Wednesday, April 24, 2024

लाल किला नहीं संभाल सके, देश क्या संभालेंगे मोदी-शाह

जिनसे लाल किला नहीं संभलता वो क्या देश संभालेंगे?- यह सवाल 26 जनवरी 2021 को लालकिले पर झंडा फहराने की तस्वीरों के बाद उठ खड़े हुए हैं। तो पकड़ में आ जाएंगे जो तस्वीरों में दिख रहे हैं और जिन्होंने इस अप्रिय और शर्मसार करने वाली घटना को अंजाम दिया है। शायद उन्हें देर-सबेर सज़ा भी मिल जाए, लेकिन उन्हें कब सज़ा मिलेगी, जिन्होंने इस घटना को होने दिया और जो लालकिले की रक्षा और उसका सम्मान कर पाने में विफल रहे? शायद कभी नहीं, क्योंकि मोदी सरकार अपनी जिम्मेदारी आंदोलनकारियों पर थोपने पर आमादा है। इस काम में सरकार की भोंपू मीडिया पूरी मदद कर रही है।

जो आंदोलन 62 दिनों से शांतिपूर्ण था, जिस आंदोलन के दौरान 70 से ज्यादा किसानों ने अपनी जान दे दी और जो आंदोलन लगातार सरकारी और मीडिया के प्रोपेगेंडा से लड़ता रहा, वह गणतंत्र दिवस के दिन भी उतना ही जिम्मेदार दिखा। नौ तय रूट में से दो रूट पर जो गड़बड़ियां दिखीं और लालकिले तक जो लोग पहुंचे, उनका नेतृत्व संयुक्त किसान संघर्ष समिति नहीं कर रही थी, यह बात समिति के नेताओं ने कही है। गड़बड़ी करने वालों का नेतृत्व दीप सिद्धू और अन्य कर रहे थे।

दीप सिद्धू का खालिस्तान प्रेम और बीजेपी से नाता छिपा नहीं है। सन्नी देओल को अपने पुराने बयान के आधार पर सफाई देनी पड़ी है कि उनका दीप सिद्धू से कोई संबंध नहीं है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ दीप सिद्धू की तस्वीर भी खूब चर्चित रही है। दीप सिद्धू के साथ संबंध से लगातार किसान नेता इनकार करते रहे। उसका कार्यक्रम हमेशा संयुक्त किसान संघर्ष समिति से अलग रहा और दिखा। लाल किला पहुंचने का आह्वान सिर्फ उसी का था।

ताज्जुब की बात यह है कि गणतंत्र दिवस पर खालिस्तानी झंडा फहराने की खुली घोषणा और 2.5 करोड़ रुपये का इनाम देने का एलान विदेशी धरती से किया गया था, जिसका जोर-शोर से मीडिया प्रचार-प्रसार कर रहा था। खुफिया इनपुट तो निश्चित रूप से रही थी कि गणतंत्र दिवस के दिन राजधानी में गड़बड़ी की जी सकती है। फिर भी लालकिले तक लोगों को पहुंचने दिया गया और लालकिले की सुरक्षा नहीं की गई।

लालकिले के पास पुलिस पर आक्रामक होती उन्मादी भीड़ वाली तस्वीर सार्वजनिक है। कुएं जैसी गहराई में कूदकर जान बचाते दिख रहे हैं पुलिस के जवान। पुलिस को इतना हताश और निराश बनाया किसने? यह किसकी असफलता है? आंदोलनकारी किसानों पर इसकी जिम्मेदारी थोपना सरासर ज्यादती होगी। यह आंदोलन के दौरान गलत फायदा उठाने वाले तत्वों और उन्हें रोक पाने में केंद्रीय गृह मंत्रालय की विफलता है, जिसके मातहत दिल्ली पुलिस आती है।

अगर किसान बागी होते तो दिल्ली की तस्वीर कुछ और होती। दिल्ली पहुंचने और लौटने के दौरान किसान आम तौर पर शांतिपूर्ण रहे। जहां-तहां उन्हें ही पुलिस की ज्यादतियों का सामना करना पड़ा। ट्रैक्टर पंचर कर दिए गए, कारों के शीशे तोड़े गए, लाठियां पड़ीं, आंसू गैस के गोले छोड़े गए। सब कुछ के बावजूद किसानों ने कोई ऐसी जवाबी कार्रवाई नहीं की, जिसके लिए किसान आंदोलन को शर्मिंदा होना पड़े। ऐसी ही तारीफ पुलिस के लिए भी बनती है जो चंद घटनाओं को छोड़कर शांतिपूर्ण बनी रही। कई जगहों पर प्रदर्शनकारियों को  पुलिस ने भी बर्दाश्त किया।

लालकिले पर जो हुआ, वह गलत तत्वों की सफलता और दिल्ली पुलिस के साथ-साथ केंद्रीय ग़ृह मंत्रालय की नाकामी है। पूरी घटना को होने दिया गया। खुफिया इनपुट के आधार पर कोई एहतियातन गिरफ्तारी तक नहीं हुई। बड़े आराम से लाल किले तक विघटनकारी तत्व पहुंच गए। उन्हें रोकने के लिए दिल्ली पुलिस ने क्या किया, यह देश को बताया जाना चाहिए।

घटना बीत जाने के बाद गृह मंत्री ने बैठक की। यह बैठक पहले क्यों नहीं की गई। बिल्कुल वही पैटर्न फिर नजर आता है जो दिल्ली दंगे के समय अपनाया गया था। तीन दिन तक दिल्ली दंगाइयों के हाथों में रही। जान देकर भी दिल्ली पुलिस ने इसे शांत कराने की जिम्मेदारी नहीं निभाई। गृह मंत्री खामोशी से दिल्ली को जलते देखते रहे। गणतंत्र दिवस पर भी गृह मंत्रालय और दिल्ली पुलिस का वही रवैया दिखा। सब कुछ हो जाने दिया गया। अब इस घटना की जिम्मेदारी दूसरों पर थोपी जाएगी। आंदोलनकारियों को बदनाम किया जाएगा।

अंत में, इतिहास यह बात याद रखेगा कि देश में ‘सबसे मजबूत’ सरकार चंद विघटनकारी लोगों के सामने लाचार हो गई। लाल किले पर कोई और झंडा फहरा दिया गया और शासन कुछ कर नहीं सका। निश्चित रूप से मोदी सरकार पर यह दाग लगा है और लगा रहेगा कि जब यह लाल किले की रक्षा नहीं कर सकती तो देश की रक्षा कैसे करेगी? सीमा पर चीन, पाकिस्तान की आक्रामकता का मुकाबला यह सरकार कैसे कर सकेगी? नेपाल तक के आंख दिखाने की वजह भी खुलकर सामने आ गई है। अपने ही देश के लोगों को जाति-धर्म-राष्ट्रीयता के नाम पर बांटने का काम करना घृणित है और इससे देश मजबूत नहीं होता। लाल किले जैसी घटना ऐसी ही सियासत का नतीजा है।

(प्रोफेसर प्रेम कुमार वरिष्ठ पत्रकार और टीवी पैनलिस्ट हैं।)

जनचौक से जुड़े

0 0 votes
Article Rating
Subscribe
Notify of
guest
0 Comments
Inline Feedbacks
View all comments

Latest Updates

Latest

Related Articles