Friday, March 29, 2024

अमेरिकी बैंकिंग संकट: वैश्विक अर्थव्यवस्था की स्थिति डांवाडोल

पिछले सप्ताह दो दिनों के भीतर ही सिलिकॉन वैली बैंक और सिग्नेचर बैंक के अचानक डूब जाने की चौंका देने वाली खबर से अमेरिकी अर्थव्यस्था ही नहीं बल्कि दुनिया भर में जबर्दस्त खलबली मची हुई है। दुनिया भर के शेयर बाजार औंधे मुंह पड़े हुए हैं, विशेषकर बैंकिंग सेक्टर में भारी तबाही देखने को मिल रही है।

सिलिकॉन वैली बैंक अमेरिका का 16वां सबसे बड़ा बैंक था। बैंक की वित्तीय हालत खराब होने की आशंका मात्र से एक ही दिन में उसके स्टॉक की कीमतों में 60 प्रतिशत की भारी गिरावट से इसके समूचे बैंकिंग सेक्टर के धराशाई हो जाने की आशंका ने वित्तीय नियामक को तत्काल कार्यवाही करने के लिए विवश कर दिया, और रविवार को ही इसकी ओर से घोषणा कर दी गई थी कि वह बैंक के सभी जमाकर्ताओं की पूंजी की गारंटी लेता है।

सोमवार को अमेरिकी राष्ट्रपति ने अमेरिकी जनता को भरोसा दिलाया कि “अमेरिकियों को इस बात के लिए आश्वस्त रहना चाहिए कि देश में बैंकिंग सिस्टम पूरी तरह से सुरक्षित है।” लेकिन 2,50,000 डॉलर तक की जमा रकम का बीमा होने के बावजूद अमेरिका में आम लोगों का बैंकों पर विश्वास बुरी तरह से हिल गया है। ऐसे में यूरोप और भारत सहित अन्य देशों में बगैर किसी रेगुलेटरी सुरक्षा के बैंकिंग प्रणाली पर भरोसा करना कितना कठिन है, इस बात का अंदाजा सहज ही लगाया जा सकता है।

बता दें कि 210 अरब डॉलर की परिसंपत्तियों वाली एसवीबी बैंक को कैलिफोर्निया की नियामक संस्था ने शुक्रवार को ही जब्त कर लिया था, जब जमाकर्ताओं के द्वारा बैंक के दिवालिया हो जाने की आशंका में अपने-अपने धन की निकासी के होड़ लग गई थी। 2008 के दौरान रियल एस्टेट क्षेत्र के ढह जाने के चलते वाशिंगटन म्यूच्यूअल को अपने नियंत्रण में लेने के बाद से यह अमेरिकी इतिहास में दूसरी सबसे बड़ी बैंक डूबने की घटना है।

रविवार को अमेरिकी रेगुलेटर ने एक और बैंक को बंद कर दिया। सिग्नेचर बैंक का प्रमुख आधार टेक फर्में नहीं थीं, लेकिन यह पहले से ही वित्तीय संकटों से जूझ रही थी। एसवीबी के धराशाई हो जाने की सूचना ने इसमें गति प्रदान की। सिग्नेचर की 40 प्रतिशत पूंजी क्रिप्टो बिजनेस में डूब गई थी। इसके मालिकान इसके टेकओवर के लिए निवेशक की तलाश में थे, लेकिन वे ऐसा कर पाने में असफल रहे थे। अंततः रेगुलेटर को कार्यवाही करनी पड़ी।

यह तीसरा सबसे बड़ा बैंक था जो डूब गया। अमेरिका के वित्त मंत्री ने इसे वास्तव में चिंता का विषय बताया। यह चिंता का विषय अब अमेरिकी बैंकों के लिए विश्वास के संकट में तब्दील हो गया, और देखते ही देखते अमेरिकी बैंकों ने पिछले एक हफ्ते में अपने स्टॉक के मूल्य में 100 अरब डॉलर गंवा दिए। यूरोपीय बैंकों के स्टॉक में भी भारी गिरावट देखी गई और वे भी तकरीबन 50 अरब डॉलर से हाथ धो बैठे।

