काम के घंटे घटाना वक्त की जरूरत

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दो दिन पहले लार्सन ऐंड टुब्रो (एल एंड टी) निर्माण कंपनी के अध्यक्ष एस. एन. सुब्रमण्यम ने अपने कर्मचारियों से बात करते हुए कहा कि मजदूरों को हफ्ते में 90 घंटे काम करना चाहिए। एक्स्ट्रा रिजल्ट के लिए एक्स्ट्रा काम करना होगा और रविवार को भी काम करना चाहिए। उन्होंने कहा कि आखिर घर में रहकर मजदूर बीवी का मुंह कितनी देर तक निहारते रहेंगे। इसके पहले इंफोसिस के अध्यक्ष नारायण मूर्ति ने भी मजदूरों को हफ्ते में 70 घंटे काम करने की सलाह दी थी। अदानी ग्रुप के अध्यक्ष गौतम अडानी ने कहा कि अगर काम ही नहीं रहा तो भी बीवी घर से भाग जाएगी और फिर क्या होगा?

एलएंडटी के चेयरमैन के इस बयान के बाद पूरे देश में मजदूरों के काम के घंटे पर बहस जारी है। कॉर्पोरेट जगत के अंदर ही इस सबका विरोध हो रहा है। आरपीजी ग्रुप के चेयरपर्सन हर्ष गोयनका ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर पोस्ट करके एलएंडटी चेयरमैन के बयान की आलोचना की। उन्होंने कहा, एक हफ्ते में 90 घंटे काम? रविवार को ‘सन-ड्यूटी’ क्यों न कहा जाए और ‘छुट्टी’ को एक मिथकीय अवधारणा क्यों न बना दिया जाए! मैं कड़ी मेहनत और समझदारी से काम करना चाहता हूँ, लेकिन जीवन को एक निरंतर कार्यालय शिफ्ट में बदल देना? यह सफलता नहीं, बल्कि बर्नआउट का नुस्खा है। वर्क लाइफ बैलेंस वैकल्पिक नहीं है, यह जरूरी है।

अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन की 2024 की रिपोर्ट के अनुसार दुनिया की 10 सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में भारतीय सबसे ज्यादा काम करते हैं। इस रिपोर्ट के अनुसार भारत में प्रति सप्ताह 46.7 घंटे, चीन में 46.01 घंटे, ब्राजील में 39 घंटे, यूनाइटेड स्टेट ऑफ अमेरिका में 38 घंटे, जापान में 36.6 घंटे, इटली में 36.3 घंटे, यूनाइटेड किंगडम ब्रिटेन में 35.5 घंटे, फ्रांस में 35.9 घंटे, जर्मनी में 34.2 घंटे और कनाडा में 32.5 घंटा मजदूरों से काम कराया जाता है। इसके बावजूद भारतवर्ष में काम के घंटे बढ़ाने के लिए पूरी बहस को इसलिए संचालित किया जा रहा है ताकि मोदी सरकार द्वारा मार्च 2025 में लाने वाले लेबर कोड में जो काम के घंटे 12 कर दिए गए हैं, उसकी सामाजिक स्वीकृति हासिल की जा सके।

कोरोना महामारी के समय कई राज्यों की सरकार ने काम के घंटे 12 करने का नोटिफिकेशन जारी किया। हाल ही में उत्तर प्रदेश सरकार ने भी कारखाना अधिनियम में संशोधन करके काम के घंटे 12 कर दिए हैं। कनार्टक की कांग्रेस सरकार ने तो आईटी सेक्टर में काम करने वाले कर्मचारियों के काम के घंटे 14 करने का निर्णय किया है।

काम के घंटे बढ़ाने के लिए सरकार द्वारा एक मजबूत तर्क दिया जाता है कि देश-विदेश की पूंजी को भारत में लाने के लिए एक वर्क कल्चर डेवलप करना बहुत जरूरी है और देश के विकास के लिए मजदूरों को कुछ ना कुछ कुर्बानियां देनी पड़ेगी। सच्चाई यह है कि लेबर कानून को खत्म करने और काम की घंटा 12 करने के बावजूद भारत से पूंजी का पलायन लगातार जारी है। हेनले एंड पार्टनर्स द्वारा कलेक्ट किए गए आंकड़ों के अनुसार 2013 से 2022 के बीच भारत से 48500 करोड़पति पूंजीपति चले गए।

आज पूरी दुनिया में काम के घंटे बढ़ाने के तर्को के विस्द्ध आर्टिफीशियल इंटेलीजेंस के दौर में काम के घंटे कम करने की कार्रवाई हो रही है। दुनिया के तमाम देशों में सप्ताह में चार दिन काम की पद्धति शुरू हुई है। जूम के मलिक एरिक युवान जैसे एआई इनोवेटर्स का मानना है कि एआई हर कंपनी के लिए चार दिन का कार्य सप्ताह हासिल करने की कुंजी होगा। उनके अनुसार चार दिन के वर्किंग में 92 प्रतिशत की सफलता दर है।

