Saturday, April 20, 2024

सीपी कमेंट्री: पीएम मोदी की कश्मीर वार्ता, कितनी स्टेट्समैनशिप और कितनी बाइडेन जनित?

‘इंडिया दैट इज भारत‘ के प्रधानमंत्री पद पर सात बरस से काबिज नरेंद्र मोदी ने देश में पहली बार कांग्रेस की इंदिरा गांधी सरकार द्वारा 26 जून, 1975 को आंतरिक आपातकाल लागू करने की 43 वीं बरसी के दो दिन पहले जम्मू–कश्मीर की स्थिति पर बुलाई ‘सर्वदलीय बैठक‘ के जरिए एक तीर से कई शिकार करने की कोशिश की है। जाहिर है इस बैठक को लेकर ‘हड़बड़ गड़बड़ गोदी मीडिया‘ ने लहालोट होकर खबर फैलाई। वह यह कि मोदी जी ने जम्मू-कश्मीर के नेताओं से साफ कह दिया है कि वह ‘दिल्ली और दिल की दूरी‘ दूर करना चाहते हैं। उन्होंने इस बैठक में अपने ‘मन की बात‘ कह दी कि  राजनीतिक मतभेद हो सकते हैं लेकिन सभी को ‘राष्ट्रीय हित‘ में काम करना चाहिए ताकि जम्मू-कश्मीर के लोगों को ‘फायदा‘ हो।

मोदी जी ने लुटियन के वास्तुशिल्प पर बसाई नई दिल्ली में 7 रेस कोर्स रोड के उनके द्वारा परिवर्तित नाम के लोक कल्याण मार्ग पर भारत के प्रधानमंत्री के लिए आरक्षित आवास पर गुरुवार को दोपहर के भोजन के बाद बुलाए गए जम्मू-कश्मीर के अलग-अलग दलों के 14 चुनिंदा नेताओं के साथ अविभाजित भारत की ब्रिटिश हुक्मरानी से हासिल राजनीतिक आजादी के एवज में कराये गए बंटवारा से गठित नए राष्ट्र पाकिस्तान की सीमा से लगे इस राज्य की मौजूदा स्थिति पर 3 बजे से करीब पौने 4 घंटे तक चली इस बैठक में बिन रोए कहा वह ‘दिल्ली की दूरी’ और ‘दिल की दूरी ‘ भी मिटाना चाहते हैं। उन्होंने ये भी कहा कि वह जम्मू-कश्मीर में लोकतंत्र की रक्षा के लिए मन, वचन और कर्म से प्रतिबद्ध हैं।

जम्मू कश्मीर के मुख्यमंत्री रहे और भारत की संसद के उच्च सदन राज्यसभा से हाल में रिटायर होने तक विपक्ष और कांग्रेस के नेता रहे गुलाम नबी आजाद भी इस बैठक में पधारे थे। उन्होंने बैठक में विचार- विमर्श की आकंठ मोदीमय व्याखया कर कहा: जम्मू-कश्मीर में निर्वाचन सेक्टरों के नए सिरे से परिसीमन की जटिल प्रक्रिया, उसकी विधान सभा के अरसे से लंबित चुनाव, उसके ‘पूर्ण राज्य‘ के मोदी राज में छीन लिए गए संवैधानिक दर्जा की बहाली, ‘कश्मीरी पंडितों‘ के पुनर्वास और ‘डोमिसाइल‘ आदि मुद्दों पर खुले मन से चर्चा की गई।

मोदी जी ने खुद ही इस बैठक के बाद ट्विटर पर पोस्ट कर लिखा कि जम्मू कश्मीर में निर्वाचित सरकार के गठन से पहले परिसीमन कराया जाएगा।

अमित शाह जी ने अपने ट्वीट में लिखा बैठक बहुत ही सौहार्दपूर्ण माहौल में हुई। इसमें कश्मीर को राज्य का दर्जा दुबारा देने का जिक्र किया गया जो 5 अगस्त 2019 को धारा 370 निरस्त करने के साथ ही खत्म कर दिया गया था।

मोदी जी की पसंदीदा न्यूज एजेंसी, एएनआई ने ‘सूत्रों‘ के हवाले से खबर फैलाई प्रधानमंत्री ने जम्मू-कश्मीर के नेताओं से कहा कि इस सीमांत और मुस्लिम बहुल राज्य में सभी की सुरक्षा और बेहतरी का माहौल कायम करने की दरकार है।

