Friday, April 19, 2024

चली गयी पहाड़ की आवाज

प्रसिद्ध पर्यावरण कार्यकर्ता सुंदरलाल बहुगुणा नहीं रहे

सुंदरलाल बहुगुणा उत्तराखंड में रह रहे थे

उन्होंने स्वतंत्रता संग्राम आंदोलन में हिस्सा लिया और बाद में गांधीजी के सर्वोदय आंदोलन का वह हिस्सा रहे

जब चंडी प्रसाद भट्ट और सुंदरलाल बहुगुणा ने देखा की पहाड़ों में सरकार ठेकेदारों की मार्फत जंगलों को काट कर वहां पर औद्योगिक इकाइयां लगाना चाहती है

तो सुंदरलाल बहुगुणा ने अपने इलाके में महिलाओं और ग्रामीणों को प्रेरित किया कि वे पेड़ को कटने से रोकने के लिए उसके चारों तरफ चिपक कर खड़े हो जाएं ताकि पेड़ काटने वाले कुल्हाड़ी न चला सके

इस आंदोलन को चिपको आंदोलन का नाम दिया गया

क्योंकि ग्रामीण पेड़ बचाने के लिए पेड़ से चिपक जाते थे

बाद में जब टिहरी शहर को बांध में डुबाया गया गया उसे बचाने की लड़ाई में सुंदरलाल बहुगुणा शामिल रहे तथा देश भर में चलने वाले पर्यावरण आंदोलनों के वे मित्र और मार्गदर्शक रहते थे

सुंदरलाल बहुगुणा ने एक बार घोषणा की कि धान लगाने में बहुत पानी खर्च होता है तथा जिसके लिए जमीन के नीचे के पानी को निकालने से भूगर्भ का जलस्तर गिर रहा है इसलिए मैं चावल नहीं खाऊंगा

उसके बाद बहुगुणा जी ने जीवन भर चावल नहीं खाया

अपनी धुन के पक्के समाज और आदर्शों के लिए अपना पूरा जीवन लगा देने वाले ऐसे दृढ़ निश्चय गांधीवादी कार्यकर्ता सुंदरलाल बहुगुणा को यह समाज हमेशा याद रखेगा

सुंदरलाल बहुगुणा मेरे पिता श्री प्रकाश भाई के मित्र तथा सर्वोदय आंदोलन के साथी थे

उत्तर प्रदेश में मेरे पिता तब मंत्री पद पर थे लखनऊ में एक बार उनके बंगले पर सुंदरलाल बहुगुणा का आगमन हुआ मैं बाहर ही खेल रहा था

मेरी उम्र उस समय 10 साल की रही होगी

मैं अखबारों में उनका फोटो देख चुका था उन्हें देखते ही पहचान गया मैंने कहा आप सुंदरलाल बहुगुणा हैं ना उन्होंने कहा तुम प्रकाश भाई के बेटे हो ना और मुझे अपने सीने से लगा लिया

तब से उनके साथ जो मेरा प्रेम था वह लगातार बढ़ता ही गया

मैं और मेरी पत्नी बस्तर में काम करते समय जब कभी दिल्ली आते थे और राजघाट पर ठहरते थे तो अक्सर सुंदरलाल बहुगुणा जी से मुलाकात होती थी मेरी बेटी को उनकी गोद में खेलने का सौभाग्य मिला

सुंदरलाल बहुगुणा के पुत्र राजीव नयन बहुगुणा मेरे मित्र हैं आज एक पारिवारिक सदस्य चला गया ऐसा महसूस हो रहा है

(हिमांशु कुमार गांधीवादी कार्यकर्ता हैं और आजकल गोवा में रह रहे हैं।)

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