11 अगस्त 2020 को रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने दुनिया की पहली कोविड-19 वैक्सीन “स्पुतनिक-वी” से दुनिया का परिचय करा दिया। होना तो ये था कि कोविड-19 वैश्विक महामारी की मार से कराहती मनुष्यता दुनिया के ‘पहले कोरोना वैक्सीन’ का दिल खोलकर स्वागत करती, लेकिन हुआ उल्टा। स्वागत के बजाय दुनिया की पहले वैक्सीन पर कई सवाल खड़े किए जा रहे हैं।
रूस के राष्ट्रपति को इसका अंदेशा पहले से था, तभी तो उन्होंने इस वैक्सीन की पहली डोज अपनी बेटी को दिलवाई और मीडिया के सामने इसका विशेष रूप से उल्लेख भी किया।
रूसी वैक्सीन ‘स्पुतनिक वी’ पर उठ रहे सवाल स्वाभाविक हैं या फैब्रिकेटेड। ये सवाल मनुष्यता के हित में उठाए जा रहे हैं या अमेरिकी और यूरोपीय वैक्सीन कंपनियों के हित में? या फिर अमेरिकी राजनीति और आगामी चुनाव को रूसी वैक्सीन के प्रभाव से बचाने के लिए? ऐसे कई सवाल हैं जिनका जवाब हम सबको चाहिए?
रूसी वैक्सीन ‘Sputnik V’ से अमेरिकी ‘राष्ट्रवाद’ के वर्चस्व को आघात
कोरोना वायरस के खिलाफ़ ‘स्पुतनिक-वी’ कितना कारगर होगा ये तो समय बताएगा, लेकिन अमेरिका की राजनीति में ये रूसी वैक्सीन लंबे समय तक याद रखे जाने वाला असर डालेगी। अमेरिका और रूस के बीच प्रत्यक्ष-परोक्ष द्वंद चलता ही रहता है। इसमें एक की उपलब्धि दूसरे की मात मानी जाती है। इसे अमेरिका के उस बयान से जोड़कर देखा जाना चाहिए, जिसमें अमेरिका कह रहा है कि रूस ने इसे अपनी प्रतिष्ठा से जोड़ते हुए जल्दबाजी में लांच कर दिया।
वहीं रूस के मेडिकल एक्सपर्ट कह रहे हैं कि पश्चिमी देशों की प्रतिक्रिया अंगूर खट्टे हैं जैसी है। उन्हें बुरा लग रहा है कि रूस ने खुद को अमेरिका और यूरोपियन यूनियन से बेहतर साबित कर दिखाया। रूस और अमेरिका के बयान स्पष्ट हैं कि ‘वैक्सीन’ दोनों के लिए नाक का सवाल है।
अब सवाल ये कि वैक्सीन का नाम ‘स्पुतनिक’ ही क्यों रखा गया? तो इसका जवाब खुद Sovereign Wealth Fund के प्रमुख किरिल मित्रिव (Kirill Dmitriev) के उस बयान में है जो 1 अगस्त को पहली कोरोना वैक्सीन आने के मौके पर उन्होंने दिया था। उन्होंने कहा, “यह ऐतिहासिक मौका है। हमने 1957 में जिस तरह से अंतरिक्ष में पहला सेटेलाइट स्पुतनिक छोड़ा था, अब ठीक वैसा ही ये मौका है। अमेरिका के लोग स्पुतनिक की आवाज सुनकर भौंचक रह गए थे। अब एक बार फिर वैक्सीन लांच होने के बाद वे हैरान होने वाले हैं।”
जैसा कि पूरी दुनिया जानती है कि रूस ने अपनी वैक्सीन का नाम ‘स्पुतनिक वी’ दिया है। ‘स्पुतनिक’ रूस के उस पहले सेटेलाइट का नाम था, जिसे विश्व का पहला सेटेलाइट होने का गौरव प्राप्त है।
