Friday, March 29, 2024

शून्य को शून्य में जोड़ने से नतीजा शून्य ही होता है

पता नहीं क्यों पिछले तीन दिनों से सारा मीडिया सारे फ़साने से जिसका कोई रिश्ता तक नहीं उस मोदी मंत्रिमंडल के पहले फेरबदल पर दीवाना बना हुआ है।  जिस मोटा भाई के मंत्रिमण्डल में एक छोटा भाई को छोड़कर कोई दूसरा मंत्री तक नहीं है- उसमें किसने इस्तीफा दिया, किसको लाल बत्ती मिली जैसी बातों का कोई मतलब नहीं है। जबकि असली खबर कुछ और है- मगर जब उसे ही छुपाने के लिए, उसी से बचने की खातिर हेडलाइंस मैनेजमेंट के लिए यह सब किया जा रहा हो तो फिर उनका मीडिया तो बोलने से रहा। 

ये काहे का फेरबदल है?  शून्य को शून्य में जोड़ने से संख्या नहीं बढ़ती।  शून्य के दो गुना-चार गुना  होने की संभावनाएं खुलती हैं।  अकर्मण्यता को निखट्टूपन का स्थानापन्न बनाने से कार्यकुशलता नहीं बढ़ती- और यही सत्ता पर बैठे कुनबे की सबसे बड़ी समस्या है।  वे अक्षम हैं और अक्षम रहेंगे।  

अब जैसे  किसे बनायें किसे न बनायें की ऊहापोह में मंत्रिमंडल विस्तार लटके लटके लगभग आधा कार्यकाल आ चला  – मगर नाम नहीं तय हो पाये थे ।  इस बीच पूरी अपनी आढ़त बेच बाच कर आये छोटू सिंधिया लालबत्ती पाने की कतार में लगे लगे प्रौढ़ हो चले थे । यह तब था जब कि शीर्ष पर सोनिया गांधी की हाँ-ना के लिए ताकते अनिर्नणी मौनमोहन सिंह नहीं, बेधड़क फैसले लेने के लिए (कु)ख्यात बड़ बोले नरेन्द्र मोदी विराजमान हैं।  बेचारे अपने ही मंत्रिमण्डल के विस्तार की बिसात में ऐसे उलझे हैं कि सारे राजभवनों को ही उलट पुलट कर रख दिया।  राज्यपाल के पद भी ऐसे बाँटे गए जैसे मंत्रिमंडल के विभाग हों। खो खो की तरह जिसे यहां से उठाना है उसे किसी राजभवन में बिठाने का खेला हो रहा है। संवैधानिक पदों को राजनीतिक नियुक्तियों की रेवड़ी बनाकर चीन्ह चीन्ह कर बाँटने की सर्जिकल स्ट्राइक करके उनकी दिखावटी निष्पक्षता का पर्दा भी उधेड़ कर रख दिया गया है। 

इधर तीरथ का चातुर्मास भी पूरा नहीं हुआ था कि चौथा हो गया ।  2017 में चुनाव प्रचार के दौरान नरेंद्र मोदी ने सुदूर उत्तरी पर्वतीय उत्तराखंड राज्य के मतदाताओं से डबल इंजन की सरकार देने का वादा किया था।  उन्होंने जो कहा उससे भी आगे बढ़कर किया।  इन पंक्तियों के लिखे जाने तक चौथे महीने में तीसरा मुख्यमंत्री शपथ ले कर इसे ट्रिपल इंजन बना चुका है।  यहां अकेली भाजपा का बहुमत प्रचण्ड है। इसके बाद भी अंदरूनी कलह अखण्ड है। तीरथ से धामी हुई सरकार अभी प्लेटफॉर्म से खिसकी भी नहीं है कि आधा दर्जन इंजनों ने शंटिंग शुरू कर दी है ; विधानसभा चुनाव में अभी नौ महीने शेष हैं और पिक्चर अभी बाकी है।  

बाकी प्रदेशों में जारी कबड्डी के बारे में पहले कई बार विस्तार से लिखा जा चुका है, उसे दोहराने की आवश्यकता नहीं है।  मगर ताज्जुब नहीं होगा कि आने वाले कुछ महीनों में भोपाल से बेंगलुरू, लखनऊ से गौहाटी तक ऐसे ही और नज़ारे दिखाई दें।  यह उस पार्टी की हालत है जिसका दावा एकदम अलग चाल, चरित्र और चेहरे का था; जिसका दावा न भूतो न भविष्यति वाले राज और प्रशासन का था। उठापटक और पदोन्नतियों – नियुक्तियों की यह खुल्लमखुल्ला निर्लज्जता उस कुनबे में हो रही है जिसका राजकाज न्यूनतम सरकार – मिनिमम गवर्नेंस –  की न्यूनता की सारी संभावनाओं से भी नीचे जाकर शासन और राज चलाने के मामले में अकर्मण्यता और अक्षमता का पाठ्यपुस्तकी उदाहरण बना हुआ है।  

