Thursday, March 28, 2024

लखनऊ के दलित बहुल गांवों से ग्राउंड रिपोर्ट: “आज सुबह से एक कप चाय तक नसीब नहीं हुई, घर में न चीनी है न चाय पत्ती”

‌”पांच दशकों में जो न हो पाया, पांच वर्षों में कर दिखाया………डबल इंजन सरकार में राशन की डबल डोज मिल रही है.…….हर गरीब को पक्की छत और प्रदेश के श्रमिकों को रोजगार देने का वादा भाजपा सरकार ने ही पूरा किया…..” आदि, आदि ये कुछ ऐसी बातें हैं जिसे मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ हर चुनावी  कार्यक्रम में दोहराने से नहीं भूलते। मुख्यमंत्री द्वारा दोहराई जाने वाली इन बातों को जनता, खासकर गांवों की गरीब जनता कितना सही मानती है, इसे जानने के लिए पिछले दिनों राजधानी लखनऊ से सटे बक्शी का तालाब (बीकेटी) क्षेत्र के अन्तर्गत आने वाले बीकामऊ खुर्द, किसुनपुर, इंदौराबाग़, डेरवां, चांदपुर आदि गांवों में जाना हुआ। इन गांवों में अधिकांश परिवार दलित समुदाय से हैं।

इस दौरे में बीकेटी क्षेत्र में पिछले लंबे समय से गरीब जनता के बीच काम कर रहीं महिला एक्टिविस्ट कमला गौतम भी मेरे साथ थीं। सबसे पहले हम पहुंचे बीकामऊ खुर्द। कमला जी के साथ कोई पत्रकार आईं हैं उनके हालात पर उनसे बात करने, जैसे ही यह खबर ग्रामीणों को लगी सब हमसे मिलने आने लगे। मिलने वालों में ज्यादातर महिलाएं थीं, क्योंकि घर के पुरुष मजदूरी पर निकले हुए थे। हर किसी के पास सुनने से ज्यादा कहने को बहुत कुछ था। वे खुलकर अपने हालात बयां करना चाहती थीं। मैंने महिलाओं से जब यह पूछा कि अब तो इस सरकार के शासन में आप लोगों को महीने में दो बार राशन मिल रहा है, क्या इससे आप लोग खुश हैं, तो वहां मौजूद महिलाओं ने हर महीने समय से राशन मिल जाने की बात तो स्वीकारी लेकिन कहा कि केवल राशन से जीवन की सारी जरूरतें पूरी नहीं होतीं, महंगाई चरम पर है और मजदूरी का कोई ठिकाना नहीं जब मिलती है तभी घर में साग सब्जी, मसाला तेल और दूसरी जरूरतों की चीजें आ पाती हैं।

बीकामऊ में महिलाओं के साथ बातचीत।

‌हमसे मिलने आई गांव की कमला देवी ने बताया कि उनके पास इतना भी पैसा नहीं कि वह अपने बीमार बच्चे को डॉक्टर के पास ले जा सकें। अपने हालात बताते हुए कमला कहती हैं आज सुबह से एक कप चाय तक नसीब नहीं‌ हुई, घर में न चीनी है न चाय पत्ती और यह सब बताते बताते कमला अपने घर चलने का आग्रह करने लगीं। ताकि अपने घर की हालत दिखा सकें और बता सकें कि प्रधानमंत्री आवास के तहत उन्हें घर बनाने के लिए आज तक सहायता राशि नहीं मिल पाई है। जबकि उनके घर की स्थिति एकदम जर्जर हो चुकी है। उन्होंने बताया कि लेखपाल आए थे मुआयने पर और कह गए कि छत को और टूट जाने दो तब ही तुम्हें सहायता राशि मिल पाएगी। वे गुस्से में कहती हैं क्या जब छत टूटकर हमारे सिर पर गिर जाएगी तब हमें सरकार से मदद मिलेगी?