जापान जैसे देशों में काम के घंटे लगातार कम किए जा रहे हैं। साउथ चाइना मॉर्निंग पोस्ट की रिपोर्ट के अनुसार जहां जापान में सन 2000 में 1839 घंटे सालाना काम के थे वही उसे 2022 में घटाकर 1629 घंटे सालाना कर दिया गया है। इससे लगभग वार्षिक काम के घंटे में 11.6 प्रतिशत की गिरावट आई है।

जापान के साथ बेल्जियम, आइसलैंड, यूनाइटेड अरब अमीरात, स्पेन और नीदरलैंड जैसे देशों में चार दिन के कार्य दिवस सप्ताह में कर दिए गए हैं। अप्रैल 2025 से जापान काम के घंटे कम करने और बेहतर वर्क स्टाइल रिफॉर्म की दिशा में बढेगा। जापान की रिक्रूट वर्क्स इंस्टिट्यूट के विश्लेषक ताकाशी सकामोटो के निष्कर्ष के अनुसार देश में अब कई यूरोपीय देशों की तरह काम की घंटे कम किए गए जा रहे हैं।

सन 2000 के बाद नौजवान कर्मचारियों के वेतन में 25 प्रतिशत की वृद्धि हुई है जबकि काम के घंटे घटे हैं। ऑटोनॉमी की एक रिपोर्ट के अनुसार आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस आने के बाद यूनाइटेड किंगडम में लगभग 88 प्रतिशत कंपनियां कर्मचारियों के काम के घंटे 10 प्रतिशत तक कम कर रही है। कुल मिलाकर कहा जाए तो दुनिया में काम के घंटे कम करने की दिशा में काम हो रहा है वहीं भारत में जहां पहले से ही काम की घंटे ज्यादा है, उसे और भी बढ़ाने की वकालत की जा रही है।

दरअसल देश में चल रही भीषण बेरोजगारी और महंगाई में मजदूरों की मजबूरी का फायदा उठाकर काम के घंटे 12 करने का कानून बनाया जा रहा है। दुखद यह है कि इस सबसे उत्पादन क्षमता पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ रहा है। सितंबर 2024 में महाराष्ट्र के पुणे में ईवाई कंपनी में चार्टर्ड अकाउंटेंट के बतौर कार्यरत 26 साल की एना सेबेस्टियन पैरामिल नामक युवती ने अत्यधिक काम के दबाव में अपनी जान गंवा दी थी। उसकी मां अनीता अगस्टीन के कम्पनी को लिखे ईमेल जिसमें उन्होंने काम के घंटे बढ़ाने के कारण एना पर दबाव की बात रखी है, यह मामला राष्ट्रीय चर्चा का विषय बना था।

खुद सोनभद्र में बाहर गए हुए मजदूरों के बीच में वार्ता करते हुए हमने पाया कि काम के घंटे 12 करने का जो विभिन्न राज्यों में सिलसिला शुरू हुआ है उसके कारण दैनिक दिनचर्या के लिए आवश्यक वक्त के साथ मजदूरों को 17-18 घंटे काम करना पड़ता है। जिससे उनके शरीर व स्वास्थ्य पर बेहद विपरीत प्रभाव पड़ रहे हैं और उनकी उत्पादन क्षमता बुरी तरह प्रभावित हो रही है।

काम के घंटे बढ़ाकर जो कुछ भी किया जा रहा है वह स्पष्ट तौर पर भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 और 42 व 43 का उल्लंघन है। हमारे संविधान की प्रस्तावना में ही व्यक्ति की गरिमा की बात कही गई है। जिसकी मौलिक अधिकार और नीति निर्देशक तत्व में व्याख्या की गई है। अनुच्छेद 42 जहां काम की न्यायसंगत और मानवोचित दशाओं के लिए राज्य की जबाबदेही तय करता है। वहीं 43 में मजदूरों को काम, निर्वाह मजदूरी, शिष्ट जीवनस्तर और अवकाश की सम्पूर्ण उपभोग सुनिश्चित करने वाली काम की दशाएं, सामाजिक और सांस्कृतिक अवसर प्राप्त करने के लिए राज्य को जिम्मेदार बनाता है।

आर्टिफीशियल इंटेलीजेंस के दौर में जब दुनिया बड़े पैमाने पर बेरोजगारी के खतरे को महसूस कर रही है। तब काम के घंटे बढ़ाने के कारण देश में और भी बेरोजगारी बढ़ेगी। जरूरत इस बात की है कि अर्थनीति की दिशा बदली जाए काम के घंटे घटाकर ज्यादा से ज्यादा लोगों को रोजगार दिया जाए और रोजगार को संवैधानिक अधिकार बनाकर राज्य की जिम्मेदारी तय की जाए कि वह नौजवानों के लिए रोजगार/नौकरी को सुनिश्चित करे। देश के छात्र युवा संगठनों द्वारा चलाए जा रहे रोजगार अधिकार अभियान संवाद में यह सवाल मजबूती से उठ रहा है।

(दिनकर कपूर ऑल इंडिया पीपुल्स फ्रंट के प्रदेश महासचिव हैं)

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