संघ जिस हिंदू राष्ट्र का स्वप्न देखता रहा है, उसके मार्ग में सबसे बड़ी बाधा हिंदुओं का वर्ण-जातियों में विभाजन रहा है। इस विभाजन का एक मुख्य राजनीतिक स्वर मंडलवादी राजनीति करने वाली पार्टियां रही हैं, जो अपने साथ हिंदुओं के एक हिस्से को गोलबंद करके संघ के मुस्लिम विरोधी अभियान पर खड़े हिंदू राष्ट्र के मार्ग की बाधा बन जाती रही हैं।
ये मंडलवादी पार्टियां एक साथ दो कार्य करती थीं। पहला हिंदुओं के एक हिस्से खासकर ओबीसी समुदाय को हिंदू राष्ट्रवाद की परियोजना से राजनीतिक तौर पर ही दूर रखती थीं। दूसरा मुसलमानों को ओबीसी के इस हिस्से के साथ जुड़कर संघ के आनुषांगिक संगठन भाजपा को राजनीतिक चुनौती देने का विकल्प मुहैया कराती रही हैं।
उत्तर भारत में इसके सबसे बड़े चेहरे लालू यादव और मुलायम सिंह यादव रहे हैं। शरद यादव और नीतीश कुमार भी इन चेहरों में शामिल रहे हैं।
संघ-भाजपा ओबीसी समुदाय का बड़े पैमाने पर हिंदूकरण करके और उनके बीच के जातीय अन्तर्विरोधों का फायदा उठाकर उत्तर प्रदेश में मंडल की राजनीति को काफी हद तक किनारे लगा चुकी है और इस प्रक्रिया में उसने उत्तर प्रदेश में मंडल की सियासत के राजनीतिक चेहरे अखिलेश यादव को हिंदुत्व और अपरकॉस्ट की तरफ झुकने के लिए बाध्य कर दिया है और उनके वोट बैंक को एक जाति विशेष तक काफी हद तक सीमित करने में सफलता प्राप्त कर ली है और उसमें भी सेंध लगा दी है। यही स्थिति काफी हद तक थोड़े-बहुत मात्रात्मक अंतर के साथ तेजस्वी के साथ भी है।
बिहार में लालू यादव को राजनीतिक मंच से उतार कर जेल भेज दिया गया है। शरद यादव लंबे समय तक एनडीए के संयोजक रहे हैं और अब उनकी कोई ठोस राजनीतिक जमीन भी नहीं है।
नीतीश कुमार भाजपा के नेतृत्व वाले एनडीए का लंबे समय से सहयोगी होने के बावजूद भी संघ-भाजपा के लिए पूरी तरह भरोसे के व्यक्तित्व नहीं रहे हैं। एक तो वे कम से कम बिहार में अपना अपर हैंड चाहते हैं, दूसरा समय-समय पर बागी तेवर भी दिखाते रहते हैं, जैसे पिछली बार के बिहार विधानसभा चुनावों में वे एनडीए के खिलाफ महागठबंधन के साथ हो गए और भाजपा को पटखनी दे दी।
भाजपा चिराग पासवान का इस्तेमाल करके नीतीश कुमार को उनकी हैसियत बताना चाहती है और मंडल के जैसे-तैसे ही सही एक वारिस को उसकी राजनीतिक जमीन से उखाड़ देना चाहती है। चिराग कभी भी संघ-भाजपा के लिए चुनौती नहीं बन सकते हैं, हां यह हो सकता है कि वे भविष्य में भाजपा का खुला चेहरा बनकर ही सामने आएं।
मंडल की राजनीतिक विरासत उत्तर भारत में खत्म करना संघ-भाजपा का दीर्घकालिक लक्ष्य है, नीतीश कुमार को निपटाना उसी कड़ी का एक हिस्सा है।
इसके बाद बचेंगे, मुलायम सिंह के पुत्र अखिलेश यादव और लालू यादव के पुत्र तेजस्वी यादव। ये दोनों लोग सिर्फ और सिर्फ पुत्र होने के चलते ही मंडल की राजनीतिक विरासत के वारिस हैं, इनकी खुद की कोई राजनीतिक पूंजी नहीं है। ये अपने पिताओं द्वार खड़ी की गई राजनीतिक पूंजी पर ही राजनीति कर रहे हैं। संघ-भाजपा को पता है कि ऐसे नेताओं से निपटना कोई बहुत कठिन काम नहीं है। ये लालू यादव और मुलायम सिंह यादव नहीं हैं, न ही ये नीतीश कुमार ही हैं। फिलहाल बिहार में भाजपा का लक्ष्य नीतीश कुमार को निपटाना है।
यदि संघ-भाजपा मंडल की राजनीतिक विरासत को उत्तर भारत में खत्म कर देते हैं, तो हिंदू राष्ट्र के मार्ग में समय-समय पर उठ खड़ी होने वाली राजनीतिक बाधा को काफी दूर कर लेंगे और मुसलमानों को ऐसी जगह धकेल देंगे, जहां ओवैसी जैसा कोई नेता मुस्लिम राजनीति के नाम उन्हें अपने साथ करेगा। यह भाजपा के लिए सबसे मुफीद होगा। देश में बहुसंख्यक हिंदुओं की राजनीति भाजपा के नेतृत्व में और ओवैसी जैसे किसी नेता के नेतृत्व में मुस्लिम राजनीति चलेगी। देश हिंदू मुसलमान के आधार पर बंट जाएगा और हिंदू राष्ट्र स्थायी शक्ल अख्तियार कर लेगा।
भारत का इतिहास इस बात का साक्षी है कि अल्पसंख्यक अपरकास्ट ने बहुसंख्यक बहुजनों को उनके भीतर के अन्तर्विरोधों का इस्तेमाल करके और उन्हें एक-दूसरे के खिलाफ खड़ा करके ही अपना वर्चस्व कायम रखा है। संघ-भाजपा इसी राजनीतिक रणनीति पर काम कर रहे हैं।
(डॉ. सिद्धार्थ जनचौक के सलाहकार संपादक हैं।)
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