बैठक में आए ‘जम्मू-कश्मीर अपनी पार्टी‘ के प्रमुख अल्ताफ बुखारी ने बखान किया कि इसमें बातचीत बहुत ही अच्छे माहौल में हुई और मोदी जी ने सभी नेताओं की सभी बातें मन से सुनीं और वचन दिया राज्य में परिसीमन प्रक्रिया पूरी होते ही चुनाव काराये जाएंगे ।

बैठक में राज्य के चार पूर्व मुख्यमंत्रियों, फारूक अब्दुल्ला, गुलाम नबी आजाद, उमर अब्दुल्ला और महबूबा मुफ्ती समेत 14 नेताओं को सादर आमंत्रित किया गया था। लगभग सभी 24 घंटे पहले ही नई दिल्ली पहुंच गए थे। आधिकारिक तौर पर यही कहा गया कि बैठक के लिए कोई एजेंडा तय नहीं था। जम्मू कश्मीर के नेताओं ने आमंत्रण मिलने पर कहा वे बैठक में ‘खुले मन‘ से आएंगे।

‘गुपकार गठबंधन‘ के प्रवक्ता और कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (सीपीएम) के राज्य में विधायक निर्वाचित होते रहे नेता मोहम्मद यूसुफ तारिगामी ने कहा: हमें कोई एजेंडा नहीं दिया गया है। हम यह जानने बैठक में गए कि मोदी सरकार की नई पेशकश क्या है। कामरेड तारिगामी, जम्मू-कश्मीर में कई बार अलगाववादी आतंकियों के हिंसक हमलों के निशाना रहे हैं।

फारुक अब्दुल्ला और उनके पुत्र उमर अब्दुल्ला नेशनल कांफ्रेंस के हैं जिसकी स्थापना उनके ही पुरखा शेख अब्दुल्ला ने की थी। महबूबा मुफ़्ती पीडीपी की नेता हैं जिसकी स्थापना केंद्र में 1989 के चुनाव के बाद मोदी जी की भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और कम्युनिस्ट पार्टियों के वाम मोर्चा, दोनों के समर्थन से राष्ट्रीय मोर्चा की बनी विश्वनाथ प्रताप सिंह सरकार में गृहमंत्री रहे मुफ्ती मोहम्मद सईद ने बाद में की थी।

बैठक में भाजपा के निर्मल सिंह, कविन्द्र गुप्ता और रविन्द्र रैना, पीपुल्स कांफ्रेंस के मुजफ्फर बेग और सज्जाद लोन, पैंथर्स पार्टी के भीम सिंह को भी बुलाया गया। सरकार की तरफ से बैठक में खुद मोदी जी के साथ ही केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह, जम्मू-कश्मीर के लेफ्टिनेंट गवर्नर मनोज सिन्हा, भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोवाल, प्रधानमंत्री के प्रधान सचिव पीके मिश्रा और केन्द्रीय गृहसचिव अजय भल्ला भी थे,

सवाल है कि मोदी जी का दिल कश्मीर पर अचानक से क्यों पसीज गया जो वे इस बैठक में ‘दिल्ली और दिल की दूरी’, दूर करने के जुमले कहने लगे?

हम 2019 के लोक सभा चुनाव के दौरान जम्मू कश्मीर भी गए थे। हमने उसी दौरान बहुचर्चित उस पुलवामा कांड के बाद राज्य का चप्पा चप्पा छान मारा था जिसके बाद फैली ‘सैन्य राष्ट्रवादी‘ लहर पर सवार होकर भाजपा ने जीत दर्ज कर मोदी जी को प्रधानमंत्री पद पर फिर विराजमान कर दिया। उस पुलवामा कांड के बाद से कश्मीर में एक वाचाल मौन विद्यमान है जिसकी एक झलक श्रीनगर के डल लेक की हमारी क्लिक तस्वीर से परिलक्षित हो सकती है।

हम पुलवामा कांड के तुरंत बाद कश्मीर पहुँचने वाले शायद पहले गैर कश्मीरी पत्रकार। वहाँ से लौट कर जब हमने ये तस्वीर सोशल मीडिया पर इस कैप्शन से शेयर की थी कि कश्मीर में मौन वाचाल है तो हमारे आदि संपादक सुरेश सलिल जी ने पूछा था: मौन भी होता है वाचाल? हमने उनसे यही निवेदन किया था: हम सब मौन की निःशब्द मनोदैहिक अवस्था ही देखते हैं।