इसका असर दुनिया भर के बैंकों में देखा गया। एशिया के बैंक भी इससे अछूते नहीं रहे। एक बार फिर से लेहमन ब्रदर्स संकट की याद सताने लगी है। भारतीय स्टार्टअप पर इसका क्या प्रभाव पड़ने जा रहा है, को लेकर भारत में आईटी मंत्री राजीव चंद्रशेखर की भारतीय स्टार्टअप कंपनियों से मुलाकात तय हुई है।

इस बीच क्रेडिट सुईस जो कि स्विट्ज़रलैंड का दूसरा सबसे प्रतिष्ठित बैंक है, के शेयरों में कल 30 प्रतिशत की गिरावट दर्ज हुई थी। दिन भर अटकलों का बाजार गर्म था कि जल्द ही वैश्विक पहचान रखने वाला बैंक डूब जायेगा। लेकिन जल्द ही बैंक के लिए राहत की खबर आ गई। क्रेडिट सुईस बैंक दुनिया के चंद गिने चुने बैंकों में वह पहला बैंक है जिसे 2008 के वित्तीय संकट के बाद आपातकालीन मदद की जा रही है।

ताजा खबर के मुताबिक क्रेडिट सुईस स्विट्ज़रलैंड के केंद्रीय बैंक से 54 अरब डॉलर का ऋण हासिल करने जा रहा है, जिससे वह अपने लिक्विडिटी को बनाये रखने और निवेशकों के विश्वास को बरकरार रखने में कामयाब हो सकेगा। इस घोषणा के साथ ही खबर है कि उसके शेयर एक बार फिर से सकारात्मक रुख अपना चुके हैं। यह विश्वास स्विस अथॉरिटी की ओर से भी दिया गया है, जिसमें उसकी ओर से बुधवार को आश्वस्त किया गया कि क्रेडिट सुईस बैंक को आवश्यक “पूंजी और तरलता की जरूरतों को पूरा कर लिया गया है और जरूरत पड़ी तो बैक अपनी लिक्विडिटी को बरकरार रखने के लिए सेंट्रल बैंक के पास जा सकता है।”

वहीं एशिया में निवेशकों ने सुरक्षित ठिकानों की तलाश के साथ गोल्ड, बांड्स और डॉलर की शरण में जाना शुरू कर दिया है। 167 साल पुराने क्रेडिट सुईस के संकट ने अमेरिका से लेकर यूरोप के नियामकों के माथे पर चिंता की लकीरें खड़ी कर दी हैं। बैंक के सबसे बड़े निवेशक सऊदी नेशनल बैंक ने यह कहते हुए अपने हाथ खड़े कर दिए थे कि वह अपने रेगुलेटरी नियमों के तहत क्रेडिट सुईस को अब और अधिक वित्तीय मदद कर पाने की स्थिति में नहीं है। इस खबर के बाद से ही क्रेडिट सुईस बुरी तरह से टूट गया।

बुधवार को क्रेडिट सुईस में हुई इस जबर्दस्त गिरावट ने दुनियाभर के बैंकिंग सिस्टम को झकझोर कर रख दिया है। इसने बड़े पैमाने पर वित्तीय संकट के वैश्विक स्तर पर गहराने की आशंका को हवा दे दी है। गौरतलब है कि पिछले कुछ वर्षों से क्रेडिट सुईस के भीतर कई स्कैंडल और अनियमितता का दौर चल रहा था। इसमें शीर्ष में प्रबंधन की अनियमितता और अनाप-शनाप खर्चे जिसके चलते बड़े पैमाने पर व्यापारिक नुकसान की खबरें सर्किल में थीं, जिससे उबरने के लिए बैंक के द्वारा हजारों कर्मचारियों की छंटनी तक कर दी गई थी।

वहीं दूसरी तरफ 3 अमेरिकी बैंकों के डूब जाने के कारण समूचे बैंकिंग सेक्टर से निवेशकों का विश्वास हिला हुआ है। लेकिन क्रेडिट सुईस के कल के खस्ताहाल से अब फोकस स्विट्ज़रलैंड पर आ गया है। उपर से टॉप सऊदी निवेशक के द्वारा क्रेडिट सुईस को और निवेश से साफ़ इनकार से निवेशकों के बीच में इसे विश्वास के संकट के रूप में देखा गया। इन सभी चीजों ने मिलकर क्रेडिट स्विस के लिए एक बड़े आघात का काम किया और दिन में एक समय तो इसके शेयर 30 प्रतिशत तक गिर गये थे। इसे देखते हुए रेगुलेटर और स्विस सरकार की ओर से तत्काल बैंक को संकट से मुक्त करने के लिए बयान आ गया।

