एसबीआई ने भी दी चेतावनी, कहा-अगले वित्तीय वर्ष में जीडीपी वृद्धि दर घटकर हो सकती है 4.2 फीसद

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नई दिल्ली। भारत के सबसे बड़े सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक स्टेट बैंक आफ इंडिया यानी एसबीआई ने देश के जीडीपी वृद्धि दर के 4.2 तक गिरने की भविष्यवाणी की है। उसका कहना है कि ऐसा दूसरे तिमाही तक होने की आशंका है।

बैंक ने इस गिरावट के पीछे ऑटोमोबाइल सेक्टर में बिक्री में कमी, हवाई यात्राओं में गिरावट, कोर सेक्टर के विकास में स्थिरता और विनिर्माण तथा इंफ्रास्ट्रक्चर सेक्टर में गिरते निवेश को प्रमुख कारण बताया है।

रिपोर्ट में बताया गया है कि वित्तीय वर्ष 2020 के लिए संभावित विकास दर 6.1 से घटकर 5 फीसदी पर आ गयी है।

वित्तीय वर्ष 2020 में विकास दर में गिरावट की भविष्यवाणी करने वाली दुनिया की दूसरी एजेंसियों मसलन एडीबी, वर्ल्ड बैंक, ओसीईडी, आरबीआई और आईएमएफ की कतार में अब एसबीआई भी शामिल हो गया है।

पहली तिमाही में भारत की जीडीपी पहले ही छह सालों में सबसे कम यानी 5 फीसदी दर्ज की गयी है।

एसबीआई ने कहा कि “हमारे 33 उच्च आवृत्तियों वाले सूचकों ने वित्तीय वर्ष 2019 के पहली तिमाही में तेज दर का खुलासा किया था जिसके 65 फीसदी के आस-पास होने के आसार थे। लेकिन वित्तीय वर्ष 2020 में ये अचानक 27 फीसदी पर आ गयी। ” हालांकि मानसून के पहली बार सामान्य रहने की रिपोर्ट सामने आयी है।

रिपोर्ट में कहा गया है कि “हम दूसरी तिमाही में 4.2 फीसदी की विकास दर की आशा कर रहे हैं। हमारे गति की दर 33 अगुआ सूचकों द्वारा अक्तूबर 2018 में 85 फीसदी बतायी गयी थी जो सितंबर 2019 में घटकर महज 17 फीसदी पर आ गयी है। गिरावट का यह सिलसिला मार्च 2019 से शुरू हो गया था।”

एसबीआई का कहना है कि यहां तक कि “आईआईपी के विकास की संख्या भी सितंबर 2019 में 4.3 फीसदी थी। जो किसी खतरे की घंटी से कम नहीं है। उसका नतीजा यह है कि हम अपनी वित्तीय वर्ष 2020 की संभावित जीडीपी का पुर्नसंयोजन कर रहे हैं जो अब 6.1 से घटकर 5 फीसदी पर आ गयी है”।

(उपरोक्त रिपोर्ट इकोनामिक टाइम्स में प्रकाशित हुई है।)

अर्थव्यवस्था पर गिरीश मालवीय की टिप्पणी:

भारत की अर्थव्यवस्था भयानक संकट से गुजर रही है। भारत में बिजली की डिमांड में पिछले साल की तुलना में इस साल अक्तूबर माह में 13.2 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई है। सरकारी डाटा के मुताबिक यह पिछले 12 सालों की सबसे बड़ी गिरावट है। साफ दिख रहा है कि उद्योगों की हालत खराब हुई है। बिजली की खपत का सीधा संबंध इंडस्ट्रियल सेक्टर में छाई मंदी से है। बिजली की मांग में सबसे ज्यादा कमी जिन राज्यों में देखी गई है। उनमें महाराष्ट्र और गुजरात जैसे राज्य शामिल हैं, जहां बड़े पैमाने पर कल कारखाने मौजूद हैं।

कल सितंबर के औद्योगिक उत्पादन के आंकड़े सामने आए हैं। उसमें भी 12 साल की सबसे तेज गिरावट दर्ज की गयी है अगस्त में आईआईपी सिकुड़कर 1.1 प्रतिशत रह गया, जो 81 महीनों की सबसे तेज गिरावट है।

जीएसटी संग्रह अक्तूबर महीने में ही लगातार तीसरे महीने 1 लाख करोड़ रुपये से कम आया है।

इस साल की पहली छमाही में बुनियादी उद्योगों की वृद्धि दर महज 1.3 फीसदी रही जबकि पिछले वित्त वर्ष की समान अवधि में इसमें 5.5 फीसदी का इजाफा हुआ था।

भारतीय अर्थव्यवस्था गहरी मंदी की चपेट में है। और आंकड़े बताते हैं कि निकट भविष्य में तेज सुधार की कोई संभावना नहीं है, बाकी मन्दिर तो बन ही रहा है और सब मंदिर का घण्टा बजाने में लगे हैं इकनॉमी की किसे फिक्र है।

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