Tuesday, April 16, 2024

यूपी विधानसभा चुनाव: पार्टियों ने खोल दिया है वादों का पिटारा

विधानसभाओं के लिए चुनाव प्रचार जोरों पर है, हालांकि, सभी की निगाहें यूपी-राज्य विधानसभा चुनाव पर हैं। उत्तर प्रदेश राष्ट्रीय राजनीति में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता रहा है। यह राज्य लोकसभा में 80 और राज्यसभा में 31 सदस्यों को भेजकर संसदीय प्रतिनिधित्व में महत्वपूर्ण योगदान देता रहा है, इसलिए, यूपी-राज्य विधानसभा चुनाव के परिणाम का राष्ट्रीय राजनीति पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ेगा। जैसे-जैसे मतदान की तारीख नजदीक आती जा रही है राजनेताओं में जुबानी जंग बढ़ती जा रही है।

दरअसल, सत्ता की मुख्य दावेदार, बीजेपी सत्ता को बनाए रखने के लिए अपनी पूरी कोशिश कर रही है, वहीं दूसरी ओर, समाजवादी पार्टी जिसे 2017 में हार का सामना करना पड़ा था, छोटे दलों के साथ गठबंधन में प्रवेश कर सत्ता में वापस आने के लिए कड़ी मेहनत कर रही है। यहाँ, हम बहुजन समाज पार्टी को नजरअंदाज नहीं कर सकते, जो सोशल इंजीनियरिंग के लिए जानी जाने वाली पार्टी है, जिसने 15 बनाम 85 का नारा दिया, जो अभी भी एक बड़ा जनादेश पाने के लिए दलित वर्ग और अन्य वर्ग को एक साथ लाने के लिए आश्वस्त है। इस बीच, प्रियंका गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस पार्टी इस चुनाव में अपनी उपस्थिति दर्ज कराने की पूरी कोशिश कर रही है। आम आदमी पार्टी और आजाद समाज पार्टी (भीम आर्मी) भी अपनी राजनीतिक जमीन की तलाश में हैं। इस विधान सभा चुनाव में कई कारक प्रमुख भूमिका निभा सकते हैं:

यूपी-राज्य विधानसभा चुनाव 2022 काफी दिलचस्प है, क्योंकि यह तीन कृषि कानूनों को वापस लेने के बाद लड़ा जा रहा है। संभावित चुनावी नुकसान की आशंका के चलते प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 20 नवंबर, 2021 को घोषणा की कि केंद्र सरकार तीन कृषि कानूनों को वापस लेगी जिसकी मांग किसान लगभग एक वर्ष से आन्दोलन के माध्यम से कर रहे थे। साथ ही भाजपा का शीर्ष नेतृत्व जाट मतदाताओं को अपने पाले में लाने की कोशिश कर रहा है, लेकिन समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने राष्ट्रीय लोक दल के नेता जयंत चौधरी के साथ गठबन्धन कर बीजेपी की राह मुश्किल बना दिया है ।

भारतीय जनता पार्टी भगवा ध्रुवीकरण चाहती है; क्योंकि धार्मिक कार्ड ने लगातार दो लोकसभा चुनावों 2014 और 2019 और राज्य विधानसभा चुनाव 2017 में  लाभ दिया है। प्रधानमंत्री ने काशी विश्वनाथ कॉरिडोर का उद्घाटन किया, अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण कार्य चल रहा है और पार्टी मथुरा में भव्य मंदिर के लिए वादा कर रही है। भाजपा धार्मिक कार्ड को प्रभावी ढंग से खेलना चाहती है, जबकि अखिलेश यादव के नेतृत्व में समाजवादी पार्टी पारंपरिक एमवाई आधार के साथ ओ.बी.सी. मतदाताओं को जोड़ना चाहते हैं और इसके लिए उन्होंने प्रमुख ओबीसी नेताओं को अपने पाले में लिया है। हालांकि सभी राजनीतिक दल विकास और लोगों की भलाई का एजेंडा लेकर चलने का दावा करते हैं। लेकिन यह एक कड़वी सच्चाई है कि राज्य की राजनीति में जाति और धर्म महत्वपूर्ण भूमिका निभाते रहे हैं। उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव के पहले चरण के साथ, केंद्रीय गृह मंत्री और भारतीय जनता पार्टी के शीर्ष चुनावी रणनीतिकार अमित शाह ने जाट समुदाय को अपने पाले में करने और उनका समर्थन लेने के लिए दिल्ली में लगभग 250 जाट नेताओं के साथ बैठक किया ।