वैक्सीन का नाम ‘स्पुतनिक’ रखे जाने पर इस तरह की चर्चा अमेरिका में तेज है कि रूस एक बार फिर से संयुक्त राज्य अमेरिका को जताना चाहता है कि वैक्सीन की रेस में उसने यूएसए को मात दे दी है, जैसे सालों पहले अंतरिक्ष की रेस में सोवियत संघ ने अमरीका को पीछे छोड़ा था।
ये दक्षिणपंथी अमेरिकी राष्ट्रवादियों के लिए एक तरह से कुठाराघात जैसा है, इसीलिए रूसी वैक्सीन की सुरक्षा और असर को लेकर लगातार सवाल खड़े किए जा रहे हैं, वहीं इससे पहले रूस पर वैक्सीन का डेटा चुराने का भी आरोप लगया जा रहा था।
स्पुतनिक के जवाब में ‘अक्टूबर सरप्राइज’ वैक्सीन लांच करके चुनाव जीतना चाहते हैं ट्रंप
वहीं अब अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने कहा है कि चुनाव से पहले-पहले अमेरिकी वैक्सीन आ जाएगी। सीएनएन ने अपनी एक रिपोर्ट में ये दावा भी किया है कि अमेरिकी चुनाव और वैक्सीन लांचिग की तारीख एक हो सकती है।
उनके बयान के बाद तमाम वैज्ञानिक और एक्स्पर्ट डॉक्टर कह रहे हैं अगर ऐसा होता है तो ख़तरनाक होगा। सिर्फ़ चुनाव जीतने के लिए आप वैक्सीन समय से पहले नहीं ला सकते हैं।
विशेषज्ञ चिकित्सकों ने डोनाल्ड ट्रंप के उस बयान के बाद अपनी चिंता जाहिर की है। कि राष्ट्रपति यूएस फूड एंड ड्रंग एडमिनिस्ट्रेशन पर ‘अक्टूबर सरप्राइज’ के तौर पर कोरोना वैक्सीन को समय से पहले ही एप्रूवल देने के लिए दबाव बना सकते हैं। ऐसा वो सिर्फ़ चुनाव में जीत हासिल करने के लिए कर सकते हैं।
‘स्पुतनिक वी’ का विरोध करने वालों के पीछे कहीं वैक्सीन के दूसरे निर्माता कंपनियों का हाथ तो नहीं है? इतना तो तय है कि जिस किसी कंपनी ने कोरोना की अचूक वैक्सीन बना ली, उसे इस कोविड-19 वैश्विक महामारी की मार झेलती दुनिया में मालामाल होने से कोई नहीं रोक सकता। इसी कारण दुनिया भर में सरकारी और निजी ड्रग कंपनियों के स्तर पर कोरोना वैक्सीन बनाए जाने को लैकर सैंकड़ों प्रयोग और ट्रायल चल रहे हैं।
कोरोना वैक्सीन की खोज में लगी दुनिया भर की कंपनियां जहां अगले साल के मध्य तक कोरोना वैक्सीन के बाज़ार में आने की बात कर रही हैं। वहां रूसी वैक्सीन ‘स्पुतनिक वी’ के अक्टूबर नवंबर तक बाज़ार में आ जाने से अमरीकी और यूरोपीय ड्रग कंपनियों के हाथों से वैक्सीन के बदले होने वाला मुनाफ़ा जाता दिख रहा है।
इस वक़्त दुनिया भर में 100 से भी ज़्यादा वैक्सीन शुरुआती स्टेज में हैं और 20 से ज़्यादा वैक्सीन का मानव पर परीक्षण हो रहा है। अमरीका में छह तरह की वैक्सीन पर काम हो रहा है और अमरीका के जाने माने कोरोना वायरस विशेषज्ञ डॉक्टर एंथनी फ़ाउची ने कहा है कि साल के अंत तक अमरीका के पास एक सुरक्षित और प्रभावी वैक्सीन हो जाएगी।
