारी बखूबी संभाली। 

1911 में नई दिल्ली के भारत की राजधानी बन जाने के 15 वर्षों बाद, 1926 में ‘इंपीरियल रिकार्ड्स डिपार्टमेन्ट’ को नई दिल्ली स्थानांतरित कर दिया गया। जहाँ यह वर्तमान में स्थित है। 1940 में दस्तावेजों के संरक्षण और इससे संबंधित जरूरी शोध के लिए एक प्रयोगशाला (कंजर्वेशन रिसर्च लेबोरेट्री) की स्थापना की गई। आज़ादी के बाद ‘इंपीरियल रिकार्ड्स डिपार्टमेन्ट’ का नाम बदलकर ‘राष्ट्रीय अभिलेखागार’ रखा गया। 

आज़ादी के समय डॉ. एसएन सेन राष्ट्रीय अभिलेखागार के निदेशक थे। 1947 में ही राष्ट्रीय अभिलेखागार ने अपनी विभागीय पत्रिका ‘द इंडियन आर्काइव्ज़’ का प्रकाशन आरंभ किया। वर्तमान में राष्ट्रीय अभिलेखागार संस्कृति मंत्रालय के अंतर्गत है और ‘सेंट्रल विस्टा परियोजना’ की बलिवेदी पर कुर्बान होने को अभिशप्त है।

(शुभनीत कौशिक का यह लेख उनकी फेसबुक वाल से साभार लिया गया है।) 

0 0 votes
Article Rating
Subscribe
Notify of
guest
0 Comments
Oldest
Newest Most Voted
Inline Feedbacks
View all comments

You May Also Like

More From Author