जातीय समीकरण एक प्रमुख कारक बना हुआ है क्योंकि राजनीतिक दल जाति के आधार पर अपने टिकट का वितरण करते हैं। समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने 2 जनवरी को ब्राह्मण वर्ग को अपनी पार्टी की ओर आकर्षित करने के लिए लखनऊ के पास महुराकला गांव में परशुराम की मूर्ति वाले एक मंदिर में अनुष्ठान किया। अखिलेश यादव के इस कदम को ब्राह्मण आउटरीच के तौर पर देखा जा रहा है।

अखिलेश यादव के ब्राह्मण वर्ग को खुश करे के प्रयासों के कुछ दिनों बाद, उत्तर प्रदेश के डिप्टी सीएम दिनेश शर्मा और अन्य भाजपा नेताओं ने लखनऊ में भगवान परशुराम के एक मंदिर का उद्घाटन किया। इस कदम को भाजपा द्वारा ब्राह्मण समुदाय को खुश करने के एक और प्रयास के रूप में देखा जा रहा है। राजनीतिक हलकों में, लखनऊ में भगवान परशुराम की प्रतिमा के अनावरण को अखिलेश यादव द्वारा ब्राह्मण समुदाय को प्रभावित करने के प्रयास का मुकाबला करने के भाजपा के प्रयासों के हिस्से के रूप में देखा गया।

हालांकि, बीजेपी ने ब्राह्मण आउटरीच प्रयास को खारिज कर दिया और दावा किया कि पार्टी लम्बे समय से सभी जातियों और समुदायों का सम्मान किया है। भाजपा इससे पहले भी कानपुर और अन्य जगहों पर परशुराम की मूर्तियां स्थापित कर चुकी है। राज्य की आबादी में ब्राह्मण वर्ग की हिस्सेदारी करीब 13 फीसदी के आस पास है और इसलिए विधानसभा चुनाव में अपनी किस्मत आजमाने के लिए सभी प्रमुख पार्टियां उन्हें लुभा रही हैं। बसपा प्रमुख मायावती ने अपनी पार्टी के ब्राह्मण चेहरे सतीश चंद्र मिश्रा को दलित-ब्राह्मणों के संयोजन के सोशल इंजीनियरिंग फॉर्मूले को पुनर्जीवित करने के लिए उनका समर्थन जुटाने के लिए पहले से ही लगा रखा है। उत्तर प्रदेश में दलित एक प्रभावशाली जाति समूह हैं। इनकी आबादी करीब 21.6 फीसदी है, जिसमें 66 दलित उपजातियां शामिल हैं। 1993 से, जब दिवंगत कांशीराम ने मुलायम सिंह यादव की समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन किया और गठबंधन में पहली बसपा- सपा सरकार बनाई, तब से दलित बसपा के लिए एक ब्लॉक के रूप में मतदान करते रहे हैं।

सोशल मीडिया ने भारत में राजनीति के पूरे प्रतिमान को बदल दिया है जिससे सभी हितधारकों को सीधे मतदाताओं से बात करने का अवसर मिल रहा है। दिलचस्प बात यह है कि अधिकांश राजनेता लोगों तक अपना संदेश पहुंचाने के लिए फेसबुक, व्हाट्सएप ट्विटर, इंस्टाग्राम जैसे विभिन्न प्लेटफॉर्म का उपयोग कर रहे हैं। सोशल मीडिया लोगों तक पहुंचने का एक महत्वपूर्ण साधन बन गया है और जिस पार्टी की सोशल मीडिया पर बढ़त है, वह चुनावों को बहुत प्रभावी ढंग से प्रभावित कर सकती है। कुछ राजनीतिक दलों के सोशल मीडिया पर बड़ी संख्या में अनुयायी हैं, और ऐसे दल चुनाव की दिशा को प्रभावित कर सकते हैं।

