“अगर आप बार-बार उठोगे तो मैं सदन से बाहर निकाल दूंगा”, लोकसभा अध्यक्ष पद की दूसरी पारी शुरू करते हुए राजस्थान निवासी ओम बिड़ला ने यह चेतावनीयुक्त वाक्य विपक्ष के सांसद से 27 जून को कहे थे। उन्होंने ने यह भी कहा कि “माननीय सदस्यगण जब स्पीकर अपनी सीट पर खड़ा हो जाता है तो सदस्य बैठ जाया करें। यह मैं पहली बार कह रहा हूं। मुझे पांच साल दुबारा कहने का अवसर नहीं मिलना चाहिए।” इस लेखक ने उनके इस दृश्य के वीडियो को कई दफ़ा देखा। चेतावनियों से भरे इन वाक्यों को कहते समय अध्यक्ष बिड़ला की काया भाषा या बॉडी लैंग्वेज ने अचंभित किया। उनके शब्दों, तर्ज़े बयां और काया भाषा में पद की गरिमा की झलक दिखाई नहीं दे रही थी।
पहली पारी के आरम्भिक काल में बिड़ला जी की शब्द भाषा और काया भाषा में विनम्रता व शालीनता झलकती थी। बेशक़, प्रकारांतर से यह झलक धुंधली पड़ती चली गई थी। लेकिन, दूसरी पारी में तो पहले व दूसरे दिन से ही उनकी भूमिका प्रदर्शन में धुंधली दिखाई दे रही है। बल्कि, पद की गरिमा की दृष्टि से शोभाजनक नहीं लग रही है। ऐसे तर्ज़ और तेवर स्वाभाविक हैं या किसी अज्ञात रणनीति का हिस्सा, यह सवाल अध्यक्ष की अदायगी शैली से ज़रूर पैदा होता है।
मिसाल के तौर पर। “ … मैं सदन से बाहर निकाल दूंगा” अगर इस धमकी भरे वाक्य का विश्लेषण किया जाए तो इसमें निहित कुछ सन्देश प्रतिध्वनित होते हैं:
1. क्या सदन कोई कक्षा या घर है जहां छात्र या सदस्य को शिक्षक या मुखिया घर से निकलने की धमकी दे सकता है? सदन में पक्ष व विपक्ष होता है। दोनों पक्ष अपनी संख्या बल के अलावा विचारधारा के आधार पर विभाजित रहते हैं। विधायिका परिपक्व लोकतान्त्रिक चेतना की क्रियाशील अभिव्यक्ति है जिसमें विचारों का दवंद्व अपरिहार्य है। इसलिए इसके स्थान पर यह भी कहा जा सकता था- यदि आप बात नहीं मानेंगे तो आपको सदन से बाहर जाने के लिए कहूंगा या आपको बाहर जाना होगा। ‘निकाल दूंगा’ शब्द असंसदीय नहीं है, लेकिन अशोभनीय लगता है।
2. इस तरह का तर्ज़ेबयाँ इस बात के भी संकेत देता है कि मोदी-शासन की तीसरी पारी विनम्र नहीं, आक्रामकता के साथ पांच साल पूरा करना चाहेगी। मोदी+शाह ब्रांड भाजपा +सत्ता एक घायल शेर की तरह है जो खूंख्वार हो जाता है। भाजपा को 240 सीटें मिलने से प्रधानमंत्री मोदी और गृहमंत्री शाह स्वयं को गहरे तक घायल महसूस कर रहे होंगे। भगवान राम की प्रचण्ड आराधना के बावज़ूद फैज़ाबाद सहित सम्पूर्ण उत्तर प्रदेश में पार्टी की सदस्य संख्या निराशाजनक स्तर पर घटी है; 80 में से 33 सीटें मिली हैं या कहें 2019 में मिली 60 + सीटें भी 2024 में घट कर 33 पर सिकुड़ गईं। दोनों ने भाजपा की 370 और गठबंधन की 400 पार का नारा लगाया था। लेकिन, भाजपा स्वयं ही विकलांग हो गई है और घटक दलों की बैसाखियों के सहारे चल रही है।
3. मोदी+ शाह सत्ता अपनी इस मनोवैज्ञानिक विकलांगता को छुपाने के लिए आक्रामकता के तेवरों का सहारा ले रहे हों! यही वज़ह है कि उन्होंने 25 जून को लोकसभा अध्यक्ष से 1975 के इंदिरा -आपातकाल की आलोचना का प्रस्ताव सदन में रखवाया था। आमतौर पर ऐसे प्रस्ताव सत्ता पक्ष स्वयं रखता है। लेकिन, अध्यक्ष बिड़ला ने इस प्रस्ताव को रख कर अपने पद की ‘ पक्ष निरपेक्षता या तटस्थता’ को विवादास्पद बना लिया है। अध्यक्ष निरपेक्षता के साथ विपक्ष के साथ व्यवहार करेंगे, अब यह शंकाग्रस्त बन गया है।
4. अध्यक्ष की अभिव्यक्ति शैली और काया भाषा के ज़रिये मोदी+शाह सत्ता प्रतिष्ठान विपक्ष और देश की जनता को सन्देश देना चाहता है कि उसके चाल -चरित्र -चेहरे में कोई बदलाव नहीं आएगा। नेता द्वय की फितरत वही रहेगी जिसकी चाल 2001 में गुजरात से शुरू हुई थी। इसलिए विपक्ष और जनता को किसी मुग़ालते में नहीं रहना चाहिए कि भाजपा गठबंधन को 294 सीटें मिलने से उसकी चाल धीमी और नमनीय हो जाएगी। याद रखें, लोकसभा के व्यवहार और वचनों को गंभीरता से लिया जाता है।उन्हें संसद का संरक्षक माना जाता है। शायद इसलिए, सत्ता पक्ष ने अपने भावी तेवरों को अध्यक्ष के माध्यम से देश के सामने रखा हो!
