Friday, April 19, 2024

नंदीग्राम की फिजा में घुल गया सांप्रदायिकता का जहर

नंदीग्राम की फिजा में सांप्रदायिकता का जहर पूरी तरह फैल गया है। जो कभी हमनिवाला हुआ करते थे वे अब हिंदू-मुसलमान बन गए हैं। एक अदद विधानसभा का चुनाव जीतने के लिए भाजपा के नेताओं ने हिंदुओं और मुसलमानों के बीच दीवार खड़ी करने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी है। क्या इसके बावजूद शुभेंदु अधिकारी चुनाव जीत पाएंगे? सबसे दिलचस्प बात तो यह है कि हिंदू और मुसलमानों की इस जंग में लोग मिट्टी के तेल की कीमत में किए गए इज़ाफे को भूल गए।

 भाजपा के उम्मीदवार और कभी ममता बनर्जी की सरकार में मंत्री रहे शुभेंदु अधिकारी ने कहा कि अगर बेगम जीत गई तो पश्चिम बंगाल में एक मिनी पाकिस्तान बन जाएगा। यह सांप्रदायिकता का ही कमाल है जिन्हें कभी शुभेंदु अधिकारी दीदी कहा करते थे, अब उन्हें बेगम कहने लगे हैं। पर शुभेंदु अधिकारी गलतफहमी में हैं। नंदीग्राम का इतिहास कभी भी इसे पूरी तरह से सांप्रदायिक रंग में नहीं रंगने देगा।

कांग्रेस ने 1942 में 8 अगस्त को अंग्रेजों भारत छोड़ो प्रस्ताव पास किया था। कांग्रेस के इस प्रस्ताव के समर्थन में करीब दस हजार लोगों की भीड़ ने नंदीग्राम थाने को घेर लिया था। पुलिस ने गोली चलाई और आठ लोग मारे गए जिनमें शेख अलाउद्दीन भी शामिल थे। इसके अलावा अजीम बक्स और शेख अब्दुल को मिदनापुर जेल भेज दिया गया जहां दोनों की मौत हो गई। सांप्रदायिक सौहार्द की इस सफेद चादर पर भाजपा के विष दंत ने सांप्रदायिकता की कालिख पोत दी है। यही वजह है कि शुभेंदु अधिकारी अब नंदीग्राम में मिनी पाकिस्तान तलाश रहे हैं।

नंदीग्राम में सांप्रदायिकता का नंगा नाच किस तरह खेला गया शुभेंदु अधिकारी की यह टिप्पणी इस बात की गवाह है। शुभेंदु अधिकारी ने मतदान के बाद कहा कि जो लोग जय श्री राम का नारा लगाते हैं, हरे कृष्णा हरे रामा कहते हैं, जय मां काली कहते हैं और दुर्गा पूजा करते हैं, उनमें से 60 फ़ीसदी लोगों ने उनके पक्ष में मतदान किया है। यानी वे कबूल करते हैं कि 40 फ़ीसदी लोगों ने ऐसा नहीं किया। यही उनकी नाकामी और नंदीग्राम के लोगों की सफलता है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सांप्रदायिकता की आग को तेज करने में कोई कोर कसर बाकी नहीं छोड़ी है। हावड़ा के उलूबेरिया में एक सभा को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा ममता बनर्जी को जय श्री राम नारे से एतराज है, उन्हें दुर्गा पूजा के विसर्जन से दिक्कत है, भगवा रंग के कपड़े उन्हें नहीं भाते और चोटी रखने वालों से भी उन्हें दिक्कत है। ममता बनर्जी को घुसपैठियों से लगाव है यानी उनका लगाव मुसलमानों से है।

सांप्रदायिकता का इतना जहर घोलने के बावजूद क्या शुभेंदु अधिकारी चुनाव जीत पाएंगे। इसे समझने के लिए हम एक चुनाव विश्लेषक के विश्लेषण का हवाला देते हैं। इसके मुताबिक शुभेंदु अधिकारी डेढ़ लाख से अधिक हिंदू मतदाताओं का 70 फ़ीसदी वोट मिलना चाहिए। यह एक बेहद मुश्किल काम है क्योंकि महिलाओं में ममता बनर्जी की लोकप्रियता के साथ ही उनका मतदाताओं में एक अपना आधार भी है। दूसरी तरफ मोदी शाह और शुभेंदु की लगाई हुई सांप्रदायिक आग के कारण सहमे हुए मुस्लिम मतदाताओं का 90 फ़ीसदी से अधिक ममता बनर्जी के पक्ष में जाना तय है। लिहाजा चुनावी अंकगणित ममता बनर्जी के पक्ष में है। अब मार्जिन चाहे जितना भी क्यों ना हो।