व्याधा सिर्फ इस देवभूमि तक सीमित नहीं है।  मामला सिर्फ एक प्रदेश का नहीं है।  हर प्रदेश रणभूमि बना हुआ – सारे इन्द्रासन डोल रहे हैं।  खुद ब्रह्मा अपने मंत्रिमंडल के विस्तार के लिए न जाने कब से पूरा ब्रह्माण्ड टटोल रहे हैं।  

यह सब उस समय की बात है जिस समय भारतीय समाज अपने सबसे कष्टकारी, पीड़ादायी अनुभवों से गुजर रहा है।  केंद्र और राज्यों की भाजपा सरकारें बजाय उसे राहत देने या उसके कष्टों के निवारण के उपाय ढूंढने के खुद महा आपदा बन कर सर पर चढ़ी बैठी हैं।  नालायकी और निकम्मेपन का अपना ही बनाया रिकॉर्ड हर रोज तोड़ती जा रही हैं।  यह उस तब की बात है जो लगातार निरन्तरित अब बन चुका है ; जब पूरा देश करीब आधा करोड़ नागरिकों की कोरोना मौतों से सन्न और तीसरी लहर के हमले की आशंका से सुन्न पड़ा है।  गुरुत्वाकर्षण से लेकर माँग और पूर्ति के सारे सिध्दांतों को धता बताकर खाने और जलाने वाले हर तरह के तेलों की धार ऊपर की तरफ मुंह किये हिमालय की ऊँचाई छूने में लगी हो, मँहगाई गरीब की थाली में सन्नाटा पसराकर मध्यमवर्ग की बचतों को हिल्ले लगा रही हो। बेरोजगारी हर घंटे कुछ हजार लाख की दर से बढ़ती ही जा रही हो  –  और ऐसे कुसमय में वित्त मंत्री वित्त को छोड़ प्याज लहसुन और सब्जी भाजी पर बोल रही हैं, कृषि मंत्री खेती किसानी की जगह उपजाऊ जमीन पर उद्योग घरानों की चौसर बिछाकर उसकी गोटी बने हुए हैं, शिक्षा मंत्री सड़ी तुकबंदियाँ लिख लिखकर उन्हें कविता साबित करने में लगे  हैं,  विदेश मंत्री अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर भारत की बची खुची साख पर बट्टा लगा रहे हैं, शीर्ष के दोनों महान,  देश के दो नवकुबेरों के आज्ञाकारी दरबान बने खड़े हैं। 

गुजरात से एमपी तक बिहार से यूपी तक जित देखो तित निकम्मीलालों की बहार है। नोटबंदी से जीएसटी, ताली थाली बजवाने से लेकर खुद प्रधानमंत्री अनगिनत कारनामों के साथ इसका बड़ा उदाहरण बने हुए हैं।  राज चलाने के मामले में इतनी सर्वआयामी  नाकाबिलियत, इस कदर सर्वसमावेशी उजड्ड  निकम्मेपन की सर्वभारतीय एकरूपता  आखिर ये कुनबा लाता कहाँ से है ?  जाहिर है यह अपने आप नहीं आती। अनायास ही नहीं होती।  इसके पीछे ख़ास तरह का विचार है।  नेकर पहनाकर, शाखा में “आरामः दक्ष: कुर्सी हमारा लक्ष:” कराते हुए दिए गए जनता से नफरत और निर्बुद्धिकरण के संस्कार हैं।  इस मामले में यह कुनबा – आरएसएस और उसकी राजनीतिक भुजा भाजपा – विश्व राजनीति में अपनी मिसाल आप है।  

जब से मनुष्य समाज में सत्ता जन्मी है तबसे यानि वर्गीय समाज के बनने के बाद से राज चलाने वालों की बाकायदा अलग तरह की परवरिश और ट्रेनिंग के इंतजाम किये जाते रहे हैं।  चाणक्य के अर्थशास्त्र से लेकर जॉन स्टुअर्ट मिल से होते हुए जॉन लोके तक सत्ता प्रबंधन के आधुनिकतम शास्त्रों तक में इनके विधि विधान दिए गए हैं। शिक्षा प्रणाली का तो आधार ही यही रहा।  सामंती समाज में भी राजाओं बादशाहों, उनके मंत्रियों , दीवानों  यहां तक कि सिपहसालारों तक के अलग अलग तरह के विशेष प्रशिक्षण के प्रावधान हुआ करते थे।  पूँजीवादी निजाम ने उसे और आधुनिक अंदाज और कलेवर दिया। यहाँ तक कि यूरोप के फासिस्टों तक ने इस तकनीक को सीखा।  मगर उनके भारतीय प्रतिरूप अपने गुटके ठीक इसका उलटा सिखाकर तैयार करते रहे हैं।  उन्हें हल, कुदाली, सृजन और निर्माण की बजाय बघनखों और त्रिशूलों, विनाश और संहार के साँचे में ढालते रहे।  नतीजा देश के भूत भविष्य वर्तमान को भुगतना पड़ रहा है ।  राजनीतिक अस्थिरता की पगड़ी रस्म, संसदीय लोकतंत्र का चौथा और प्रशासनिक जिम्मेदारियों की उत्तरदायित्वता की उठावनी हो रही है ।  

