जब निरंकुश सत्ताओं के लिए चुनौती बन गए व्यंग्यकार!

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मशहूर साहित्यकार हरिशंकर परसाई व्यंग्य के विषय में कहते थे– “व्यंग्य जीवन से साक्षात्कार करता है, जीवन की आलोचना करता है, विसंगतियों, अत्याचारों, मिथ्याचारों और पाखंडों का पर्दाफाश करता है।” लेकिन स्टैंडअप कॉमेडियन कुणाल कामरा के व्यंग-ट्वीट से सुप्रीम कोर्ट से लेकर संसद तक हाय-तौबा मची है। सोशल मीडिया पर सामान्य जन न सिर्फ़ उनके ट्वीट को रिट्वीट कर रहे हैं, बल्कि उन पर प्रतिक्रिया देते हुए खुलकर सुप्रीम कोर्ट के जजों पर टिप्पणी भी कर रहे हैं। इससे पहले लोग-बाग सुप्रीम कोर्ट के फैसलों पर असंतुष्ट होने के बावजूद अवमानना के डर से चुप्पी साधे रखते थे, लेकिन कुणाल कामरा ने उनके अंदर से वो डर खत्म कर दिया है। सुप्रीम कोर्ट के खिलाफ टिप्पणी करके अवमानना केस में फंसे कुणाल कामरा को जिस तरह से लोगों का समर्थन मिल रहा है वो अभूतपूर्व है। इस फासिस्ट दौर में जब तमाम जनविरोधी मुद्दों पर तमाम कलाकार- ‘कलाकार कला के लिए’ कह कर अपनी जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ लेते हैं कुणाल कामरा लगातार हस्तक्षेप करके सीधे सत्ता व्यवस्था से टक्कर ले रहे हैं।

अपने काम अपनी विधा से सीधे सत्ता पर सवाल खड़े करने वाले कुछ कलाकारों पर एक नज़र डालते हैं-

हरिशंकर परसाई
भारत के संदर्भ में जब भी सत्ता को चुनौती देने, सवाल खड़े करने की बात होती है तो सबसे पहला नाम जो याद आता है वो है- व्यंग्य साहित्यकार हरिशकंर परसाई का। हरिशंकर परसाई भारत की किसी भी भाषा के इकलौते व्यंगकार हैं, जिन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार से नवाजा गया। वो अपनी रचनाओं में लगातार सत्ता के राजनीतिक, समाजिक, सांस्कृतिक, सांप्रदायिक चरित्र पर बहुत मजबूती से सवाल उठाते हैं।

उनके कुछ कोट देखिए जो आज ट्विटर के जमाने में ट्वीट पर होते तो सत्ता उन्हें भी अवमानना, या अर्बन नक्सली, राष्ट्र द्रोही जैसे किसी केस में फांस लेती। गौरक्षा के दोगलेपन पर टिप्पणी करते हुए परसाई लिखते हैं
“अर्थशास्त्र जब धर्मशास्त्र के ऊपर चढ़ बैठता है तब गोरक्षा आंदोलन के नेता जूतों की दुकान खोल लेते हैं।” इतना ही नहीं गाय की राजनीति करने वालों को करीने से नंगा करते हुए परसाई लिखते हैं-“जनता कहती है हमारी मांग है, मंहगाई बंद हो, मुनाफाखोरी बंद हो, वेतन बढ़े, शोषण बंद हो, तब हम उससे कहते हैं कि नहीं, तुम्हारी बुनियादी मांग गोरक्षा है। बच्चा, आर्थिक क्रांति की तरफ बढ़ती जनता को हम रास्ते में ही गाय के खूंटे से बांध देते हैं। यह आंदोलन जनता को उलझाए रखने के लिए है।”

ये समय प्रेम और प्रेम विवाह के विरोधियों का है। वो प्रेमियों की शिनाख्त करने के लिए रोमियो स्क्वॉड बनाते हैं, वैलेंटाइन डे पर अपने पालतू गुंडों को प्रेमी जोड़ों का शिकार करने भेज देते हैं। परसाई इस पर भी व्यंग करते हुए लिखते हैं- “24-25 साल के लड़के-लड़की को भारत की सरकार बनाने का अधिकार तो मिल चुका है, पर अपना जीवन-साथी बनाने का अधिकार नहीं मिला।”

प्रेम विवाहों और अन्तर्जातीय विवाहों के संदर्भ में परसाई परंपरा के हवाले से लिखते हैं- “भगवान अगर औरत भगाए तो वह बात भजन में आ जाती है। साधारण आदमी ऐसा करे तो यह काम अनैतिक हो जाता है। जिस लड़की की आप चर्चा कर रहे हैं, वह अपनी मर्ज़ी से घर से निकल गई और मर्ज़ी से शादी कर ली, इसमें क्या हो गया?”

