Saturday, April 20, 2024

नॉर्थ ईस्ट डायरी: इजरायल जाकर बस रहे हैं पूर्वोत्तर की यहूदी घोषित जनजाति के लोग

15 दिसंबर को भारत के उत्तर-पूर्वी राज्य के बेनेई मेनाशे समुदाय के शिशुओं और बुजुर्गों सहित कुल 252 यहूदी तेल अवीव के बेन-गुरियन हवाई अड्डे पर उतरे। इनमें 50 परिवार, 24 एकल, दो वर्ष से कम उम्र के चार शिशु और 62 वर्ष से अधिक आयु के 19 लोग शामिल हैं। इजरायल सरकार ने अक्तूबर में उनके आव्रजन को मंजूरी दी थी।

हवाई अड्डे पर मौजूद एक बेनेई मेनाशे समुदाय के सदस्य ने कहा, “हममें से 90 प्रतिशत ने अलियाह (आव्रजन) परमिट की प्रक्रिया पूरी कर ली है और जल्द ही सभी को नेतन्या के पास नॉर्डिया मोहाव में एक शैवी इज़राइल अवशोषण केंद्र में ले जाया जाएगा।”

शैवी इज़राइल एक गैर-लाभकारी संगठन है, जिसने यहूदियों को इज़रायल वापस लाने के लिए आंदोलन का नेतृत्व किया है।

“वे अपने क्वारंटाइन अवधि को मोघव (एक कृषि कम्यून) में पूरा करेंगे और औपचारिक अवशोषण प्रक्रिया से गुजरने में तीन महीने बिताएंगे, जिसमें हिब्रू सीखना शामिल है। इसके बाद, वे उत्तर में नाजारेथ इलिट क्षेत्र में बसने के योग्य हो जाएंगे,” उन्होंने कहा।

मिनिस्ट्री ऑफ इमिग्रेशन एंड एबॉर्शन ने कहा कि बेनेई मेनाशे समुदाय के 2,437 लोग अब तक मणिपुर और मिजोरम से अब तक इजराइल आ चुके हैं।

भारत के पूर्वोत्तर राज्यों में यहूदी समुदाय के 9,000 से अधिक सदस्य रहते हैं, जिनमें से आधे मणिपुर और मिजोरम में हैं। इन लोगों को बेनेई मेनाशे कहा जाता है। इनको यहूदियों की मेनशे जनजाति के वंशज माना जाता है, जो इज़राइल की दस खोई हुई जनजातियों में से एक है। बेनेई मेनाशे शब्द का अर्थ चिन-कूकी-मिज़ो (उर्फ चीकिम) जनजातियों से है जो पूरे क्षेत्र में बिखरे हुए हैं।

यहूदियों के प्रवास की देखरेख करने वाले संगठन शैवी इज़राइल के आंकड़ों के मुताबिक लगभग 3000 यहूदी इजरायल चले गए हैं और हजारों लोग इंतजार कर रहे हैं। पहला सामूहिक प्रवजन 2006 में हुआ था, जब समुदाय के 213 सदस्य मिजोरम से इजरायल पहुंचे थे, उसके बाद 2007 में मणिपुर से 233 लोग इजरायल पहुंचे।

पूर्वोत्तर के यहूदियों का सबसे अधिक प्रिय सपना तब साकार हुआ था जब बेनेई मेनाशे समुदायों को आधिकारिक तौर पर 2005 में येरुशलम के रैबिनिक कोर्ट द्वारा इजरायल की दस खोई हुई जनजातियों में से एक के रूप में मान्यता दी गई थी।

“मान्यता और बड़े पैमाने पर प्रवासन की मंजूरी से पहले, कुछ लोग पर्यटक और छात्र के रूप में इज़रायल गए थे, लेकिन बाद में यहूदी धर्म में परिवर्तित हो गए और इज़रायल के नागरिक बन गए। भारत सरकार ने इसे धर्मांतरण के रूप में देखा था,” नाम न छापने की शर्त पर चुराचांदपुर सिनेगॉग के एक सदस्य ने कहा।

मणिपुर में शैवी इज़राइल के सहायक प्रबंधक हारून वैफेई कहते हैं कि अब पलायन करने वालों को एक साल की अस्थायी नागरिकता प्रदान की जाती है और उन्हें बुनियादी धार्मिक शिक्षा पूरी करने के बाद पूरी नागरिकता प्रदान की जाती है। एक बार नागरिकता प्रदान करने के बाद, 18 से 25 आयु वर्ग के लोगों को तीन साल की अनिवार्य सैन्य सेवा के लिए सूचीबद्ध किया जाता है, जबकि 60 से अधिक आयु वालों को वृद्धावस्था पेंशन प्रदान की जाती है।

