दिलचस्प नाटक में तब्दील हो गया है नुपुर-नवीन कांड

बीजेपी के नूपुर-नवीन कांड ने अब सचमुच एक मज़ेदार नाटक का रूप ले लिया है । मोदी-भागवत अपने मूल चरित्र पर पर्दा डाल रहे हैं, और सारे संघी कार्यकर्ता मिल कर उसे और ज़्यादा उघाड़ रहे हैं ! दोहरा चरित्र रंगमंच पर इसी प्रकार हंसी का पात्र बनता है।

बीजेपी में अब एक भी मुस्लिम सांसद नहीं बचा है और विधायक बमुश्किल एकाध । पर बीजेपी का दावा है – ‘वह सभी धर्मों का समान सम्मान करती है’। पात्रों की बातों और उनकी क्रियाओं के बीच इतने साफ़ फ़र्क़ से ही रंगमंच पर प्रहसन तैयार किए जाते हैं ।

हमारे अभिनवगुप्त आनंदवर्धन के ध्वन्यालोक की व्याख्या में वाक्य के वाच्यार्थ के बाद भी उसके व्यंग्यार्थ के बने रहने का कारण बताते हुए कहते हैं कि वह जो होने पर भी वाच्यार्थ से प्रतीत नहीं होता है, वाक्य के व्यंग्यार्थ का प्रमुख कारण होता है । फ्रायड ने इस आदमी के अव्यक्त यथार्थ को आदमी की इच्छा (trieb) से जोड़ा था, जिस पर फैंटेसी का पर्दा डाल कर आदमी यथार्थ से दूर अपने लिए सपनों की दुनिया रचता है ।

कहना न होगा, भाजपा के नूपुर शर्मा, नवीन जिंदल कांड के वास्तविक यथार्थ के शोर ने संभवतः मोदी-भागवत कंपनी को झकझोर कर उसे अपने ऐसे सपनों की दुनिया से जगा दिया है। पर शायद अब भी वे यह नहीं समझना चाहते कि यह यथार्थ इतना तुच्छ नहीं है कि उन्होंने आंख खोली और वह ग़ायब हो गया। उनकी आँख उनके सपने के यथार्थ के बजाय एक नए यथार्थ की जमीन में खुली है, जो उनकी अपनी ही इच्छाओं का यथार्थ है। उनके अस्तित्व के साथ अभिन्न रूप में जुड़ा यथार्थ। नूपुर शर्मा-नवीन जिंदल कांड ने उनके अंतर की इस छिपी हुई अभिलाषा के सच को सामने ला दिया है। और इसी के चलते वे आज मज़ाक़ का, प्रहसन का विषय बने हुए हैं।

हर कोई जानता है कि नूपुर शर्मा और नवीन जिंदल के विचार ही आरएसएस और मोदी के वे वास्तविक दमित विचार हैं, जो उनकी सारी गतिविधियों को प्रभावित करते हैं। ये विचार इनमें इसलिए दबा कर रखे हुए हैं, क्योंकि ऐसे जाहिल विचारों की सभ्य समाज में अनुमति नहीं हैं। पर यथार्थ में वे एक क्षण के लिए भी अपने इन विचारों से मुक्त नहीं हुए हैं। मोदी शासन के इन आठ सालों के विध्वंसक पागलपन में इसे बाक़ायदा देखा जा सकता है।

इन्होंने तो हिंदू धर्म में मानव कल्याण के प्रतीक, शिव लिंग को भी मस्जिदों पर क़ब्ज़ा जमाने के औज़ार के रूप में बदल दिया है!

शस्त्र पूजक आरएसएस का रास्ता हिंदुत्व के सशस्त्र संघर्ष का रास्ता है। सत्ता में आ कर शायद मोदी और भागवत अपने अंतर के इस सच से आँखें चुराना चाहते हैं। पर उनके कार्यकर्ता? उनके लिए तो यह दंगेबाजी ही उनका परम सत्य है। वे जानते हैं कि दंगे-हंगामे नहीं, तो वे भी नहीं !

मोदी-भागवत की विडंबना यह है कि जिन कार्यकर्ताओं को उन्होंने बनाया है, उन कार्यकर्ताओं ने ही उनको भी बनाया है। दंगेबाजों के साथ ही मोदी शासन की नियति जुड़ी हुई है। यही वजह है कि आज, इस शासन के रहते गृहयुद्ध की आग में जलना भारत की नियति लगने लगा है। ये निर्माण के नहीं, विध्वंस के दूत हैं, इसे आज भारतीय अर्थव्यवस्था से लेकर सभी स्तरों पर समग्र पतन के लक्षणों से देखा जा सकता है।

ईमानदारी राजनीति का एक बड़ा हथियार होती है, सांप्रदायिक जुनूनी लोग इसे नहीं मानते। इसीलिए वे जब सत्ता पर आ जाते हैं तो राष्ट्र की पूर्ण तबाही सुनिश्चित होती है। मोदी शासन ऐसे लोगों का ही शासन है। आज इनके इसी दोहरेपन के कारण भारत दुनिया में शर्मसार हो रहा है। भारत में बीजेपी और आरएसएस के लोग सरकार की शह पर मुसलमानों के खिलाफ जो माहौल बना रहे हैं, उसे दुनिया की नज़रों से छिपाना असंभव है। यह शासन देश को हर लिहाज़ से कमजोर बना रहा है। ऐसा काम ही तो साम्राज्यवाद के दलाल का काम कहलाता है।

नूपुर शर्मा-जिंदल कांड पर अरब जगत की प्रतिक्रिया के बारे में जो कहते हैं कि अरब देशों का भाजपा की मुसलमान-विरोधी नीतियों का विरोध ज़्यादा दिनों तक नहीं चलेगा, क्या वे यह नहीं कह रहे हैं कि भारत में भाजपा की गंदी सांप्रदायिक राजनीति ज़्यादा दिन नहीं चलने वाली है! सच यह है कि यही तो संघ के हिंदुत्व का वह यथार्थ है जिसे उससे कभी अलग नहीं किया जा सकता है।

(अरुण माहेश्वरी लेखक और चिंतक हैं। आप आजकल कोलकाता में रहते हैं।)

अरुण माहेश्वरी
Published by
अरुण माहेश्वरी