ब्रिटेन ने भी कोरोना वायरस वैक्सीन को लेकर चार समझौते किए हैं। चीन की सिनोवैक बायोटेक लिमिटेड ने मंगलवार को कोविड-19 वैक्सीन के ह्यूमन ट्रायल के अंतिम चरण की शुरुआत की है। इस वैक्सीन का ट्रायल इंडोनेशिया में 1620 मरीज़ों पर किया जा रहा है। भारत में भी स्वेदशी वैक्सीन का ह्यूमन ट्रायल शुरू हो चुका है। विश्व स्वास्थ्य संगठन का भी कहना है कि 2021 के शुरुआत में ही कोरोना का टीका आम जनता के लिए उपलब्ध होगा।
रूस का दावा- 20 देशों से एक अरब डोज का मिला ऑर्डर
वहीं रूसी कोरोना वैक्सीन परियोजना के लिए फंड मुहैया कराने वाली संस्था रशियन डॉयरेक्ट इन्वेस्टमेंट फंड के प्रमुख किरिल दिमित्रिज ने कहा, “इस वैक्सीन के लिए 20 देशों से एक अरब डोज बनाने का ऑर्डर मिला है। अतः सितंबर से इस वैक्सीन का औद्योगिक उत्पादन शुरू होने की संभावना है।” हालांकि, अभी तक यह साफ नहीं हो पाया है कि किन देशों ने इस वैक्सीन के लिए ऑर्डर दिए हैं।
ख़ैर पुतिन ने कहा है कि इस टीके का इंसानों पर दो महीने तक परीक्षण किया गया और ये सभी सुरक्षा मानकों पर खरा उतरा है। इस वैक्सीन को रूस के स्वास्थ्य मंत्रालय ने भी मंज़ूरी दे दी है। माना जा रहा है कि रूस में अब बड़े पैमाने पर लोगों को यह वैक्सीन देनी की शुरुआत होगी, जिसके लिए अक्तूबर के महीने में मास प्रोडक्शन शुरू करने की बात कही जा रही है।
रूसी राष्ट्रपति ने अपनी बेटी को पहला टीका देकर ‘अमेरिकी शक़’ को दी चुनौती
राजधानी मॉस्को स्थित गामालेया इंस्टीट्यूट (Gamalaya Institute) द्वारा बनाई गई वैक्सीन का पहला टीका किसी और को नहीं बल्कि खुद राष्ट्रपति पुतिन ने अपनी बेटी को लगावाकर एक नज़ीर पेश कर दी है और इस वैक्सीन को लेकर दुनिया के शक़ को चुनौती दे दी है।
रूस के राष्ट्रपति व्लादिमिर पुतिन ने रूस निर्मित वैक्सीन ‘स्पुतनिक वी’ का परिचय दुनिया से कराते हुए मीडिया में कहा, “आज की ये सुबह दुनिया में पहली बार नए कोरोना वायरस के खिलाफ वैक्सीन रजिस्टर्ड किए जाने के लिए याद की जाएगी। मैं अपने उन सभी साथियों को धन्यवाद दूंगा जिन्होंने इस वैक्सीन पर काम किया है। वैक्सीन जरूरी टेस्ट से गुज़री है और मेरी बेटी को भी इसका टीका लगाया गया है और वो ठीक महसूस कर रही हैं।”
सूत्रों के मुताबिक पुतिन की बेटी को जब इसका टीका लगाया गया तो उनका शारीरिक तापमान 38 डिग्री सेल्सियस था, मगर टीके के बाद ये थोड़ा बढ़ा, लेकिन बाद में काबू में आ गया। इसी के साथ रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने एलान किया कि रूस में जल्द ही इस वैक्सीन का प्रोडक्शन शुरू किया जाएगा और बड़ी तादाद में वैक्सीन की डोज़ तैयार कर के पूरी दुनिया को उपलब्ध कराई जाएगी। फिलहाल इस वैक्सीन की लिमिटेड डोज तैयार की गई हैं। रेगुलेटरी अप्रूवल मिल जाने पर इस वैक्सीन का इंडस्ट्रियल प्रॉडक्शन सितंबर से शुरू हो सकता है।
