पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट ने पूछा- तो क्या आत्मनिर्भर भारत का अर्थ निजीकरण है?

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पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट ने केंद्र शासित प्रदेश चण्डीगढ़ को जमकर लताड़ लगायी और कहा कि मौजूदा परिस्थितियों में जब अस्पताल में जगह नहीं है, श्मशान के लिए लंबी लाइनें लगी हुई हैं, अस्पताल में ऑक्सीजन, आईसीयू की सुविधा तक उपलब्ध नहीं है और मानव जाति के सामने इतिहास का यह बुरा दौर है, तो यह बात समझ से परे है कि चंडीगढ़ प्रशासन बिजली विभाग के निजीकरण की कार्यवाही में जल्दबाजी क्यों दिखा रहा है? निजीकरण सभी बीमारियों का इलाज नहीं है, वह भी तब जबकि संबंधित विभाग लाभ में चल रहा हो। इस टिप्पणी से एक बात फिर साबित हो गयी है कि अभी भी उच्च न्यायालयों में ऐसे न्यायाधीश हैं जिन्हें सच बोलने से कोई गुरेज नहीं है और वे सरकारी राष्ट्रवाद पर नहीं बल्कि वास्तव में राष्ट्रहित में सोचते हैं और संविधान एवं कानून के शासन के अनुरूप फैसले देते हैं।  

हाईकोर्ट ने आत्मनिर्भर भारत पर भी तल्ख टिप्पणी की। खंडपीठ ने कहा कि प्रशासन की यह दलील की आत्मनिर्भर भारत के तहत बिजली विभाग का निजीकरण किया जा रहा है। तो क्या आत्मनिर्भर भारत का अर्थ निजीकरण है। हाईकोर्ट ने फैसले में कहा कि बिजली विभाग चंडीगढ़ में लाभ कमा रहा है। इसके अलावा सिटी ब्यूटीफुल में कस्टमर सेटिस्फैक्शन को बनाए रखना बड़ी बात है और बिजली विभाग इसमें अब तक सफल रहा है। ऐसे में विभाग का निजीकरण का फैसला किस आधार पर लिया गया यह स्पष्ट नहीं है।

जस्टिस जितेंद्र चौहान और जस्टिस विवेक पुरी की खंडपीठ ने चंडीगढ़ बिजली विभाग के निजीकरण की कार्रवाई पर रोक लगा दी है। खंडपीठ ने कहा कि फिलहाल बिजली विभाग के निजीकरण की कार्यवाही लंबित रखी जाए। खंडपीठ ने कहा है कि मौजूदा परिस्थितियों में जब अस्पताल में जगह नहीं है। श्मशान के लिए लंबी लाइनें लगी हुई हैं तो यह बात समझ से परे है कि चंडीगढ़ प्रशासन निजीकरण की कार्यवाही में जल्दबाजी क्यों दिखा रहा है? निजीकरण सभी बीमारियों का इलाज नहीं है, वह भी तब जबकि संबंधित विभाग लाभ में चल रहा हो’।

खंडपीठ ने फैसले में कहा कि मौजूदा समय में जब पूरा विश्व भयानक वायरस की गिरफ्त में है और अस्पताल में ऑक्सीजन, आईसीयू की सुविधा तक उपलब्ध नहीं है तो इन विकट परिस्थितियों में लाभ कमा रहे विभाग को निजी हाथों में देने की जल्दबाजी क्यों है? हालात ऐसे हैं कि अदालतें भी अपना काम पूरी तरह से नहीं कर पा रही हैं। ऐसे में निजीकरण की कार्यवाही तेजी से करना समझ से परे है?

