Friday, April 19, 2024

पत्रकारों पर हमला करने वाले सभी हमलावर ‘हिंदू’ समुदाय के ही क्यों थे?

पूर्वी दिल्ली में प्रायोजित सांप्रदायिक हिंसा की रिपोर्टिंग के लिए ग्राउंड पर गए करीब दर्जन भर पत्रकारों पर हमला किया गया, इस पर बात भी हुई। लेकिन पत्रकारों पर हमला करने वाले किस वर्ग समुदाय के लोग थे और इनका पत्रकारों पर हमले का मकसद क्या था इस पर बहुत बात नहीं हुई। यहां ध्यान देने की बात ये है कि एक दर्जन पत्रकारों पर हुए लगभग सभी हमले हिंदू बाहुल्य क्षेत्रों में हुए और लगभग सभी हमलों में हमलावर हिंदू समुदाय से संबंध रखने वाले उग्रवादी थे। दिल्ली हिंसा के पीड़ित पत्रकारों के बयान से एक कॉमन बात जो निकलकर आई है वो ये कि पत्रकारों पर हमला करने वाले लोग न सिर्फ कट्टरपंथी हिंदू थे बल्कि उन्होंने पत्रकारों की ‘हिंदू शिनाख्त’ करने के बाद ही उनकी जान बख्शी। 

वहीं दूसरी ओर ताज़्ज़ुब की बात ये है कि पत्रकारों पर मुस्लिम भीड़ द्वारा हमले की एक भी घटना सामने नहीं आई है। जबकि मीडिया दिल्ली की सांप्रदायिक हिंसा को लगातार दंगा बताकर मुस्लिम समुदाय को भी बराबर का अपराधी बताने बनाने के एजेंडे में लगा हुआ है। 

कौन मीडिया को काम करने दे रहा था, और कौन उन्हें काम करने से रोक रहा था इसी तथ्य से ये स्पष्ट हो जाता है कि दिल्ली हिंसा में हमलावर कौन था और पीड़ित कौन। इस से ये भी स्पष्ट हो जाता है इस प्रायोजित हिंसा का एजेंडा क्या था। गृहमंत्रालय द्वारा ‘एशिया नेट न्यूज़’ और ‘मीडिया वन’ पर इस दलील के साथ 48 घंटे का बैन लगाया गया कि दिल्ली दंगों के दौरान रिपोर्टिंग में “किसी विशेष समुदाय के पूजा स्थल पर हमले की खबर दिखाई गई है और उस पर एक समुदाय का पक्ष लिया गया। जब दूसरे समुदाय के पूजा स्थल पर कोई हमला या तोड़फोड़ हुआ ही नहीं तो क्या मीडिया उसे खुद तोड़कर दिखाती क्या? वहीं ‘मीडिया वन न्यूज़’ को भेजे मंत्रालय के आदेश में कहा गया कि ‘चैनल ने आरएसएस पर भी सवाल उठाए और दिल्ली पुलिस पर निष्क्रियता के आरोप लगाए।’

इस तरह हम देख सकते हैं कि दिल्ली हिंसा के गुनहगार दहशतगर्दों और केंद्र सरकार दोनों के मंसूबे एक हैं। दोनों ही सच को सामने आने से रोकना चाहते थे। इसी मकसद से पत्रकारों और मीडिया संस्थानों को आतंकित करने के लिए उन पर हमला किया गया। आखिर पूर्वी दिल्ली में वो ऐसा क्या कर रहे थे जो कि वो नहीं चाहते थे कि सच देश दुनिया के सामने आए।   

दिल्ली की प्रायोजित हिंसा में पत्रकारों की आपबीती पर एक नज़र डाल लेते हैं इससे असली दहशतगर्दों के चेहरे, और उनके मंसूबों को समझने में आसानी होगी।    

हिंदू हो, बच गए

25 फरवरी को ही इंडियन एक्सप्रेस के रिपोर्टर शिव नारायण राजपुरोहित पर करावल नगर इलाके में हमला किया गया था। बता दें कि करावल नगर हिंदू बाहुल्य क्षेत्र है और करावल नगर विधान सभा से भाजपा के मोहन सिंह बिष्ट विधायक हैं। करावल नगर के शिव बिहार में मुस्लिम समुदाय के खिलाफ़ जेनोसाइड और आगजनी का पूरा अभियान ही चलाया गया था।

