Wednesday, April 24, 2024

साप्ताहिकी : ‘न्यू इंडिया’ में सुप्रीम कोर्ट

‘न्यू इंडिया’ में मीडिया के अधिकतर हिस्से ने नए हुक्मरानों के सामने पहले ही घुटने टेक दिए हैं, जिसके साक्ष्य 16 वीं लोक सभा चुनाव के बाद 16 मई 2014 को केंद्र में पहली बार श्री नरेंद्र दामोदरदास मोदी की सरकार के गठन के उपरान्त लगातार मिलते रहे हैं। यूं तो मीडिया, आधुनिक राजसत्ता का संवैधानिक अंग नहीं है, फिर भी उसे अर्से से भारत ही नहीं वैश्विक फलक पर भी लोकतंत्र का ‘ चौथा खम्भा’ माना है। 

दरअसल, मीडिया अब कम से कम ‘इंडिया दैट इज भारत’ में राजसत्ता का ही ‘एक्सटेंशन’ बन चुका है हम इसके बारे में अगले अंकों में विस्तार से चर्चा करेंगे।फिलहाल हम लोकतंत्र के संविधान सम्मत तीन खम्भे-विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका के कामकाज पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं। इस अंक में हम, अर्से से पतनोन्मुख न्यायपालिका के उभरते नए परिदृश्य में कुछ नए-पुराने सन्दर्भ भी रेखांकित करेंगे।

28 अक्टूबर 1998 को सुप्रीम कोर्ट ने एक निर्णय लेकर ‘कोलेजियम सिस्टम’ अपनाया था। फलस्वरूप, उच्च न्यायपालिका के न्यायाधीशों की नियुक्ति की प्रक्रिया सरकार के शिकंजे से निकाल कर न्यायपालिका को सुपुर्द कर दी गई। न्यायाधीशों की नियुक्ति में सरकार का हस्तक्षेप बिल्कुल ख़त्म तो नहीं हुआ, पर कुछ कम जरूर हुआ। न्यायपालिका की स्वतंत्रता बढ़ी लगी। 

कुछ विधि विशेषज्ञों की राय में यह भारत की न्यायपालिका की स्वतन्त्रता की शक्ति का चर्मोत्कर्ष था। लेकिन पुराने सन्दर्भ में बात करें तो पहला चरमोत्कर्ष 12 जून 1975 को नज़र आया था जब इलाहाबाद हाईकोर्ट के जस्टिस जगमोहनलाल सिन्हा ने भारत में तत्कालीन सबसे ताकतवर महिला, इंदिरा गांधी को उत्तर प्रदेश की रायबरेली लोक सभा सीट से उनका  निर्वाचन आयोग द्वारा उद्घोषित निर्वाचन उस चुनाव में उनके प्रतिद्वंद्वी एवं यायावरी समाजवादी नेता (अब दिवंगत) राजनारायण की याचिका पर निरस्त कर दिया था। यह एक तरह से इंदिरा गांधी को प्रधानमंत्री पद से ‘बर्खास्त’ करना था।

लेकिन 13 अप्रैल 2015 को मोदी सरकार ने ‘नेशनल ज्यूडिसियल अपॉइंटमेंट कमीशन’ अधिनियम (एनजीएसी) पारित कर दिया, जिसका अन्तर्निहित उद्देश्य न्यायाधीशों की नियुक्ति की न्यायपालिका के अंतर्गत ही बनी ‘कोलेजियम’ व्यवस्था को नष्ट करना और ऐसी नियुक्ति में सरकार के हस्तक्षेप को विधिक मुलम्मा पहनाना था। ये न्यायपालिका की स्वतंत्रता पर मोदी सरकार का पहला स्पष्ट हमला था, जिसको लेकर विधायिका लगभग मौन रही। भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने बाद में  बिहार विधान सभा चुनाव-2017 के मौके पर नई दिल्ली के एक पंचतारा होटल में एबीपी न्यूज चैनल के ‘मीडिया इवेंट’ में मोदी सरकार की उपलब्धियों का बखान कर इतराने के स्वर में कहा था कि एनजीएसी अधिनियम संसद में सर्वसम्मति से पारित हुआ!

बहरहाल,16 अक्टूबर 2015 को सुप्रीम कोर्ट ने एक के विरुद्ध चार के बहुमत से एनजीएसी कानून को असंवैधानिक करार देकर निरस्त कर दिया। इस तरह मोदी सरकार के साथ इस पहले प्रमुख टकराव में न्यायपालिका की जीत हुई। तब से ही न्यायपालिका, मोदी सरकार के प्रमुख निशाने पर आ गई। मोदी सरकार ने जजों की नियुक्तियों को मंजूरी देने में जानबूझकर देर लगाना शुरू कर दिया। 

भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश, जस्टिस टीएस ठाकुर ने सार्वजनिक मंचों से कई बार इस बात के लिए नरेंद्र मोदी सरकार की मुखालफत की थी। चूंकि मोदी सरकार खुल कर न्यायपालिका में हस्तक्षेप नहीं कर सकती थी इसलिए उसने ‘चोर दरवाजे’ से हस्तक्षेप करना शुरू किया। न्यायाधीश जस्टिस दीपक मिश्रा को उनसे वरीयता क्रम में आगे दो न्यायाधीश को बायपास कर भारत का मुख्य न्यायाधीश बना दिया। 

