आम जनता की याददाश्त काफी कमजोर होती है, उसमें भी देश के मुसलमान बहुत जल्द भूलने के आदी हैं। 1992, 2002 के अलावा इस वर्ष के दिल्ली दंगों को भी भुला दिया है। तो फिर उन्हें कैसे याद हो कि अभी कुछ दिन पहले ही फ्रांस में हुए निस सिटी हमले में ओवैसी ने मोदी सरकार की नीति की प्रसंशा की थी और शायर मुनव्वर राणा ने मुखालफत। तब ओवैसी के कट्टर समर्थक भी ओवैसी को ट्रोल कर रहे थे और मुनव्वर राणा की तारीफ कर रहे थे, मगर दस नवम्बर के नतीजों ने सब कुछ भुला दिया। अब मुस्लिम नासमझ डिजिटल नाबालिग युवाओं को ओवैसी में मसीहा नजर आने लगा और वो मुनव्वर राणा को अब कोसने लगे क्योंकि राणा साहब ने ओवैसी की जीत को भाजपा के हिन्दू राष्ट्र एजेंडा का एक हिस्सा बताया है।
पिछले 6 साल के भाजपा के राजनीतिक प्रचार पर नजर डालें तो भाजपा ने शुरू से कांग्रेस को मुस्लिम परस्त पार्टी के रूप में प्रचारित किया था। जवाब में राहुल गांधी ने हर चुनाव में मन्दिर मन्दिर घूमना शुरू किया, जनेऊ दिखाई, राम मंदिर फैसले का स्वागत किया, प्रचार किया कि राम मन्दिर का शिलान्यास कांग्रेस ने ही करवाया था, ट्रिपल तलाक पर खामोशी जताई, धारा 370 को हटते हुए देखा किया। कांग्रेस के मुस्लिम नेताओं को साइड लाइन किया यानि कांग्रेस ने भरपूर कोशिश की कि वो मुस्लिम परस्त पार्टी का लेबल लगने से बची रहे। नतीजा ये हुआ कि भाजपा के अथक प्रयास के बाद भी देश की 80% नॉन मुस्लिम जनता ने कांग्रेस को मुस्लिम पार्टी नहीं समझा। नतीजे में भाजपा ने मप्र, राजस्थान, छत्तीशगढ़ इत्यादि में सत्ता खोई।
देश को हिन्दू राष्ट्र का अफीम पिलाते रहने के लिए देश में सर्वमान्य मुस्लिम पार्टी होना जरूरी है ताकि देश की एक मात्र हिन्दू पार्टी को 80% वोट पर काबिज होने में कोई दिक्कत न हो। सरकार की अनेक असफलता के बाद भी चुनाव जब मुस्लिम पार्टी बनाम हिन्दू पार्टी कर दिया जाए तो कौन जीतेगा वो बच्चा भी बता सकता है। कांग्रेस ने जब भाजपा के लिए खुद को मुस्लिम पार्टी मनवाने से इनकार कर दिया तो अब ओवैसीकी पार्टी मजलिस देश में ‘टू पार्टी पोलिटिक्स’ के लिए तैयारी कर रही है। मगर ये देश की राजनीति के लिए और देश की मुस्लिम राजनीति के लिए घातक साबित होगा। ऐसा होने पर अपनी तमाम नाकामी के साथ हिन्दू पार्टी अगले 30 साल तक देश पर शासन करती रहेगी।
देश की दूसरी मुख्य पार्टी अगर मजलिस बन जाती है तो देश मे हिन्दू राष्ट्र का असर बिना कोई औपचारिक घोषणा से ही अमल में आ जायेगा। फिर कोई भी मुस्लिम किसी भी स्टेट में वैसे भी मंत्री तक बन नहीं पायेगा। बस विधायकी, सांसदी करते रहो, सरकार में हिस्सा नहीं मिलेगा, शासन में हिस्सा नहीं मिलेगा, संसाधन में हिस्सा नहीं मिलेगा। जैसे ओवैसी हर मुद्दे पर बोलते हैं तो मुस्लिम ख़ुश हो जाते हैं मगर ये भूल जाते हैं कि बोलने से कुछ नहीं होता। जब तक देश के 20% मुस्लिम देश की सरकार में, देश के शासन में, देश के संसाधन में अपना हिस्सा न ले लें, तब तक इस देश में मुस्लिम तबके का कोई विकास होने वाला नहीं है। अगर इस तरह ही चलता रहा तो 2030 तक देश के मुस्लिम अति पिछड़ा वर्ग की कक्षा से भी नीचे चले जायेंगे।
