Saturday, April 20, 2024

मोदी जी! प्रधानमंत्री चंद पूंजीपतियों का नहीं, पूरी जनता का होता है हितरक्षक

कितने दुःख, अफसोस और हतप्रभ करने वाली बात है कि वर्तमान समय में भारत का सत्तारूढ़ प्रधानमंत्री 2014 के चुनाव से पूर्व अपनी लगभग हर जनसभाओं में इस देश की आवाम या आम भारतीय जनता के सामने अपनी गर्दन में लिपटे अंगोछे को फैलाकर लगभग याचक की मुद्रा में यह कहता रहता था कि ‘बहनों और भाइयों! आपने 60 साल कांग्रेस को दिए हैं ये आपका सेवक हाथ जोड़कर आपसे विनती करता है कि आप इस सेवक को केवल 60 महीने का एक मौका देकर देखिए, मैं वादा करता हूँ कि मैं इस देश का प्रधानमंत्री बनकर नहीं, बल्कि आपका सेवक बनकर आपकी सेवा करूँगा और भी बहुत सी बातें यथा हमारे सत्ता में आते ही आपके अच्छे दिन आ जाएंगे। मंहगाई कम हो जाएगी। सर्वत्र खुशहाली आ जाएगी। पेट्रोल की कीमत कम हो जाएगी।

भ्रष्टाचार खतम हो जाएगा। विदेशों में जमा कालेधन का एक-एक पाई 100 दिन के अन्दर लाकर आप हर एक के खाते में 15-15 लाख जमा कराएंगे। हर साल दो करोड़ बेरोजगारों को नौकरी देंगे। आदि-आदि बहुत से हसीन सपने का प्रलोभन सार्वजनिक रूप से दिया। परन्तु बीते 7 सालों में मोदी द्वारा किए कार्यों का ईमानदारी से आकलन करने पर यह साबित होती है कि कांग्रेसियों के भ्रष्टाचार, कदाचार और कुशासन से त्रस्त भारतीय जनता मोदी जैसे झूठे वादे करनेवाले, भ्रष्ट, जुमलेबाज, धोखेबाज, क्रूर, असहिष्णु, अमानवीय, मानवेत्तरजीव, दया और करूणाविहीन, हृदयहीन, अशिष्ट, व्यभिचारी, निरंकुश व्यक्ति को सत्ता पर बैठाकर भारत की जनता ने ऐतिहासिक, भयंकरतम् और अक्षम्य भूल और गलती की है। साथ मोदी जैसे राष्ट्रहंता व्यक्ति ने सार्वजनिक रूप से एक पूरे राष्ट्रराज्य के विश्वास का दम घोंटने का अक्षम्य अपराध किया है।

सबसे बड़ी बात यह भी है कि एक सभ्य मानव समाज में इस धारणा को बहुत आदर और प्रतिष्ठा के साथ कहा जाता है कि किसी भी व्यक्ति को अपनी कही बात की गरिमा को भविष्य में उसे ध्यान में रखकर अवश्य निभाने का भरसक प्रयत्न करना चाहिए। परन्तु श्रीमान् श्रीयुत् नरेंद्र दास दामोदर दास मोदी के संबंध में यह बात कितनी शर्मनाक और राष्ट्रीय क्षोभ का विषय है कि इस राष्ट्र का एक भावी प्रधानमंत्री सार्वजनिक रूप से पूरे राष्ट्र की 1 अरब 35 करोड़ लोगों के सामने मिथ्याचार और झूठ बोलकर लोगों की भावनाओं के साथ अश्लील मजाक किया।

