Saturday, April 20, 2024

विनोद दुआ मामले में जांच रिपोर्ट नहीं सौंपने पर सुप्रीम कोर्ट ने लगायी हिमाचल पुलिस को फटकार

उच्चतम न्यायालय ने पत्रकार विनोद दुआ के खिलाफ राजद्रोह मामले में जांच रिपोर्ट नहीं सौंपने के कारण मंगलवार को हिमाचल प्रदेश पुलिस को फटकार लगाई।कोर्ट ने पुलिस को निर्देश दिया है कि सीलबंद लिफाफे में जांच रिपोर्ट जमा कराए। अब इस मामले की आखिरी सुनवाई अगले हफ्ते होगी। पुलिस को 13 जुलाई तक कोर्ट में रिपोर्ट सौंपनी होगी।

पीठ ने उस प्रश्नावली पर ध्यान दिया, जिसका जवाब दुआ ने अधिकारियों को दिया था।पीठ ने कहा है कि दुआ को पुलिस द्वारा भेजी गई पूरक प्रश्नावली का जवाब देने की आवश्यकता नहीं है। पीठ ने मौखिक रूप से कहा कि जांच रिपोर्ट सौंपे जाने के बाद यदि कोर्ट को पत्रकार की दलीलें सही लगती हैं तो न्यायालय सीधे एफआईआर खारिज कर देगी। उच्चतम न्यायालय ने के जस्टिस यूयू ललित, मोहन एम शांतानागौदर और विनीत सरन की पीठ मामले की सुनवाई कर रही थी। विनोद दुआ को 14 जून को दी गई गिरफ्तारी से अंतरिम सुरक्षा सुनवाई की अगली तारीख तक बढ़ा दी गई है।

पत्रकार विनोद दुआ ने अपने खिलाफ हिमाचल प्रदेश के शिमला में दर्ज की गई एफआईआर को खारिज करने के लिए कोर्ट में याचिका दायर कर अपने खिलाफ कोई भी दंडनीय कार्रवाई करने से रोक लगाने की मांग की है।

दुआ की ओर से पेश हुए वरिष्ठ वकील विकास सिंह ने कहा कि पुलिस ने पूछताछ के नाम पर मुवक्किल का उत्पीड़न किया है। उन्होंने दावा किया कि पुलिस द्वारा दुआ से एक ही सवाल को लेकर बार-बार पूछताछ की गई और पुलिस ने शिकायत के विवरणों को भी साझा करने से मना कर दिया। विकास सिंह ने तर्क दिया और कहा कि उनके मुवक्किल को बोलने की आज़ादी के अपने संवैधानिक अधिकार का प्रयोग करने के लिए परेशान किया जा रहा है। मुझे जांच अधिकारियों को जवाब देने की ज़रूरत नहीं है कि मैंने सरकार की आलोचना क्यों की है।

विकास सिंह ने कहा कि 45 वर्षों से मैं जिम्मेदार पत्रकारिता में हूं। मैं संवैधानिक रूप से संरक्षित हूं। मैं उन्हें कोई जवाब देने के लिए बाध्य नहीं हूं। उन्होंने मेरे खिलाफ आपदा प्रबंधन अधिनियम का भी उपयोग किया है। जिस तरह से मुझसे पूछताछ की जा रही है और जिस तरह के सवाल मुझसे पूछे जा रहे हैं, वो एकमुश्त उत्पीड़न के समान है। विकास सिंह ने कहा कि उनके पास बोलने एवं अभिव्यक्ति की आजादी के तहत पूरा अधिकार है कि वे सरकार की आलोचना कर सकें। सिंह ने कहा कि पुलिस द्वारा की गई कार्रवाई उनके इस अधिकार को प्रभावित करती है।

विकास सिंह ने एंकर अमीश देवगन द्वारा दायर याचिका पर उच्चतम न्यायालय  के हालिया आदेश का हवाला दिया, जिसके तहत कोर्ट ने उनकी गिरफ्तारी पर अंतरिम रोक लगाई है। उन्होंने ऑप इंडिया की नूपुर शर्मा और तीन अन्य के खिलाफ दायर एफआईआर पर रोक लगाने वाले कोर्ट के आदेश का भी हवाला दिया। हालांकि सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि इन मामलों के तथ्य अलग-अलग हैं। इस पर सिंह ने कहा कि ये सभी मामले संविधान के अनुच्छेद 19(1)(ए) के दायरे में हैं और अभिव्यक्ति एवं बोलने की आजादी से संबंधित हैं।

कोर्ट ने सवाल उठाया कि आखिर पुलिस मामले में देरी क्यों कर रही है। यह (प्रोग्राम) 30 मार्च को प्रसारित हुआ था और शिकायत 23 अप्रैल को दर्ज की गई है। इसमें कुल 24 दिनों की देरी थी।आप कहते हैं कि 11 मई को सीआरपीसी की धारा 91 के तहत क्राइम ब्रांच से आपको नोटिस मिला और फिर आपने 11 जून को न्यूज मीडिया हाउस को पत्र लिखा। 11 मई से 11 जून के बीच क्या हुआ, यह जांच को लेकर आपकी गंभीरता को दर्शाता है। इसके बाद कोर्ट ने मामले की आखिरी सुनवाई की तारीख अगले हफ्ते के लिए तय की और हिमाचल पुलिस से कहा कि वे 13 जुलाई तक सीलबंद लिफाफे में जांच रिपोर्ट दें।