मकसद जब छल, छद्म और प्रपंच फैलाना हो, सारी रणनीति जब अवाम को झांसा देना और बेवक़ूफ़ बनाना हो तब प्रशासन को मुस्तैदी से चलाना चिंता में नहीं होता।  प्राथमिकता में अफवाहें फैलाना और फसाद मचाना होता है। वही हो रहा है। मस्जिदें ढहा कर – गाय के नाम पर लिंचिंग करके उन्माद फैलाने की हर संभव कोशिशें  करके उत्तरप्रदेश के आगामी विधानसभा चुनाव की तैयारियां शुरू की जा चुकी हैं।  जैसे जैसे  भाजपा की उम्मीदों की चादर सिकुड़ती जा रही है वैसे वैसे आरएसएस की साजिशों के पाँव पसरते जा रहे हैं – और अभी चुनाव में 8-9 महीने बाकी हैं।  

अलोकप्रियता, विफलताओं और इनके चलते पनपे जन रोष से विस्फोटक हो चली ऐसी स्थितियों में राज में बने रहने का एकमात्र तरीका लोकतंत्र का अपहरण करना होता है, वही किया जा रहा है।  इसका एक रूप मानवाधिकार कार्यकर्ता 84 वर्षीय बुजुर्ग फादर स्टेन स्वामी की नजरबंदी के दौरान हुयी मौत के साथ सामने आया है।  ऐसे अनेक मानवाधिकार कार्यकर्ता, बुद्धिजीवी और वैज्ञानिक तीन-तीन साल से बिना किसी कारण के झूठे मुकदमों में जेल में पड़े हुए हैं।  नताशा, देवांगना और आसिफ  लम्बी जेल काटकर जमानत पर बाहर आ गए हैं – मगर बाकियों को उनकी तरह का अंतरिम न्याय भी नसीब नहीं हुआ।  इसी का दूसरा रूप पिछले सप्ताह हुए उत्तरप्रदेश के जिला पंचायतों में आजमाया गया ।  पंचायत प्रतिनिधियों, जनपद सदस्यों में जब करारी हार मिली तो जिला पंचायतों पर कब्जा करने के लिए पहले खरीद फरोख्त की हरचंद कोशिश हुयी।  जहां यह भी कामयाब नहीं हुयी वहां जिला प्रशासन और पुलिस के साथ मिलकर लाइव गुंडागर्दी, मारपीट के जरिये विपक्षी दलों के उम्मीदवारों को नामांकन तक नहीं भरने दिया गया।  जहां भरे भी गए वहां उन्हें जबरिया खारिज करवाकर भाजपाईयों को निर्विरोध जीता हुआ घोषित कर दिया गया।  

पांच राज्यों के चुनावों में निर्णायक शिकस्त के बाद आने वाले समय में होने वाले पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों में आसन्न पराजय से बचने के लिए यदि पूरा कुनबा तंत्र का इस्तेमाल कर षड्यंत्रों के जाल बुनने में लगा है तो उसके मुकाबले और प्रतिकार के लिए लोक भी अपनी तैयारियों में पीछे नहीं है।  किसान आंदोलन को जनांदोलन बनाने का काम जारी ही है कि इसी बीच मजदूर संगठन तीन दिन से लेकर अनिश्चितकालीन हड़ताल तक पर जाने के लिए कमर कस रहे हैं।  इन प्रतिरोधों  की छटा की उल्लेखनीय बात इसका इंद्रधनुषी होना है ; सिर्फ मेहनतकशों के वर्गीय संगठन ही नहीं महिला, छात्र, युवा, सांस्कृतिक मोर्चे भी मोर्चा खोल रहे हैं।  

हल निकलेगा, जितना गहरा खोदेंगे जल निकलेगा।  

(बादल सरोज लोकजतन के संपादक और अखिल भारतीय किसान सभा के संयुक्त सचिव हैं।)

जनचौक से जुड़े

0 0 votes
Article Rating
Subscribe
Notify of
guest
0 Comments
Inline Feedbacks
View all comments

Latest Updates

Latest

‘ऐ वतन मेरे वतन’ का संदेश

हम दिल्ली के कुछ साथी ‘समाजवादी मंच’ के तत्वावधान में अल्लाह बख्श की याद...

Related Articles