क्या किसी देश के, किसी राष्ट्र के आवाम और आम जनता के वोटों से जीत कर, लोकतांत्रिक ढंग से चुनकर आए लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था के प्रमुख मतलब प्रधानमंत्री का इस तरह गैरजिम्मेदाराना कर्तव्य कहीं से भी, किसी दृष्टिकोण से न्यायोचित्त, समयोचित्त व लोकतांत्रिक है? कतई नहीं। इस व्यक्ति द्वारा भारत में पिछले 7 सालों के शासनकाल का हर दिन इस देश के गरीबों, मजदूरों, किसानों या आमजन के विरुद्ध व चंद पूंजीपतियों यथा अडानी और अंबानी आदि के हितरक्षक कामों और दुर्नीतियों से भरा पड़ा है, चाहे अचानक लागू की गई नोटबंदी हो, अचानक लॉकडाउन लगाया गया हो, रातों-रात जीएसटी लागू की गई हो, किसानों की पिछले सात महीनों से सर्वथा न्यायोचित्त माँग के लिए बेहद अमानवीय व असंवेदनशील व्यवहार हो, मजदूरों के अनंत शोषण के लिए कथित श्रमसुधार की दुर्नीति हो, खनिज संपदा से भरपूर जमीन को अपने पूँजीपति यारों को देने के लिए, आदिवासियों को बेदखल करने के लिए, छद्म नक्सल शब्द का प्रयोग कर, आदिवासियों के साथ किया गया अतिक्रूर दुर्व्यवहार यथा उनकी बेटियों से सुरक्षाबलों द्वारा बलात्कार किया गया हो या उनकी हत्या करना हो, इन सभी में इस कथित जन सेवक और चौकीदार का एकमात्र उद्देश्य आम जनता के कष्टों को उत्तरोत्तर बढ़ाना और अपने पूँजीपति यारों को उक्तवर्णित आमजन से छीने गये संसाधनों और मुद्रा को उनकी झोली में पलट देने के सिवा और कुछ नहीं हुआ है।

सोशल मीडिया पर एक प्रश्न बार-बार उठाया जाता है कि मात्र हाईस्कूल पास धीरूभाई अंबानी और उसके कथित काबिल पुत्र मुकेश अंबानी में आम लोगों से हटकर आखिर ऐसा कौन सा अद्भुत, अतुलनीय पुरूषार्थ की क्षमता है कि वह मात्र 44वर्षों में अपनी 76.5 बिलियन डालर मतलब 56 खरब 30 अरब के साथ एशिया का सबसे धनी और दुनिया का 17 वाँ सबसे धनी आदमी बन जाता है। ऐसा नहीं है कि वह बहुत कुशाग्र बुद्धि और अथक परिश्रमी है, इसके ठीक विपरीत इसका स्पष्ट और सीधा जवाब है कि मोदी जैसे कथित जनता के सेवक द्वारा इस देश के लगभग सभी प्राकृतिक संसाधनों यथा गैस, पेट्रोलियम आदि तमाम प्राकृतिक अयस्कों को खुले हाथों खुद मोटा कमीशन लेकर लुटा देता है। हकीकत ये है कि ये सभी प्रकाकृतिक संसाधन इस राष्ट्रराज्य का है, यहां की आम जनता का है, देश का संसाधन कुछ दिनों के लिए जनता द्वारा चुनकर लाए गए न मोदी जैसों का है, न अनिल अंबानी और अडानी जैसे चुनिंदा पूँजीपतियों का है।   