क्रेडिट सुईस एक ग्लोबल सिस्टेमेटिक बैंक है और आकार में यह वास्तव में एक बड़े बैंक की श्रेणी में आता है, और दुनिया की विभिन अर्थव्यस्थाओं से यह इंटरकनेक्टेड है। ग्लोबल इकॉनमी से इसका जुड़ाव नाभिनालबद्ध है, और कोई भी आघात समूचे विश्व पर पड़ेगा। यहां पर असली सवाल यह है कि क्या यह विश्वास का संकट एक नकारात्मक चक्रीय जाल की शुरुआत को जन्म दे रहा है, जो अंततः एक सर्वव्यापी व्यापक वित्तीय संकट की ओर ले जाने वाला है?

वहीं दूसरी तरफ अमेरिकी एसवीबी बैंक के डूबने से पहले ही अमेरिका का एक और बैंक सिल्वरगेट कैपिटल एक सप्ताह पूर्व ही डूबा था। हालांकि इसके डूबने की वजह उसके एफ़टीएक्स और जेनेसिस जैसे क्रिप्टो करंसी ग्राहक थे। सरकार ने इसे बचाने के लिए अपनी ओर से कोई पहल नहीं की थी।

सिलिकॉन वैली बैंक क्यों डूबा?

सिलिकॉन बैंक की परिघटना पारंपरिक बैंकों की वित्तीय अनियमितता और फण्ड के साथ छेड़छाड़ से बिल्कुल अलग है। 1983 में स्थापित इस बैंक ने प्रमुख रूप से स्टार्टअप कंपनियों के बीच में अपनी पैठ बनाई थी, और मुख्यत: इसके पास बड़े निवेशक थे। पिछले दो दशकों से ब्याज दर गिरकर लगभग शून्य हो चुकी थी, और नए स्टार्टअप और टेक कंपनियों के लिए निवेश, विशेष रूप से covid-19 महामारी के दौर में अवसरों की झड़ी लगा दी थी।

दो वर्षों में ही एसवीबी बैंक की संपत्ति में तिगुने की वृद्धि हो चुकी थी, और उसकी ओर से लगभग 40 प्रितशत पूंजी दीर्घकालीन निवेश के तहत सरकारी बांड में लगाई गई थी, जोकि उसके लिए घातक सिद्ध हुई। 209 बिलियन डॉलर की पूंजी और करीब 175 बिलियन डॉलर की कुल जमा राशि के साथ यह कंपनी अपनी बैलेंस शीट में क्लीन थी। लेकिन ब्याज दरों में तेजी से वृद्धि के चलते जहां एक तरफ एसवीबी का निवेश घटा, वहीं बैंक के पास लिक्विडिटी की कमी ने एक ऐसे संकट को जन्म दिया जिसने देखते ही देखते अमेरिका के टॉप 20 बैंकों की सूची में शामिल इस बैंक को धूल में मिला दिया।

छोटे जमाकर्ताओं के विशाल नेटवर्क के बजाय इसका आधार काफी छोटा था और मुख्यतया बड़े निवेशक इससे जुड़े थे। कोविड महामारी के बाद से ही दुनिया में स्टार्टअप और टेक कंपनियों को संकट का सामना करना पड़ रहा है। अपने वित्तीय संकट के साथ आगे और निवेश की संभावना के धूमिल होने की अवस्था में कई स्टार्टअप ने एसवीबी बैंक में अपनी जमाराशि की ओर रुख किया। बैंक के पास इतनी लिक्विडिटी नहीं थी, और उसका बड़ा निवेश दीर्घावधि वाले बांड में था, जिसे उसने लगभग 1.9 बिलियन डॉलर घाटे में निकाला।

