Friday, April 19, 2024

दिल्ली चुनावः शरजील, शाहीन बाग में दीपक-सुधीर की जोड़ी यानी एजेंडा फिक्स करने की रणनीति

दिल्ली में आठ फरवरी को 70 सीटों के लिए वोट डाले जाने हैं। झारखंड चुनाव हारने के बाद प्रधानमंत्री और गृहमंत्री दिल्ली चुनाव प्रचार में जी जान से जुटे हैं। भाजपा एनडीएमसी का चुनाव भी लड़ती है तो पाकिस्तान और राष्ट्रवाद के मसले लेकर आती है। दिल्ली विधानसभा चुनाव में भाजपा की ओर से जो बड़े-बड़े बोर्ड दिल्ली भर में लगाए हैं। उसमें प्रधानमंत्री मोदी की तस्वीर के साथ उनकी तीन उपलब्धियां गिनाई हैं। पहली धारा 370 हटाई, दूसरा तीन तलाक पर पाबंदी और तीसरा शरणार्थियों को नागरिकता देने का कानून। और नीचे लिखा है, ‘देशहित में ऐतिहासिक फैसले।’

दिल्ली विधानसभा चुनाव के मद्देनजर भाजपा के विज्ञापन बोर्डों से स्पष्ट है कि भाजपा पूरी तरह से सांप्रदायिकता के बूते ही दिल्ली का चुनाव लड़ रही है। चुनावी विज्ञापनों में भाजपा द्वारा जो प्रोजेक्ट किया गया उससे साफ़ जाहिर है कि वो चुनाव को सांप्रदायिक मसले तक ले जाकर हिंदू वोटरों को धर्म के आधार पर अपने पक्ष में मोड़ना चाहती है।

सांप्रदायिकता को और धार देने के लिए भाजपा को एक नए मुसलमान दुश्मन की तलाश थी और उसने दो तलाश लिए। एक शाहीन बाग़ और दूसरा शरजील इमाम। टीवी डिबेट में भाजपा प्रवक्ता और चुनावी मंच से प्रधानमंत्री और गृहमंत्री लगातार शाहीन बाग़ को चुनावी बहस के केंद्र में रख रहे हैं। कांग्रेस और आम आदमी पार्टी का शाहीन बाग़ पर क्या स्टैंड है इस पर भाजपा के लोग उन्हें घेर रहे हैं।  

शरजील इमाम यानी मुसलमान, शाहीन बाग़ और जेएनयू का कॉम्बो शरजील इमाम के रूप में शाह मोदी को राष्ट्रवाद की बेदी पर चढ़ाने के लिए एक बलि का बकरा मिल गया है। शरजील मुसलमान भी है, जेएनयू छात्र भी और शाहीन बाग़ विरोध प्रदर्शन से भी जुड़ा हुआ। मने राष्ट्रवादियों के लिए राष्ट्रद्रोह का जबर्दस्त कॉम्बो।

ऐसा नहीं है कि शरजील इमाम का वायरल वीडियो अचानक अभी हाथ लग गया हो। उसका वीडियो तो पहले से ही उपलब्ध था, लेकिन उसे किस समय वायरल करना है, इसके लिए सही समय और सही अवसर देखकर प्लानिंग की गई। दरअसल शरजील इमाम का वायरल वीडियो शाहीन बाग़ धरना शुरू होने से काफी पहले का है, जिसे अलीगढ़ मुस्लिम यूनिर्सिटी में शरजील द्वारा दिए एक भाषण के दौरान रिकॉर्ड किया गया था। 

शरजील ने गिरफ्तार होने से पूर्व फोन पर प्रतिक्रिया देकर बताया कि कट करने से उसका आशय संचार व्यवस्था रोकने से है। कट से उसका आशय चक्का जाम से है। जैसे सरकार कश्मीर में इंटरनेट, फोन सेवा और यातायात बंद करके कश्मीर को पूरी दुनिया से कट कर रखा है। शरजील का आशय भी असम को इंडिया से कट करने का आशय व्यवस्था को ठप्प करने से ही था।

शरजील इमाम के साथ शाहीन बाग़ में शुरू से रहे क़मरे आलम कहते हैं कि शरजील इमाम दरअसल शुरू में शाहीन बाग़ प्रोटेस्ट के साथ जुड़ा हुआ था और प्रोटेस्ट को पूरी तरह शांतिपूर्ण रखने का हिमायती था। उसने सबको हिदायत भी दे रखी थी कि कहीं कोई हिंसा नहीं चाहिए वर्ना हमारा विरोध प्रदर्शन लंबा नहीं चल पाएगा।

