देश की मान-मर्यादा और प्रतिष्ठा को धूल धूसरित कर दिया ह्वाइट हाउस का पीएम मोदी को ट्विटर पर अनफालो करने का फैसला

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आज अमेरिका की भारत संबंधी नीति से जुड़ी दो बेहद महत्वपूर्ण ख़बर पढ़ने को मिली: 

1. “अमेरिका के व्हाइट हाउस ने अपने ट्विटर हैंडल पर कुछ दिनों पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी समेत जिन 6 भारतीय ट्विटर हैंडल को फॉलो किया था, अब उन सभी ट्विटर हैंडल को अनफॉलो कर दिया है।”

2. दुनिया भर में धार्मिक स्वतंत्रता पर नज़र रखने वाली अमरीकी संस्था यूएस कमीशन ऑन इंटरनेशनल रिलीजियस फ़्रीडम (USCIRF) ने साल 2020 के लिए अपनी वार्षिक रिपोर्ट जारी कर दी है। 

इस रिपोर्ट के अनुसार –

“भारत उन देशों में शामिल है जहां धार्मिक अल्पसंख्यकों पर उत्पीड़न तेजी से बढ़ा है।”

भारतीय दृष्टिकोण से इन दोनों खबरों का अत्यधिक महत्व है क्योंकि ये दोनों ही खबर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत की मान-मर्यादा और प्रतिष्ठा को धूमिल करने वाली हैं। USCIRF की रिपोर्ट जहाँ देश के भीतर अल्पसंख्यकों की स्थिति पर अनेक प्रश्नचिन्ह खड़ी कर रही है वहीं ट्विटर पर भारतीय प्रधानमंत्री मोदी समेत 6 ट्विटर हैंडल को अनफॉलो करने वाली अमेरिका का कुटिल कूटनीतिक कदम भरतीय प्रतिष्ठा के साथ बेहद भद्दा मजाक है। 

इन दोनों खबरों की महत्ता और भारतीय दृष्टिकोण से अंतराष्ट्रीय स्तर पर इसके भावी प्रभाव को समझना आज बेहद आवश्यक है। आइए बारी-बारी से इन दोनों महत्वपूर्ण खबरों के कारण और उसके मायने को समझने का प्रयास करते हैं। घटनाओं को सिलसिलेवार ढंग से समझने के लिए थोड़ा अतीत के पन्ने पलटने होंगे।

चीन समेत कई अन्य देशों में कोरोना का प्रसार हो जाने और कई विपक्षी नेताओं के द्वारा कोरोना के प्रति सचेत किए जाने के बावजूद सरकार प्रारम्भ में इस महामारी के प्रति लापरवाह रवैया अपनाये रही। सत्ताधारी दल के नेताओं की ओर से अनेक अवैज्ञानिक और भ्रामक बयानों की बयार बह रही थी। कोई गोबर और गौमूत्र से कोरोना का ईलाज करने का दावा कर रहा था तो कोई 33 करोड़ देवी-देवताओं और कोरोना पछाड़ बजरंगबली का हवाला देकर भारत में कोरोना के नहीं आने का दावा कर रहा था। स्वास्थ्य मंत्री सदन के भीतर विपक्ष पर ही माहौल खराब करने का आरोप लगाने में लीन थे। इधर मोदी सरकार शान से “नमस्ते ट्रम्प” कार्यक्रम के जरिए अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रम्प की खातिरदारी में जुटी थी। बहुत बाद में सरकार हरकत में आई और 3 मार्च 2020 को 26 दवा सामग्रियों (एपीआई) और उनके यौगिक दवाइयों के निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया था। लेकिन सरकार की विदेश नीति इतनी बेबस और लाचार है कि अमेरिकी राष्ट्रपति के एक धमकी भरे बयान के सामने देश ने घुटने टेक दिए और जरूरी दवाओं के निर्यात पर लगी रोक को हटा ली।

अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रम्प का एक बयान मीडिया में आया जिसमें कोरोना के वायरस कोविड-19 पर प्रभावी ढंग से कार्य करने वाले मलेरिया की दवा हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन सहित अन्य आवश्यक दवाओं के निर्यात पर लगी रोक न हटाने पर चेतावनी भरे लहजे में भारत को धमकाया गया और दवा मुहैया न कराने पर परिणाम भुगतने के लिए तैयार रहने को कहा गया।

ट्रम्प के इस धमकी भरे बयान के बाद भारत की लचर और बेबस विदेश नीति की भद्द पिट गई। आनन फानन में सरकार ने आवश्यक दवाओं के निर्यात पर लगा प्रतिबंध हटा लिया। 

देश मे हाइड्रॉक्सी क्लोरोक्वीन की किल्लत के बीच मजबूत मोदी सरकार अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रम्प के एक धमकी भरे बयान से ही बैकफुट पर आ गई और देश के नागरिकों के जीवन मूल्य की चिंता किए बगैर अमेरिका को कोरोना कोविड-19 के ईलाज में प्रभावी माने जाने वाली हाइड्रॉक्सी क्लोरोक्वीन दवा के निर्यात का फैसला ले लिया। 

भारतीय नागरिकों के जीवन मूल्य की अनदेखी कर अमेरिका की मदद के ईनाम स्वरूप भारत को मिला – “व्हाइटहाउस द्वारा 10 अप्रैल को भारतीय प्रधानमंत्री मोदी समेत 6 भारतीय ट्विटर हैंडलों को फॉलो किया जाना।”

इन 6 ट्विटर हैंडलों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, प्रधानमंत्री कार्यालय, राष्ट्रपति भवन, अमेरिका में भारतीय दूतावास, भारत में अमेरिकी दूतावास और अमेरिका के राजदूत केन जस्टर का ट्विटर हैंडल था।

इसके बाद तो भारतीय दरबारी मीडिया में मजमा लगने लगा। प्रधानमंत्री मोदी की प्रशंसा में बड़े-बड़े कसीदे गढ़े जाने लगे। इस जयघोष के बीच भारतीय जनमानस के जीवन मूल्य की अनदेखी का मसला बहुत नीचे दब गया।

चन्द ही दिनों के बाद अमेरिका के व्हाइट हाउस द्वारा भारत को मिला यह पारितोषिक टॉफी ( भरतीय ट्विटर हैंडल को फॉलो करना) भी छीन लिया गया और व्हाइट हाउस भारतीय प्रधानमंत्री मोदी समेत सभी 6 ट्विटर हैंडलों को अनफॉलो कर दिया। व्हाइट हाउस द्वारा फॉलो किए जा रहे ट्विटर हैंडल की संख्या अब फिर से 13 रह गई है।  इसमें सअेफेनी ग्रीशम, डोनाल्ड ट्रम्प, मेलानिया ट्रम्प, प्रेसिडेंट ट्रम्प, यूएस के वाइस प्रेसिडेंट माइक पेंस, OMB प्रेस, NSC, द कैबिनेट, केलाने कॉनवे, डैन स्काविनो जूनियर, सेकंड लेडी कारेन पेंस, काइले मैक एनेनी शामिल हैं, ये सभी ट्विटर हैंडल सिर्फ अमेरिकी प्रशासन और डोनाल्ड ट्रंप से जुड़े हैं।

सवाल उठता है –

■ क्या देश की विदेश नीति के निर्धारक सियासी शूरमा भारतीय नागरिकों के जीवन मूल्य को दाँव पर लगाकर केवल इसलिए अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रम्प की गीदड़ भवकी के सामने नतमस्तक हो गए थे कि मोदी जी को व्हाइट हाउस ट्विटर पर फॉलो कर ले ? 

■ अब व्हाइट हाउस ने मोदी जी समेत सभी 6 ट्विटर हैंडल को अनफॉलो कर दिया है, व्हाइट हाउस की ये हरकत भारतीय विदेश नीति का मखौल उड़ाना नही है क्या ? 

अब आते हैं अमरीकी संस्था यूएस कमीशन ऑन इंटरनेशनल रिलीजियस फ़्रीडम (USCIRF) के रिपोर्ट पर …..

