अब वह जमाना चला गया जब लोग बेटा होने पर खुश होते थे और बेटी होने पर मायूस हो जाते थे। अब तो हर घर में बेटियां एक परी की तरह मां-बाप, भाई-बहन, दादा-दादी सबका प्यार पाती हैं। पिता उसे अपनी पलकों पर बैठा कर रखते हैं तो मां की वह सबसे ज्यादा दुलारी होती हैं। भाई से तो उसके झगड़े ही खत्म नहीं होते, लेकिन वही दुलारी-प्यारी घर की परी जब किसी दरिंदगी का शिकार हो जाती है तो सिर्फ उसके ही माता-पिता ही द्रवित नहीं होते, हर मां-बाप की आत्मा रोने लगती है। उत्तर प्रदेश के हाथरस में दलित लड़की के साथ हैवानियत की घटना में जीभ उस बिटिया की कटी, लेकिन गूंगा सारा देश हो गया है। घटना के करीब 15 दिनों बाद पीड़िता की मौत हो गई। अब यूपी के ही बलरामपुर जिले में दलित युवती से गैंगरेप की घटना सामने आई है। 22 साल की कॉलेज छात्रा को किडनैप कर इंजेक्शन लगाकर बेहोश कर दिया और फिर दो आरोपियों ने दुष्कर्म किया।
लड़की की हालत इतनी बिगड़ गई कि उसकी भी मौत हो गई। इन दोनों घटनाओं के बाद मुझे याद आ रही छह दिसंबर 2012 को बलिया की निर्भया के साथ हुई दरिंदगी की घटना। उसके साथ हुई दरिंदगी की सूचना के बाद सिर्फ निर्भया के माता-पिता ही नहीं, पूरा देश हिल गया था। बेटी के सम्मान में सभी उठ खड़े हुए। बलिया में भी बेटी के सम्मान में आंदोलन तेज हो गया। उस आंदोलन का ही नतीजा था कि पूरा सरकारी तंत्र निर्भया के गांव में पहुंच कर उनके नाम पर बहुत कुछ करने का आश्वासन दे आया।
यह बात अलग है कि घटना के सात साल बाद भी सरकारी तंत्र सभी घोषणाओं को अमली जामा पहनाने में विफल रहा। देश में भी न इस तरह की घटनाओं पर विराम लगा, न तत्काल सजा के कोई ऐसे प्रावधान किए गए। यह निर्भया के मां की हिम्मत और संघर्षों का नतीजा है कि उन्होंने बेटी और दरिंदों के बीच की जंग को अंतिम मुकाम तक पहुंचाया। हाथरस और बलरामपुर में उसी तरह की हैवानियत को अपराधियों ने अंजाम दिया है, लेकिन देश के रहनुमा सोए हुए सब कुछ देख रहे हैं।
कठोर नियम बनने के बाद बेखौफ हैवान
निर्भया की घटना के बाद सरकार ने कई तरह के कठोर नियम बनाए। फिर भी डर के बीच से बेटियों का जीवन नहीं निकल सका, इसलिए कि इस तरह के हैवान कहीं और नहीं, हमारे बीच ही सामान्य आदमी की तरह रहते हैं। वे कभी अपना बनकर तो कभी हैवान बनकर इस तरह के कारनामों को अंजाम दे देते हैं। यही कारण है कि घर-घर के लोग बेटियों पर निगरानी रखते हैं। जब तक वह घर नहीं आ जाती, घर के लोग चिंतित हाल में रहते हैं। बेटियों को भी यह अच्छा नहीं लगता कि उसके मां-बाप उसे कहीं जाने से मना करें। मां-बाप की भी यही इच्छा होती है कि उनकी बेटी समाज में बेटों की तरह नाम करें, बहुत सी बेटियां ऐसा कर भी रहीं हैं, लेकिन समाज की ऐसी घटनाएं उन्हें और उनकी लाडली को डरने पर मजबूर कर देती हैं।
निर्भया के दोषियों में एक नागलिग दोषी कुछ साल सुधारगृह की सजा के बाद रिहा हो गया। शेष पांच में एक दोषी राम सिंह ने तिहाड़ जेल में आत्महत्या कर ली। अन्य चार दोषियों विनय शर्मा, अक्षय ठाकुर, पवन गुप्ता और मुकेश को फांसी हुई। इस सजा के बाद हर बेटी के पिता को विशेष बल मिला। फिर भी आम जनमानस यह देख रहा है कि अभी भी महिलाओं, युवतियों से लेकर डेढ़ साल की बच्ची तक हैवानियत का शिकार हो रही हैं। ऐसे में बेटियों के पिता देश में कुछ ऐसा इंतजाम चाहते हैं, जिसके तहत बेटियां हर जगह अपने को पूरी तरह सुरक्षित महसूस कर सकें। उन्हें न तो किसी की डरावनी आंखें डरा पाएं, न ही शरारत वाले कोई बोल।
अपना बनकर करते घात
हैवानियत के अलावा यौन शोषण के मामले भी समाज में कम होने के बजाय बढ़ रहे हैं। बहुत से हैवान अपना बनकर पहले घर के लोगों का विश्वास जीतते हैं और फिर एक दिन मौका पाकर दाग लगा देते हैं। ऐसे मामलों में कुछ पीड़ित पक्ष लोक-लाज के भय से मामले को दबा देता है तो कुछ लोग हिम्मत कर दोषी को हर हाल में सजा दिला देते हैं। इसके कई बड़े उदाहरण देश और प्रदेश में सामने हैं।
यौन शोषण के विरुद्ध लड़ने वाली हो संस्था
हम जिलों की बात करें तो यहां यौन शोषण के विरुद्ध लड़ने वाली कोई संस्था नहीं है। इस तरह की घटनाओं में लोग पहले पुलिस का ही दरवाजा खटखटाते हैं। पुलिस भी ऐसे मामलों में काफी फूंक-फूंक कर कदम रखती है, इसलिए कि पीड़ित पक्ष कई तरह से टूटा हुआ होता है। पुलिस को कार्रवाई के दौरान इस बात का भी ख्याल रखना अहम हो जाता है कि आरोपियों पर कार्रवाई भी हो जाए और पीड़ित पक्ष की बदनामी भी न हो। ऐसे में हर जिले में यौन शोषण के विरूद्ध लड़ने वाली एक मजबूत संस्था की जरूरत है, जो सब कुछ गोपनीय रखकर आरोपियों को सजा दिलाने का काम करे।
2013 में बने कानून पर हो मजबूत अमल
निर्भया के साथ हुई घटना के बाद वर्ष 2013 में देश में एक नया कानून बना, जिसमें महिलाओं को किसी भी तरह के यौन शोषण से बचाव के लिए उन्हें अधिकार दिए गए। एक्ट में यौन शोषण को पूरी तरह परिभाषित किया गया है, ताकि अपराधी बच ना सके। बलात्कार के जघन्य मामलों में फांसी की सजा तक मुकर्रर की गई, लेकिन घटनाओं का अंत नहीं हुआ। ऐसे में जानकारों की राय है कि इस कानून पर मजबूती से अमल हो। इस तरह के केस के निस्तारण में लंबा समय न लिया जाए, तभी हैवानयित वाली नीयत का अंत होगा। केवल बेटी बचाओ के नारों से बेटियों की सुरक्षा नहीं हो सकती।
- एलके सिंह
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं और बलिया में रहते हैं।)
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