कमला देवी अपने जर्जर घर में।

कमला के मुताबिक प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत सहायता राशि पाने के लिए वह कई बार तहसील के चक्कर लगा चुकी हैं, अधिकारियों से मिल चुकी हैं लेकिन आज तक सुनवाई नहीं हुई। करीब सात साल पहले कमला के पति की मौत हो गई थी। उनके चार बच्चे हैं। घर का गुज़ारा कैसे चलता है इस पर उन्होंने बताया कि वह और उनकी बेटी मजदूरी करते हैं उसी से गुजर बसर होती है। वे कहती हैं केवल राशन देने से क्या हम गरीबों के दुखों का अंत हो जाएगा, बच्चों को अच्छी शिक्षा चाहिए, अच्छा इलाज चाहिए। गरीबों को सरकार रोजगार दे ताकि वे अपने जीवन की दूसरी जरूरतें भी पूरी कर सकें। घर की माली हालत बेहद खराब होने पर कमला कहती हैं, “घर में रखा आनाज बेचकर कुछ पैसा मिल सकता है लेकिन फिर सोचती हूं अनाज बेच दिया तो खाएंगे क्या”। वे कहती हैं “पहले मनरेगा भी कमाई का एक सहारा था लेकिन अब तो उसमें भी कोई काम नहीं बचा”।

कमला की तरह गीता गौतम ने भी हमसे घर चलने का आग्रह किया। गीता के केवल एक कमरे पर छत है बाकी एक और कमरे के नाम पर केवल मिट्टी की टूटी फूटी दीवारें हैं। गीता के पति भी मजदूर हैं। तीन बच्चे हैं। किसी तरह पांच सदस्यों का परिवार उस जर्जर घर में गुजर बसर कर रहा है। गीता रुआंसी सी होकर कहती हैं घर की हालत देख लीजिए, आखिर किस तरह से हम इस घर में बसर कर रहे हैं हम भी जानते हैं, बरसात में सारा पानी घर में घुस आता है पानी के साथ जहरीले कीड़े मकोड़े, सांप भी आ जाते हैं जिसके चलते बच्चों की सुरक्षा के खातिर उन्हें और उनके पति को कई रातें जागकर गुजारनी पड़ती हैं।

बीकामऊ की गीता गौतम अपने बच्चों के साथ।

वह कहती हैं एक तरफ मुख्यमंत्री जी कहते हैं कि प्रधानमंत्री आवास के तहत हर गरीब परिवार को पक्का घर मिलेगा और दूसरी तरफ जब हम इस बाबत बात उठाते हैं तो प्रधान से लेकर, लेखपाल, जिलाधिकारी के दरवाजे तक हमारी सुनवाई नहीं होती। गीता कहती हैं इस ठंड में तो हम गरीबों को कंबल तक मिल नहीं पाया केवल आश्वासन मिल रहा है, फिर पक्का घर तो दूर की बात है। “डबल डोज राशन” मिलने के सवाल के जवाब में वह कहती हैं, राशन नहीं अगर सरकार हम गरीबों के लिए रोजगार की गारंटी करती, इस करोना काल में पढ़ाई से वंचित गरीबों के बच्चों के लिए पढ़ाई की गारांटी करती, मेरे पति जैसे श्रमिकों को रोजी रोटी से जोड़ती तो हमारा जीवन ज्यादा बेहतर होता।

गीता के घर से निकलते ही कुछ ही दूरी पर हमारी मुलाकात फूलमती और उनके पति राम कुमार से हुई। राम कुमार भी दूसरों के खेतों में मजदूरी करते हैं। फूलमती गुस्से से कहती हैं फ्री में अनाज मिलना कोई फायदा नहीं है, पैसे से अनाज मिले वो ठीक है लेकिन हम गरीबों को जो सहायता मिलनी चाहिए वो कहां मिल रही है। एक पक्का मकान तक ये सरकार नहीं दे पाई है….. जिंदगी यहां सबकी गरीबी में बीती जा रही है कौन यहां सुनवाई कर रहा है, कोई सरकार नहीं, न मोदी न योगी। वे कहती हैं रोजगार की हालत यह है कि यदि कमाने वाले को चार दिन रोजगार न मिले तो भूखे दिन गुजारने की नौबत आ जाती है।