2015 में बिहार में कुल 24 विधायक मुस्लिम थे जिसमें राजद के 12, कांग्रेस के 6, जदयू के 5, और सीपीआई (माले) का एक मुस्लिम विधायक था। मगर अब बिहार विधानसभा में कुल 18 मुस्लिम विधायक होंगे! जिस में सब से ज्यादा राष्ट्रीय जनता दल के 8, मजलिस के 5, कांग्रेस के 3, बसपा का 1 और सीपीआई (माले) का 1 विधायक मुस्लिम है।
असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी मीम ने 4 सीट पर दूसरी पार्टी के मुस्लिम उम्मीदवार को हराया! ये चार प्योर मुस्लिम सीटें हैं: अमोर, बहादुरगंज, जोखिहाट और कोचाधामन।
अमोर सीट पर 11 में से 8 उम्मीदवार मुस्लिम थे। मीम ने ये मुस्लिम सीट कांग्रेस के सिटिंग मुस्लिम विधायक अब्दुल जलील मस्तान को हराकर जीती। पिछली बार ये सीट अब्दुल जलील मस्तान ने 51997 वोट से जीती थी। इस बार जेडीयू, कांग्रेस और मीम ने मुस्लिम उम्मीदवार खड़ा किया, जिस में मीम जीती।
बहादुरगंज पर 9 में से 5 मुस्लिम उम्मीदवार थे। मीम ने ये मुस्लिम सीट कांग्रेस के सिटिंग मुस्लिम विधायक तौसीफ आलम को हराकर जीती। एनसीपी, मीम और एक छोटी पार्टी ने भी मुस्लिम को टिकट दिया था।
जोखिहाट में 9 में से 7 मुस्लिम उम्मीदवार थे। मीम ने ये मुस्लिम सीट जेडीयू के सिटिंग विधायक सरफराज आलम को हराकर जीती। आरजेडी, एनसीपी, एसडीपीआई और अन्य दो छोटी पार्टियों ने भी मुस्लिम को टिकट दिया था। एसडीपीआई को सिर्फ 2349 वोट मिले, मीम को यहां सिर्फ 34.22% वोट मिले, वोट बंटवारे के चलते मीम यहां से जीती।
कोचाधामन में 12 में से 6 उम्मीदवार मुस्लिम थे। मीम ने ये मुस्लिम सीट जेडीयू के सिटिंग विधायक मुझाहिद आलम को हराकर जीती। आरजेडी और जेडीयू दोनों ने यहां मुस्लिम उम्मीदवार उतारे थे।
नीतीश कुमार ने बीजेपी से गठबंधन किया इस लिए मुस्लिमों ने जेडीयू के सिटिंग मुस्लिम विधायकों को जोखिहाट और कोचाधामन में हराया। उसी तरह राम मंदिर पर क्रेडिट लेने की कीमत कोंग्रेस को अमोर और बहादुरगंज सीट से चुकानी पड़ी। इन चारों सीटों पर मजलिस या ओवैसी की कोई पकड़ नहीं है, ये चारों सीटें मुस्लिमों ने जेडीयू और कांग्रेस को सबक सिखाने के लिए मजलिस को दी है।
नतीजे के एक दिन पहले तक फ्रांस मामले पर मोदी सरकार का समर्थन करने वाले ओवैसी को मुस्लिम युवा सोशल मीडिया पर गाली देते थे, लेकिन नतीजे के बाद मजलिस/भाजपा के प्रोपेगण्डा को सच समझकर ओवैसी को मुस्लिमों का तारणहार बताने वाले ये इस बात पर चुप हैं कि मजलिस किशनगंज में हारी क्यों? अभी एक साल पहले भाजपा की स्वीटी सिंह को 10211 वोट से हराने वाले कमरुल हुदा को इस बार सिर्फ 41904 वोट क्यों मिले? एक ही साल में 71000 वोट से सीधे 41000 पर क्यों आ गए, यानी वोट बैंक में करीब 50% का घाटा! किशनगंज में ऐसा क्या हुआ कि सिर्फ एक ही साल में मुसलमान फिर से कांग्रेस की तरफ लौट गए?
