Friday, March 29, 2024

राहुल की लोकप्रियता के रास्ते में मोदी की माताजी का आगमन!

किसी को भी किसी भी तरह की गाली देना निन्दनीय है। बीबीसी पर जिस तरह भारत के प्रधानमंत्री की माताजी के लिए अपशब्दों का इस्तेमाल हुआ, उसका समर्थन किसी भी कीमत पर नहीं किया जा सकता, लेकिन ठहरिए… बीबीसी पर यह अचानक नहीं हुआ है। इसके पीछे सोची समझी रणनीति काम कर रही है। इसकी गहराई में जाएंगे तो आप #मोदी के रणनीतिकारों के दिमाग की दाद दिए बिना नहीं रह सकेंगे। आइए उस गहराई को कुछ तथ्यों के जरिए नापने की कोशिश करते हैं।

इन दिनों #सोशल_मीडिया पर राहुल गांधी सभी के डॉर्लिंग ब्वॉय, ब्ल्यू आईड ब्वॉय और न जाने क्या क्या बने हुए हैं। देसी भाषा में कहें तो सभी के चहेते बने हुए हैं। इसी बीच #राहुल_गांधी ने 1975 से 1977 तक भारत में लगे #आपातकाल (इमरजेंसी) की भी आलोचना की। इसे भी चारों तरफ जबरदस्त सराहना मिली। पहली बार इंदिरा गांधी के पोते ने इमरजेंसी को गलत ठहराकर अपनी दादी को ही कटघरे में खड़ा कर दिया।

राहुल गांधी की तारीफ के इस चरमोत्कर्ष काल को लेकर भाजपा भी अचंभित है। कांग्रेसियों की नजर में नए-नए जयचंद बने अवसरवादी नेता गुलाम नबी आजाद, कपिल सिब्बल और आनंद शर्मा भी इस हवा को रोकने में नाकाम हो रहे हैं। उधर, सोशल मीडिया पर मोदी का ग्राफ तेजी से नीचे जा रहा है। यह ग्राफ इतना नीचे चला गया है कि मोदी के प्रचार तंत्र को इसकी चिन्ता सताने लगी। जब ऐसे हालात बनते हैं तो इमोशनल कार्ड खेलकर मामले को बराबरी पर लाने की कोशिश की जाती है। …और तभी यह घटना घटती है जब बीबीसी रेडियो के कार्यक्रम में मोदी की माता को अपशब्द बोले जाते हैं।

#बीबीसी रेडियो के उस शो में एक कॉलर फोन पर पहले अंग्रेजी में बोलता है, फिर ठीकठाक #हिन्दी में मोदी की मां के लिए अपशब्द कहता है। मैंने उस रिकॉर्डिंग को कम से कम दस बार सुना। उस शख्स का अंग्रेजी और हिन्दी का उच्चारण बिल्कुल शुद्ध है। यानी यह स्पष्ट है कि कॉल करने वाला भारतीय मूल का कोई शख्स है। उस कॉलर ने खासतौर पर मोदी की मां को अपशब्द कहने के लिए फोन किया। जिन लोगों ने बीबीसी को कॉल कराई और जिसने कॉल की, उसे पता था कि इस पर विवाद होगा।

यह कॉल विवाद खड़ा करने और मोदी के लिए हमदर्दी उभारने के लिए ही की गई थी। इसके पीछे कुछ लोग नहीं रहे होंगे, इसे न मानना मूर्खता होगी। हालांकि कुछ लोगों ने पूरी निर्लज्जता से कॉलर को #खालिस्तानी बता डाला, वह इस बात की पुष्टि करता है कि एक तीर से कई शिकार करने की कोशिश की गई है। यह अब छिपी बात नहीं है कि विदेशों में रहने वाले सिखों की जायज हमदर्दी भारत में चल रहे सबसे बड़े किसान आंदोलन के साथ है। कॉलर को खालिस्तानी कहकर संबोधित करने के पीछे यही रणनीति है कि किसान आंदोलन को भी इससे जोड़कर बदनाम किया जा सके।

बीबीसी रेडियो के इस शो की क्लिपिंग उस आडियो के साथ बुधवार को जैसे ही बाहर आई, सोशल मीडिया पर मानो #भाजपा_आईटी_सेल इंतजार कर रहा था। उसने मोर्चा संभाल लिया और बीबीसी को बुरा-भला कहते हुए मोदी के वो फोटो डाले गए जिसमें मोदी कहीं अपनी मां को व्हील चेयर पर घुमा रहे हैं, कहीं उनके साथ खाना खा रहे हैं, कहीं बैठे हुए हैं।