यूटी पावरमैन यूनियन की तरफ से अर्जी दायर कर कोर्ट में कहा गया कि मौजूदा परिस्थितियों में जहां कोरोना से लोग मर रहे हैं, वहीं चंडीगढ़ प्रशासन बिजली विभाग के निजीकरण का काम तेजी से कर रहा है। ऐसे में मांग की गई कि निजीकरण की प्रक्रिया पर रोक लगाई जाए। यूनियन की तरफ से याचिका दायर कर कहा गया कि चंडीगढ़ में बिजली पड़ोसी राज्यों की तुलना में सस्ती है। बिजली विभाग लगातार मुनाफे में है। इन परिस्थितियों में विभाग का निजीकरण किया जा रहा है, जिस पर रोक लगाई जाए। यूनियन का कहना था कि जानबूझकर कर्मचारियों को परेशान किया जा रहा है। चंडीगढ़ में बिजली कर्मचारी बढ़िया सेवा दे रहे हैं। कहा-निजीकरण सभी बीमारियों का इलाज नहीं, वह भी तब जब विभाग लाभ में हो।

खंडपीठ ने आत्मनिर्भर भारत पर भी तल्ख टिप्पणी की। खंडपीठ ने कहा कि प्रशासन की यह दलील की आत्मनिर्भर भारत के तहत ऐसा किया जा रहा है यह भी ठीक नहीं है। इंजीनियरिंग विंग आखिर क्यों स्थापित की गई और क्या यह अपना काम करने में नाकाम रही। खंडपीठ ने कहा कि ऐसा संस्थान जो भारतीय और भारतीयों द्वारा संचालित हो, भारतीयों को रोजगार देता हो और भारत को मुनाफा देता हो, इससे ज्यादा आत्मनिर्भर और क्या हो सकता है। हाईकोर्ट ने कहा कि निजीकरण और सबका साथ सबका विकास में विरोधाभास दिखाई देता है।

खंडपीठ ने कहा कि यह समझ से बाहर है कि लोगों को बेहतर सुविधाएं देने और मुनाफे के बीच भी आखिर क्यों निजीकरण का निर्णय लिया जा रहा है। हाईकोर्ट ने कहा कि बिजली कर्मी शहर में निर्बाध बिजली उपलब्ध हो इसके, लिए हमेशा तत्पर रहते हैं, उसके लिए वे प्रशंसा के पात्र हैं। मौजूदा कठिन परिस्थितियों में शहर के बड़े अस्पतालों को बेरोक-टोक बिजली की सप्लाई यही विभाग कर रहा है। हाईकोर्ट ने कहा कि उनकी राय में निजीकरण सभी समस्याओं का रामबाण इलाज नहीं हो सकता है। जब विभाग मुनाफे में है, लोगों को शिकायत नहीं है, संस्थानों को निर्बाध बिजली मिल रही है तो इस दौर में आखिर क्यों इतनी आतुरता दिखाई जा रही है।

खंडपीठ ने कहा कि पूर्व प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने 1963 में जब भाखड़ा नंगल बांध का उद्घाटन किया था तो उन्होंने इसे आधुनिक भारत का मंदिर बताया था। उन्होंने इसे देश की दुनिया पर निर्भरता के अंत के रूप में देखा था।

हाईकोर्ट ने निजीकरण पर बाबा साहेब अंबेडकर की टिप्पणियां शामिल करते हुए कहा कि संविधान के अनुसार प्रशासन की जिम्मेदारी होती है कि वह ऐसे संस्थानों को बचाए जो रोजगार देते हैं और समाज को सहारा देते हैं ताकि गरीब से गरीब व्यक्ति बेहतर भविष्य का सपना देख सके। निजीकरण और सबका साथ सबका विकास इन दोनों में विरोधाभास दिखाई देता है।

दरअसल चंडीगढ़ प्रशासन ने शहर में बिजली विभाग के निजीकरण का फैसला लिया था। इस फैसले को पावर मैन यूनियन ने पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट में चुनौती दी थी। हाईकोर्ट ने फैसले पर रोक लगा दी थी। इसके खिलाफ यूटी प्रशासन सुप्रीम कोर्ट गया और सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट को तीन माह में विवाद का निपटारा करने का आदेश दिया था। हाईकोर्ट ने दो-तीन सुनवाई के बाद अगस्त की तारीख तय की तो प्रशासन ने निजीकरण की प्रक्रिया में तेजी ला दी। इसके खिलाफ यूनियन ने फिर अर्जी दाखिल की जिस पर हाईकोर्ट ने सुनवाई करते हुए इस प्रक्रिया पर अब रोक लगा दी है।

(वरिष्ठ पत्रकार जेपी सिंह की रिपोर्ट।) 

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