Friday, April 19, 2024

क्या दवाई नहीं, ढिलाई नहीं के बीच अनिश्चितकालीन लॉकडाउन से कोविड संक्रमण दूर हो जायेगा?

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अप्रैल के तीसरे हफ्ते में राष्ट्र के नाम संबोधन के दौरान यह कहा था कि फिलहाल देश में लॉकडाउन नहीं लगने जा रहा। देश को लॉकडाउन से बचाना है, यह आखिरी विकल्प होना चाहिए। उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने राज्य में लॉकडाउन लगाने से साफ इनकार कर दिया था। मुख्यमंत्री ने कहा कि हमारा प्रयास है लोगों के जीवन के साथ उनकी आजीविका बची रहे। हमें लोगों के जीवन को भी बचाना है और उनकी आजीविका को भी। लॉकडाउन से गरीब, मजदूर, स्ट्रीट वेंडर जैसे रोज कमाने वाले प्रभावित होते हैं।केंद्र सरकार तो अपनी बात पर कायम है और कोरोना पर टास्क फ़ोर्स की सिफारिश के बावजूद राष्ट्रीय लॉकडाउन अभी तक नहीं लगाया है पर यूपी सहित अन्य प्रदेश एक के बाद एक या तो लॉकडाउन लगाते जा रहे हैं या उसकी अवधि बढ़ाते जा रहे हैं। यक्ष प्रश्न है कि बिना दवा स्वास्थ्य इन्फ्रास्ट्रक्चर के  क्या अनिश्चितकालीन लॉकडाउन से कोविड संक्रमण दूर हो जायेगा?

इलाहाबाद हाईकोर्ट के लॉकडाउन लगाने के निर्देश पर तत्काल अमल करने से यूपी की योगी सरकार ने इनकार करते हुए कहा था कि कोरोना के बढ़ते संक्रमण के चलते यूपी के लखनऊ, प्रयागराज, वाराणसी समेत पांच जिलों में लॉकडाउन अभी नहीं लगेगा। कोरोना वायरस के बढ़ते संक्रमण के चलते इलाहाबाद हाईकोर्ट ने लखनऊ, प्रयागराज, वाराणसी समेत यूपी के पांच जिलों में लॉकडाउन लगाने का निर्देश दिया है। इस पर यूपी की योगी आदित्यनाथ सरकार ने लॉकडाउन लगाने से इनकार कर दिया था । यूपी सरकार की ओर से कहा गया था कि प्रदेश में कई कदम उठाए गए हैं और आगे भी सख्त कदम उठाए जा रहे हैं। जीवन बचाने के साथ ही गरीबों की आजीविका भी बचानी है। इसके चलते शहरों में संपूर्ण लॉकडाउन अभी नहीं लगेगा।

कोरोना संक्रमण रोकने के लिए इलाहाबाद हाईकोर्ट को ठेंगा दिखाने वाली उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ की सरकार को अब लॉकडाउन के सिवा दूसरा विकल्प नहीं नजर आ रहा। ताजा आदेश जारी करते हुए योगी सरकार ने शनिवार को उत्तर प्रदेश में लॉकडाउन को एक सप्ताह और बढ़ाने कर 24मई को सुबह 7बजे तक करने का निर्देश जारी किया गया है।

बढ़ते संक्रमण और स्वास्थ्य सेवाओं के खस्ताहाल होने के कारण यूपी के गाँवों की कोरोना संक्रमण से हालत बेहद ख़राब है।बड़े बड़े नगरों की स्वास्थ्य सेवाएं पूरी तरह चरमरा गयी है,ऐसे में गांवों की हालत का सहज अंदाजा लगाया जा सकता है। गाँवों में सरकारी डॉक्टर्स, दवाएँ और टेस्टिंग उपलब्ध नहीं हैं, ऑक्सीजन, वेंटिलेटर ऑक्सीमीटर और कोरोना की दवाएँ अनुपलब्ध है। यही कारण है कि उन्नाव, प्रयागराज ,मिर्ज़ापुर , वाराणसी, गाजीपुर और बलिया  जैसे गंगा के घाटों पर मुर्दों को जलाने, दफनाने, पूरी और अधजली लाशों के बहाने की भयावह तस्वीरें सामने आ रही हैं।