यह खबर बड़े निवेशकों के बीच में तेजी से फ़ैल गई और देखते ही देखते बैंक के दरवाजे पर निवेशकों का ताता लग गया। मार्केट रिसर्च फर्म इसे “बैलेंस शीट कुप्रबंधन” की संज्ञा दे रहे हैं। वहीं 110 बिलियन डॉलर की पूंजी के साथ सिग्नेचर बैंक के डूबने की वजह एसवीबी बैंक बताई जा रही है। यहां पर इसके निवेशकों ने बैंक के उपर विश्वास की कमी के चलते तुरत-फुरत अपने धन को बड़े बैंकों में जमा करने की होड़ लगा दी, और देखते ही देखते यह बैंक भी डूब गया।

यहां पर संकट एक बार फिर से मोर्गन स्टेनले जैसे बैंकों पर नहीं है, जिनके पास 3 ट्रिलियन डॉलर तक की पूंजी है और जो फेडेरल बैंक की गाइडलाइन में खुद को रखते हैं। लेकिन सिलिकॉन वैली जैसे दर्जनों और बैंक हैं, जिसके निवेशक लगातार आशंका के बीच में हैं और अपनी पूंजी निकालकर किसी सुरक्षित बैंक या बांड में निवेश कर रहे हैं।

उदहारण के लिए सेन फ्रांसिस्को की फर्स्ट रिपब्लिक बैंक (212 बिलियन डॉलर) की 70 प्रतिशत रेट में गिरावट देखी गई, जबकि वेस्टर्न अलायन्स बैंक कॉरपोरेशन की पूंजी में 81 प्रतिशत, पैकवेस्ट बेनकोर्प में 50 प्रतिशत और ज़िओन बेन कॉरपोरेशन में 27 प्रतिशत शेयर स्वाहा हो गये हैं। इसी प्रकार कई अन्य दर्जन भर बैंकों की पूंजी 10 प्रतिशत से अधिक डूब गई है।

दुनियाभर के हुक्मरानों का ध्यान अब यूक्रेन-रूस संघर्ष से हटकर पूरी तरह से वित्तीय संकट से निपटने में लगा हुआ है। उन्हें 2008 के वित्तीय संकट और किसी वैश्विक बैंक के इसमें फंसने की आशंका को किसी भी प्रकार से निपटने के लिए तैयार रहने की जरूरत सता रही है।

इसी बीच स्विट्ज़रलैंड की क्रेडिट सुईस की लड़खड़ाहट ने इस खतरे को हवा दे दी है। बुधवार को जिस प्रकार से क्रेडिट सुईस ताश के पत्तों की तरह भरभरा कर गिर रहा था, को किसी तरह अंतिम समय में स्विस अथॉरिटी और सेंट्रल बैंक ने रोका, उससे दुनियाभर ने राहत की सांस ली है। लेकिन यह संकट अभी थमा नहीं है।

2008 के वित्तीय संकट की सटीक भविष्यवाणी करने वालों में से एक रौबिनी, जो न्यूयार्क विश्वविद्यालय से संबद्ध हैं, के अनुसार, “समस्या यह है कि कतिपय मानदंडों के मुताबिक यह संभव है कि क्रेडिट सुईस इतना विशाल है कि वह डूब नहीं सकता है, लेकिन यह भी सच है कि यह इतना विशाल है कि इसे बचा पाना भी उतना ही दुरूह है।” राहत की बात यह है कि क्रेडिट सुईस के लिए 54 बिलयन डॉलर की मदद स्विस सेंट्रल बैंक की ओर से की जा रही है।

जहां तक भारत का प्रश्न है, तो उसके सामने बैंकिक सेक्टर और टेक कंपनी दोनों बेहद महत्वपूर्ण हैं। नए स्टार्टअप के बूम के साथ 2022 की शुरुआत भारत में हुई थी। उदाहरण के तौर पर बायजू जैसी एजुकेशन टेक कंपनी को यदि लें तो पिछले कुछ वर्षों में उसकी ग्रोथ और शिक्षा क्षेत्र में एक के बाद एक कई कंपनियों के टेकओवर से लेकर अरबों रुपये के विज्ञापन के जरिये, बायजू ने अपनी विशिष्ट पहचान स्थापित कर ली थी।