शरजील मुसलमानों को अपनी नागरिकता अपनी आईडेंटिटी के साथ क्लेम करने की बात करता है। वो कहता है कि हमें अपनी नागरिकता छिपाने की ज़रूरत नहीं है। सेकुलर हिंदू भाईयों को मुस्लिम आईडेंटिटी से दिक्कत नहीं होगी। दिक्कत सिर्फ़ संघियों को होगी। अगर हिंदू भाईयों को जय श्री राम नारे से दिक्कत नहीं है, जय भीम से नहीं है तो ‘ला इलाह इल्ल अल्लाह’ से भी नहीं होना चाहिए। वो वीडियो में जब कहता है कि हिंदू को अपनी शर्त में लाओ। तो उसका आशय इससे है कि हमें अपनी आईडेंटिटी के साथ समझौता नहीं करना चाहिए। 

साइलेंटली नहीं वाइलेंटली खाली करवाएंगे- सरिता विहार पुलिस
दो जनवरी को ही शरजील शाहीन बाग़ प्रोटेस्ट से अलग हो गए थे। इसके बाद तीन जनवरी को शाहीन बाग़ की महिलाओं ने प्रेस कान्फ्रेंस करके शाहीन बाग़ से शरजील और आरिफ़ के आंदोलन से निकलने की बात की थी और कहा था कि शाहीन बाग़ धरना नहीं ख़त्म हुआ है। उस समय शाहीन बाग के प्रदर्शनकारियों द्वारा भी शरजील को भाजपा और मोदी शाह का एजेंट तक कहा था, जिसके पीछे आज शाह-मोदी पड़े हुए हैं।     

बता दें कि दो जनवरी को दोपहर के वक़्त शाहीन बाग़ विरोध प्रदर्शन से जुड़े जेएनयू के दो छात्रों आसिफ मुजतबा और शरजील ने अचानक से मंच पर कब्जा करके शाहीन बाग़ विरोध प्रदर्शन को खत्म करने की घोषणा कर दी थी। शरजील ने उस वक़्त भी बताया था कि उससे कमिश्नर ने कहा है कि हम एक जनवरी को खाली करवाने आएंगे। फिर कहा कि नहीं आज नहीं खाली करवाएंगे वर्ना लोकल लोग कब्जा कर लेंगे। फिर उसने दो तारीख को बताया कि उसे गृह-मंत्रालय से आदेश मिला है कि यदि आप शांतिपूर्ण ढंग से खाली करवा रहे हो तो उसमें हमारा क्या फायदा है।”

महिलाओं ने मंच से बताया कि आरिफ और शरजील हमारे साथ जुड़े हुए थे, लेकिन वो तीन तारीख को अचानक से मंच पर चढ़े और उन्होंने प्रोटेस्ट खत्म करने का एलान किया और भाग गए। उस वक्त यहां लोग कम थे। उन्होंने उसी का फायदा उठाया। अगर वो दोपहर का वक्त नहीं रहा होता वो लोग यहां से बचकर न भाग पाते।

हमारा धरना किसी भी तरह से प्रयोजित नहीं है। न कोई कमेटी है। ये जनता का प्रदर्शन है। यहां खाना-पानी दवाई सब आपसी सहयोग से पर्याप्त मात्रा में मिल जाता है। अतः हमें किसी भी तरह के फंड की कोई ज़रूरत नहीं है। हम लगातार मंच से भी कहते आए हैं कि हमें किसी भी तरह का फंड नहीं चाहिए, जिसको कुछ मदद करनी भी है वो खाने-पीने का सामान लाकर अपने हाथों से बांट दे। महिलाओं ने उस समय प्रेस कान्फ्रेंस में ही कहा था कि हर प्रदर्शन में कुछ गलत लोग आ जाते हैं। ज़रूरत है कि सही समय पर उनकी पहचान करके उन्हें किनारे कर दिया जाए।

मुहावरेदार भाषा ही शरजील इमाम का अपराध है
ये झूठ और अफवाहों वाला समय है। इसमें तिल का ताड़ बना दिया जाता है। इसी मीडिया ने चंद रोज पहले शाहीन बाग़ में लगने वाले नारे ‘जीने वाली आजादी’ को ‘जिन्ना वाली आजादी’ कहकर ख़ूब चलाया था। शाहीन बाग़ के प्रदर्शनकारियों को विभाजनकारी और सांप्रदायिक बताने की पुरजोर कोशिश की थी। 

एक ऐसे समय में जब अफवाहें इंतज़ार में बैठी हैं, आपको बहुत साफ और सीधी बात करनी होती है। मुहावरों और प्रतीकों में बात करना इस समय ख़तरे से खाली नहीं है। शरजील इमाम से यही गलती हुई कि उसने अपनी बातों को साफ-साफ और सीधे-सादे शब्दों में न कहकर मुहावरों में कही। जाहिल एंकरों और पत्रकारों से भरी मीडिया में इन मुहावरों तक को समझने की बुनियादी समझ नहीं है।