प्रेम और मनुष्यता के दुश्मन आरएसएस-भाजपा के हवा-हवाई ‘लव जिहाद’ पर परसाई की टिप्पणी सटीक हस्तक्षेप करती है- “अपने यहां प्रेम की भी जाति होती है। एक हिंदू प्रेम है, एक मुसलमान प्रेम, एक ब्राह्मण प्रेम, एक ठाकुर प्रेम, एक अग्रवाल प्रेम। एक कोई जावेद आलम किसी जयंती गुहा से शादी कर लेता है, तो सारे देश में लोग हल्ला कर देते हैं और दंगा भी करवा सकते हैं।” 

बेरोजगार युवाओं की भीड़ किस तरह फासीवादियों की ताक़त बनती है इस पर परसाई लिखते हैं- “दिशाहीन, बेकार, हताश, नकारवादी, विध्वंसवादी बेकार युवकों की यह भीड़ ख़तरनाक होती है। इसका प्रयोग महत्वाकांक्षी ख़तरनाक विचारधारा वाले व्यक्ति और समूह कर सकते हैं। इस भीड़ का उपयोग नेपोलियन, हिटलर, और मुसोलिनी ने किया था।”

स्त्री विरोधी सामंती राजनीति, समाजनीति और धर्मनीति पर वो लिखते हैं- “इस क़ौम की आधी ताक़त लड़कियों की शादी करने में जा रही है।”

पूंजीवादी फासीवाद के सांस्कृतिक लफ्फ़ाजी की शिनाख्त करके वो लिखते हैं- “अमरीकी शासक हमले को सभ्यता का प्रसार कहते हैं। बम बरसते हैं तो मरने वाले सोचते हैं, सभ्यता बरस रही है।”

फासीवादी दमनवादी सरकार की जनविरोधी नीतियों के फैसलों पर चुप्पी ओढ़कर निष्पक्षता की दुहाई देने वाले साहित्यकारों, बुद्धिजीवियों, कलाकारों पर तीखी टिपप्णी करते हुए परसाई लिखते हैं- “अद्भुत सहनशीलता और भयावह तटस्थता है इस देश के आदमी में। कोई उसे पीटकर पैसे छीन ले तो वह दान का मंत्र पढ़ने लगता है।”

इसी तरह वो शाकाहार की दुहाई देकर मांसाहार करने वाले लोगों की मॉब लिचिंग करवाने वाली राज-धर्म-नीति पर लिखते हैं- “जो पानी छानकर पीते हैं वो आदमी का ख़ून बिना छाने पी जाते हैं।”

सत्तावादी कार्पोरेट और कार्पोरेट परस्त राजनीति पर टिप्पणी करते हुए वो लिखते हैं- “जिन्हें पसीना सिर्फ़ गर्मी और भय से आता है, वे श्रम के पसीने से बहुत डरते हैं।”

एक विदूषक जो राष्ट्रपति पर व्यंग करते-करते राष्ट्रपति बन गया 
यूक्रेन के अभिनेता वोलोडिमिर जेलेंस्की एक राजनीतिक हास्य ड्रामे ‘सर्वेंट ऑफ द पीपल’ के जरिए राजनीतिक शख्सियतों और राजनीतिक नीतियों पर व्यंग किया करते थे। इस सीरियल में उनका किरदार एक ऐसे व्यक्ति का था जो दुर्घटनावश यानी अचानक से यूक्रेन का राष्ट्रपति बन जाता है। अपने राजनीतिक कैरियर से पहले, उन्होंने कानून की डिग्री प्राप्त की और एक प्रोडक्शन कंपनी, ‘केवर्टल-95’ बनाई, जो फिल्मों, कार्टून और टीवी कॉमेडी शो का निर्माण करती है। ‘केवर्टल-95’ ने टेलीविजन श्रृंखला ‘सर्वेंट ऑफ द पीपल’ बनाई, जिसमें ज़ेलेंस्की ने यूक्रेन के राष्ट्रपति की भूमिका निभाई। यह श्रृंखला 2015 से 2019 तक प्रसारित की गई। आगे चलकर इसी नाम की एक राजनीतिक पार्टी मार्च 2018 में कवर्टल 95 के कर्मचारियों द्वारा बनाई गई।