पत्रकार शिव नारायण राजपुरोहित बताते हैं कि “पहले 40 लोगों का एक ग्रुप धमकाया। वहां से बचकर निकले तो 50 लोगों के एक दूसरे समूह ने घेर लिया। उन्होंने मेरा नोटबुक छीनकर आग में फेंक दिया। मोबाइल छीनकर सारी तस्वीरें डिलीट कर दीं। फिर पूछा क्या तुम जेएनयू से हो? यहां क्या कर रहे हो? अगर जान बचाना चाहते हो तो यहाँ से चले जाओ? फिर तीसरे समूह ने घेर लिया। पैरों पर डंडे से मारा। फिर फोन छीनकर पूछा जान प्यारी है या फोन। उन्होंने मन मारकर फोन उपद्रियों के हवाले कर दिया। तभी उस भीड़ से एक लड़के ने चश्मा उतारकर उनके गाल पर दो चाटे जड़ते हुए पूछा हिंदू बाहुल्य इलाकों में रिपोर्टिंग करने क्यों आए हो?”

फिर उसने शिव नारायण राजपुरोहित का प्रेस कार्ड देखा तो नाम पढ़कर कहा कि “हिंदू हो, बच गए। फिर उनसे जय श्री राम का नारा लगवाया। और कहा जान बचाना चाहते हो तो भाग जाओ। वर्ना एक और गैंग आ रहा है वो तुम्हें नहीं बख्शेगा।”

हिंदू बाहुल्य मौजपुर में पत्रकार आकाश नापा को मारी गई गोली

25 फरवरी को जेके 24*7 न्यूज़ के आकाश नापा को मौजपुर के इलाके में गोली मार दी गई। आकाश को हिंदू बाहुल्य मौजपुर इलाके में गोली मारी गई। जहां गंभीर अवस्था में उन्हें जीटीवी अस्पताल में भर्ती करवाया गया था।

हिंदू भाई हो तिलक लगाओ

24 फरवरी को दोपहर के वक़्त टाइम्स ऑफ इंडिया के फोटोग्राफर अनिंद्य चट्टोपाध्याय दोपहर बाद मौजपुर मेट्रो स्टेशन से बाहर निकले थे। वो आप-बीती सुनाते हुए कहते हैं, “मैं हक्का-बक्का रह गया जब निकलते ही हिन्दू सेना के सदस्यों ने मुझे घेर लिया और  उसमें से एक ने मेरे माथे पर तिलक लगाने को बोला और कहा कि इससे मेरा काम आसान हो जाएगा। तुम भी एक हिन्दू भाई हो। इससे क्या नुकसान है।

जब चट्टोपाध्याय ने एक बिल्डिंग की फ़ोटो लेने की कोशिश की जिसमें आग लगा दी गई थी तभी कुछ लोगों ने उन्हें लाठी-डंडे के साथ घेर लिया। वो कैमरे को छीनने की कोशिश करने लगे। इस पर उनके साथी साक्षी चंद ने बीच बचाव किया, फिर वो लोग चले गए। लेकिन बाद में कुछ और लोगों के समूह ने उनका पीछा किया। एक युवा ने बड़ी ढिठाई से पूछा “भाई, तू ज्यादा उछल रहा है। तू हिन्दू है या मुसलमान?”

फिर वो चट्टोपाध्याय की पैंट नीचे करने की धमकी देने लगे ताकि उन्हें पता चल सके कि वो हिन्दू हैं या मुस्लिम। हाथ जोड़ कर विनती करने के बाद ही उन्होंने पत्रकार चट्टोपाध्याय को जाने दिया।

रुद्राक्ष दिखाकर बचाई जान 

एनडीटीवी के 2 पत्रकारों अरविंद गुणाशेखर और सौरभ शुक्ला पर गोकलपुरी इलाके के मीत नगर में एक जलती मजार का वीडियो शूट करते समय हमला किया गया। इस हमले में अरविंद के सामने के तीन दांत भी टूट गए। एनडीटीवी के पत्रकार सौरभ के मुताबिक हमने सुना कि सीलमपुर के निकट एक धार्मिक स्थल को निशाना बनाया जा रहा है। जब हम वहां पहुंचे, हमने लगभग 200 लोगों की भीड़ को तोड़-फोड़ करते देखा। हमने फ्लाईओवर के ऊपर रहकर रिकॉर्डिंग शुरू कर दी। CNN न्यूज़ 18 की रुनझुन शर्मा भी हमारे साथ थीं। आस-पास बहुत कम पुलिसकर्मी थे – वे कुछ नहीं कर रहे थे।