एक समय तो ऐसा लग रहा था जैसे बायजू देश में शिक्षा के क्षेत्र में बुनियादी क्रांति लाने जा रहा है। लेकिन जैसे ही महामारी से देश उबरा और लोगों ने सामान्य रूप से अपना कामकाज शुरू किया, स्कूल कालेज खुले, बायजू की किस्मत ने पलटी खाई और आज उसके द्वारा हजारों की संख्या में स्टाफ में कटौती, निवेश में कटौती और वित्तीय अनियमितता की खबरें ही सुर्ख़ियों में है।

जबकि 2023 के शुरूआती महीनों में ही दुनियाभर की टेक कंपनियों ने बड़ी संख्या में अपने स्टाफ में कटौती शुरू कर दी है। सारे विश्व में टेक कंपनियों में ले ऑफ को ट्रैक करने के लिए एक स्टार्टअप कंपनी लेऑफ एफ़वाईआई के नवीनतम आंकड़ों के मुताबिक वर्ष 2023 में 15 मार्च तक कुल 489 टेक कंपनियों ने 1,38,512 स्टाफ को पिंक स्लिप थमा दी है। वहीं 2022 में कुल 1051 टेक कंपनियों ने 1,61,411 कर्मचारियों को ले ऑफ किया था।

ये आंकड़े भयावह हैं, और भविष्य की तस्वीर बेहद अंधकारमय नजर आती है। मार्च में ही गुरुग्राम की एक हेल्थकेयर स्टार्टअप कंपनी प्रिस्टिन केयर ने अपनी कंपनी से 300 कर्मचारियों को नौकरी से निकाला है। बता दें कि यह संख्या उसकी कुल संख्या का 15 प्रतिशत है। इतनी बड़ी संख्या में एक झटके में अपने स्टाफ को निकाल बाहर करना कंपनी के वित्तीय स्वास्थ्य और भविष्य की ओर इशारा करता है।

आज ये टेक कंपनियां बिना कोई संतोषजनक उत्तर दिए ही एक ही झटके में सिर्फ ईमेल के जरिये ही नए टैलेंट को जिस तरह से काम पर न आने का निर्देश दे रही हैं, वह युवा पीढ़ी के लिए किसी भयानक आघात से कम नहीं है। अभी हाल ही में एक शीर्ष की आईटी कंपनी ने अपने नए स्टाफ को 6.5 लाख की सैलरी के नियुक्ति पत्र को रद्द कर सीधे आधी सैलरी पर काम करने के निर्देश दिए थे, जिसने समूची सॉफ्टवेयर इंडस्ट्री को सकते की हालत में ला दिया है।

यह तो भला हो पूर्व आरबीआई गवर्नर रघुराम राजन का, जिन्होंने बैंकों की बैलेंस शीट को साफ़ सुथरा बनाने के लिए बैंक एनपीए को दर्ज कराना आवश्यक बना दिया था, जिसके चलते भारत में 5 साल पहले ही बैंकों की वित्तीय स्थिति का कुछ अंदाजा हो गया था। केंद्र सरकार ने भी इसके बाद बैंकों में आवश्यक पूंजी का निवेश किया, और लाखों करोड़ रुपये की लूट के बाद भी भारत के बैंक अभी भी किसी तरह खुद को जिंदा रखे हुए हैं। लेकिन जिस प्रकार से दुनिया आज वैश्विक रूप से आपस में गुंथी हुई है, वह विश्व के किसी भी कोने में झटके खाने पर भारत को भी हिचकोले खाने के लिए विवश कर सकती है।

अडानी संकट में जिस प्रकार से देश के प्रमुख बैंक एसबीआई सहित एलआईसी की भूमिका संदिग्ध बनी हुई है, और उपर से बैंक ऑफ़ बड़ौदा के प्रबंध निदेशक की अडानी समूह को और कर्ज देने की खुली घोषणा बताती है कि अमेरिका या स्विट्ज़रलैंड जैसी अर्थव्यस्था, जो मजबूत होने के साथ-साथ पूरे विश्व से अपने लिए धन को अवशोषित करती है, की तुलना में भारत में यदि यह संकट गहराता है तो हमारे पास श्रीलंका, पाकिस्तान की राह ही बचती है।

(रविंद्र पटवाल स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)

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