ज़ेलेन्स्की ने 31 दिसंबर 2018 की संध्या को, 1+1 टीवी चैनल पर अपनी राष्ट्रपति उम्मीदवारी की घोषणा की। ज़ेलेंस्की कि राष्ट्रपति उम्मीदवारी की घोषणा के छह महीने पहले ही चुनाव के लिए जनमत सर्वेक्षणों में वह सबसे आगे थे। ज़ेलेंस्की ने 2019 यूक्रेनी राष्ट्रपति चुनाव में 73.22% मत हासिल कर राष्ट्रपति के चुनाव में जीत हासिल की और यूक्रेन के तत्कालीन राष्ट्रपति पेट्रो पोरोशेंको को हराया। बता दें कि यूक्रेन में लोग सामाजिक असामनता, भ्रष्टाचार और पूर्वी यूक्रेन में रूसी समर्थित अलगाववादियों के कारण काफी परेशान हैं। इसके चलते अब तक 13 हजार लोगों की जान जा चुकी है। करीब 4.5 करोड़ लोगों की जिम्मदेरी अब जेलेंस्की पर होगी।

साल 2008 में, उन्होंने फीचर फिल्म ‘लव इन द बिग सिटी’ और इसके सीक्वल ‘लव इन द बिग सिटी-2’ में अभिनय किया। ज़ेलेंस्की ने फ़िल्म ऑफ़िस रोमांस के साथ अपना फ़िल्मी करियर जारी रखा। 2011 में ‘ऑवर टाइम’ और 2012 में ‘रेज़ेव्स्की वर्सस नेपोलियन’ में काम किया। ‘लव इन द बिग सिटी-3’ जनवरी 2014 में रिलीज़ हुई। ज़ेलेंस्की ने 2012 की फिल्म ‘8 फर्स्ट डेट्स’ और इसके सीक्वल में भी प्रमुख भूमिका निभाई, जो 2015 और 2016 में निर्मित हुई। ज़ेलेंस्की 2010 से 2012 तक टीवी चैनल इंटर के बोर्ड सदस्य और निर्माता भी थे।

अगस्त 2014 में, ज़ेलेंस्की ने यूक्रेन में यूक्रेनी संस्कृति मंत्रालय द्वारा रूसी कलाकारों पर प्रतिबंध लगाने पर मंत्रालय की कड़ी निंदा की। 2015 से, यूक्रेन ने रूसी कलाकारों, रूसी संस्कृति और अन्य रूसी कार्यों पर यूक्रेन में प्रवेश करने पर प्रतिबंध लगा दिया था। 2018 में, यूक्रेन में रोमांटिक कॉमेडी फिल्म ‘लव इन द बिग सिटी-2’, जिसमें ज़ेलेंस्की मुख्य किरदार में थे, उस पर प्रतिबंध लगा दिया गया था।

यूक्रेनी मीडिया के मुताबिक डोनबास में युद्ध के दौरान ज़ेलेंस्की के केवर्टल 95 ने यूक्रेनी सेना को एक मिलियन हिंगनिया दान किया था, इसक चलते रूस के राजनेताओं और कलाकारों ने रूस में उनके कामों पर प्रतिबंध लगाने के लिए याचिका दायर की और रूस ने ज़ेलेंस्की पर प्रतिबंध लगा दिया। यूक्रेनी संस्कृति मंत्रालय का इरादा यूक्रेन से रूसी कलाकारों पर प्रतिबंध लगाना था, जिस पर उन्होंने अपनी प्रतिक्रिया दी थी।

फासीवाद और पूंजीवाद का प्रतिरोध रचने वाले दुनिया के सबसे बड़े कलाकार चैप्लिन
दुनिया पर फासीवाद का जब सबसे बड़ा हमला हुआ था। हिटलर, मुसोलिनी, जैसे फासीवादियों ने मनुष्यता के खिलाफ़ जनसंहार की मुहिम छेड़ रखी थी। पूंजीवाद अपने बर्बर चंगुल में मशीनें फिट करके मनुष्यों का जूस निचोड़ने में लगा हुआ था। तब चार्ली चैप्लिन ने ‘ड ग्रेट डिटेक्टर’ और ‘मॉडर्न टाइम्स’ बनाई। जब पूरा यूरोप आर्थिक महामंदी की तबाही से गुजर रहा था, चारों ओर तानाशाहों का आतंक था ऐसे वक्त में चार्ली ने हास्य को अपना हथियार बनाया। चार्ली ने लोगों को सिखाया कि डर को हास्य से हराया जा सकता है।