गांवों का जो हाल है, उससे यह पता लगना मुश्किल ही हो गया है कि कोरोना से संक्रमित होने वाली वास्तविक संख्या कितनी है और मौत का वास्तव में क्या आंकड़ा है। न तो लोग टेस्ट करा रहे हैं न ही टेस्ट की उचित व्यवस्था है। टेस्ट कराना भी चाहें, तो उसकी सुविधा नहीं है; और जांच कराए बिना किसी अस्पताल में घुसना भी संभव नहीं। बीमारी इस हद तक फैल जाने की कई वजहें हैं। जहां-जहां विधानसभा से लेकर पंचायत स्तर तक के चुनाव हुए हैं, वहां इस महामारी ने अपने पाँव पसार दिए है।वोट देने के लिए बाहर रह रहे परिजनों को गाँव बुलाने से कोरोना का प्रसार तेजी से बढ़ा है।  

पश्चिमी उत्तर प्रदेश से लेकर उत्तराखंड तक में कुंभ का असर अब दिख रहा। धार्मिक- सामाजिक आयोजनों में जिस तरह की ढील दी गई, उसका खामियाजा लोग अब भुगत रहे हैं।उत्तराखंड में संक्रमण किस तरह से बढ़ रहा है, इसको एक उदाहरण से समझा जा सकता है। पिछले साल मार्च में जब लॉकडाउन लगा तो बड़ी संख्या में पहाड़ के लोग भी अपने गांवों की तरफ लौटे। लेकिन जो आता था, उसे 14 दिनों के क्वारंटाइन में रहना पड़ता था, भले वह संक्रमित न हो।इस बार वैसा कुछ  नहीं हो रहा। ग्रामीण इलाकों में आरटी-पीसीआर टेस्ट की कोई व्यवस्था नहीं है। स्थिति की गंभीरता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि देश की राजधानी दिल्ली के गांवों की हालत भी कोई अच्छी नहीं है। यहां के हरियाणा से सटे ग्रामीण इलाकों में महज तीन अस्पताल हैं। वे भी कामचलाऊ। यहां दिल्ली के साथ-साथ हरियाणा के गांवों के मरीज आते हैं। एक तो सुविधाओं के नाम पर ये अस्पताल वैसे ही दयनीय हैं, ऊपर से इन दिनों लोगों का बोझ। इन इलाकों में केंद्र सरकार का एक भी अस्पताल नहीं है। घोषणा कई बार हुई लेकिन अस्पताल बने नहीं। वहीं दिल्ली सरकार ने नरेला, पूठंखुर्द एवं जाफरपुर कलां गांवों में अस्पताल बना रखे हैं और इनमें करीब सौ-सौ बेड की व्यवस्था है लेकिन ये अस्पताल डिस्पेंसरी-जैसे ही हैं। अलीपुर, कंझावला, महरौली में नगर निगम ने करीब छह दशक पहले प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र बनाए थे। इन केंद्रों में बेड की भी व्यवस्था की गई थी लेकिन ये केंद्र अब डिस्पेंसरी में तब्दील हो चुके हैं।

देश में कोरोना वायरस के मचे कोहराम के बीच कई राज्यों में शवों को नदियों में फेंके जाने, बालू में दबाने जैसे कई मामले सामने आए हैं। इन्हीं रिपोर्ट्स पर अब नेशनल ह्यूमन राइट कमिश्न (NHRC) हरकत में आया है। एनएचआरसी ने केंद्र सरकार और राज्यों को कोरोनो से मरने वालों की गरिमा बनाए रखने के लिए कानून बनाने के लिए कहा है। यह भी सिफारिश की गई है कि परिवहन के दौरान सामूहिक अंत्येष्टि / दाह संस्कार या शवों का ढेर नहीं होना चाहिए क्योंकि यह मृतकों की गरिमा के अधिकार का उल्लंघन है।