अब इस चुनावी अंकगणित को समझने के लिए हम नंदीग्राम का भूगोल, मतदाताओं की संख्या, जातिगत आंकड़े और जमीनी हकीकत की तरफ रुख करते हैं। नंदीग्राम में दो ब्लॉक है, ब्लॉक नंबर एक और ब्लॉक नंबर दो। ब्लॉक नंबर एक की तस्वीर थोड़ी अलग है। किसी भी मकान पर न तो किसी पार्टी का झंडा था और न ही किसी का फेस्टून लगा था। इस ब्लॉक में शुभेंदु अधिकारी या ममता बनर्जी में से किसी ने भी पदयात्रा भी नहीं की। शुभेंदु अधिकारी इसे नंदीग्राम का मिनी पाकिस्तान कहते हैं। नंदीग्राम में 88 फ़ीसदी मतदान हुआ है। शुभेंदु अधिकारी का दावा है कि 60 फ़ीसदी हिंदू मतदाताओं ने उनके पक्ष में मतदान किया है। उनके इस दावे को ही आधार बनाते हुए चुनावी अंकगणित के आधार पर हार जीत का आकलन करते हैं। नंदीग्राम के एक नंबर ब्लॉक में 1,04,500 हिंदू और 53,500 मुस्लिम मतदाता है। कुल 88 फ़ीसदी मतदाताओं ने मतदान किया है इस तरह 91,960 हिंदू मतदाताओं ने वोट दिया है। इनमें से शुभेंदु अधिकारी को उनके दावे के मुताबिक  55,176 वोट मिले हैं तो बाकी बचे 36,784 मतदाताओं ने ममता बनर्जी के पक्ष में मतदान किया है। मुस्लिम मतदाताओं में से 47,080 ने वोट दिया है। शुभेंदु अधिकारी एक नंबर ब्लॉक को मिनी पाकिस्तान कहते हैं, इसलिए स्वाभाविक है कि मुस्लिम मतदाताओं ने उनसे किनारा कर लिया होगा। इस तरह शुभेंदु अधिकारी को एक नंबर ब्लॉक से 55,176 वोट मिलते हुए नजर आते हैं। दूसरी तरफ ममता बनर्जी को 36,784+47,080 यानी 83,864 वोट मिलने की संभावना बनती है।

ब्लॉक नंबर दो में कुल 99,000 मतदाता हैं जिनमें से 11हजार मुसलमान हैं। अब 88 फ़ीसदी के आधार पर 77,440 हिंदुओं ने और 9,680 मुसलमानों ने वोट दिया है। अब शुभेंदु अधिकारी को हिंदुओं का 46,464 वोट मिल रहे हैं तो ममता बनर्जी को 30,976 वोट मिलते नजर आते हैं। इसके साथ ही मुसलमानों का नौ हजार वोट भी उनके पक्ष में जा रहा है। इस तरह ममता बनर्जी को 1,23,840 वोट तो शुभेंदु अधिकारी को 1,01,640 वोट मिलते हुए नजर आते हैं। यानी दोनों के बीच 22,200 वोटों का फासला है। यह फासला सामाजिक विश्लेषक के आंकड़ों से मिलता हुआ दिखता है।

एक सामाजिक विश्लेषक कहते हैं कि राजनीतिक के रूप में शुभेंदु अधिकारी का सफर कहां तक होगा नहीं मालूम, लेकिन इतिहास में उनका नाम एक ऐसे व्यक्ति के रूप में दर्ज हो गया है जिसने नफरत को बंगाल की राजनीति में सड़क पर लाकर खड़ा कर दिया है। यही वजह है कि हिंदू मुसलमान की जंग में चुनाव के दौरान मिट्टी के तेल की कीमत में हुई बढ़ोतरी को लोग भूल गए, जबकि यह करोड़ों लोगों की रसोई और रोजगार से जुड़ा है। भाजपा चाहती भी यही है कि लोग सारे बुनियादी मुद्दों को भूल जाएं और बस हिंदू और मुसलमान को याद रखें।

नंदीग्राम के लोग अभी पुराने जमाने को याद करते हैं। एक दौर था जब एक ही थाली में खाना खाते थे। कंधे से कंधा मिलाकर 2007 में सरकार के जुल्मों सितम का सामना किया था। फिरकापरस्ती का कहीं कोई साया भी नहीं था। अब नेता सांप्रदायिक सौहार्द की बात कहेंगे, भाईचारे का हवाला देंगे पर लोग तो यही कहेंगे

जो जहर पी चुका हूं तुम्हीं ने मुझे दिया है

अब तुम तो जिंदगी की दुआएं मुझे ना दो।

(जेके सिंह वरिष्ठ पत्रकार हैं और आजकल कोलकाता में रहते हैं।)

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