अतः उसने इन मुहावरों को अपने सत्ता के मन-मुआफिक़ व्याख्यायित करके चलाया। मीडिया ने शरजील के वीडियो में कही बातों को तोड़ मरोड़कर पेश किया। फैब्रीकेटेड स्टोरी के साथ मीडिया शरजील इमाम का मीडिया ट्रायल और विच हंटिंग करने में लगी है।

सुधीर चौधरी और दीपक चौरसिया मोदी-शाह का एजेंडा सेट करने गए थे शाहीन बाग़ 
एक दिन पहले दीपक चौरसिया अपने गैंग के साथ शाहीन बाग़ जाते हैं। वहां महिलाएं उन्हें दस मिनट का समय देने की बात करती हैं, लेकिन दीपक चौरसिया शुरू हो जाते हैं। उसी पीरियड में उनके साथ गए लोग शाहीन बाग़ की महिलाओं से पैसे लेने की बात करते हैं और तभी लोग नाराज़ होकर उनका विरोध करने लगते हैं।

दीपक चौरसिया वाले विवाद के समय वहां मौजूद एक प्रत्यक्षदर्शी के मुताबिक़, “जब दीपक चौरसिया ने इंटरव्यू शुरू किया उस समय उसके साथ चार-पांच लोग मौजूद थे। उन लोगों ने महिलाओं से पूछना शुरू किया था कि आप में किस-किस ने 500 रुपये लिए हैं। इसी बात से लोग भड़क गए। उन्होंने उसे वहां से लौटा दिया। उनके साथ कोई धक्का-मुक्की नहीं हुई थी।

वहां मौजूद वोलंटियर्स उसे सुरक्षित निकालकर पुलिस तक ले गए थे। जहां दीपक चौरसिया ने पुलिस को बताया कि मुझे मारा गया चोट लगी है। पुलिस ने पूछा कहां लगी है चोट दिखाओ तो चुप हो गया।” इसके बाद दीपक चौरसिया और सुधीर चौधरी दोनों फिर शाहीन बाग़ जाते हैं। सवाल ये है कि ये दोनों दो दिन शाहीन बाग़ क्यों जाते हैं? जाहिर है दोनों को कोई नया बखेड़ा उठाकर भाजपा को दिल्ली चुनाव में मदद पहुंचाने के उद्देश्य से ही भेजा गया था। वर्ना शाहीन बाग़ का प्रोटेस्ट तो डेढ़ महीने से चल रहा है। अगले दिन शाहीन बाग़ के लोग दीपक चौरसिया और सुधीर चौधरी को नजदीक तक नहीं फटकने देते और गोदी मीडिया वापिस जाओ के नारे लगाते हैं।

शरजील इमाम के साथी कमरे आलम का स्टेटमेंट
शाहीन बाग़ आंदोलन में शुरू से ही शरजील इमाम के साथ रहे क़मरे आलम कहते हैं, “आज सिर्फ सरकार के अड़ियल रवैये की वजह से लोग सड़कों पर बैठे हैं। सरकार समझौता करने के लिए तैयार नहीं है। जब देश का गृह मंत्री खड़े होकर बोले कि हम एक भी इंच पीछे नहीं हटेंगे तो इसका क्या मैसेज जाता है। तो इसका अर्थ यही है कि आपको सड़कों पर शांतिपूर्ण तरीके से सत्याग्रह करना पड़ेगा तभी सरकार आपकी बात सुनेगी। 

हमारी चिंता एक ही बात को लेकर थी कि सरकार हमारी बातें सुन नहीं रही है। तो हम शांतिपूर्ण तरीके से सड़कों पर आएं और सरकार को सीएए-एनआरसी जो कि असंवैधानिक और सांप्रदायिक है उसे वापिस लेने के लिए कहें। घूम-फिरकर एक ही बात निकलती थी कि चक्काजाम होना चाहिए। असम कट बात का पूरा कंटेक्स्ट चक्का जाम के संदर्भ में ही है, इसका दूसरा कुछ और मतलब ही नहीं है।”

कमरे आलम कहते हैं कि पांच अगस्त को जबसे कश्मीर में धारा 370 खत्म की गई तब से कश्मीर से कम्युनिकेशन कट गया। रोड ट्रांसपोर्टेशन कट गया। पोस्टल सर्विसेस कट गईं। 86 प्रतिशत टूरिस्ट कश्मीर से कट गए, लेकिन फिजिकली कश्मीर नहीं कटा, क्योंकि वो हमारा अभिन्न अंग था और रहेगा। तो कट का संदर्भ कम्युनिकेशन कट से था वो भी तब तक जब तक कि सरकार हमारी बात सुन नहीं रही है।