रूसी एजेंसी TASS के मुताबिक रूस में ये वैक्सीन अभी ‘फ्री ऑफ कॉस्ट’ मुहैय्या होगी। इस पर आने वाली लागत को देश के बजट से पूरा किया जाएगा। बाकी देशों के लिए भी कीमत का खुलासा अभी नहीं किया गया है।
अक्टूबर में सामूहिक टीकाकरण अभियान शुरू करेगा रूस
रूस के स्वास्थ्य मंत्री मिखाइल मुराशको (Mikhail Murashko ) ने कहा है कि रूस अक्टूबर में कोरोना वायरस के खिलाफ सामूहिक टीकाकरण अभियान शुरू करने की तैयारी कर रहा है। बता दें कि मॉस्को के गामलेया रिसर्च इंस्टिट्यूट ने एडेनोवायरस को बेस बनाकर ये वैक्सीन तैयार की है। दावा किया जा रहा है कि इस तरह के वायरस से लड़ने वाली ये वैक्सीन उसके 20 साल की रिसर्च का नतीजा है। वैक्सीन में जो पार्टिकल्स यूज़ किए गए हैं, वे खुद को रेप्लिकेट यानी कॉपी नहीं कर सकते। रिसर्च और मैनुफैक्चरिंग में शामिल कई लोगों ने भी खुद को इस वैक्सीन की डोज़ दी है। हालांकि कुछ लोगों को वैक्सीन की डोज दिए जाने पर बुखार आ सकता है, जिसके लिए पैरासिटामॉल के इस्तेमाल की सलाह दी जा रही है।
बताया जा रहा है कि रूस की सेशेनॉव यूनिवर्सिटी में पिछले 20 सालों से कोरोना वायरस की इस फैमिली के संक्रमण पर रिसर्च किया जा रहा था। अतः जब कोविड-19 के वायरस ने दस्तक दी, तब इस रिसर्च की दिशा को इस वायरस की वैक्सीन बनाने की तरफ मोड़ दी गई। वैक्सीन को रूस के रक्षा मंत्रालय की फंडिंग से गमलेया नेशनल सेंटर फॉर रिसर्च की टीम ने तैयार किया है।
अमेरिकी यूरोपीय मीडिया में ‘स्पुतनिक वी’ को असुरक्षित और अप्रभावी वैक्सीन बताया जा रहा
जर्मनी, फ़्रांस, स्पेन और अमेरिका में वैज्ञानिकों ने रूसी वैक्सीन ‘स्पुतनिक वी’ पर संदेह जाहिर करते हुए इसे लेकर सतर्क रहने के लिए कहा है। जर्मनी के स्वास्थ्य मंत्री जेंस स्पान ने कहा, “लाखों लोगों को टीका देना शुरू कर देना एक ख़तरनाक बात है, क्योंकि अगर गड़बड़ हुई तो फिर टीके पर से लोगों का भरोसा मर जाएगा। जितना हमें पता है, उससे लगता है कि इस टीके का समुचित परीक्षण नहीं हुआ है… बात केवल सबसे पहले टीका बना लेने की नहीं है, ज़रूरी ये है कि एक सुरक्षित टीका बनाया जाए।”
वहीं फ़्रांस के नेशनल सेंटर फ़ॉर साइंटिफ़िक रिसर्च की रिसर्चर इसाबेल इंबर्ट ने अख़बार ला पेरिसियों से कहा, “इतनी जल्दी इलाज का दावा कर देना ‘बहुत ही ख़तरनाक’ हो सकता है।” अमरीका के सबसे बड़े वायरस वैज्ञानिक डॉक्टर एंथनी फ़ाउची ने भी रूसी दावे पर शक जताते हुए नेशनल जियोग्राफ़िक से कहा, “मैं उम्मीद करता हूं कि रूसी लोगों ने निश्चित तौर पर परखा है कि ये टीका सुरक्षित और असरकारी है। मुझे पूरा संदेह है कि उन्होंने ये किया है।”
