Friday, March 29, 2024

थाने में हत्या से थानेदार की हत्या तक की यात्रा 21वीं सदी में हमारे लोकतंत्र के अधःपतन का रूपक है!

देश के सबसे बड़े राज्य में 2001 में पिछली भाजपा सरकार के राज में थाने में दर्ज़ाप्राप्त राज्यमंत्री की हत्या से शुरू हुई यात्रा भाजपा के मौजूदा शासन में थानेदार, सीओ, पुलिसकर्मियों की हत्या तक पहुंची। 21वीं सदी के बीते 20 वर्षों में प्रदेश में लोकतंत्र के क्रमिक पतन और पुलिस-माफिया राज में तब्दील होते जाने की यह दुर्भाग्यपूर्ण कहानी है!

इन 20 वर्षों में उत्तर प्रदेश अनेक पार्टियों की सरकारों-मुख्यमंत्रियों का साक्षी रहा है, पर दिनदहाड़े तत्कालीन सरकार के दर्ज़ा प्राप्त मंत्री का हत्यारा, जो अन्य हत्याओं समेत अनगिनत अपराधों का अभियुक्त है वह इन 20 सालों में फलता-फूलता रहा, तमाम मामलों में बाइज्जत बरी होता रहा, जमानत पर जेल से बाहर आता रहा, उसका आर्थिक साम्राज्य मजबूत होता रहा और अंततः उसने ऐसी दुर्दांत घटना को अंजाम दे दिया।

यह समूचा प्रकरण एक रूपक है यह समझने के लिए कि कैसे इस पूरे दौर में राज्यतंत्र और समाज पर राजनेता-अपराधी-पुलिस/प्रशासन गठजोड़ का ऑक्टोपसी शिकंजा मजबूत होता गया है, और उसी अनुपात में आम नागरिकों के सम्मान, सुरक्षा और मानवाधिकार का स्पेस सिकुड़ता गया है।

यह परिघटना हमारी समूची न्यायिक व्यवस्था पर भी गम्भीर टिप्पणी है, जिसे विधायिका और कार्यपालिका के विचलन और विफलता पर अंकुश लगाना था और संविधान की रक्षा करना था। आखिर यह कैसे हुआ कि थाने में दरोगा के सामने सरेआम हत्या करने वाला सबूत और गवाह के अभाव में रिहा हो गया! और फिर संगीन अपराधों में जमानत मिल गयी ताकि वह अगले जुर्म को अंजाम दे सके !

सरकारें आती रहीं, जाती रहीं, पार्टियां बदलती रहीं, मुख्यमंत्रियों के चेहरे बदलते रहे लेकिन माफिया का जलवा बदस्तूर कायम रहा, उसका बाल नहीं बांका हुआ। आज हालत यह है कि ऊपर राष्ट्रीय स्तर पर कारपोरेट के धनबल, उसके द्वारा नियंत्रित मीडिया के प्रचारतंत्र तथा नीचे जमीनी स्तर पर माफिया-राजनेता गठजोड़ के बाहुबल ने प्रधान से लेकर संसद तक के चुनाव पर अपना प्रभावी नियंत्रण कायम कर लिया है और समूची लोकतांत्रिक राजनैतिक प्रक्रिया और चुनावों को बेमानी बना दिया है।

समाज में जैसे जैसे लोकतंत्र को कमजोर किया जा रहा है, तरह तरह से उसकी जड़ों को खोदा जा रहा है, लोकतांत्रिक ताकतों पर निरंकुश हमले हो रहे हैं, तो स्वाभाविक रूप से इस खूनी गठजोड़ के खेलने के लिए खुला मैदान मुहैया होता जा रहा है। जरूरत है कि कानपुर कांड के बहाने पिछले 20 वर्षों के इस नापाक गठजोड़ के इतिहास से पर्दा उठे, यह शुभ होगा प्रदेश के भविष्य और लोकतंत्र के लिए !

(लालबहादुर सिंह इलाहाबाद विश्वविद्यालय छात्रसंघ के पूर्व अध्यक्ष हैं।)

जनचौक से जुड़े

0 0 votes
Article Rating
Subscribe
Notify of
guest
0 Comments
Inline Feedbacks
View all comments

Latest Updates

Latest

Related Articles