नेता और राजनीति कोई अलग-अलग नहीं होते। फिर सत्तारूढ़ और विपक्ष में भी कोई बड़ा फर्क नहीं होता। सब एक ही थाली के चट्टे-बट्टे होते हैं। राजनीति के जरिये पहले जनता को लोभी बनाया जाता है, कुछ पैसे देकर तो कुछ रेवड़ियां बांटकर।
किसी भी राज्य में चुनाव से पहले ही रेवड़ियों का ऐलान होने लगता है। जो दल सत्ता पर काबिज होता है वह फिर से सत्ता पाने के लिए फिर से रेवड़ियों की सूची जारी करता है और जो पार्टी विपक्ष में होती है वह सत्ता पाने के लिए सत्तारूढ़ पार्टी से भी बड़ी रेवड़ियां जनता के सामने परोसती है।
फिर चुनावी मैदान में पार्टियों का सामना होता है। एक दूसरे को पापी, भ्रष्ट, बेईमान और न जाने किन-किन उपाधियों से नवाजा जाता है। चुनाव से पहले की रात में पैसे, शराब भी बांटे जाते हैं। फिर जीत उस पार्टी की होती है जिसने बड़ी रेवड़ियां देने की बात कही है और जिनके पास जातीय गुणा-भाग को अपने पाले में करने की ताकत होती है।
फिर इस खेल में अगर सरकारी मशीनरी और जांच एजेंसियां भी शामिल हो जायें तो सोने पर सुहागा। आजकल सरकार से भी ज्यादा बेईमान जांच एजेंसियां हो गई हैं, अब उसका कोई इक़बाल बचा नहीं है।
देश में गरीबी और असमानता कितनी है इसकी बानगी तो पांच किलो वाली अनाज योजना से ही पता चल जाता है। जब 80 करोड़ लोग पांच किलो अनाज पर कीर्तन करने से नहीं मानते तो नेता और राजनीति अपने करतूत से कैसे बाज आ सकते हैं?
और जांच एजेंसियां क्या होती हैं यह भी जनता जान गई है। जिसकी सरकार उसके सामने ये एजेंसियां नतमस्तक रहती हैं। मजाल नहीं कि सरकार के कहे बगैर वह किसी पर हाथ डालें। सरकार के कहते ही ये एजेंसियां हाथ लगे लोगों को भी नमस्कार करती हैं और उसके साथ ठिठोली भी करती हैं। महाराष्ट्र में इन दिनों यही सब हो रहा है।
महाराष्ट्र सरकार में इन दिनों जो होता दिख रहा है उसे देखकर अगर महान वैज्ञानिक आइंस्टीन जिन्दा होते तो महाराष्ट्र के खेल में सापेक्षता का सिद्धांत ढूंढ रहे होते। लेकिन आइंस्टीन तो हैं नहीं। भला अब सापेक्षता का सिद्धांत महाराष्ट्र में भला कौन ढूंढेगा?
