Saturday, April 20, 2024

नहीं सामने आया अभी पुलवामा हमले का राज !

पुलवामा हमले को आज एक साल पूरा हो गया, आज से ठीक एक साल पहले कश्मीर के पुलवामा में केंद्रीय रिज़र्व पुलिस बल (CRPF) के 44 जवान एक आत्मघाती हमले में मारे गए थे। जब उन्हें ले जा रही बस को कार से टक्कर मार दी गयी थी। कार में भारी मात्रा में विस्फोटक था।

देश को हिला कर रख देने वाले पुलवामा हमले की जांच का चालान एक साल गुजर जाने के बाद भी पेश नहीं हो सका है। हमले की रूपरेखा तो पता चल चुकी है लेकिन व्यक्तिगत तौर पर किस शख्स का क्या रोल था, यह अब तक समझ में नहीं आ रहा। मामले की जांच कर रही एनआईए ने इस हमले में कई लोगों की पहचान की है। एनआईए इस हमले के पाकिस्तान कनेक्शन की तलाश ही कर रही है।लेकिन स्पष्ट रूप से अभी तक कोई बात नहीं की गई है।

इस हमले में सुरक्षा के मोर्चे पर हुई चूक की सबसे बड़ी भूमिका रही है लेकिन मोदी सरकार इस बारे में हमेशा बात करने से बचती आई है। दरअसल खुफिया एजेंसियों को इस तरह के हमले का अंदेशा था। मकबूल बट की बरसी को लेकर आतंकियों के बड़ी वारदात की आशंका जताई जा रही थी, आठ फरवरी को इस सिलसिले में एक अलर्ट भी जारी किया गया था। इसमें कहा गया था कि जम्मू-कश्मीर में आतंकवादी आईईडी के जरिये सुरक्षा बलों के काफिले पर हमला कर सकते हैं और इसलिए सुरक्षा पर ध्यान दिया जाए। लेकिन कोई इंतजाम नहीं किया गया।

हाईवे बंद रहने के कारण जम्मू स्थित ट्रांजिट कैंप में जवानों की भीड़ बढ़ती जा रही थी। ऐसे अलर्ट के मामले में आम तौर पर जवानों को एहतियात बरतते हुए विमान से भेज दिया जाता है बताया जाता है कि 4 फरवरी से बर्फबारी के कारण जम्मू में फंसे सीआरपीएफ के जवानों को भी हवाई मार्ग से श्रीनगर पहुंचने की मंजूरी मांगी गई थी। सीआरपीएफ के अधिकारियों ने इसका प्रस्ताव बनाकर मुख्यालय भेजा था।

अधिकारी एक हफ्ते तक विशेष विमान की मांग करते रहे लेकिन मोदी सरकार ने सीआरपीएफ अधिकारियों के विमान मुहैया करवाने के निवेदन को अस्वीकार कर दिया था। इसके बाद ही 2500 जवानों को 78 बसों में सड़क मार्ग से ही भेजने का निर्णय लिया गया। यह काफिला 14 फरवरी को सुबह साढ़े तीन बजे जम्मू से श्रीनगर के लिए रवाना हो गया। दोपहर बाद 3:15 बजे आतंकी हमला हो गया।

एक महत्वपूर्ण बात और है जम्मू-कश्मीर जैसे क्षेत्रों में सुरक्षा बलों के आवागमन के लिए एक तय प्रक्रिया बनी हुई है। उनका काफिला गुजरने से पहले संबंधित इलाके की सुरक्षा के लिए जिम्मेदार रोड ओपनिंग पार्टी यानी आरओपी इसके लिए हरी झंडी देती है। आरओपी में सेना, जम्मू-कश्मीर पुलिस और अर्धसैनिक बलों के जवान शामिल होते हैं। जानकारों के मुताबिक गुरुवार को तड़के साढ़े तीन बजे जम्मू से निकलने से पहले आरओपी ने रास्ते के सुरक्षित होने की हरी झंडी दे दी थी। सवाल है कि इसके बावजूद 60 किलो विस्फोटक से लदी कार लेकर हमलावर हाईवे पर कैसे पहुंच गया। यह भी कि उसे इतना विस्फोटक कहां से मिला? इस बात का भी अभी तक कोई जवाब नहीं दिया गया है।

जो सीआरपीएफ़ के जवान इस हमले में मारे गए उनको आज तक आधिकारिक रूप से शहीद का दर्जा नहीं दिया गया है। एक्शन में मारे जाने वाले अर्धसैनिक बलों के जवान शहीद की श्रेणी में नहीं आते। लेकिन शहीद-शहीद कह के उनके नाम पर वोट खूब मांगे जाते हैं। बीबीसी की एक रिपोर्ट बताती है कि किस प्रकार केंद्र की मोदी सरकार ने पुलवामा के शहीदों की उपेक्षा की है।

पुलवामा हमले के बाद मारे गए जवानों के परिवारों को आर्थिक मदद पहुंचाने के लिए बने “वीर भारत कोर” फ़ंड में 36 घंटे के भीतर ही सात करोड़ रुपए जमा हो गए थे। आरटीआई के हवाले से यह पता चला था कि अगस्त 2019 तक इस फ़ंड में कुल 258 करोड़ रुपये जमा थे। बिहार के शहीद रतन के पिता पूछ रहे हैं कि “हमें अब सरकार से कुछ नहीं चाहिए। हमने देख लिया उनको। लेकिन सरकार केवल इतना बता दे कि जवानों के नाम पर जमा पैसे का क्या हुआ?”

(गिरीश मालवीय स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं। यह लेख उनके फेसबुक पेज से साभार लिया गया है।)

जनचौक से जुड़े

0 0 votes
Article Rating
Subscribe
Notify of
guest
0 Comments
Inline Feedbacks
View all comments

Latest Updates

Latest

लोकतंत्र का संकट राज्य व्यवस्था और लोकतंत्र का मर्दवादी रुझान

आम चुनावों की शुरुआत हो चुकी है, और सुप्रीम कोर्ट में मतगणना से सम्बंधित विधियों की सुनवाई जारी है, जबकि 'परिवारवाद' राजनीतिक चर्चाओं में छाया हुआ है। परिवार और समाज में महिलाओं की स्थिति, व्यवस्था और लोकतंत्र पर पितृसत्ता के प्रभाव, और देश में मदर्दवादी रुझानों की समीक्षा की गई है। लेखक का आह्वान है कि सभ्यता का सही मूल्यांकन करने के लिए संवेदनशीलता से समस्याओं को हल करना जरूरी है।

Related Articles

लोकतंत्र का संकट राज्य व्यवस्था और लोकतंत्र का मर्दवादी रुझान

आम चुनावों की शुरुआत हो चुकी है, और सुप्रीम कोर्ट में मतगणना से सम्बंधित विधियों की सुनवाई जारी है, जबकि 'परिवारवाद' राजनीतिक चर्चाओं में छाया हुआ है। परिवार और समाज में महिलाओं की स्थिति, व्यवस्था और लोकतंत्र पर पितृसत्ता के प्रभाव, और देश में मदर्दवादी रुझानों की समीक्षा की गई है। लेखक का आह्वान है कि सभ्यता का सही मूल्यांकन करने के लिए संवेदनशीलता से समस्याओं को हल करना जरूरी है।