रूस की जिस कोरोना वायरस वैक्सीन स्पुतनिक वी का दुनिया भर में हल्ला है। उसे लेकर कई चौंकाने वाले दावे किए जा रहे हैं। रूस ने वैक्सीन के रजिस्ट्रेशन के लिए जो दस्तावेज़ जमा किए हैं. उनसे पता चला है कि वैक्सीन का ट्रॉयल सिर्फ़ 38 लोगों पर किया गया है। जो सिर्फ 42 दिन तक चला। इसमें भी तीसरे चरण के बारे में कोई जानकारी नहीं दी गई है। वैक्सीन कितनी सुरक्षित है, इसे जानने के लिए भी कोई क्लिनिकल स्टडी नहीं की गई।
अमेरिकी और यूरोपियन मीडिया रूसी वैक्सीन के 144 साइड इफेक्ट्स गिना रहा है। ब्रिटिश अखबार ‘डेली मेल’ ने छापा है कि 38 वोलंटियर्स पर 144 साइडइफेक्ट देखने को मिले हैं। अखबार का दावा है कि प्रयोग के 42वें दिन भी 38 में से 31 वालंटियर्स इन साइड इफेक्ट से जूझ रहे थे। दावा किया जा रहा है कि रूस की इस वैक्सीन ‘स्पुतनिक वी’ से औसत से भी कम एंटीबॉडीज बनते हैं।
एम्स निदेशक रणदीप गुलेरिया रूसी वैक्सीन स्पुतनिक वी पर कहते हैं, “ हमें देखना होगा कि ये सुरक्षित और असरदायक हो। अगर दोनों चीजें ठीक बैठती हैं तो भारत के लोगों को जल्दी वैक्सीन मिल सकती है। इंडिया के पास वो क्षमता है कि वैक्सीन का व्यापक उत्पादन कर सके, लेकिन वैज्ञानिक वर्ग को इसके असरदायी और सुरक्षित होना साबित करना होगा।”
रूस पर ‘कोरोना वैक्सीन डेटा’ चोरी का इल्जाम
ब्रिटेन, अमेरिका और कनाडा ने आरोप लगाया है कि रूस कोविड-19 का टीका विकसित करने में जुटे अनुसंधानकर्ताओं से इस बारे में सूचना चोरी करने का प्रयास कर रहा है। तीनों देशों ने 16 जुलाई को आरोप लगाया था कि हैकिंग करने वाला समूह ”एपीटी29” कोरोना वायरस के टीके को विकसित करने में जुटे अकादमिक और चिकित्सा अनुसंधान संस्थानों में हैकिंग कर रहा है। कोजी बियर नाम से भी पहचाने जाने वाला यह समूह रूस की खुफिया सेवा का हिस्सा है।
ब्रिटेन ने ही अमेरिका और कनाडा के विभागों के साथ इस विषय में समन्वय स्थापित किया था। वाशिंगटन ने कोजी बीयर हैकिंग समूह के बारे में पहचान की थी कि यह कथित तौर पर रूसी सरकार से संबंधित दो हैंकिंग समूह में से एक है। इसने डेमोक्रटिक नैशनल कमेटी के कम्प्यूटर नेटवर्क में सेंधमारी की थी और 2016 के राष्ट्रपति चुनाव से पहले ईमेल चोरी किए थे।
हालांकि कई मीडिया रिपोर्ट और रूस की तरफ से अमेरिका के इस आरोप को भी अपनी नाकामी छुपाने के लिए फैलाया जा रहा प्रोपागैंडा बताया गया।
‘स्पुतनिक-वी’ को लेकर एक और भी चिंता