पुरानी पेंशन योजना (ओ. पी. एस.)बनाम नवीन पेंशन योजना (एन. पी. एस.) राज्य के कर्मचारियों के बीच एक आम बहस का विषय है, विशेष रूप से, जिन्हें 2005 के बाद नियुक्तियां मिली हैं। ओ. पी. एस. को बहाल करने के समाजवादी पार्टी के वादों ने कई लाख सरकारी कर्मचारियों के हितों को प्रोत्साहित किया है, जो कई वर्षों से इसकी मांग कर रहे हैं। उन्हें लगता है कि ओ पी एस, एन पी एस की तुलना में अधिक सामाजिक सुरक्षा प्रदान करता है। आदित्यनाथ की पार्टी ने अभी तक सपा के चुनावी वादे का कोई ठोस जवाब नहीं दिया है। कुछ लोग भले ही धर्म और जाति का चश्मा पहने हों या किसी खास पार्टी से जुड़े हों, लेकिन इस अहम मुद्दे पर कर्मचारी एकजुट दिखाई दे रहे हैं।

विपक्ष के हाथ में महंगाई एक अहम मुद्दा है, इसका सीधा असर आम लोगों पर पड़ा है और कोरोना महामारी के कारण बड़े पैमाने पर नौकरी छूटने से स्थिति काफी गंभीर हो गई है। पेट्रोल, डीजल, एलपीजी और सरसों के तेल की कीमतों में बढ़ोत्तरी ने आम आदमी को काफी प्रभावित किया है।

यह चुनाव कई मायने में अद्वितीय है क्योंकि यह कोरोना महामारी की छाया में लड़ा जा रहा है और इसके परिणामस्वरूप, चुनाव आयोग ने चुनावी रैलियों, रोड शो और विशाल सभाओं पर प्रतिबंध लगा दिया है। राजनीतिक दलों को कोरोना दिशानिर्देशों और आदर्श आचार संहिता (एमसीसी) का पालन करना होगा, इसलिए लोगों तक पहुंचने के लिए उनके पास सीमित विकल्प हैं। ऐसे में डोर-टू-डोर कैंपेन, सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म और वर्चुअल रैलियां विकल्प हैं।

मुस्लिम समुदाय को यूपी में दूसरा सबसे बड़ा धार्मिक समूह माना जाता है और मोटे तौर पर इस समुदाय की आबादी लगभग 20 प्रतिशत है, इस समुदाय का मतदान पैटर्न राज्य विधानसभा चुनाव के परिणाम को प्रभावित करता रहा है। वोटिंग पैटर्न के बारे में कई तरह के विश्लेषण हैं लेकिन यह माना जाता है कि यह समुदाय बीजेपी को हराने के लिए रणनीतिक वोटिंग करता है। यदि यह समुदाय विभाजित हो कर मतदान करता है तो इससे भाजपा को लाभ होगा और इस समुदाय के बीच मुख्य रूप से दो मतदान पैटर्न, प्रथम जो पार्टी भाजपा को हरा सकती है और दूसरा,जो उम्मीदवार भाजपा के उम्मीदवार को पराजित कर सकता है, प्रथम पैटर्न सत्ता परिवर्तन का संकेत देता है, यह पैटर्न विपक्ष को लाभान्वित कर सकता है।