राज्य के भारत के संविधान से अलग, अपने संविधान के प्रावधानों के तहत वहाँ विधान सभा चुनाव छह बरस पर कराये जाते हैं। राज्य में लोकसभा की 2016 से ही रिक्त अनंतनाग सीट पर उपचुनाव ‘सुरक्षा कारणों’ से अभी तक नहीं कराये गए हैं। अनंतनाग सीट 2016 में महबूबा मुफ़्ती के मुख्यमंत्री बनने के बाद उनके इस्तीफा देने के कारण रिक्त है। अनंतनाग, जम्मू कश्मीर की छह लोकसभा सीटों में शामिल है।

भाजपा ने जम्मू कश्मीर में पीडीपी के साथ अपनी ही गठबंधन की सरकार को गिरा कर राज्य में खुद की अगुवाई में नई रकार बनाने के लिए प्रयास किये थे। बीजेपी महासचिव और जम्मू-कश्मीर पार्टी प्रभारी राम माधव ने नई सरकार बनाने के लिए तोड़फोड़ से इंकार किया था। पर वह राज्य में नया चुनाव कराने की संभावना पर चुप्पी साधे रहे। राम माधव का कहना था जम्मू-कश्मीर को कुछ समय के लिए राज्यपाल शासन की जरूरत है।

भाजपा द्वारा जम्मू-कश्मीर में पीडीपी के ‘बाग़ी’ विधायकों के साथ मिलकर सरकार बनाने के प्रयास आगे बढ़े भी लेकिन मुख्यमंत्री कौन बने इस पर पेंच फँस गया। भाजपा मोदी सरकार में मंत्री जितेंद्र सिंह को मुख्यमंत्री बनाना चाहती है। यह इस राज्य में पहली बार किसी हिन्दू को मुख्यमंत्री बनाने की उसकी और उसके मातृ संगठन, राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ का पुराना सपना है। लेकिन सज्जाद लोन नहीं माने। बताया जाता है उन्होंने बीजेपी से कहा है कि अभी हिदू मुख्यमंत्री नहीं बनाया जाये और वह खुद मुख्यमंत्री बनने के लिए उत्सुक हैं।

जम्मू -कश्मीर विधान सभा के नवम्बर -दिसंबर 2014 में हुए पिछले चुनाव में किसी भी पार्टी को स्पष्ट बहुमत नहीं मिला था। तब भाजपा ने कुछ अप्रत्याशित रूप से पीडीपी के साथ गठबंधन सरकार बनाई थी। पीडीपी नेता मुफ़्ती मोहम्मद सईद मुख्यमंत्री बने। उनके निधन के बाद उनकी पुत्री महबूबा मुफ़्ती ने गठबंधन की नई सरकार बनाने के लिए कोई हड़बड़ी नहीं की। वह काफी सोच -समझ कर ही 4 अप्रैल 2016 को पीडीपी-भाजपा गठबंधन की दूसरी सरकार की मुख्यमंत्री बनीं। दोनों दलों के बीच कभी कोई चुनावी गठबंधन नहीं रहा। दोनों ने सिर्फ राज्य की सत्ता पर काबिज होने के लिए चुनाव-पश्चात गठबंधन किया। यह गैर-चुनावी गठबंधन अगले चुनाव के पहले ही टूट गया। भाजपा इस गठबंधन की सरकार रहते हुए 2019 के आम चुनाव में उतरने का जोखिम नहीं लेना चाहती थी। वो साझा सरकार 19 वीं लोकसभा के 2019 के मध्य से में हुए चुनाव के लिए देश भर में मतदाताओं के बीच साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण को बढ़ाने के उसके मंसूबों की कामयाबी में रोड़ा बन गई थी।

जम्मू -कश्मीर की मौजूदा विधान सभा में पीडीपी 28 सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी है। विधान सभा की कुल 89 सीटें हैं। सदन में खुद बीजेपी के 25 , दिवंगत कद्दावर नेता शेख अब्दुल्ला की बनायी हुई नेशनल कॉन्फ्रेंस के 15, कॉंग्रेस के 12 और जम्मू -कश्मीर पीपल्स कॉन्फ्रेंस के दो विधायकों के अलावा मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी और जम्मू -कश्मीर पीपुल्स डेमोक्रेटिक फ्रंट के एक-एक और तीन अन्य अथवा निर्दलीय सदस्य भी हैं। दो सीटें महिलाओं के मनोनयन के लिए भी हैं।