फूलमती अपनी बात रखते हुए।

बीका मऊ खुर्द गांव से निकल कर हम किशुनपुर गांव पहुंचे। अभी कुछ ग्रामीणों से हमारी बातचीत चल ही रही थी कि तभी पप्पू कुमार वहां आ गए। उन्हें लगा शायद हम सरकार के जनहितैषी कामों का प्रचार करने आए हैं लेकिन जब उन्होंने हमारे आने का मकसद जाना तो खुलकर इस सरकार की जनविरोधी बातों पर हम से बात की। आख़िर आपको सरकार से क्यों इतनी शिकायत है, इस सवाल के जवाब में उन्होंने महंगाई, बेरोजगारी, प्रधानमन्त्री आवास में धांधली, राम मंदिर के नाम पर अरबों रुपए पानी की तरह बहाना, सरकार का किसान विरोधी होना, आवारा पशुओं का आतंक… इन सब विषयों पर सरकार की लानत-मलानत की।

पप्पू कहते हैं जब पांच साल पहले योगी सरकार आई थी, जितना उसने करने का वादा किया था तो लगा था कि सचमुच यह सरकार गरीब हितैषी है लेकिन इन पांच सालों में हालात और बदतर हो गए हैं। लाखों गरीबों का कोरोना ने रोजगार छीन लिया जिसकी भरपाई आज तक सरकार नहीं कर पाई, नौजवानों के पास भी नौकरी नहीं और जो हमारे पास थोड़ा बहुत खेती भी है तो आवारा पशुओं ने नाक में दम किया हुआ है, इन आवारा जानवरों की वजह से खड़ी फसलें बरबाद हो रही हैं।

उन्होंने बताया अभी तक उन्हें प्रधानमंत्री आवास के तहत एक पक्की छत तक नहीं मिल पाई है जबकि इसी योजना का ढिंढोरा यह सरकार पांच साल से पीट रही है। वे कहते हैं महीने में दो बार राशन देकर बस यह सरकार अपनी जिम्मेदारियों को पूरा समझ बैठी है। जबकि महंगाई आसमान छू चुकी है और राज्य में रोजगार का घोर अभाव है तो गरीब के पास पलायन के अलावा और क्या विकल्प बच जाता है।

किशुनपुर गांव में पप्पू (बीच में)।

किसुनपुर गांव से कुछ ही दूरी पर इंदौरा बाग़ गांव था जहां मालती देवी, सुखिया देवी, दया, सत्यनारायण आदि ग्रामीणों से मुलाक़ात हुई। मालती देवी के घर पहुंचने पर पता चला कि रसोई का कुछ सामान लेने के लिए वे दुकान गई हैं। हमने वहीं बैठकर उनका इंतज़ार करना उचित समझा। मालती के घर में ही हमारी मुलाकात सुखिया देवी से हुई। सुखिया ने बताया कि वे विधवा हैं और कुछ साल पहले उनके जवान बेटे की भी मौत हो गई है जबकि पति के बाद वही कमाने वाला था।

सुखिया कहती हैं बेहद गरीब हूं किसी तरह बेटी को पढ़ा रही हूं, विधवा पेंशन पाने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगा दिया लेकिन कुछ नहीं हुआ। प्रधानमंत्री आवास योजना में पक्का घर भी नहीं मिल पाया और मायूस होकर कहती हैं और अब लगता भी नहीं कि मिल पाएगा….. अभी सुखिया से बात हो ही रही थी कि मालती भी आ गईं, हाथ में एक लीटर सरसों का तेल, हल्दी का पैकेट, चीनी और बच्चों के लिए दो छोटे बिस्कुट के पैकेट लेकर। बात की शुरुआत में ही मालती कहती हैं हालात क्या बदले अब देखो जो थोड़ा बहुत जरूरत का सामान लेकर आईं हूं।

इंदौरा में मालती देवी अपनी रसोईं के पास।

उसको खरीदने के लिए भी पड़ोस से कुछ पैसा कर्ज लेना पड़ा …. गरीब इंसान खाए क्या और कमाए क्या जो कमाते हैं आधे से ज्यादा तो कर्ज चुकाने में ही चला जाता है। यह पूछने पर की क्या राशन बढ़िया से मिल रहा है तो मालती कहती हैं राशन तो मिल जाता है लेकिन अब आप ही बताओ क्या गरीब इंसान गेहूं कच्चा ही चाबाएगा, क्या उसकी पिसाई नहीं लगती। तो सरकार को क्या करना चाहिए राशन तो दो बार फ्री का दे ही रही है, इस सवाल के जवाब में मालती कहती हैं सरकार हम गरीबों को रोजगार दे।