इस तरह ‘द ग्रेट डिटेक्टर’ से फासीवादी खेमा उनके खिलाफ़ हुआ तो ‘मॉडर्न टाइम्स’ फिल्म से पूंजीवादी अमेरिका। चार्ली चैप्लिन पर कम्युनिस्ट समर्थक होने का ठप्पा लगाकर साल 1952 में अमेरिका में बैन कर दिया गया। चार्ली की फिल्मों के कम्युनिस्ट विचारों के चलते अमेरिका ने उन पर प्रतिबंध लगा दिया था। उन्हें 20 साल बाद 1972 में ऑस्कर अवॉर्ड मिला था। चार्ली के सिनेमा में योगदान के चलते वहां मौजूद जनता ने उन्हें 12 मिनटों तक खड़े होकर तालियां बजाई थीं। ये ऑस्कर के इतिहास में सबसे बड़ा स्टैंडिंग ओवेशन माना जाता है। जब कोई कलाकार जनता के लिए खड़ा होता है तो जनता उसे अपना नायक मनाकर उसकी सराहना भी करती है, जबकि सत्ता उसे सज़ा देती है, जैसा कि चार्ली चैप्लिन की फिल्मों पर बैन लगाकर अमेरिका ने किया।

1940 में द ग्रेट डिक्टेटर में किए अभिनय के लिए सर्वोत्तम अभिनेता पुरस्कार, न्यूयॉर्क फिल्म क्रिटिक सर्कल अवार्ड से सम्मानित किया गया। 1972 में करिअर गोल्डन लायन लाइफ टाइम अचीवमेंट पुरस्कार से सम्मानित किया गया। टाइम मैगजीन के कवर पर जगह पाने वाले पहले एक्टर चार्ली चैपलिन के जीवन पर खुद 82 फिल्में बनी हैं।

साशा बैरन कोहेन
साल 2018 में अल्बामा के पूर्व मुख्य न्यायाधीश रॉय मूर ने यहूदी अभिनेता के साशा बैरन कोहेन पर 95 मिलियन डॉलर का मानहानि का मुकदमा किया। मुकदमा ये आरोप लगाते हुए किया गया कि ‘हू इज अमेरिका’ कार्यक्रम के एक हिस्से में साशा ने आरोप लगाया था कि रॉय मूर ने बहुत सी स्त्रियों का यौन शोषण किया है। कई नाबालिग बच्चियां भी शामिल थीं।”

इसके अलावा ब्रिटिश यहूदी हास्य अभिनेता साशा बैरन कोहेन के खिलाफ़ साल 2005 में कजाकिस्तान के विदेश मंत्रालय ने लीगल एक्शन लिया था। दरअसल वो लोग इसलिए नाराज़ थे, क्यूंकि साशा ने कजाकिस्तान के एक न्यूज रिपोर्टर का लिस्बन में एमटीवी यूरोप म्यूजिक अवार्ड फंक्शन 2005 में ‘मजाक’ उड़ाया था। इस मामले में दिलचस्प बात ये है कि वहां के एक राजनेता दारिगा नजार्वायेव (Dariga Nazarbayeva) और कजाकिस्तान के राष्ट्रपति नूरसुल्तान नजरबयेव (Nursultan Nazarbayev) ने साशा बैरन का बचाव किया था। दारिगा ने कहा था, “मैं सोचता हूं कि, हमें ह्यूमर से डरना नहीं चाहिए और हमें हर चीज पर नियंत्रण करने की कोशिश भी नहीं करनी चाहिए।”

कजाकिस्तान के उप विदेश मंत्री ने बाद में बैरेन कोहेन को अपने देश की यात्रा पर आने के लिए आमंत्रित भी किया था, ताकि वो जान सकें कि वहां, महिलाएं कार चलाती हैं, वाइन अंगूर से बनती है और यहूदी सभाओं के लिए स्वतंत्र हैं।

वहीं अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा कथित आलोचना पर भी अभिनेता साशा बैरन ने उन्हीं की भाषा में जवाब देते हुए कहा था- “डोनाल्ड ट्रंप मैं बोरात के मुफ्त प्रचार को सराहता हूं मैं स्वीकार करता हूं मुझे भी आप फनी नहीं लगते लेकिन दुनिया आप पर हंसती है।” दरअसल डोनाल्ड ट्रंप ने साशा को क्रीप कहते हुए कहा था कि मुझे उन पर हंसी नहीं आती।

(जनचौक के विशेष संवाददाता सुशील मानव का लेख।)

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