क्या आपने कभी नोट किया कि तेलंगाना के बाहर ओवैसी का कोई भी विधायक दूसरी बार चुनकर नहीं आता? महाराष्ट्र के भायखला से और औरंगाबाद से मजलिस दूसरी बार विधायक़ी नहीं जीत पाई। हालांकि औरंगाबाद में तो लोकसभा की सीट भी मजलिस के पास है फिर भी लोकसभा अंतर्गत 6 विधानसभा सीट पर मजलिस का एक भी विधायक नहीं है। किशनगंज के मुस्लिमों ने तो सिर्फ एक साल में मजलिस को बाहर का रास्ता दिखा दिया। ऐसा क्या है कि एक बार मजलिस को जीतने वाले मुसलमान दूसरी बार मजलिस को नहीं जिताते? हकीकत ये है कि मजलिस के विधायक के सम्पर्क में रहने से मुस्लिमों को पता चल जाता है कि वास्तव में मजलिस बीजेपी की बी टीम है, इस लिए तेलंगाना के बाहर कोई भी सीट पर मजलिस दूसरी बार नहीं जीतती।
अब एक नजर मुस्लिम विधायकों के लिस्ट पर डालते हैं।
बलरामपुर- महबूब आलम (सीपीआई, माले) 53597
चैनपुर- मोहम्मद झमाखान (बसपा) 24294
अररिया- अबिदुर्रहमान (कांग्रेस) 47936
कदवा- शकील अहमद खान (कांग्रेस) 32402
कस्बा- अफाक आलम (कांग्रेस) 17278
अमोर- अख्तरुल ईमान (मीम) 52515
बहादुरगंज- अनाझर नईमी (मीम) 42215
बैसि- सैय्यद रुकनुद्दीन (मीम) 16373
कोचाधामन- इजहार अस्फी (मीम) 36143
जोखिहाट- शाहनवाज (मीम) 7883
गोबिंदपुर- मोहम्मद कामरान (राजद) 33074
कांटी- इस्माइल मंसूरी (राजद) 10314
नरकटिया- शमीम अहमद (राजद) 27791
नाथनगर- अली असरफ सिद्दीकी (राजद) 7756
रफीगंज- मोहम्मद नेहालुद्दीन (राजद) 9429
समस्तीपुर- अख्तरुल इस्लाम (राजद) 4714
सिमरी बख्तियारपुर- यूसुफ सलाहुद्दीन (राजद) 1759
ठाकुरगंज- सऊद आलम (राजद) 23887
इस के अलावा नौतन, सिकटा, ढ़ाका, शिवहर, सुरसंड, जाले, केवटी, बिस्फ़ी, गौराबौराम, दरभंगा ग्रामीण, हरलाखी, सुपौल, महिषी, महुआ, गोपालगंज, बरौली, डुमराँव, बांका, औराई, आरा, फारबिसगंज, प्राणपुर इत्यादि विधानसभा ऐसी सीटें थीं जिसे मुसलमान जीत सकते थे।
अब वो लिस्ट देखते हैं जहां पर कुल 14 मुस्लिम उम्मीदवार दूसरे स्थान पर रहे, जिसमें से 3 मुसंघी को निकाल दो तो बाकी 11 मुस्लिम उम्मीदवारों को कौन हरा रहा है वो देखते हैं।
1. आरा में सीपीआई (माले) के कयामुद्दीन अंसारी बीजेपी से 3002 वोट से हारे। यहां पर बीजेपी ने 3 छोटी पार्टी और 2 निर्दलीय को खड़ा किया।
2. औराई से सीपीआई (माले) के मोहम्मद आफताब आलम बीजेपी से 47866 वोट से हारे। निर्दलीयों ने करीब 25000 वोट काटे। वैसे भी ये सीट भाजपा की स्योर सीट में आती है। लेफ्ट ने मुस्लिम उम्मीदवार देकर भाजपा का काम आसान कर दिया था।
3. बांका से राजद के जावेद अंसारी बीजेपी से 16828 वोट से हारे। समता पार्टी ने दस हजार वोट काटे। 9 निर्दलीयों ने भी 18000 वोट काटे।
4. बरौली से राजद के रियाजुल हक बीजेपी से 14155 वोट से हारे। बसपा का मुस्लिम 4809 वोट काट गया, 3 मुस्लिम निर्दलीयों ने 3400 वोट काटे।
5. बिस्फी से राजद के फैयाज अहमद बीजेपी से 10241 वोट से हारे। 2 मुस्लिम छोटी पार्टी से और अन्य 8 निर्दलीय ने 11000 वोट काटे।
6. ढाका से राजद के फैसल रहमान बीजेपी से 10114 वोट से हारे। समता पार्टी ने 10000 वोट काटे।
7. फॉर्बिसगंज से कांग्रेस के जाकिर हुसैन बीजेपी से 19702 वोट से हारे। बसपा ने 5800 वोट काटे। 3500 वोट मुस्लिम निर्दलीयों ने काटे।
8. गौरा बौरम से राजद के अफझल अली खान विकासशील इंसान पार्टी से 7280 वोट से हारे। लोजपा ने 9000 वोट काटे। मुस्लिम निर्दलीयों ने 7500 वोट काटे।
