हाथरस की आग बिहार पहुंचने पर ध्वस्त हो सकता है एनडीए का किला

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हाथरस के क्रूर सामूहिक दुष्कर्म कांड ने बीजेपी की चिंताएं बढ़ा दी हैं। पार्टी को अब डर सताने लगा है कि अगर इस मामले की आग बिहार चुनाव तक पहुंच गई तो भारी नुकसान उठाना पड़ सकता है। चिराग पासवान के खेल से परेशान बिहार एनडीए, अब इस उपाय में जुट गया है कि किसी भी सूरत में हाथरस कांड की छाया से बिहार चुनाव को बचाया जाए, लेकिन जिस तरह से बिहार चुनावी समर में अलग-अलग जातियों और समूहों की मोर्चाबंदी हो रही है और अनुसूचित जाति की राजनीति करने वाली बसपा और भीम आर्मी चुनाव में दलितों से जुड़ी समस्याओं को उठा रही है, बीजेपी की परेशानी बढ़ती जा रही है।

बीजेपी के कई नेता यह मान भी रहे हैं कि हाथरस की घटना को अगर विपक्ष ने सही तरीके से बिहार चुनाव में उठा दिया और मोदी-योगी सरकार में दलितों पर हुए हमले की कहानियां चुनाव के बीच रख दीं तो बीजेपी को भारी हानि हो सकती है। बता दें कि बिहार में अनुसूचित जाति के करीब 16 फीसदी वोट हैं और पिछले कई चुनाव से ये जातियां बीजेपी और एनडीए को वोट करती रही हैं। बिहार की राजनीति में बीजेपी के वोट बैंक में सवर्ण, बनिया और पिछड़ी जातियों समेत दलितों का वोट काफी निर्णायक रहा है। पिछले चुनाव में ही अनुसूचित जातियों के लिए आरक्षित 38 सीटों में से एनडीए को करीब 14 सीटें मिली थीं और कई इलाकों में अनुसूचित जातियों के वोट से बीजेपी के दर्जन भर से ज्यादा उम्मीदवार जीतने में सफल रहे थे।

डैमेज कंट्रोल में जुटी बीजेपी
हाथरस मामले में पुलिस की अमानवीयता और घोर लापरवाही नजर आ रही है। पीड़िता के परिजनों से दुर्व्यवहार, आधी रात को शव का दाह संस्कार, दस दिन बाद आरोपियों के खिलाफ दुष्कर्म की धाराएं जोड़ने का मामला मीडिया और सोशल मीडिया में तूल पकड़ रहा है। नाराजगी की आग धीरे-धीरे बिहार तक पहुंच रही है। भाजपा को चिंता है कि राज्य की अनुसूचित जाति की आबादी लोकसभा और विधानसभा के कई चुनावों में एनडीए के साथ खड़ी रही है।

नुकसान की संभावना को देखते हुए पहली दफा पीएम मोदी ने सीएम योगी से कहा है कि जल्द से जल्द इस मामले की त्वरित जांच की जाए और दोषियों को सजा दी जाए, लेकिन जिस तरह से योगी सरकार काम करती दिख रही है और जिस अंदाज में यूपी पुलिस ने काम किया है उससे दलित समाज भारी गुस्से में है। दलितों के सभी नेता इस बात पर एकमत हैं कि मृतक पीड़िता को जल्द न्याय नहीं मिलता है तो देश में भारी आंदोलन हो सकता है। ऐसा हुआ तो बीजेपी की परेशानी बढ़ जाएगी।

जानकार भी मान रहे हैं कि हाथरस की घटना का असर बिहार चुनाव पर पड़ेगा। ऐसे में बीजेपी अब डैमेज कंट्रोल में जुट गई है। बिहार के अधिकतर दलित नेताओं से बैठकें जारी हैं, लेकिन खबर मिल रही है कि जिस तरह से बसपा और भीम आर्मी ने बिहार में इस मसले को उठाना शुरू किया है बीजेपी परेशान हो रही है। दलितों के मसले को अब राजद, वामदल और कांग्रेस भी जोर-शोर से उठा रही हैं। माना जा रहा है कि अगर विपक्ष की राजनीति निशाने पर लग गई तो बीजेपी को भारी नुकसान उठाना पड़ सकता है।

हाथरस की घटना का असर यूपी चुनाव पर भी
बीजेपी की परेशानी सिर्फ बिहार चुनाव को लेकर ही नहीं है। पार्टी की परेशानी यूपी चुनाव को लेकर भी है। पिछले कुछ सालों से यूपी में जिस तरह से मुसलमानों और अनुसूचित जातियों के साथ व्यवहार हुए हैं और लगातार हमले होते रहे हैं उससे भी केंद्र सरकार की परेशानी बढ़ी हुई है। विधायक कुलदीप सेंगर और पूर्व केंद्रीय मंत्री चिन्मयानंद के मामले से बीजेपी विपक्ष के निशाने पर रही है। इसी बीच जिस तरह से कांग्रेस दलितों, पिछड़ों और मुसलमानों को लेकर सजग और सतर्क होकर उनके मुद्दों को उठा रही है उससे बीजेपी की चिंता और भी बढ़ गई है।

नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़ों ने भी बीजेपी को चिंता में डाल रखा है। इसके आंकड़ों के मुताबिक, महिलाओं और अनुसूचित जाति के लोगों के खिलाफ यूपी देश में सबसे आगे है। एनसीआरबी की साल 2019 की रिपोर्ट कहती है कि देश में महिलाओं के खिलाफ हुए कुल अपराधों में अकेले यूपी की हिस्सेदारी करीब 15 फीसदी थी। देश में कुल 405861 अपराध हुए इनमें अकेले यूपी में 59853 अपराध हुए। देश में एक साल में महिलाओं के खिलाफ जहां 7.3 फीसदी की बढ़ोतरी हुई, वहीं यूपी में 14.7 फीसदी की बढ़ोतरी हुई। अब इन आंकड़ों को विपक्षी पार्टियां जनता के बीच ले जा रही हैं। इससे भी भाजपा परेशान है।

बंगाल पर भी असर
असम और बंगाल में भी अगले साल चुनाव हैं। बीजेपी को बंगाल में अगर कुछ सम्भावनाएं दिख भी रही हैं तो इन्हीं अनुसूचित जातियों के भरोसे, लेकिन हाथरस की गूंज से बंगाल का दलित समाज भी आहत है। ऐसे में हाथरस की घटना की सही पड़ताल कर दोषियों को जल्द सजा नहीं दी गई तो बीजेपी का चुनावी गणित खराब हो सकता है। वैसे भी बीजेपी कई मसलों पर जनता के निशाने पर है और खासकर किसान बिल के मामले में देश भर के किसान मोदी सरकार से पहले ही खासे नाराज हैं।

(अखिलेश अखिल वरिष्ठ पत्रकार हैं और बिहार की राजनीति पर गहरी पकड़ रखते हैं।)

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