भाजपा नेता अजय श्याम द्वारा लगाए गए राजद्रोह के आरोपों पर शिमला पुलिस ने विनोद दुआ को समन जारी किया था। भाजपा नेता ने शिकायत दर्ज कराकर दुआ पर आरोप लगाया है कि उन्होंने ‘द विनोद दुआ शो’ के माध्यम से ‘फर्जी सूचनाएं’ फैलाई हैं और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ अपमानजनक शब्दों का इस्तेमाल किया है।

दुआ को कई राज्यों में एफआईआर का सामना करना पड़ रहा है, जिनमें महाराष्ट्र और पश्चिम बंगाल भी शामिल हैं। हिमाचल प्रदेश के शिमला में दुआ के खिलाफ एक प्राथमिकी दर्ज की गई, जिसके तहत उन्हें स्थानीय भारतीय जनता पार्टी के नेता अजय श्याम द्वारा लगाए गए राजद्रोह के आरोप में शिमला पुलिस द्वारा बुलाया गया था। इससे पहले कोर्ट ने वरिष्ठ पत्रकार विनोद दुआ के खिलाफ विभिन्न राज्यों में दर्ज एफआईआर को स्थगित करने से मना कर दिया था। हालांकि कोर्ट ने अगली सुनवाई यानी कि छह जुलाई तक पत्रकार की गिरफ्तारी पर रोक लगा दी थी। कोर्ट ने मंगलवार को फिर कहा कि यह रोक अगली सुनवाई तक जारी रहेगी।

पीठ ने कहा कि प्रत्येक मामले में राहत उसके तथ्यों पर निर्भर है। इस बिंदु पर, पीठ ने कहा कि जांच को एक सुव्यवस्थित तरीके से आगे बढ़ाना चाहिए और दुआ को ” फायर ब्रांड” सवालों के जवाब देने के लिए नहीं कहा जा सकता है। सॉलिसिटर जनरल ने बेंच से वाक्यांश “फायर ब्रांड” हटाने का अनुरोध किया, जिसमें कहा गया कि इसके प्रतिकूल परिणाम होंगे। पीठ ने अभिव्यक्ति को वापस लेते हुए इस पर सहमति जताई। पीठ ने निर्देश दिया कि जांच के सभी अपेक्षित पहलुओं का विवरण देने वाली स्टेटस रिपोर्ट एक सप्ताह के भीतर दाखिल की जाए और कहा कि इसे “सील कवर” में दिया जाए।

पिछले 14 जून को, बेंच द्वारा निम्नलिखित निर्देश पारित किए गए थे कि (क) आगे के आदेशों के लंबित रहते हुए, याचिकाकर्ता को वर्तमान अपराध के संबंध में गिरफ्तार नहीं किया जाएगा; (ख) हालांकि, याचिकाकर्ता द्वारा अपने संचार में दिनांक 12 जून, 20 में दिए गए प्रस्ताव के संदर्भ में, वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग या ऑनलाइन मोड के माध्यम से पूर्ण सहयोग का विस्तार किया जाएगा; (ग) हिमाचल प्रदेश पुलिस 24 घंटे की पूर्व सूचना देने और कोविद -19 महामारी के दौरान निर्धारित सामाजिक दूरी के मानदंडों का अनुपालन करने के बाद याचिकाकर्ता से पूछताछ करने सहित उनके निवास पर जांच करने की हकदार होगी।

(वरिष्ठ पत्रकार जेपी सिंह की रिपोर्ट।)

जनचौक से जुड़े

0 0 votes
Article Rating
Subscribe
Notify of
guest
0 Comments
Inline Feedbacks
View all comments

Latest Updates

Latest

लोकतंत्र का संकट राज्य व्यवस्था और लोकतंत्र का मर्दवादी रुझान

आम चुनावों की शुरुआत हो चुकी है, और सुप्रीम कोर्ट में मतगणना से सम्बंधित विधियों की सुनवाई जारी है, जबकि 'परिवारवाद' राजनीतिक चर्चाओं में छाया हुआ है। परिवार और समाज में महिलाओं की स्थिति, व्यवस्था और लोकतंत्र पर पितृसत्ता के प्रभाव, और देश में मदर्दवादी रुझानों की समीक्षा की गई है। लेखक का आह्वान है कि सभ्यता का सही मूल्यांकन करने के लिए संवेदनशीलता से समस्याओं को हल करना जरूरी है।

Related Articles

लोकतंत्र का संकट राज्य व्यवस्था और लोकतंत्र का मर्दवादी रुझान

आम चुनावों की शुरुआत हो चुकी है, और सुप्रीम कोर्ट में मतगणना से सम्बंधित विधियों की सुनवाई जारी है, जबकि 'परिवारवाद' राजनीतिक चर्चाओं में छाया हुआ है। परिवार और समाज में महिलाओं की स्थिति, व्यवस्था और लोकतंत्र पर पितृसत्ता के प्रभाव, और देश में मदर्दवादी रुझानों की समीक्षा की गई है। लेखक का आह्वान है कि सभ्यता का सही मूल्यांकन करने के लिए संवेदनशीलता से समस्याओं को हल करना जरूरी है।