हालांकि कोई आधिकारिक रिकॉर्ड नहीं है, माना जाता है कि सबथ आंदोलन की शुरुआत 1950 के दशक के मध्य में मणिपुर के चुराचांदपुर जिले में हुई थी। इस समय तक पूरा चीकिम ईसाई धर्म में परिवर्तित हो गया था जो 1890 के दशक में इस क्षेत्र में आ गया था। 1960 के दशक की शुरुआत में चीकिम के कुछ लोगों ने सबथ को अपना लिया। 

माना जाता है कि अश्शूर के राजा शल्मनेज़ा द्वारा 10 इज़राइली जनजातियों पर विजय प्राप्त करने के बाद मानशे यहां आए थे। ऐसा माना जाता है कि वे गुलामी से बच गए, बर्मा जाने से पहले फारस और फिर चीन की यात्रा की, और अंत में भारत के उत्तरपूर्वी हिस्से में पहुंच गए।

मणिपुर में यहूदियों का संगठन (एमजेओ) मई 1972 में बना और उसने भारत के अन्य हिस्सों में यहूदियों के साथ संपर्क स्थापित करना शुरू किया। अक्तूबर 1974 में यहूदी समूहों को एकजुट करने के उद्देश्य से इसका नाम यूनाइटेड ज्यूज ऑफ नॉर्थ ईस्ट इंडिया रखा गया।

1976 में टी डैनियल बॉम्बे में इज़रायल वाणिज्य दूतावास के साथ संपर्क स्थापित करने के बाद चुराचांदपुर लौट आए। इसके बाद चुराचांदपुर के तुईबोंग में एक आराधनालय की स्थापना की गई। 1979 में, इलियाहू एविहेल, इज़रायल के एक रबी, जो “खोई हुई जनजातियों” के वंशजों की खोज करते हैं, ने यहूदी धर्म का अध्ययन करने के लिए एक व्यक्ति को इजरायल भेजने के लिए बेनेई मेनाशे से संपर्क किया। 1981 में चुराचांदपुर का शिमोन जिन इजरायल जाने वाला जनजाति का पहला व्यक्ति बन गया। 1988 में, मणिपुर के 24 लोग और मिजोरम के छह लोग रब्बी डॉ. जैकब न्यूमैन द्वारा एलियाहु के निर्देशन में दीक्षित किए गए थे।

(दिनकर कुमार द सेंटिनेल के पूर्व संपादक हैं। आजकल वह गुवाहाटी में रहते हैं।)

जनचौक से जुड़े

0 0 votes
Article Rating
Subscribe
Notify of
guest
0 Comments
Inline Feedbacks
View all comments

Latest Updates

Latest

लोकतंत्र का संकट राज्य व्यवस्था और लोकतंत्र का मर्दवादी रुझान

आम चुनावों की शुरुआत हो चुकी है, और सुप्रीम कोर्ट में मतगणना से सम्बंधित विधियों की सुनवाई जारी है, जबकि 'परिवारवाद' राजनीतिक चर्चाओं में छाया हुआ है। परिवार और समाज में महिलाओं की स्थिति, व्यवस्था और लोकतंत्र पर पितृसत्ता के प्रभाव, और देश में मदर्दवादी रुझानों की समीक्षा की गई है। लेखक का आह्वान है कि सभ्यता का सही मूल्यांकन करने के लिए संवेदनशीलता से समस्याओं को हल करना जरूरी है।

Related Articles

लोकतंत्र का संकट राज्य व्यवस्था और लोकतंत्र का मर्दवादी रुझान

आम चुनावों की शुरुआत हो चुकी है, और सुप्रीम कोर्ट में मतगणना से सम्बंधित विधियों की सुनवाई जारी है, जबकि 'परिवारवाद' राजनीतिक चर्चाओं में छाया हुआ है। परिवार और समाज में महिलाओं की स्थिति, व्यवस्था और लोकतंत्र पर पितृसत्ता के प्रभाव, और देश में मदर्दवादी रुझानों की समीक्षा की गई है। लेखक का आह्वान है कि सभ्यता का सही मूल्यांकन करने के लिए संवेदनशीलता से समस्याओं को हल करना जरूरी है।