पंजाब में भाजपा फिर से सक्रिय होने की कवायद में, लेकिन तरकश खाली!

किसान आंदोलन के बाद पंजाब में पूरी तरह अलग-थलग पड़ी भाजपा अब ‘नवां पंजाब-भाजपा दे नाल’ नारे के साथ चुनावी मोड में आ गई है। दीगर है कि उसके पास तरकश तो है लेकिन तीर नहीं! हाल फिलहाल राज्य भाजपा को सिर्फ पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह का सहारा है लेकिन सियासी समीकरण बताते हैं कि वह कैप्टन के साथ ही अपनी शर्तों पर समझौता करना चाहती है।                                           

भाजपा के पंजाब चुनाव प्रभारी और केंद्रीय जल शक्ति मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत ने पंजाब आकर सूबे के वरिष्ठ भाजपा नेताओं से लंबी बैठक के बाद कहा कि पार्टी राज्य विधानसभा चुनाव के लिए पूरी तरह तैयार है। भाजपा कार्यकर्ता ‘नवां पंजाब-भाजपा दे नाल’ नारे के साथ पंजाबियों के बीच जाएंगे। उन्होंने कहा कि भाजपा नशा माफिया से मुक्ति तथा भ्रष्टाचार के खात्मे के संकल्प के साथ चुनाव में उतरेगी। गजेंद्र सिंह शेखावत का कहना है कि पंजाब की जनता कांग्रेस, शिरोमणि अकाली दल और आम आदमी पार्टी से खासी निराशा है। लोग उम्मीद से भाजपा की ओर देख रहे हैं। भाजपा सभी 117 विधानसभा सीटों पर चुनाव लड़ेगी।                         

शेखावत ने जोर देकर कहा कि पिछले 7 वर्षों में केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार ने पंजाब और पंजाबियों के लिए ऐतिहासिक काम किए हैं। उन्होंने प्रमुख काम ‘काम’ गिनाए: 1984 के दंगाइयों को एसआईटी बनाकर सजा दिलवाना, श्री करतारपुर साहिब कॉरिडोर बनाना, काली सूची को खत्म करना, लंगर को जीएसटी से बाहर करना, श्री हरमंदिर साहिब को एफटीआरए देना, बठिंडा में एम्स, अमृतसर में आईआईएम, संगरूर और फिरोजपुर में पीजीआई के सेटेलाइट सेंटर, दो नए एयरपोर्ट, टूरिज्म के नए सर्किट।                                                भाजपा की चुनावी नीति का खुलासा करते हुए केंद्रीय मंत्री और राज्य चुनाव प्रभारी ने बताया कि पार्टी ने सभी 117 सीटों पर अपने प्रमुख नेताओं को लगाया है। वे तत्काल अपना काम शुरू कर देंगे।  गौरतलब है कि मुख्यमंत्री पद से इस्तीफे के बाद कैप्टन अमरिंदर सिंह लगातार कहते रहे हैं कि उनका भाजपा से तालमेल हो सकता है। इस पर गजेंद्र सिंह शेखावत बोले कि भाजपा हमेशा ही समान विचारधारा के लोगों का स्वागत करती है। यह एक तरह से खुला इशारा है कि भाजपा कैप्टन की नई पार्टी के साथ चुनावी तालमेल कर सकती है। शेखावत ने कृषि कानूनों की बाबत कहा कि मसले पर केंद्र सरकार और भाजपा संवेदनशील हैं। गंभीरता से मुद्दे को हल करने के लिए कोशिश कर रही है।                             

बेशक कैप्टन अमरिंदर सिंह ने नई पार्टी बनाने की घोषणा कर दी है लेकिन फिलवक्त तक वह कांग्रेस में बने हुए हैं। वह अपना राजनीतिक भविष्य नई पार्टी और भाजपा के साथ संभावित तालमेल में देख रहे हैं।                                       

इन दिनों कैप्टन भाजपा पसंदीदा राष्ट्रवादी सुरों में सुर मिला रहे हैं। मामला चाहे बीएसएफ का दायरा बढ़ाने का हो या किसान आंदोलन का। बीएसएफ का दायरा बढ़ाने के विरोध में पंजाब सरकार ने पहले सर्वदलीय बैठक बुलाई, जिसमें तमाम गैरभाजपाई दलों ने शिरकत की और अब 16 नवंबर को विधानसभा का विशेष सत्र बुला रही है। अमरिंदर बुलावे के बावजूद सर्वदलीय बैठक में शरीक नहीं हुए। बल्कि केंद्र सरकार का इस मामले में खुला समर्थन किया।       

दरअसल कैप्टन और भाजपा दोनों अपना आधार पंजाब के 38.5 फ़ीसदी हिंदू मतदाताओं में देख रहे हैं। उल्लेखनीय है कि राज्य की 45 शहरी सीटों पर हिंदू या तो बहुसंख्यक हैं या फिर हार जीत का फैसला करने की हैसियत रखते हैं। कैप्टन अपनी नई ‘राष्ट्रवादी’ और लगभग राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ अथवा भाजपा समर्थक छवि को ज्यादा से ज्यादा फैलाना चाहते हैं ताकि चुनाव में इसका लाभ हासिल किया जा सके। 2002 वह 2017 के चुनाव में कैप्टन अमरिंदर सिंह को सत्ता तक पहुंचाने में हिंदू वोट बैंक का बहुत बड़ा हाथ था। भाजपा इस हकीकत से बखूबी वाकिफ है और इसे अपने लिए कहीं न कहीं ‘खतरा’ भी मान रही है। हालांकि बादलों की सरपरस्ती वाले शिरोमणि अकाली दल के साथ गठजोड़ में रहते हुए भी भाजपा ने ग्रामीण पंजाब में अपनी पैठ बनाने की खूब कवायद की। इसका शिअद ने बुरा भी मनाया लेकिन आरएसएस के निर्देश पर भाजपा ने अपना अभियान जारी रखा।                   

