जातिगत जनगणना पर मोदी सरकार ने हाथ खड़े किये

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 मोदी सरकार ने उच्चतम न्यायालय से कहा है कि पिछड़े वर्गों की जाति आधारित जनगणना‘‘प्रशासनिक रूप से कठिन और दुष्कर है और जनगणना के दायरे से इस तरह की सूचना को अलग करना सतर्क नीति निर्णय है। उच्चतम न्यायालय में दायर हलफनामे के मुताबिक, सरकार ने कहा है कि सामाजिक, आर्थिक और जाति जनगणना (एसईसीसी), 2011 में काफी गलतियां एवं अशुद्धियां हैं।

महाराष्ट्र की एक याचिका के जवाब में उच्चतम न्यायालय में हलफनामा दायर किया गया। महाराष्ट्र सरकार ने याचिका दायर कर केंद्र एवं अन्य संबंधित प्राधिकरणों से अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) से संबंधित एसईसीसी 2011 के आंकड़ों को सार्वजनिक करने की मांग की और कहा कि बार-बार आग्रह के बावजूद उसे यह उपलब्ध नहीं कराया जा रहा है।

सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय के सचिव की तरफ से दायर हलफनामे में कहा गया है कि केंद्र ने पिछले वर्ष जनवरी में एक अधिसूचना जारी कर जनगणना 2021 के लिए जुटाई जाने वाली सूचनाओं का ब्यौरा तय किया था और इसमें अनुसूचित जाति तथा अनुसूचित जनजाति से जुड़े सूचनाओं सहित कई क्षेत्रों को शामिल किया गया लेकिन इसमें जाति के किसी अन्य श्रेणी का जिक्र नहीं किया गया है।

सरकार ने कहा कि एसईसीसी 2011 सर्वेक्षण ओबीसी सर्वेक्षण नहीं है जैसा कि आरोप लगाया जाता है, बल्कि यह देश में सभी घरों में जातीय स्थिति का पता लगाने की व्यापक प्रक्रिया थी।यह मामला बृहस्पतिवार को न्यायमूर्ति ए. एम. खानविलकर की अध्यक्षता वाली पीठ के समक्ष सुनवाई के लिए आया, जिसने इस पर सुनवाई की अगली तारीख 26 अक्टूबर तय की।

केंद्र का रूख इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि हाल में बिहार से दस दलों के प्रतिनिधिमंडल ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की अध्यक्षता में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात की थी और जाति आधारित जनगणना कराए जाने की मांग की थी।

जमानत के बाद कैदियों की रिहाई में न हो देरी

ज़मानत मिलने के बाद भी कैदियों की रिहाई में देरी के मुद्दे पर उच्चतम न्यायालय दिशा-निर्देश जारी करेगा। एमाइकस क्यूरी दुष्यंत दवे ने कहा कि 4 राज्यों के अरुणाचल, नागालैंड, मिज़ोरम और असम में आंशिक रूप से समस्याएं हैं। उनके पास इंटरनेट कनेक्टिविटी की समस्या है।उन्होंने ये भी कहा कि कई राज्यों ने हलफनामा नहीं दाखिल किया।अब तक सिर्फ 18 राज्य ही ऐसे हैं जिन्होंने हलफनामा दाखिल कर दिया है।उच्चतम न्यायालय  उपलब्ध रिपोर्ट के आधार पर आर्टिकल 142 के तहत अपनी शक्ति का उपयोग करके आदेश पारित कर सकता है।

उच्चतम न्यायालय  ने कहा कि कई राज्य सरकारों ने नोडल अधिकारी भी नियुक्त किए, जिसके बाद ट्रायल बेस पर कैदियों की रिहाई हुई है।न्यायालय  ने कहा कि यह बेहद सफल रहा है।. पिछली सुनवाई में चीफ जस्टिस  ने कहा था कि उच्चतम न्यायालय  जमानत के आदेश सीधे जेलों में भेजने की प्रणाली विकसित करने की सोच रहा है, ताकि कारागार से कैदियों की रिहाई में देरी न हो।

इससे पहले उच्चतम न्यायालय ने बुधवार को केरल के अधिकारियों को फटकार लगाते हुए कहा कि सरकारी प्रक्रिया को अदालत के निर्देशों के मुताबिक चलना  होगा।उच्चतम न्यायालय ने 28 सालों से जेल में बंद दो सजायाफ्ता कैदियों की समय पूर्व रिहाई के प्रस्ताव पर निर्णय नहीं करने के लिए उन्हें फटकार लगाई। उच्चतम न्यायालय ने इस मामले में पहले आदेश दिये जाने के बावजूद सक्षम प्राधिकारी द्वारा इस मामले में निर्णय नहीं लेने पर नाराजगी व्यक्त की और आदेश दिया कि जहरीली शराब के लगभग तीन दशक पुराने मामले में आजीवन कारावास की सजा भुगत रहे दोनों लोगों को तुरंत जमानत पर रिहा किया जाए। इस शराब कांड में 31 लोगों की मौत हो गई थी।

रिपोर्ट लीक होने की बात को लेकर गूगल ने खटखटाया हाई कोर्ट का दरवाजा

दिल्ली हाई कोर्ट, गूगल के एंड्रॉयड स्मार्टफोन समझौतों की भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग (सीसीआई) की ओर से जारी जांच से जुड़ी जानकारी मीडिया में लीक होने की याचिका पर सुनवाई के लिए गुरुवार राजी हो गया। याचिका चीफ जस्टिस डी एन पटेल और जस्टिसज्योति सिंह के समक्ष तत्काल सुनवाई के लिए सूचीबद्ध की गई और अदालत ने शुक्रवार को सुनवाई करने की स्वीकृति दी है।