मृतकों के अधिकारों की रक्षा के लिए कोई विशेष कानून नहीं

इस बीच राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) ने गृह मंत्रालय, हेल्थ मंत्रालय, राज्य और केंद्र शासित प्रदेशों को विस्तृत एडवायजरी भेजी है। यह कहते हुए कि संविधान का अनुच्छेद-21 न केवल जीवित व्यक्तियों पर बल्कि मृतकों के लिए भी लागू है, आयोग ने कहा है कि मृतकों के अधिकारों की रक्षा करना और शव पर अपराध को रोकना सरकार का कर्तव्य है। भारत में मृतकों के अधिकारों की रक्षा के लिए कोई विशेष कानून नहीं है, आयोग ने बताया है कि कई अंतरराष्ट्रीय अनुबंध, सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट के फैसले के साथ-साथ विभिन्न सरकारों द्वारा समय-समय पर जारी दिशा-निर्देशों में कोविड के प्रोटोकॉल को बनाए रखने पर जोर दिया गया है। एडवायजरी में कहा गया है कि प्रशासन बड़ी संख्या में कोरोना मौतों और श्मशान में लंबी कतारों को देखते हुए तत्काल अस्थायी श्मशान बनाएं। स्वास्थ्य खतरों के लिए उत्पन्न होने वाले संभावित खतरों से बचने के लिए विद्युत शवदाह गृहों को बनाया जाना चाहिए।

आयोग ने कहा है कि परिवहन के दौरान या किसी अन्य स्थान पर शवों के ढेर की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए और सामूहिक अंत्येष्टि/दाह संस्कार की अनुमति नहीं दी होनी चाहिए, क्योंकि यह मृतकों की गरिमा के अधिकार का उल्लंघन है। श्मशान के कर्मचारियों को बॉडी को सही तरीके से छूने के बारे में संवेदनशील होना चाहिए। इसके अलावा, उन्हें आवश्यक सुरक्षा उपकरण और सुविधाएं देने की आवश्यकता है ताकि वे बिना किसी डर या जोखिम के अपना कर्तव्य कुशलतापूर्वक निभा सकें।

इस बीच उत्तर प्रदेश में नदियों में कुछ स्थानों पर शवों के बरामद होने पर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने गृह विभाग को निर्देश दिए हैं कि राज्य आपदा प्रबंधन बल (एसडीआरएफ) तथा पीएसी की जल पुलिस को प्रदेश की सभी नदियों में पेट्रोलिंग पर लगाया जाए। नावों से पेट्रोलिंग करते हुए जवान यह सुनिश्चित करें कि कोई भी नदियों में शवों को ना बहाए। जरूरी हो तो स्थानीय स्तर पर जुर्माना भी लगाए जाएं। उन्होंने कहा है कि यह सुनिश्चित किया जाए कि कि कोई भी परंपरा के नाते भी नदियों में शव ना बहाए। प्रत्येक व्यक्ति जिसकी मृत्यु हुई है उसे सम्मानजनक रूप से अंत्येष्टि का अधिकार है। प्रदेश सरकार द्वारा पूर्व में ही प्रत्येक नागरिक जिसकी दुखद मृत्यु हुई है के शवों के सम्मान पूर्व अंत्येष्टि के लिए धनराशि स्वीकृत की गई है ऐसे में यदि परम्परागत रूप से भी जल-समाधि हो रही है अथवा कोई लावारिस छोड़ रहा है तो भी उसकी सम्मानजनक तरीके से धार्मिक मान्यताओं के अनुसार अंतिम संस्कार कराया जाए।

(वरिष्ठ पत्रकार जेपी सिंह की रिपोर्ट।)

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