जिस कोरोना वैक्सीन को बना लेने का दावा रूस कर रहा है, उसके पहले फेज़ का ट्रायल इसी साल जून में शुरू हुआ था। बीबीसी लंदन के चिकित्सा संवाददाता, फ़र्गस वाल्श के मुताबिक़ रूस ने वैक्सीन बनाने के सारे ट्रायल पूरा करने में ज़्यादा ही तेज़ी दिखाई है। चीन, अमरीका और यूरोप में वैक्सीन ट्रायल शुरू होने के बाद रूस ने अपने वैक्सीन का ट्रायल 17 जून को शुरू किया था।
मॉस्को के गेमालेया इंस्टीट्यूट में विकसित इस वैक्सीन के ट्रायल के दौरान के सेफ़्टी डेटा अभी तक जारी नहीं किए गए हैं। इस वज़ह से दूसरे देशों के वैज्ञानिक ये स्टडी नहीं कर पाए हैं कि रूस का दावा कितना सही है।
फ़र्गस वाल्श का कहना है, “किसी भी बीमारी में केवल पहले वैक्सीन बना लेने का दावा ही सब कुछ नहीं होता। वैक्सीन कोरोना संक्रमण से बचाव में कितनी कारगर है, ये साबित करना सबसे ज़रूरी है। रूस की वैक्सीन के बारे में ये जानकारी दुनिया को अभी नहीं है और न ही रूस ने इस बारे में कोई दावा ही किया है।”
वहीं मॉस्को स्थित एसोसिएशन ऑफ क्लिनिकल ट्रायल्स ऑर्गेनाइजेशन (एक्टो) ने रूसी सरकार से इस वैक्सीन की अप्रूवल प्रक्रिया को टालने की गुज़ारिश की थी। उनके मुताबिक़ जब तक इस वैक्सीन के फेज़ तीन के ट्रायल के नतीजे सामने नहीं आ जाते, तब तक रूस की सरकार को इसे मंज़ूरी नहीं देनी चाहिए।
एक्टो नामक ये एसोसिएशन विश्व की टॉप ड्रग कंपनियों का प्रतिनिधित्व है। एक्टो के एक्ज़िक्यूटिव डायरेक्टर स्वेतलाना ज़ाविडोवा नें रूस की मेडिकल पोर्टल साइट से कहा है, “बड़े पैमाने पर टीकाकरण का फ़ैसला 76 लोगों पर इस वैक्सीन के ट्रायल के बाद लिया गया है। इतने छोटे सैम्पल साइज़ पर आज़माए गए टीके की सफलता की पुष्टि बहुत ही मुश्किल है।”
मल्टीनेशनल फार्मा कंपनीज की एक लोकल एसोसिएशन ने चेतावनी दी है कि क्लिनिकल ट्रायल पूरा किए बिना वैक्सीन के सिविल यूज की इजाज़त देना खतरनाक कदम साबित हो सकता है। सूत्रों के मुताबिक अभी तक 100 से भी कम लोगों को डोज दी गई है। ऐसे में बड़े पैमाने पर इसका इस्तेमाल खतरनाक हो सकता है।
WHO का आरोप रूस ने नहीं किया अंतर्राष्ट्रीय दिशा निर्देशों का पालन
WHO का दावा है कि वैक्सीन बनाने के लिए निर्धारित नए अंतरराष्ट्रीय दिशा-निर्देशों का पालन रूस ने नहीं किया है। इसलिए वो जानकारी साझा करने से बच रहा है। रूस ने वैक्सीन के जितने भी ट्रॉयल किए हैं, उसका कोई साइंटिफिक डेटा पेश नहीं किया है। WHO ने चेतावनी दी है कि यदि तीसरे चरण का ट्रॉयल पूरा किए बिना ये वैक्सीन लोगों को दी जाती है तो ये ख़तरनाक साबित हो सकता है।
(जन चौक के विशेष संवाददाता सुशील मानव की रिपोर्ट।)
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