गौर से देखें तो भाजपा अपने संभावित राजनीतिक साथी कैप्टन अमरिंदर सिंह के साथ अपनी विचारधारात्मक पैंतरेबाजी कर रही है। मुख्यमंत्री का ओहदा छोड़ने के बाद अमरिंदर दिल्ली गए तो एक दिन के बाद केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने उन्हें आधा घंटा मिलने का वक्त दिया। तब पंजाब में सरगोशियां थीं कि वह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से भी मिलेंगे लेकिन मोदी नहीं मिले। वजह जो भी रही हो। उसके बाद से कैप्टन तीन बार दिल्ली जा चुके हैं और स्थानीय मीडिया में प्रमुखता से खबरें आती रहीं कि उनकी प्रधानमंत्री तथा केंद्रीय गृहमंत्री से मुलाकात होगी। इन दिनों भी कैप्टन कृषि विशेषज्ञों के 25 सदस्यीय दल के साथ दिल्ली में बने हुए हैं, इस दावे के साथ कि किसान आंदोलन के हल के लिए उनकी गृहमंत्री अमित शाह के साथ अहम बैठक होगी।                                                  लेकिन हो क्या रहा है? पहली मुलाकात के बाद अमित शाह कैप्टन से इसलिए नहीं मिल पाए कि वह दिल्ली से बाहर थे। पूछा जा रहा है कि दो बार मुख्यमंत्री रहे एक दिग्गज नेता क्या बगैर किसी ‘अपॉइंटमेंट’ के दिल्ली पहुंच जाते हैं? जाते भी हैं तो उनकी मुलाकात नरेंद्र मोदी और अमित शाह से क्यों नहीं होती? ऐसी स्थिति तब तो हरगिज नहीं थी, जब कैप्टन मुख्यमंत्री थे।                  दरअसल, भाजपा कैप्टन अमरिंदर सिंह को लेकर फूंक-फूंक कर कदम रख रही है। नरेंद्र मोदी और अमित शाह सरीखे नेता शुरू से ही मानते आए हैं कि किसान आंदोलन को कैप्टन के मुख्यमंत्रित्व काल में हवा मिली और केंद्र को बड़ी चुनौती! फिर कांग्रेस के प्रति उनका मौजूदा व्यवहार उनके सत्ता लोभ को दर्शाता है। भाजपा में ही कुछ वरिष्ठ नेता ऐसे हैं जो मानते हैं कि भले ही कैप्टन अमरिंदर सिंह आज भाजपा के साथ गले मिलने को आतुर हैं लेकिन उनका यह कदम कहीं न कहीं कांग्रेस के साथ तो दगा है ही!           

पंजाब में अमरिंदर का भविष्य इस पर भी टिका है कि वह किसान आंदोलन को अपने तौर पर हल करवा सकते हैं। वह अपने इस दावे पर कायम है कि केंद्र और वह खुद लगातार आंदोलनरत किसानों के संपर्क में हैं। बेशक उनके पास इस सवाल का कोई जवाब नहीं कि मुख्यमंत्री रहते उन्होंने कोई हल क्यों प्रस्तावित नहीं किया।                                                 बहरहाल, वस्तुस्थिति यह भी है कि पंजाब में भाजपा के पास कोई गठबंधन लायक राजनीतिक दल नहीं और कैप्टन अमरिंदर सिंह की भी ठीक यही स्थिति है। कैप्टन ने जब नई पार्टी गठित करने का दावा किया था तो कहा था कि टकसाली अकाली सियासतदान सुखदेव सिंह ढींडसा के संयुक्त शिरोमणि अकाली दल के साथ मिलकर वह चुनाव मैदान में उतरेंगे लेकिन अब ढींडसा ने साफ कह दिया है कि वह न तो कैप्टन के साथ गठजोड़ करेंगे और न भाजपा के साथ। बताना जरूरी है कि जब सुखदेव सिंह ढींडसा बादलों की सरपरस्ती वाले शिरोमणि अकाली दल से अलहदा हुए थे तो भाजपा ने उनसे नज़दीकियां कायम करने की कोशिश की थीं। किसान आंदोलन और कृषि अध्यादेशों के विरोधी सुखदेव सिंह ढींडसा ने किनारा कर लिया।                                                 

पंजाब में भाजपा फिर से सक्रिय होने की कवायद में, लेकिन तरकश खाली!–

ले-देकर पंजाब में कांग्रेस, मुख्य विपक्षी दल आम आदमी पार्टी, शिरोमणि अकाली दल खूब सक्रिय हैं। हिंदू वोट बैंक को प्रभावित करने के लिए यह तमाम दल भी अपने-अपने तईं खूब जोर लगा रहे हैं। भाजपा लगभग एक साल से हाशिए पर थी। अब अचानक चुनावों से पहले थोड़ी-बहुत सक्रिय हुई है तो, राजनीतिक विश्लेषकों के मुताबिक, फिलहाल बेदम ही नजर आ रही है। इसलिए भी कि किसान आंदोलन ने उसकी जमकर हवा निकाल दी है। गांव- कस्बों में ही नहीं बल्कि शहरों में भी भाजपा नेताओं का तीखे धरना प्रदर्शनों के साथ विरोध का सिलसिला बदस्तूर जारी है। ऐसे में क्या होगा पंजाब में भाजपा का? राम ही जानें! 

(अमरीक सिंह वरिष्ठ पत्रकार हैं।)

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