अगर सरकार हमारी सुनती तो हमें दो डिग्री सेंटीग्रेड तापमान पर सड़कों पर आने की ज़रूरत नहीं थी। शाहीन बाग़ से जैसे दिल्ली नोएडा कट हुए वैसे ही चिकेन नेक से असम और इंडिया। हालांकि इसकी ज़रूरत नहीं पड़नी चाहिए थी, सरकार को यदि हमारी सरकार थोड़ी भी डेमोक्रेटिक रुख़ दिखाती तो।  

शरजील इमाम का कोई भी स्टेटमेंट कांस्टीट्युशनल फ्रेमवर्क से बाहर का नहीं है। शरजील का कोई भी स्टेटमेंट इंडिया की इंट्रग्रिटी पर सवाल उठाते हुए नहीं है। वो हमेशा से इंडिया के संविधान और इंडिया की इंटीग्रिटी को सम्मान करता रहा है। हम जब इंडियन आईडेंटिटी को लेकर चलते हैं तो इंडिया की इंटीग्रिटी को बचाना हमारी जिम्मेदारी है। हमें अगर मैलिक अधिकार मिले हैं तो हमारे मौलिक कर्तव्य भी हैं। 

सोशल मीडिया एकाउंट पर पड़े सारे वीडियो और पोस्ट देखिए। उसने पूरी लड़ाई संविधान के दायरे में रहकर लड़ने की बात कही है। उसकी सारी लड़ाई शांतिपूर्ण तरीके से ही है। उसकी सारी बात संविधान के दायरे में है।

कमरे आलम कहते हैं, “आप शरजील का कोई भी वीडियो उठा लीजिए शरजील सब लोगों से अपील करता मिलेगा कि हम हिंसक होंगे तो हमारा प्रदर्शन लंबा नहीं चलेगा। हमें शांतिपूर्ण प्रदर्शन करना है। वो लगातार अपील करता है कि गांधी के सिद्धांतो पर चलिए, हमें संविधान की स्पिरिट पर चलना है, लेकिन मीडिया ये नहीं दिखाएगा। शरजील बार-बार ये कहता है कि वायलेंट तरीके से आप सरकार से नहीं लड़ सकते।” 

शाहीन बाग़ पर भाजपा नेताओं का सांप्रदायिक और नफ़रती हमला
राष्ट्रवाद को खड़ा करने के लिए एक दुश्मन की ज़रूरत होती है। कभी वो पाकिस्तान की शक्ल में खड़ा किया जाता है, कभी कश्मीर की शक्ल में, कभी जेएनयू की शक्ल में, तो कभी मुसलमान की शक्ल में। शाहीन बाग़ में महिलाएं डेढ़ महीने से इनके मंसूबे के खिलाफ़ धरने पर बैठी हैं। और शाहीन बाग प्रदर्शन की वजह से एनआरसी सीए मसला विदेशी मीडिया की भी मुख्य ख़बर बनने लगा।  

चूंकि भाजपा को अपने मुस्लिम विरोधी हिंदू राष्ट्रवाद को खड़ा करने के लिए कोई न कोई दुश्मन चाहिए था तो उन्होंने शाहीन बाग़ को अपने दुश्मन के रूप में चुना और तय किया कि दिल्ली विधानसभा चुनाव शाहीन बाग़ के मुद्दे पर उसके खिलाफ़ लड़ा जाएगा। पहले भाजपा के गोयबल्स और आईटी सेल के सरगना अमित मालवीय ने 14 जनवरी को अपने ट्विटर हैंडल पर एक फर्जी वीडियो के जरिए शाहीन बाग़ की महिलाओं पर 500 रुपये लेकर धरने पर बैठने का आरोप लगाया। कुछ दिन वो खबर चली।

फिर जेएनयू छात्र शरजील इमाम का एक वीडियो वायरल किया गया। उस वीडियो में उसके कथित बयान का जिक्र खुद देश का गृह मंत्री न केवल दिल्ली के चुनावी मंच से कर रहे हैं, बल्कि उसमें प्रधानमंत्री मोदी का नाम भी घसीट रहे हैं। ये कहकर कि प्रधानमंत्री के डायरेक्ट दखल पर ही शरजील इमाम के खिलाफ़ देशद्रोह का मामला दर्ज किया गया है।

(सुशील मानव पत्रकार और लेखक हैं और दिल्ली में रहते हैं।)

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