आम चुनाव की तरह इस विधानसभा चुनाव में भी कई राजनीतिक दल अपने आधिकारिक घोषणापत्र आने से पहले ही मुफ्त की घोषणाओं से मतदाताओं को खुश करने की कोशिश कर रहे हैं। आम आदमी पार्टी के बाद, समाजवादी पार्टी ने उत्तर प्रदेश में सत्ता में आने पर 300 यूनिट मुफ्त बिजली देने की घोषणा की। पार्टी ने वादा किया कि सभी बिजली बकाया माफ कर दिया जाएगा और किसानों को मुफ्त बिजली दी जाएगी। पार्टी ने रोजगार गारंटी और शिक्षा के लिए तर्कसंगत बजट का भी वादा किया। वहीं, कांग्रेस महिला सशक्तिकरण पर फोकस कर रही है। पार्टी ने विधानसभा टिकटों में महिलाओं के लिए 40% आरक्षण का वादा करने के अलावा एक महिला घोषणापत्र भी जारी किया है जिसमें लड़कियों के लिए स्मार्टफोन और इलेक्ट्रिक स्कूटी, विधवाओं और बुजुर्ग महिलाओं के लिए पेंशन में वृद्धि, आशा और आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं के मानदेय में वृद्धि का वादा किया गया है। और राज्य में महिलाओं के लिए मुफ्त बस यात्रा। कांग्रेस ने महिलाओं के लिए एक साल में तीन मुफ्त गैस सिलेंडर देने का भी वादा किया है।

राष्ट्रीय लोक दल ने अपने घोषणापत्र में महिलाओं के खिलाफ अपराधों की बढ़ती संख्या को रोकने के लिए पुलिस में महिलाओं को 50 प्रतिशत प्रतिनिधित्व के साथ युवाओं को एक करोड़ नौकरी देने का वादा किया है। रालोद ने सत्ता में आने पर प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि की राशि को 6,000 रुपये से बढ़ाकर 12,000 रुपये और छोटे किसानों के लिए 15,000 रुपये करने का भी वादा किया है। पार्टी मुख्य फसलों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य बढ़ाने का वादा करती है।

भाजपा राज्य में कानून व्यवस्था को अपनी सरकार की प्रमुख उपलब्धियों के रूप दिखा रही है। अपराध नियंत्रण चुनाव में एक प्रमुख भूमिका निभा सकता है। आम लोगों की नजर में कानून और व्यवस्था राज्य में मतदान के पैटर्न को निर्धारित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। इस नीति ने समाज के कुछ वर्गों में कथित रूप से भेदभावपूर्ण पीड़ा भी मिला है। हालांकि कुछ लोग पुलिस के ट्रिगर-हैप्पी रवैये की आलोचना भी कर रहे हैं ।

इस चुनाव में बेरोजगारी एक अहम मुद्दा है। भर्ती प्रक्रिया में देरी उम्मीदवारों की मुख्य चिंता का विषय है। इस बीच, भर्ती प्रक्रिया में विशेष रूप से शिक्षकों की नियुक्तियों में आरक्षण नीति के उल्लंघन को जोरदार तरीके से उठाया जा रहा है। मंडल राजनीति के उभार से आरक्षण का मुद्दा अहम होता जा रहा है।

किसान सम्मान निधि, उज्ज्वला योजना, मुफ्त राशन जैसी केंद्र सरकार और राज्य सरकार की कल्याणकारी योजनाओं का लाभार्थियों पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता दिखाई दे रहा है। इन योजनाओं के लाभार्थियों को कुछ संख्या को छोड़कर सत्ताधारी दल से कोई शिकायत नहीं है। यह सत्तारूढ़ व्यवस्था को लाभांश प्रदान कर सकता है। इसका असर वोटिंग पैटर्न पर भी पड़ सकता है।

उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव दिलचस्प मोड़ पर पहुंच चुका है, राजनीतिक दल और उम्मीदवार लोगों के दरवाजे पर पहुंच रहे हैं। सभी राजनीतिक दल मतदाताओं को खुश करने के लिए हर संभव प्रयास कर रहे हैं। मतदाता अपनी अकांक्षाओं एवं शिकायतें लेकर सामने आ रहे हैं। नतीजतन, आम तौर पर लोगों में असंतोष के परिणामस्वरूप, जनप्रतिनिधियों को सीधे जनता से गुस्से का सामना करना पड़ रहा है। प्रमुख दल चुनावी लहर की तलाश में हैं, उम्मीदवार लहर पर सवार होकर चुनाव जीतना चाहते हैं, साथ ही जनता भी अपने प्रतिनिधियों की जवाबदेही तय करना चाहती है।

(डॉ. सुरेंद्र कुमार यादव राजनीति विज्ञान में असिस्टेंट प्रोफेसर हैं।)

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