गूगल ने एक बयान में कहा कि 18 सितंबर 2021 को एक गोपनीय रिपोर्ट महानिदेशक कार्यालय ने सीसीआई को सौंपी थी, जो मीडिया को लीक हो गई। यह रिपोर्ट गूगल के एंड्रॉयड स्मार्टफोन समझौतों की जारी जांच से संबद्ध है। गूगल ने कहा कि उसने यह गोपनीय रिपोर्ट न तो प्राप्त की है, ना ही इसकी समीक्षा की है।

कंपनी ने कहा कि अदालत में याचिका दायर कर उसने विश्वास तोड़े जाने का विरोध करते हुए इस विषय का समाधान करने का अनुरोध किया है। गूगल ने कहा है कि इससे खुद का बचाव करने की उसकी क्षमता प्रभावित हुई और उसे तथा उसके साझेदारों को नुकसान हुआ है। गूगल के प्रवक्ता ने कहा हम इसे लेकर बहुत चिंतित हैं कि महानिदेशक की रिपोर्ट, जिसमें जांच किये जा रहे एक मामले में हमारी गोपनीय सूचना है, सीसीआई के पास रहने के दौरान मीडिया को लीक हो गई।

रिपोर्ट के मुताबिक सीसीआई की जांच में पाया गया है कि गूगल ने अपने वर्चस्व की स्थिति का मोबाइल संचालन प्रणाली एंड्रॉयड के सिलसिले में कथित तौर पर दुरूपयोग किया। रिपोर्ट के अनुसार यह पाया गया है कि गूगल एंड्रॉयड को लेकर अनुचित कारोबारी गतिविधियों में शामिल है।

कोविड के 30 दिनों के भीतर आत्महत्या मामले में भी मु‌आवजा

केंद्र सरकार ने उच्चतम न्यायालय  में कहा है कि कोविड पॉजिटिव आने के 30 दिनों के भीतर अगर किसी ने आत्महत्या कर ली हो तो उसे कोविड डेथ के तहत मानते हुए उसके परिजन 50 हजार रुपये मुआवजे का हकदार होगा।

गुरुवार को केंद्र सरकार ने कहा है कि अगर कोई शख्स कोविड से पीड़ित है और पॉजिटिव रिपोर्ट आई है और उसके 30 दिन के दौरान अगर उसने आत्महत्या कर ली हो तो कोविड डेथ के तहत उसके परिजनों को मुआवजा दिया जाएगा।

उच्चतम न्यायालय  में केंद्र ने कहा है कि आईसीएमआर और हेल्थ मिनिस्ट्री के गाइडलाइंस के तहत जैसे ही कोविड का पता चलता है और उसके 30 दिनों के भीतर अगर वह शख्स आत्महत्या कर लेता है तो उसे कोविड डेथ माना जाएगा।

कोरोना से निपटने के लिए देश में हुए इंतज़ामों की तारीफ

उच्चतम न्यायालयने कोरोना वायरस से निपटने के लिए देश में हुए इंतज़ामों की तारीफ की है। जस्टिस एम आर शाह ने कहा कि हमारे देश में  जनसंख्या, वैक्सीन पर खर्च, आर्थिक हालत और विपरीत परिस्थितियों को देखते हुए असाधारण कदम उठाए गए हैं। उन्होंने कहा कि  जो हमने किया, वो दुनिया का कोई और देश नहीं कर पाया।जस्टिस शाह ने कहा कि हमें खुशी है कि पीड़ित व्यक्ति के आंसू पोंछने के लिए कुछ किया जा रहा है।

जस्टिस एम आर शाह ने कहा कि आज हम बहुत खुश हैं।पीड़ित लोगों को कुछ सांत्वना मिलेगी। इस पर सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि हमने अपना काम किया है।मेहता ने कहा कि एक राष्ट्र के तौर पर हमने कोरोना का बेहतर तौर पर जवाब दिया है।

आरोपी के कब्जे से प्रतिबंधित मादक पदार्थ की बरामदगी न होना जमानत देने का आधार नहीं

उच्चतम न्यायालय के जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ और जस्टिस बीवी नागरत्ना की पीठ ने कहा है कि ड्रग्स एंड साइकोट्रोपिक सब्सटेंस एक्ट के तहत किसी आरोपी को महज इस तथ्य के आधार पर जमानत नहीं दी जा सकती कि आरोपी के पास प्रतिबंधित मादक पदार्थ नहीं था। पीठ ने कहा कि इस तरह का निष्कर्ष एनडीपीएस अधिनियम की धारा 37(1)(बी)(ii) के तहत आवश्यक जांच के स्तर से अदालत को मुक्त नहीं करता है। पीठ ने दोहराया कि जमानत देते समय कसौटी पर कसने की असली बात यह है कि क्या यह मानने के लिए उचित आधार हैं कि आरोपी ने कोई अपराध नहीं किया है और क्या जमानत पर रहते हुए आरोपी द्वारा कोई अपराध किए जाने की आशंका है।

इस मामले में हाईकोर्ट ने इस आधार पर जमानत की अनुमति दी थी कि एनडीपीएस अधिनियम की धारा 50 के प्रावधानों के मद्देनजर एक राजपत्रित अधिकारी की उपस्थिति में तलाशी ली गई थी, लेकिन व्यक्तिगत तलाशी के दौरान आरोपी के पास से कुछ भी आपत्तिजनक बरामद नहीं हुआ था। हालांकि, कार की तलाशी लेने पर उस जगह दो पॉलिथीन के पैकेट मिले, जहां वाइपर कार के फ्रंट बोनट से जुड़े होते हैं।

(जेपी सिंह वरिष्ठ पत्रकार हैं और आजकल इलाहाबाद में रहते हैं।)

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