9. जाले से कांग्रेस के मशकूर उस्मानी बीजेपी से 21796 वोट से हारे। मुस्लिम निर्दलीयों ने 4000 वोट काटे। कांग्रेस को यहां से यादव उम्मीदवार देना जरूरी था।
10. कियोटी से राजद के अब्दुल बारी बीजेपी से 5126 वोट से हारे। मुस्लिम निर्दलीय 3500 वोट काट गए। एनसीपी ने मुस्लिम उम्मीदवार खड़ा किया था।
11. नौतान से कांग्रेस के मोहम्मद कामरान बीजेपी से 25896 वोट से हारे। 7 निर्दलीयों ने 24000 वोट काटे।
मजलिस कुल 20 सीट पर चुनाव लड़ी थी, जिसमें से 5 मुस्लिम सीट पर मुस्लिमों ने राजद और कांग्रेस को दरकिनार कर मजलिस को वोट दिए। ये पांचों सीटें ऐसी हैं जिन पर हमेशा से मुस्लिम उम्मीदवार ही जीतते आये हैं। मजलिस ने बाकी 15 सीटों पर क्या किया वो भी देखते है।
1. अररिया मुस्लिम सीट है, कांग्रेस के उम्मीदवार अबीदुर रहमान को एक लाख से ज्यादा वोट मिले, जेडीयू की मुस्लिम महिला शगुफ्ता अजीम को 50000 से ज्यादा वोट मिले। मजलिस के रशीद आलम 9000 के अंदर सिमट गये।
2. बरारी में आरजेडी 10438 वोट से हारी, मजलिस ने 6564 वोट काटे, 6 मुस्लिम निर्दलीयों ने 7000 वोट काटे।
3. छातापुर में मजलिस को सिर्फ 1984 वोट मिले।
4. कस्बा में कांग्रेस के असफाक आलम 17000 से विजयी हुए, यहां पर मजलिस को सिर्फ 5302 वोट मिले।
5. किशनगंज में कांग्रेस के इजहारुल हुसैन ने सिर्फ 1221 वोट से भाजपा को हराया। यहां पर मजलिस ने 41727 वोट लेकर भाजपा को बचाने की पूरी कोशिश की। भाजपा ने यहां पर अन्य 8 मुस्लिम निर्दलीयों को उतारा था जो कुल मिलाकर 5500 वोट काट गए फिर भी भाजपा यहां से हारी।
6. मनिहारी में मजलिस को 2458 वोट मिले।
7. नरपतगंज से मजलिस को 5493 वोट मिले।
8. फुलवारी में मजलिस को 5015 वोट मिले।
9. प्राणपुर में कांग्रेस के तौकीर आलम बीजेपी से सिर्फ 2972 वोट से हारे। मजलिस ने यहां से 507 वोट लिए। जबकि 3 मुस्लिम निर्दलीयों ने 21753 वोट काटे।
10. रानीगंज में 2411 वोट मिले।
11. साहेबगंज से 4048 वोट मिले।
12. साहेबपुर कमाल से 7889 वोट मिले।
13. शेरघाटी से 14951 वोट मिले।
14. सिकटा से 8511 वोट मिले।
15. ठाकुरगंज से 18890 वोट मिले फिर भी आरजेडी के सऊद आलम बड़े मार्जिन से जीते।
यानि प्रति सीट मात्र 8978 वोट! प्राणपुर जैसी सीट पर मात्र 507 वोट लेने के लिए मजलिस ने चुनाव लड़ा था?
इस के अलावा सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी ऑफ इंडिया ने 12 सीट पर चुनाव लड़ा था। इन 12 सीटों पर एसडीपीआई को कुल 25031 वोट मिले यानि कि एवरेज प्रति सीट मात्र 2085 वोट। पूरा लेखाजोखा इस प्रकार है। अररिया सीट पर पार्टी के उम्मीदवार कमरुल हुदा को 716 वोट मिले। बलरामपुर में एसडीपीआई को सिर्फ 3247 वोट मिले। बरारी में एसडीपीआई के नसिम अख्तर को 1064 वोट मिले। बिहार शरीफ में 2616 वोट मिले और दरभंगा में 519 वोट मिले। जाले में 638 वोट मिले। कस्बा में कांग्रेस के मुस्लिम उम्मीदवार के सामने एसडीपीआई को सिर्फ 2744 वोट मिले। कटिहार में 956 वोट मिले। महुआ में 999 वोट मिले। मरहरा से 879 वोट मिले। पूर्णिया में 5482 वोट लिए। रघुनाथपुर से 5171 वोट लिए।
एसडीपीआई जैसी पार्टी बिना सोचे समझे इस तरह से चुनाव लड़कर अपनी साख खो सकती है, क्योंकि एक प्रदेश के नतीजे को पूरा देश देखता है। ऐसे में दूसरे प्रदेशों के पार्टी कार्यकर्ताओं का मनोबल गिरता है।
(लेखक सलीम हफ़ेज़ी, राजनैतिक टिप्पणीकार हैं और सूरत में रहते हैं।)
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