इन सभी तस्वीरों के साथ बस एक ही मांग थी कि भारत में बीबीसी पर पाबंदी लगाई जाए। सोशल मीडिया पर भाजपा आईटी सेल ने  मोदी और उनकी मां के साथ इतनी हमदर्दी जताई कि वो टॉप ट्रेंड में आ गया। मंगलवार को जिस सोशल मीडिया पर ‘मोदी नौकरी दो’ ट्रेंड कर रहा था, बुधवार को मोदी की हमदर्दी की लहर चल पड़ी। इस तरह राहुल के पक्ष में सोशल मीडिया पर जो ट्रेंड बना हुआ था, उसमें फौरन विराम लग गया।

ऐसे विवाद सिर्फ सोशल मीडिया पर ध्यान बंटाने के लिए खड़े किए जाते हैं, जिसमें भाजपा आईटी सेल को महारत हासिल है। ऐसी कारतूतें वह अक्सर करता है।  

आप लोग अमेरिका में #हाउडी_मोदी प्रोग्राम नहीं भूले होंगे। आप लोग इंग्लैंड में मोदी के ओवरसीज फ्रेंड्स का कार्यक्रम नहीं भूले होंगे। कौन लोग थे जिन्होंने #अमेरिका और #इंग्लैंड में मोदी के भव्य कार्यक्रम कराए। इसके लिए विदेशी टीवी चैनलों पर स्पेस खरीदकर उन कार्यक्रमों का विज्ञापन देकर प्रचार कराया गया। अमेरिका और इंग्लैंड में हुए ऐसे कार्यक्रमों में मोदी से प्रायोजित सवाल कराने तक की व्यवस्था और उसमें हुई हास्यास्पद गलतियों के हम लोग गवाह हैं।

यानी विदेशों में इतने मोदी प्रेमी हैं कि किसी से भी फोन कराकर ऐसा कृत्रिम विवाद खड़ा कराया जा सकता है। अमेरिका और इंग्लैंड का लोकतंत्र और अभिव्यक्ति की आजादी का सिलसिला कम से कम भारत से बहुत बेहतर है। इसलिए वहां उस कॉलर के खिलाफ कोई एफआईआर दर्ज नहीं होगी। याद कीजिए अंतरराष्ट्रीय पर्यावरणवादी #ग्रेटा_थनबर्ग के खिलाफ भारत में एफआईआर दर्ज करने में कोई हीलाहवाली नहीं की गई थी।

इन मांओं को भाजपाई भूल गए
बीबीसी रेडियो पर हुई इस विवादास्पद घटना पर भारत में राष्ट्रवादी जमात का खून खूब खौल रहा है। हमें उस पर ऐतराज नहीं है, लेकिन याद कीजिए #शाहीनबाग की बिल्कीस दादी के लिए भाजपा-आरएसएस के नेताओं और कार्यकर्ताओं ने किन शब्दों का इस्तेमाल किया था। …याद कीजिए शाहीनबाग आंदोलन से जुड़ी सफूरा जरगर को जब गिरफ्तार किया गया और उनके प्रेग्नेंट होने का पता चला तो भाजपा-आरएसएस के नेताओं और कार्यकर्ताओं ने सफूरा के लिए किन शब्दों का चयन किया था। मजबूर होकर सफूरा के पति को सामने आना पड़ा। #बॉलिवुड एक्ट्रेस #करीना_कपूर_खान और उनके बेटे #तैमूर को लेकर क्या कुछ प्रचारित नहीं किया गया।

#दिल्ली_जनसंहार 2020 (#DelhiPogrom2020) में 70 साल की अकबरी बेगम को जिन्दा जलाकर मार डाला गया, उस मां के लिए आजतक किसी भी राजनीतिक दल ने उस परिवार से माफी नहीं मांगी। #दिल्ली_दंगों से संदर्भ रखने वाले दस्तावेजों में आज भी अकबरी बेगम के चेहरे पर उभरी झुर्रियों वाली तस्वीर मेरे सामने आती है तो मैं सिहर जाता हूं। उस मां को जिन्दा जलाते समय दिल्ली दंगे के आतंकवादियों ने पलभर भी नहीं सोचा कि वो क्या करने जा रहे हैं।

ऐसे दोहरे मापदंड रखने वाली पार्टी भाजपा-आरएसएस के लोगों को सिर्फ मोदी की माता के लिए अपशब्द बोले जाने पर ही क्यों बुरा लगता है? उन्हें हर उस मां के दर्द का एहसास क्यों नहीं है, जो तैमूर के पैदा करने पर टारगेट की जाती है, जो बिल्कीस और सफूरा कहलाने पर लक्ष्य की जाती हैं।

इस राजनीतिक दल को तब क्यों बुरा नहीं लगता जब शाहीनबाग में बैठी सशक्त महिलाएं बिरयानी खाने वाली बताई जाती हैं। जिस सम्मान की हकदार मोदी की माता हैं, उसी सम्मान की हकदार #बिल्कीस_दादी, तैमूर की मां करीना कपूर खान और सफूरा जरगर भी हैं।    

(यूसुफ किरमानी वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक हैं।)

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