Friday, March 29, 2024

किसान आंदोलन के प्रति मोदी सरकार के रवैये से बेहद ख़फ़ा है बाइडेन प्रशासन

खासा हिमायती माहौल होने के बावजूद डेमोक्रेट नियंत्रित सदन के साथ काम करने के लिए भारत को बहुत सूझ बूझ की नीति बनानी होगी। अमेरिकी शासन तंत्र की दोनों इकाइयों, यानी जोसेफ आर बाइडेन के नए अमेरिकी निजाम और 117वीं कांग्रेस ने देश की हालत दुरुस्त करने और दुनिया में अपना नेतृत्व फिर से बहाल करने के लिए फुर्ती से काम करना शुरू कर दिया है।

कांग्रेस के अब सही से व्यवस्थित होने पर प्रशासन उन मामलों पर फोकस करेगा जिनके प्रति सदन के सदस्य प्रतिबद्ध हैं और जो उनके समर्थक उठाते रहे हैं। कैपिटल हिल में अपने लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए कानून बनाते हुए ये सदस्य अपने साथियों का सहयोग भी जुटाते रहे हैं।

दोनो देशों के बीच आपसी नीतिगत संबंधों के विकास को बाइडेन क्या अहमियत देते हैं, इसके संकेत दोनों देशों के नेताओं के बीच हुई शुरुआती वार्ताओं से मिले हैं। इन संकेतों के अनुसार भारत के प्रति अमेरिका के समर्थन में कमी आ सकती है।

भारतीय खेमे से मिले संकेत

भारत को कांग्रेस के दोनों दलों से समर्थन मिलता रहा है। लेकिन इस संबंध में संभावित स्थिति का पहला संकेत हमें हाउस ऑफ रिप्रेजेंटेटिव में भारतीय खेमे के सदस्यों की वॉशिंगटन डीसी में भारत के राजदूत के साथ हाल ही में हुए औपचारिक विमर्श में मिल सकता है। 1990 के दशक में कैपिटल हिल में बने संबद्ध देशों के खेमों में यह सबसे बड़ा खेमा है।

इस खेमे के सह अध्यक्ष बैड शरमन (डेमोक्रेट) और स्टीव शैबार्ट (रिपब्लिकन) ने उपाध्यक्ष रोहित रो खन्ना के साथ अमेरिका में भारत के राजदूत तरनजीत संधू के साथ, विशेषकर भारत में किसान आंदोलन के संदर्भ में, मुलाकात की। मुलाकात के लिए पहल किसने की, इसके बनिस्बत यह जानना जरूरी है कि इस खेमे द्वारा दिया गया संदेश इस मुद्दे की अहमियत दर्शाता है। शरमन द्वारा दिए गए औपचारिक वक्तव्य के अनुसार इन लोगों ने भारत सरकार को लोकतंत्र की मर्यादा रखने और प्रदर्शनकारियों को इंटरनेट और पत्रकारों से मिलने देने की सुविधा के साथ-साथ शांतिपूर्वक विरोध प्रदर्शन करने की अनुमति देने को सुनिश्चित करने का अनुरोध किया। जब कांग्रेस के कुछ और सदस्यों ने सोशल मीडिया पर अलग से किसानों के मामले पर चर्चा की तो उसका भी यही संदेश था कि भारत के सभी हितैषियों को आशा है कि दोनों पक्ष कोई हल निकाल लेंगे।

वर्तमान हाउस ऑफ रिप्रेजेंटेटिव में, रोहित रो खन्ना चार सबसे युवा भारतीय मूल के अमेरिकी नागरिकों में से एक हैं। बाकी हैं, डॉक्टर अमी बेरा, प्रमिला जयपाल और राजा कृष्णमूर्ति। वह (उस) प्रगतिशील ग्रुप से हैं जिसके अधिकांश सदस्य मौजूदा डेमोक्रेट हैं और जो प्रभावशाली ढंग से मुखर रहते हैं। खन्ना, वामपंथी माने जाने वाले बर्नी सैंडर्स के अभियान से भी जुड़े हैं और उनकी इस ग्रुप में सहयोगी हैं जयपाल (डेमोक्रेट)। कांग्रेस के सदस्यों के साथ होने वाली मीटिंग में जयपाल की संभावित उपस्थिति के कारण ही भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर ने दिसंबर 2019 में (जब वह अमेरिका में थे) इस कार्यक्रम को रद्द कर दिया था। इस कारण ही तत्कालीन सीनेटर कमला हैरिस का इस मुद्दे से जुड़ाव हुआ।

भारतीय समुदाय का महत्व

सरकारी कर्मचारियों के बीच वार्ताएं होना एक नियमित प्रक्रिया है,(लेकिन) द्विपक्षीय संपर्कों का अपना एक अलग आयाम है। इसमें भारतीय मूल के अमेरिकी नागरिकों का खासा योगदान है, जो चालीस लाख से अधिक आबादी वाला दूसरा सबसे बड़ा समुदाय है।