मौजूदा विधानसभा अभी भंग नहीं की गई है। विधान सभा के मौजूदा अध्यक्ष बीजेपी के ही निर्मल सिंह हैं। नेशनल कॉन्फ्रेंस के मौजूदा नेता एवं शेख अब्दुला के पौत्र, उमर अब्दुल्ला स्पष्ट कह चुके हैं कि उनकी पार्टी नई सरकार बनाने के लिए उत्सुक नहीं है। वह खुद 2008 के विधान सभा चुनाव के बाद कांग्रेस के साथ गठबंधन की सरकार में जनवरी 2009 से 2014 के पिछले विधान सभा चुनाव तक मुख्यमंत्री रहे थे। वह पूर्व मुख्यमंत्री फारूक अब्दुल्ला के पुत्र हैं और 2002 में उनकी जगह पार्टी अध्यक्ष बने थे। किसी भी राज्य में पुत्र, पिता और पितामह के मुख्यमंत्री बनने का गौरव अब्दुल्ला परिवार को ही है।

भारत के संविधान से अलग 1957 में बने राज्य के संविधान के ख़ास प्रावधानों के तहत कायम विधान सभा के चुनाव छह बरस पर कराये जाते हैं।

1934 में पूर्ववर्ती जम्मू -कश्मीर रियासत के राजा हरि सिंह के शासन में तब के विधायी निकाय, प्रजा सभा के लिए प्रथम चुनाव हुए थे। इसमें मुस्लिम समुदाय के लिए आरक्षित 21 सीटों में से 14  ‘मुस्लिम कॉन्फ्रेंस’ ने जीती थी। इस रियासत का 1947 में विलय हो जाने के बाद भारत के संविधान से अलग बने राज्य के संविधान के तहत 1957 में चुनाव के बाद शेख अब्दुल्ला प्रथम मुख्यमंत्री बने। जम्मू -कश्मीर के 20 वें संविधान संशोधन, 1988 के जरिये विधान सभा की सीटों की संख्या 111 कर दी गयीं।

इनमें से 24 पाकिस्तान अधिकृत हिस्से में हैं जहां राज्य के संविधान की धारा 48 के तहत चुनाव कराने की अनिवार्यता नहीं है। इसलिए सदन की प्रभावी सीटें 89 ही हैं जिनमें दो मनोनीत सीटें शामिल हैं। सदन की 46 सीटें कश्मीर घाटी में 37 जम्मू में और चार लद्दाख क्षेत्र में हैं। पिछले लोकसभा चुनाव में राज्य में छह में से तीन, जम्मू, उधमपुर और लद्दाख बीजेपी ने जीती थी। तीन अन्य, अनंतनाग बारामुला और श्रीनगर पीडीपी ने जीती थी। श्रीनगर लोकसभा सीट से निर्वाचित पीडीपी के तारीक अहमद कारा ने जब अक्टूबर 2016 में इस्तीफा दे दिया तो वहाँ अप्रैल 2017 के उपचुनाव में फारूख अब्दुला जीते।

टाइम्स ऑफ इंडिया के पटना संस्करण के पूर्व संपादक और नई दिल्ली के जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) छात्र संघ के 1983 में अध्यक्ष रहे नलिनी रंजन मोहंती ने आज सुबह फेसबुक पर अपने पोस्ट में जब लिखा कि मोदी जी का जम्मू कश्मीर पर ये बैठक करना उनका स्टेट्समैन होना दर्शाता है तो हम समझ गए हमारे प्रधान मंत्री ने एक तीर से कितने निशाने साधे हैं। मोहंती जी, मूलतः समाजवादी हैं जिनकी ढुलमुल सियासत की कहानी जर्मन तानाशाह अडोल्फ़ हिटलर के समय से ही वैश्विक इतिहास में दर्ज है। बेशक मोहंती जी ने उल्लेख किया कि इस बैठक में आमंत्रित कुछ नेताओं को अमित शाह ने सिर्फ छह माह पहले ‘राष्ट्र-विरोधी गुपकर गैंग‘ कहा था। लेकिन मोहंती जी ये साबित करने लग गए हैं कि बैठक में आए इन गुपकर कश्मीरी नेताओं ने मोदी जी की पहल की सराहना की है।

मोहंती जी ने खुद ही एक अहम सवाल भी उठाया है कि मोदी जी का हृदय परिवर्तन क्या अमेरिका के नए राष्ट्रपति जो बाइडेन के दबाव से हुआ है?

हम इस सवाल का उत्तर इसी कॉलम के अगले अंक में ढूँढने की कोशिश करेंगे। फिलहाल तो इतना जरूर दर्ज की जानी चाहिए कि मोदी सरकार ने कश्मीर को 5 अगस्त 2019 से दुनिया की सबसे बड़ी जेल बना दिया है जो आंतरिक आपात काल से भी बदतर स्थिति में है। कोई शक?

(चंद्रप्रकाश झा स्वतंत्र पत्रकार और लेखक हैं और आजकल दिल्ली में रहते हैं।)

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