दुनिया भर में धार्मिक स्वतंत्रता पर नज़र रखने वाली एक तटस्थ अमरीकी संस्था यूएस कमीशन ऑन इंटरनेशनल रिलीजियस फ़्रीडम (United States Commission on International Religious Freedom) यानि USCIRF ने साल 2020 के लिए अपनी वार्षिक रिपोर्ट जारी कर दी है। मंगलवार को जारी की गयी इस रिपोर्ट के अनुसार- 

भारत को ‘कन्ट्रीज़ विद पर्टिक्युलर कंसर्न (Country of Particular Concern)’ की श्रेणी अर्थात ‘खास चिंता वाले देश’ (CPC) की श्रेणी में रखा गया है। भारत को इस श्रेणी में उन 14 देशों के साथ रखा गया है जिन देशों में धार्मिक अल्पसंख्यकों पर उत्पीड़न के मामले ज्यादा तेजी से बढ़ रहे हैं। इस सूची में भारत के आलावा बर्मा, चीन, इरिटेरिया, ईरान, नाइजीरिया, उत्तर कोरिया, पाकिस्तान, रूस, सऊदी अरब, सीरिया, तजाकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान और वियतनाम सम्मिलित हैं। हालांकि रिपोर्ट जारी करने वाले पैनल के नौ सदस्यों में से दो सदस्यों ने भारत को ‘ख़ास चिंताओं वाले देशों’ (CPC) की श्रेणी में रखे जाने का विरोध किया है।

USCIRF की उपाध्यक्ष नेन्डिन माएज़ा ने अपने ट्वीट के जरिए कहा कि- “भारत के नागरिकता संशोधन क़ानून और एनआरसी से लाखों भारतीय मुसलमानों को हिरासत में लिए जाने, डिपोर्ट किए जाने और स्टेटलेस हो जाने का ख़तरा है।”

समाचार एजेंसी ANI के मुताबिक़ भारतीय विदेश मंत्रालय ने इस रिपोर्ट पर टिप्पणी करते हुए कहा –  “हम इस रिपोर्ट के दावों को ख़ारिज करते हैं, इसमें भारत के खिलाफ़ की गई भेदभावपूर्ण और भड़काऊ टिप्पणियों में कुछ नया नहीं है लेकिन इस बार ग़लत दावों का स्तर एक नई ऊंचाई पर पहुंच गया है।”

इससे पहले 2015 में पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने अपने भारत दौरे पर कहा था कि-  

“भारत में पिछले कुछ सालों में धार्मिक असहिष्णुता बढ़ी है, आज अगर आज गांधी जी होते, तो आहत होते।”

वर्ष 2015 में ही  यूएस कमीशन फॉर इंटरनेशनल रिलिजियस फ्रीडम (USCIRF) ने अपने सालाना रिपोर्ट में कहा था कि- “भारत में सहिष्णुता और धार्मिक स्वतंत्रता का उल्लंघन करने वाली घटनाएं बढ़ी हैं।”

हालांकि वर्ष 2020 के वार्षिक रिपोर्ट को जारी करते हुए USCIRF ने अपने आधिकारिक ट्विटर हैंडल से किए गए ट्वीट में लिखा है कि-  “वर्ष 2004 के बाद ये पहली बार है जब USCIRF ने भारत को ‘कुछ ख़ास चिंताओं’ वाले देशों की सूची में शामिल करने का सुझाव दिया है।”

अमेरिका से सम्बंधित इन दोनों खबरों से भारतीय विदेश नीति को करारा झटका लगा है, कूटनीतिक विफलताएँ भी उजागर हो चुकी हैं, सबसे महत्वपूर्ण यह बात है कि इससे अंतराष्ट्रीय स्तर पर भारत की प्रतिष्ठा को भी आघात पहुँचा है और भारत की धर्मनिरपेक्ष छवि धूमिल हुई है। देश के सियासी रणनीतिकार क्या इससे कुछ सीख लेंगे ?

(दया नन्द स्वतंत्र लेखक हैं और शिक्षा के पेशे से जुड़े हुए हैं।)

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