गांधी जयंती विशेष: गांधी जी का सेक्युलरिज्म अर्थात भारत का सेक्युलरिज्म क्या है?

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इस समय सम्पूर्ण देश में इस बात पर बहस जारी है कि सेक्युलरिज्म भारतीय मूल्य है या यूरोपीय है। इस बात पर बहस तमिलनाडु के राज्यपाल द्वारा प्रारंभ की गई। परंतु जिस सेक्युलरिज्म को हम मानते हैं, जिस सेक्युलरिज्म को इस देश की बहुसंख्यक जनता मानती है वह पूरी तरह से भारतीय है।

हम सेक्युलरिज्म की इस परिभाषा को मानते हैं जो बापू ने की है। उनका धर्मनिरपेक्षता या सेक्युलरिज्म के प्रति जो विचार था वह ही हमारा विचार है।

गांधीजी की नज़र में धर्मनिरपेक्षता क्या है? उन्होंने अनेक अवसरों पर इसकी परिभाषा की थी। हमारा तमिलनाडु के राज्यपाल से अनुरोध है कि वे भी गांधीजी द्वारा परिभाषित सेक्युलरिज्म को स्वीकार करें।

गांधीजी की समाज व्यवस्था का आधार था धर्मनिरपेक्षता। उनसे एक विदेशी पत्रकार ने पूछा कि ‘‘यह कैसे हो सकता है कि आप धार्मिक हैं और धर्मनिरपेक्ष भी‘‘। उनका उत्तर था ‘‘हां मैं धार्मिक हूं और धर्मनिरपेक्ष भी। मेरी मेरे सनातन धर्म में अगाध आस्था है।

यदि कोई मेरी आस्था पर हमला करेगा तो मैं अपने धर्म की रक्षा करते हुए अपनी जान भी दे दूंगा। परंतु यदि मेरे पड़ोस में किसी अन्य धर्म का पालन करने वाला परिवार रहता है और उसकी आस्था पर कोई हमला करता है तो मैं उसकी रक्षा करते हुए भी अपनी जान दे सकता हूं‘‘। यह है गांधी जी का सेक्युलरिज्म अर्थात भारत का सेक्युलरिज्म।

इस समय हमारे देश में धर्म के आधार पर प्रायः संघर्ष की स्थिति निर्मित हो जाती है। परंतु ऐसी स्थिति में हम तटस्थ हो जाते हैं और मूक दर्शक बनकर खून-खराबा होने देते हैं। यहां तक कि हमारी पुलिस भी तमाशबीन बन जाती है। पिछले 70 वर्षों में हमारे देश में धार्मिक वैमनस्य के कारण हुए दंगों से देश काफी कमजोर हुआ है।

गांधीजी ने साम्प्रदायिक दंगों को रोकने के लिए मैदानी संघर्ष किया। नोआखली और दिल्ली के दंगों के दौरान उनकी भूमिका इतिहास का हिस्सा बन गई। धार्मिक अल्पसंख्यकों की सुरक्षा और विकास गांधीजी की धर्मनिरपेक्षता का अभिन्न अंग था।

एक अवसर पर गांधीजी ने कहा था ‘‘यदि आजाद भारत में अल्पसंख्यक, दलित और स्त्रियां अपने आपको सुरक्षित महसूस नहीं करेंगी तो वह भारत मेरे सपनों का भारत नहीं होगा। मेरे भारत में छुआछूत नहीं होगी। मेरे भारत में सभी को अपने धर्म का पालन करने का पूरा अधिकार होगा।

मेरे भारत के नागरिकों को कोई यह आदेश नहीं देगा कि वह क्या खाए और क्या न खाए, क्या पहने और क्या न पहने। मेरे भारत की सरकार सभी धर्मों के अनुयायियों को बराबर सुरक्षा देगी और किसी एक धर्म को संरक्षण प्रदान नहीं करेगी‘‘।

गांधीजी की इच्छा थी कि भारत एक लोकतंत्र बने। उनकी मान्यता थी कि लोकतंत्र में ही धर्मनिरपेक्ष समाज का अस्तित्व हो सकता है। उनके लोकतंत्र में ऐसी राजनीतिक पार्टियों का कोई स्थान नहीं होगा जो संकुचित, स्वार्थों को बढ़ावा दें, जो सिर्फ पैसे की ताकत से सत्ता पर कब्जा करें और जो षड़यंत्र करके सत्ता हथियाएं।

लोकतंत्रात्मक समाज में पुलिस और सेना की क्या भूमिका होगी इसके बारे में गांधीजी के स्पष्ट विचार थे।

गांधीजी के अनुसार आजाद भारत में पुलिस व सेना पूरी तरह से निष्पक्ष होनी चाहिए। उसका मुख्य कर्तव्य देश में शांति और भाईचारा स्थापित करना होना चाहिए।

उन्हें गरीबों और असहायों की सुरक्षा के प्रति प्रतिबद्ध होना चाहिए। उन्हें हमेशा अल्पसंख्यकों और दलितों के अधिकारों का संरक्षण करना चाहिए। स्वयं पुलिस व सेना के भीतर जाति तथा धर्म के आधार पर विभाजन नहीं होना चाहिए।

गांधीजी का कहना था कि ‘‘धार्मिक समरसता के साथ-साथ सभी के सिर पर छांव, सभी को भोजन, शिक्षा और स्वास्थ्य की सुविधा मिलनी चाहिए। सभी को सुलभता से न्याय प्राप्त होना चाहिए। सभी के बीच सीमेंट के समान एकता रहनी चाहिए।

मैं स्वयं इस एकता के लिए सीमेंट की भूमिका अदा करने को तैयार हूं। इस एकता के लिए मैं अपना खून भी दे सकता हूं‘‘ और गांधीजी ने ऐसा किया भी।

नाथूराम गोडसे गांधीजी के इन्हीं विचारों से नाराज था और इसी के चलते उसने बापू की हत्या की और बापू ने यह सिद्ध कर दिया कि उन्होंने इस समरसता को कायम रखने के लिए सीमेंट का काम किया।

जान ब्रिले, जिन्होंने ‘गांधी‘ फिल्म की पांडुलिपि लिखी थी, से पूछा गया कि आपने ‘गांधी‘ फिल्म की पांडुलिपि क्यों लिखी? उत्तर देते हुए उन्होंने कहा कि ‘‘मुझे गांधीजी के अभूतपूर्व साहस, उनकी नम्रता, उनकी प्रतिबद्धता, सहनशीलता, उनकी दूसरों को अपनी ओर आकर्षित करने की चुंबकीय शक्ति, जिस शक्ति से गांधीजी विभिन्न संस्कृतियों के जीते-जागते प्रतीक जवाहरलाल नेहरू और हठ की हद तक दृढ़ निश्चयी और रूखे व्यक्तित्व के धनी सरदार पटेल को अपनी ओर आकर्षित कर सके।

‘‘उनमें अद्भुत संगठन क्षमता थी, इसी क्षमता के बलबूते उन्होंने कांग्रेस को, जो शुरू में एक क्लब था, एक ताकतवर संगठन बना दिया। विरोध प्रकट करने के वे ऐसे तरीके निकालते थे जिनकी कोई कल्पना तक नहीं कर सकता था।

नमक सत्याग्रह उनका ऐसा ही एक नायाब तरीका था। दांडी यात्रा के अंत में मुट्ठी भर नमक बनाते हुए उन्होंने यह कहा था कि इसके द्वारा मैंने ब्रिटिश साम्राज्य की नींव हिला दी है।

(एल.एस. हरदेनिया राष्ट्रीय सेक्युलर मंच के संयोजक हैं)

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