इस बहुत शिक्षित और आर्थिक रूप से समर्थ समुदाय के जबरदस्त प्रयास के कारण ही इसकी गिनती अमेरिका के सब से प्रभावशाली वर्गों में होती है। पोखरण विस्फोट के बाद लगे प्रतिबंधों के समय से लेकर असैनिक नाभिकीय समझौते को अमेरिकी सांसद द्वारा अनुमोदित किए जाने के समय तक भारतीय मूल के अमेरिकी नागरिकों ने संबंधों के संवरने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।

लेकिन हाल ही के कुछ सालों में इस समुदाय की वरीयताओं में बदलाव आया है। कार्नेगी, जॉन हॉपकिंस Pennsylvania विश्व विद्यालय द्वारा किए गए सर्वेक्षण से इसके कई स्वरूपों का पता चला है।

भारत में होने वाली विभिन्न घटनाओं पर यह समुदाय कानून निर्माताओं और उनके सहयोगियों से पहले जैसी शिद्दत से जुड़ने के अनुपात में कमी आई है। इसके अलावा पिछले डेढ़ दशक में भारतीय मूल के कई अमेरिकी नागरिकों ने प्रशासन की विभिन्न शाखाओं और कांग्रेस में भी अपनी जगह बना ली है।

आकलन और प्रतिक्रिया

भारतीय मूल के अमेरिकी नागरिकों की दूसरी पीढ़ी का भारत में होने वाली घटनाओं पर अपना ही नजरिया है। इस कारण नई दिल्ली को परस्पर विरोधी दृष्टिकोणों पर अपना पक्ष सशक्त रूप से पेश करने में अतिरिक्त कठिनाई पेश आती है। अमेरिका की कार्यप्रणाली में सहायकों का दृष्टिकोण महत्वपूर्ण निवेश का दर्जा रखता है। (अमेरिकी) प्रशासन और कांग्रेस के लिए दस्तावेज तैयार करते समय, अमेरिकी नीतियों के कट्टर प्रस्तावक इन निर्देशों का भी लाभ उठाते हैं।

भारत के किसान आंदोलन पर दुनिया की भी नजर है और अमेरिका में भी इसकी गूंज सुनाई दे रही है। सोशल मीडिया पर रिहाना अरमीना हैरिस की टिप्पणियों पर भारत में तीखी प्रतिक्रिया लगभग उसी समय हुई जब अमेरिका के राजनैतिक विमर्श में नस्ल गत न्याय और बीएलएम (ब्लैक लाइव्स मैटर) आंदोलन ने पुख्ता जमीन पा ली है। भारत ने भी कैपिटल हिल पर अपनी पकड़ मजबूत कर ली है। नई दिल्ली को इसका भी लाभ मिला है कि जयशंकर और विदेश सचिव हर्ष वर्धन श्रृंगला वॉशिंगटन डीसी में भारत के राजदूत रह चुके हैं। बेल्टवे के कारगुजारियों से दोनों अच्छी तरह परिचित हैं।

भारतीय मिशनों की इस मामले में सहभागिता से भी इस कोशिश को बल मिला है। भारत के एक वैचारिक प्रतिष्ठान ने भी इन प्रयासों को और प्रभावी बनाने के लिए अपनी एक शाखा अमेरिका में खोल ली है। वॉशिंगटन डीसी जैसे शहर में कोई पेशेवर लाबी फर्म किराए पर उठा लेने का चलन मान्य है ही।

एक दिशा सूचक

वर्तमान परिदृश्य में अक्तूबर, 2019 में भारत, अमेरिका 2+2 मीटिंग में व्यक्त किए गए उस आशय की पूर्ति करने की भी चुनौती होगी जिसके अनुसार दोनों देशों के सांसदों के पारस्परिक और औपचारिक दौरों के लिए एक भारत अमेरिकी संसदीय एक्सचेंज की स्थापना की जानी है। यह इसलिए जरूरी है क्योंकि कानून निर्माताओं का मत त्वरित रूप से प्रभावशाली होता है और कई बार प्रशासन के लिए भी दिशा निर्देश का काम करता है।

भारतीयों द्वारा अर्जित प्रतिष्ठा दोनों देशों के संबंधों के भविष्य की राह की शिनाख्त करने में कारगर होगी। लेकिन इसके लिए डेमोक्रेट नियंत्रित सदन से सूझ बूझ के साथ कार्यवाही करनी होगी ताकि वह नई सरकार को भारत से संबद्ध योजनाओं पर अमल करने में और सुविधा होगी। लेकिन अभी तो, जब भारत रूस से एस 400 मिसाइल सुरक्षा सिस्टम खरीदने की तैयारी कर रहा है, भारत के सामने CAATSA या काउंटरिंग अमेरिका एडवर्सरीज थ्रू सैंक्शंस एक्ट के रूप में परीक्षा की घड़ी मौजूद है।

(इंडियन एक्सप्रेस में प्रकाशित इस लेख का अनुवाद महावीर सरबर ने किया है।)

जनचौक से जुड़े

0 0 votes
Article Rating
Subscribe
Notify of
guest
0 Comments
Inline Feedbacks
View all comments

Latest Updates

Latest

‘ऐ वतन मेरे वतन’ का संदेश

हम दिल्ली के कुछ साथी ‘समाजवादी मंच’ के तत्वावधान में अल्लाह बख्श की याद...

Related Articles