लोकसभा अध्यक्ष के तेवरों की पटकथा किसने लिखी है और उन्हें प्रोम्प्ट कौन कर रहा है, इसका सिर्फ क़यास लगाया जा सकता है। लेकिन, बिड़ला जी के ताज़ा तेवर चिंताजनक ज़रूर हैं। जब मोदी जी कहते हैं कि सरकार बहुमत से चलती है, लेकिन देश सहमति व सामंजस्य से चलता है। पिछले एक सप्ताह में मोदी+शाह ब्रांड भाजपा ने परस्पर सहयोग व सहमति के कोई संकेत दिये हों, ऐसा नहीं लगता है। यदि विपक्ष से मोदी+शाह सत्ता सकारात्मक विरोध और रचनात्मक सहयोग की अपेक्षा रखती है तो उसे अध्यक्ष और उपाध्यक्ष पदों के लिए उदारता दिखानी चाहिए थी।
आपातकाल के प्रस्ताव का स्वयं सत्ता पक्ष को रखना चाहिए था, अध्यक्ष पद का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए था। मंत्रिमंडल में पद और साथियों के चयन में भी मोदी जी किसी भी बदलाव के संकेत नहीं दिए है। इससे यही लगता है कि संसद में और बाहर इंडिया गठबंधन के साथ टकराव बढ़ेंगे। दोनों ही अपनी अपनी शक्तियों का परीक्षण करना चाहेंगे। चूंकि, इस दफ़े लोकसभा में राहुल गांधी के रूप में विपक्ष को एक दमदार चिंतक नेता मिला है। विगत दस सालों में यह पद सुप्त रहा है। लेकिन, इस दफ़ा कांग्रेस और उसके सहयोगी दल अपने दम -खम के साथ सदन में उतरे हैं।
ज़ाहिर है, नए नए जौहर दिखाई देंगे। राहुल +अखिलेश की जोड़ी सत्ता पक्ष को चैन से नहीं बैठने देगी। तृणमूल कांग्रेस की धाकड़ सांसद महुवा मोईत्रा अपने साथ हुए विगत -सुलूक को भूली नहीं होंगी। उनकी पैनी धारवाली जुबान सुनाई देगी। राहुल गांधी आक्रामकता के साथ पेपर लीक, बेरोज़गारी, किसान समस्या, कॉर्पोरेट पूंजीवाद, भाई -भतीजा पूंजीवाद, रक्षा सौदों के मामलों, संवैधानिक संस्थाओं और फ़ेडरल ढांचे की स्वायत्तता आदि मामले उठाएंगे।
प्रधानमंत्री मोदी के लिए संसद की उपेक्षा अब आसान नहीं रहेगी। राहुल गांधी उन्हें ज़िम्मेदारी के कठघरे में खड़ा करने की कोशिश करेंगे। यह निर्विवाद है कि मोदी जी में संवाद की सामर्थ्य नहीं है। वे एकल आत्मकथ्य के अभ्यस्त हैं। इसलिए वे विगत दस सालों में कोई खुली स्वतंत्र प्रेस वार्ता तक नहीं कर पाये हैं। लगता है उनका सम्पूर्ण सत्ता व सार्वजनिक अस्तित्व कॉर्पोरेट समर्थन व गोदी मीडिया पर टिका हुआ है।
राहुल गांधी और विपक्ष उनकी इस दुखती रग पर चोट करेंगे। उन्हें सदन से पलायन नहीं करने देंगे। लेकिन, इसके साथ ही सत्ता पक्ष भी उतना ही उग्र होता जायेगा। वह किसी भी सीमा तक जा सकता है। उदार लोकतंत्र की मर्यादा की तो धज्जियां उड़ती रही हैं। सत्ता के शिखर नेतृत्व से लेकर निचले स्तर तक भाषा के ओछेपन की धारा बहती रही है। कभी कभी लगता है मोदी और शाह की’ भाषा काया और काया भाषा’ शेष सभी में कम-अधिक झलकती है।
यदि ऐसा नहीं होता तो अध्यक्ष बिड़ला जी की चेतावनी की भाषा में पद-गरिमा प्रतिबम्बित होती। पिछली संसद में एक दिन में करीब 150 सांसदों का निलंबन हुआ था, इस बार 18 वीं लोकसभा में इसकी पुनरावृत्ति नहीं होगी, ऐसे आसार धूमिल दिखाई देते हैं। फिर भी लोकतंत्र, गणतंत्र और संविधान की हिफाज़त की दृष्टि से विपक्ष को मज़ी हुई राजनैतिक चातुर्यता से काम लेना होगा। याद रखें, सत्ता पक्ष के शब्द कोष में वांछित या अवांछित शब्दों का टोटा है; नियम, नीति और नैतिकता का निर्धारण अवसर ,परिस्थितियां और आवश्यकता के अनुसार किया जाता है। अतः 240 को 272 तक कैसे पहुंचाया जाए , भाजपा की भावी रणनीति रहेगी।
(रामशरण जोशी वरिष्ठ पत्रकार हैं और दिल्ली में रहते हैं)