उसके बाद 11 जनवरी 2018 को न्यायपालिका की हालत इस कदर खराब हो गई कि सुप्रीम कोर्ट के चार न्यायाधीशों को प्रेस कॉन्फ्रेंस करनी पड़ी। भारत ही नहीं विश्व के न्यायिक इतिहास में पहली बार हुआ कि सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीशों को संयुक्त रूप से प्रेस कॉन्फ्रेंस सम्बोधित करनी पड़ गई। उन्होंने कहा: “आल इज नॉट ओके “।  

मोदी सरकार के पास हर मर्ज़ की दवा है। पूर्व मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई पर एक लड़की के साथ यौन दुर्व्यवहार की औपचारिक शिकायत सामने आई तो जस्टिस गोगोई ने न्याय का स्वांग रच खुद उसकी जांच की, खुद को आरोप मुक्त कर डाला। अंततः लड़की को अपने कदम पीछे हटाने के लिए बाध्य कर दिया गया। संदेह है कि मोदी सरकार और जस्टिस गोगोई के बीच कुछ ऐसा था कि जस्टिस गोगोई एक-एक कर रफायल समेत सभी मामले में मोदी सरकार की हाँ में हाँ मिलाते चले गए। 

इस वक़्त सीएए-एनआरसी-एनपीआर के खिलाफ देश भर में जबरदस्त प्रदर्शन हो रहे हैं। संविधान-प्रदत्त मूलभूत नागरिक अधिकारों का इतना स्पष्ट हनन कभी नहीं देखा गया। देश में नागरिक अधिकारों का संरक्षण करने की जिम्मेदारी न्यायपालिका की ही है। संसद के एक कानून से लोग सहमत भी हो सकते हैं और असहमत भी हो सकते हैं। लेकिन सरकार ने एक ही विकल्प छोड़ा है-सिर्फ सहमत होने का अन्यथा जेल भेज देने की साफ चेतावनी है। 

एक महिला दिल्ली में अमित शाह के रोड शो के दौरान ‘ नो टू सीएए ‘ का पोस्टर लेकर अपने ही घर की बालकनी में जब खड़ी हो गई तो पुलिस उसे अपनी हिरासत में ले गई। सुप्रीम कोर्ट खामोश रहा। जामिया, जेएनयू और अन्य शिक्षा केंद्रों में छात्रों पर पुलिस द्वारा या उसकी मिलीभगत से गुंडों द्वारा हिंसक हमले किये गए,गोलियां मारी गईं, आसूं गैस और वाटर कैनन का अनगिनत बार बेज़ा इस्तेमाल किया गया।लेकिन सुप्रीम कोर्ट लगभग मृतप्राय संस्था की भांति ‘शवासन ‘ की योग मुद्रा में मौन धारे रही!

9 जनवरी 2020 को सीएए के खिलाफ दाखिल याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट में पहली सुनवाई हुई। मौजूदा मुख्य न्यायाधीश बोबडे ने फरमाया: ” देश मुश्किल वक्त से गुजर रहा, आप याचिका नहीं शांति बहाली पर ध्यान दें। जब तक प्रदर्शन नहीं रुकते, हिंसा नहीं रुकती, किसी भी याचिका पर सुनवाई नहीं होगी”। चीफ जस्टिस बोबडे यह भी बोले: ” हम कैसे डिसाइड कर सकते हैं कि संसद द्वारा बनाया कानून संवैधानिक है कि नहीं ?”

लोगों ने सवाल खड़े किये: “क्या शांतिबहाली का काम भी पीड़ितों का है? सरकार की कोई जिम्मेदारी नहीं है? राजकीय हिंसा को भी याचिकाकर्ता ही रोकेंगे? और जब तक हिंसा नहीं रुकती, न्याय लेने का अधिकार स्थगित रहेगा, ये कैसा न्याय है? अगर न्यायपालिका सुनवाई नहीं करेगी तो कौन करेगा? लोग कहने लगे हैं कि न्यायपालिका कोई बहुमंजिला इमारत नहीं है, जिसकी ईंट, पत्थर, दरवाजे गिरते हुए दिखेंगे। न्यायपालिका एक तरह से जीवंत संविधान है, जो मोदी जी के न्यू इंडिया में नित-प्रतिदिन आम नागरिकों के सामने दम तोड़ रहा है। 

( सी पी नाम से ज्यादा ज्ञात पत्रकार- लेखक-चिंतक चंद्र प्रकाश झा फिलवक्त अपने गांव के आधार केंद्र से ही विभिन्न समाचारपत्र पत्रिकाओं के लिए और सोशल मीडिया पर नियमित रूप से लिखते हैं। वह हाल में ‘न्यू इंडिया में चुनाव’, ‘आज़ादी के मायने’, ‘सुमन के किस्से’ और ‘न्यू इंडिया में मंदी’ समेत कई ईबुक लिख चुके हैं। सीपी झा पहले भी जनचौक पर लिखते रहे हैं। बीच में कुछ दिनों के अंतराल के बाद एक बार फिर आप उन्हें साप्ताहिकी के इस स्तंभ में पढ़ सकेंगे। उनसे <[email protected]> पर सम्पर्क किया जा सकता है।)

जनचौक से जुड़े

0 0 votes
Article Rating
Subscribe
Notify of
guest
0 Comments
Inline Feedbacks
View all comments

Latest Updates

Latest

Related Articles