गरीब इंसान हर तरह से मारा जा रहा है। उनके नाम पर आईं योजनाओं का पैसा अधिकारी लोग खा जा रहे हैं लेकिन कहीं कोई सुनवाई नहीं तो फिर कैसा सुशासन? इंदौराबाग के बाद चांदपुर और डेरवां जाना हुआ और वहां भी ग्रामीणों से बात करने पर पाया कि उनके बीच रोजगार की घोर कमी है, प्रधानमन्त्री आवास के तहत अभी तक कई गरीब परिवारों को पक्की छत तक नहीं मिल पाई है, इन तमाम गांवों के कई श्रमिक रोजगार के लिए या तो दूसरे प्रदेश चले गए या जाने की तैयारी में हैं।

प्रधानमंत्री योजना में नाम होने के बावजूद नहीं बना मकान।

इन तमाम गांवों में घूमते हुए शाम हो चली थी अब हमने लौटना बेहतर समझा लेकिन रिपोर्टिंग का जो पूरा निचोड़ सामने आया वह यह था कि इन पांच सालों में जितना दावा किया गया उतना धरातल पर देखने को नहीं मिला। हालांकि योगी साहब लोगों में खुशहाली का दावा जरूर करते हैं। इस पर कमला गौतम कहती हैं गरीबों के झोले में फ्री का राशन डालकर, किसानों, श्रमिकों, कारीगरों के खातों में पांच सौ, हजार रुपए डालकर क्या जीवन की सारी जरूरतें पूरी हो सकती हैं।

वे कहती हैं राशन के झोले में योगी, मोदी की तस्वीर बनी हुई है अभी तो आचार संहिता है इसलिए चेहरे छुपा दिए गए हैं लेकिन नियम यही चला आ रहा है कि योगी, मोदी वाला थैला लेकर आने पर ही राशन मिलेगा,  यह तो हद है। उन्होंने बताया कि बीच में तो ऐसे हालात पैदा हो गए थे कि आचार संहिता लगने के कारण कई दिनों तक राशन वितरण रोक दिया गया क्योंकि थैलों पर मुख्यमंत्री, प्रधानमन्त्री का फोटो लगा था। उस दौरान कई लोगों के घरों में राशन खत्म हो चुका था और उन्हें उधारी पर अनाज लेना पड़ा।

कमला बताती हैं कि वे अक्सर गांवों का दौरा करती ही रहती हैं हालात यह हैं कि करोना के कारण गरीब मजदूरों को जो काम धंधा चौपट हुआ आज तक परिस्थितियां संभल नहीं पाई हैं, दो साल से गरीबों के बच्चों की पढ़ाई चौपट है नियमित स्कूल नहीं खुल पा रहे। वैसे ही सरकारी स्कूलों में पढ़ाई के हालात बदतर थे और अब तो और बुरे हो चले हैं। जिसका नतीजा यह हो रहा है कि शिक्षा के अभाव में मजदूर का बच्चा भी पेट भरने के लिए मजदूरी करने पर मजबूर हो गया है। रोजगार के लिए पलायन जारी है, सरकारी योजनाओं का लाभ भी तो हर गरीब तक ईमानदारी से नहीं पहुंच रहा है।

इस बातचीत से अपने आप यह नतीजा निकालता है कि बेहद गरीबी में दिन गुजार रहे इन परिवारों के लिए पिछले पांच सालों में कुछ नहीं बदला, जैसा कि मौजूदा सरकार द्वारा बार-बार गरीब जनता के लिए बहुत कुछ होने का दावा किया जाता रहा है। खेती विहीन इन परिवारों के पास ठोस रूप से कमाई का साधन भी नहीं। ये दूसरों के खेत में काम करके या छोटी मोटी मजदूरी करके, पान बीड़ी या चाय की छोटी गुमटी चलाकर किसी तरह जीवनयापन कर रहे हैं। पिछले दो साल से करोना के कारण रहा सहा काम धंधा भी चौपट हो गया।

(बक्शी का तालाब, लखनऊ से स्वतंत्र पत्रकार सरोजिनी बिष्ट की रिपोर्ट।)

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