बता दें कि महाराष्ट्र मंत्रिमंडल में जो देखने को मिल रहा है वह भरमाता भी है और लुभाता भी है। चुनाव परिणाम आने के 22 दिनों बाद मुख्यमंत्री और उप मुख्यमंत्री की नियुक्ति हुई थी और फिर इसके दस दिन बाद 39 मंत्री बनाये गए, अभी कुल 42 लोग मंत्रिमंडल में शामिल हैं। हालांकि अभी इनके विभाग नहीं बंटे हैं। मारामारी चल रही है। दिल्ली तक भाग दौड़ जारी है।
लेकिन बड़ी बात तो यह है कि शपथ लेने वाले 42 में से अनेक मंत्री ऐसे हैं, जो केंद्रीय एजेंसियों के जांच के दायरे में हैं। कभी ये सभी मारे-मारे फिरते थे लेकिन अब इन्हें कोई गम नहीं है। अब वे आराम से हैं और अब इनको कोई परेशानी भी नहीं है।
इनके खिलाफ सारे केस या तो बंद कर दिए गए हैं या फिर दबा दिए गए हैं या बंद होने के कगार पर हैं। कोई मंत्री दागी या फिर आरोपी कैसे हो सकता है, इसलिए अब उनके दाग को सफ़ेद किया जा रहा है ताकि महाराष्ट्र की जनता में कोई गलत सन्देश नहीं जाए। जो नेता कभी जांच एजेंसियों के भय से जान बचाने को परेशान थे, अब मुस्कुराते नजर आ रहे हैं।
जांच एजेंसियों के रडार पर रहे कई नेता महाराष्ट्र मंत्रिमंडल में शामिल हुए हैं। अगर किसी दूसरे राज्य में जांच के दायरे वाले नेताओं को मंत्रिमंडल में शामिल किया जाता तो मीडिया की खबरें बनतीं। गोदी मीडिया वाले ही तौबा मचाते। लेकिन अभी ऐसा कुछ भी नहीं हो रहा है।
कल्पना कीजिये अगर जांच एजेंसियों के रडार पर रहने वाले किसी दूसरे राज्य और किसी दूसरी पार्टी की सरकार में यह सब होता तब क्या होता। लेकिन महाराष्ट्र में महायुति की सरकार बनी है तो इस पर सवाल कौन उठा सकता है।
एक समय था जब बीजेपी और जांच एजेंसियों के रडार पर बहुत से नेता थे लेकिन अब न कोई रडार पर है और न ही कोई जांच एजेंसी किसी नेता की खोज में हैं।
अब सभी के मुकदमे स्थगित हो गए हैं। कोई कार्रवाई नहीं हो रही है और जिस पार्टी ने यानी जिस बीजेपी ने इनके खिलाफ अभियान छेड़ा ये सभी लोग उसी की सरकार में मंत्री हैं।
अल्बर्ट आइंस्टीन जिंदा होते तो इसके जरिए भी वे सापेक्षता का सिद्धांत समझा सकते थे। जाहिर है भाजपा के लिए भ्रष्टाचार निरपेक्ष नहीं है, बल्कि पार्टी सापेक्ष है। जो व्यक्ति बीजेपी विरोधी पार्टी में रह कर भ्रष्ट होता है वह बीजेपी के साथ आने पर ईमानदार हो सकता है। और हो भी रहा है।
बहरहाल, महाराष्ट्र मंत्रिमंडल में कम से कम चार मंत्री ऐसे हैं, जिनके खिलाफ ईडी की कार्रवाई चल रही थी। भले ईडी ने उनके खिलाफ अभी आरोपपत्र दाखिल नहीं किया है लेकिन कार्रवाई बंद भी नहीं की है। इनमें सबसे ऊपर उप मुख्यमंत्री अजित पवार का नाम है।
उनको कई मामलों में क्लीन चिट मिली है लेकिन अभी वे पूरी तरह से बरी नहीं हुए हैं। अदालत में क्लोजर रिपोर्ट नहीं लगी है। याद रहे अजित पवार महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री फिर से बने हैं।
इसी तरह उनकी पार्टी के दो अन्य नेता धनंजय मुंडे और हसन मुशरिफ भी ईडी की जांच झेल रहे हैं और देवेंद्र फडणवीस की सरकार में मंत्री बने हैं। इसी तरह एकनाथ शिंदे की शिवसेना के नेता प्रताप सरनाईक के खिलाफ भी ईडी की जांच चल रही है।
भाजपा के अपने नेता गिरीश महाजन के खिलाफ भी सीबीआई की जांच चल रही थी लेकिन उनको राहत मिली हुई है। अब सवाल कौन उठा सकता है। कल तक जो आरोपी थे और भागे-भागे फिर रहे थे अब मजे से दूसरों पर आरोप लगा सकते हैं। बड़ी बात तो यह है कि कानून भी बनाएंगे और खुद को पाक साफ़ बताएंगे।
(अखिलेश अखिल वरिष्ठ पत्रकार हैं।)
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