विडंबना देखिए कि अडानी, अंबानी जैसे पूँजीपतियों के स्वार्थ की खातिर भारत के प्रधानमंत्री मोदी इस देश के अन्नदाताओं की अपने फसलों की जायज कीमत की माँग को भी पिछले 7 महीनों से ज्यादा समय से पिछली ठिठुरती सर्दी, बारिश और अब भयंकर लू के थपेड़ों में धरने पर बैठे इस देश के अन्नदाताओं की इस समस्या के समाधान के लिए अब तक कोई पहल नहीं किया है, आखिर इस देश का अन्नदाता मोदी एंड कंपनी सरकार से कोई खज़ाना या प्रधानमंत्री की कुर्सी तो नहीं माँग रहे हैं, अपितु वह अपने फसल की जायज कीमत ही तो माँग रहे हैं। बीजेपी और उसके आध्यात्मिक और वैचारिक पितृसंस्था राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को गुरू तेगबहादुर और गुरू गोविंद सिंह जी के इस देश, समाज और हिन्दू धर्म के लिए किए गए त्याग और बलिदान तो याद रखनी ही चाहिए, परन्तु उन्हीं के वंशजों किसानों और अन्नदाताओं की एक छोटी सी केवल 22 हजार करोड़ की माँग पूरी करने में इतना अड़ियल रवैया अपनाया जाता है, ज्ञातव्य है कि किसानों को स्वामीनाथन आयोग द्वारा सुझाए गए उनकी फसलों की समुचित कीमत देने में इस सरकार को कुल 22000 करोड़ का खर्च आएगा, जबकि यही मोदी एंड कम्पनी की सरकार और इसकी पूर्ववर्ती मनमोहन सिंह सहित अन्य कांग्रेसी सरकारें भी बड़े कार्पोरेट्स के 5 लाख करोड़ तक के कर्जे को भी बड़े ही गुपचुप ढंग से और उदारता के साथ एनपीए मतलब अंग्रेजी में नॉन परफार्मिंग एसेट या गैर निष्पादित संपत्ति के चोर दरवाजे से माफ करती आईं हैं। जबकि अब तक 500 से ज्यादा हमारे देश के अन्नदाताओं की शहादत हो चुकी है।

इसके विपरीत अब किसानों के धरनास्थल के आस पास नुकीले कीलों को गाड़ने, गोरिल्ला कंटीले तारों को लगाने और उनके टेंटों में आग लगाने और किसानों के पक्ष में निष्पक्ष बोलने वाले पत्रकारों की धर-पकड़ और जेल में डालने जैसी असभ्य और असंवैधानिक कुकृत्य की घटनाएं और बढ़ गईं हैं। यह बहुत ही दुःखद है, विदेशों से ख्याति प्राप्त पर्यावरण कार्यकर्ताओं यथा ग्रेटा थनबर्ग, तमाम लेखकों,पत्रकारों, राष्ट्राध्यक्षों आदि का आंदोलनरत किसानों के पक्ष में बयान आने शुरू हो गए हैं। इस सरकार की दुर्नीतियों के पक्षधर कथित अर्थशास्त्री यथा अरविंद पनगढ़िया, सुरजीत भल्ला आदि जो बारम्बार अपना बयान दे रहे हैं कि यह किसान आंदोलन पंजाब और हरियाणा के केवल दो लाख किसान परिवारों का आंदोलन है, उन जैसे आँख पर काली पट्टी बाँधे, अंधे और मूर्ख तथा सत्ता के चाटुकार कथित अर्थशास्त्रियों के आँखों की पट्टी अब हट जानी चाहिए, क्योंकि यह 7 महीनों से ज्यादे समय से चलने वाला किसान जनांदोलन अब पूरे देश में अपने जनसमर्थन के जरिए पैर पसार चुका है, यथा मध्य प्रदेश, राजस्थान, कर्नाटक, महाराष्ट्र आदि राज्यों के करोड़ों किसान जब किसान आंदोलनस्थल पर आने लगे हैं। सबसे बड़ा कटुसत्य और दुःख की बात यह है कि अंतिम मुगल सम्राट मुहम्मद रंगीला, जो अत्यंत विलासी और नशाखोर था, की तरह ही क्रूर, असहिष्णु, अमानवीय, निरंकुश विलासी और चाटुकारों से घिरे मोदी की भी तंद्रा तब टूटेगी, जब इस देश का सब कुछ बर्बाद हो चुका होगा।

(निर्मल कुमार शर्मा पर्यावरणविद और टिप्पणीकार हैं। आप आजकल गाजियाबाद में रहते हैं।)

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