मैं अरविंद से लगभग 50 मीटर दूर था, जब उन्हें एक दंगाई ने दबोच लिया। इससे पहले कि हम कुछ समझ पाते, लगभग 50-60 दंगाइयों की भीड़ ने अरविंद को पीटना शुरू कर दिया। उन्होंने कहा कि वह अपने मोबाइल फोन पर रिकॉर्ड की गई सारी फुटेज डिलीट कर दें। अरविंद ज़मीन पर गिरे हुए थे, उनके मुंह से खून बह रहा था। उनके तीन दांत टूट गए थे। मैं उनकी मदद के लिए भागकर पहुंचा और मेरी पीठ पर भी लाठियां पड़ीं, जो अरविंद के सिर को निशाना बनाकर चलाई गई थीं। मैं अरविंद को बचाने के लिए उनसे लिपट गया, तो भीड़ ने मुझे पेट और पीठ में घूंसे मारे, और मेरे कंधों पर भी लाठियां बरसाते रहे।

मैं किसी तरह उठा और भीड़ को एक विदेशी संवाददाता का प्रेस क्लब का कार्ड दिखाया। मैंने उन्हें बताया कि हम किसी भारतीय टेलीविज़न चैनल के लिए नहीं, एक विदेशी एजेंसी के लिए काम कर रहे हैं। उन लोगों ने मेरा सरनेम पढ़ लिया – शुक्ला। उन्हीं में से एक ने अपने साथियों को बताया कि मैं एक ब्राह्मण हूं। मैंने भी अपने गले में पहना ‘रुद्राक्ष’ उन्हें दिखाया, ताकि अपना धर्म साबित कर सकूं। जब उन्होंने हमारा नाम देखा, उसके बाद हमें मारना बंद किया और बोले तुम हमारे धर्म से हो। तुम्हें यह नहीं करना चाहिए। तुम्हें इसका वीडियो नहीं बनाना चाहिए।” 

सौरभ आगे बताते हैं, “भीड़ ने उन्हें अरविंद से अलग कर दिया क्योंकि वो सोच रहे थे कि अरविंद ही वहां अकेले शूट कर रहा था। वो हमें बता रहे थे, अरविंद से कहो अपने मोबाइल में से सबकुछ डिलीट कर दे। मैंने उन्हें बताया कि अरविंद तमिलनाडु से है, और हिन्दी नहीं जानता। रुनझुन भी हमारे साथ थीं, और वह भी हम सभी को जाने देने के लिए गिड़गिड़ाती रहीं। उन्होंने हमारे मोबाइल फोन ले लिए, और फोटो तथा वीडियो डिलीट करने लगे। उन्हें मालूम था कि iPhone कैसे इस्तेमाल करते हैं। वे किसी भी ‘गड़बड़’ फुटेज की तलाश में फोन में मौजूद सभी फोल्डरों में गए। उसके बाद उन्होंने हमें धार्मिक नारे लगाने के लिए मजबूर किया, और धमकाया कि अगर हम उन्हें दोबारा दिखाई दिए, तो वे हमें जान से मार डालेंगे।” 

अरविंद गुणा शेखर बताते हैं, “हमने देखा मीत नगर में भीड़ एक दरगाह पर हमला कर रही थी। हम उसे शूट करने वहां गए। भीड़ हमारे पास की इमारत को तोड़ने लगी। वो हमें भी मारने लगे और ‘जय श्री राम’ के नारे भी लगाने लगे। मैंने काले रंग की टीशर्ट पहन रखी थी, शायद इसलिए उन्होंने सोचा होगा कि मैं मुस्लिम हूं। सौरभ ने भीड़ को बताया कि वे दोनों हिंदू हैं। उसमें से एक ने बताया कि मैंने वीडियो शूट किया था, तभी एक ने मेरा फोन छीन लिया। उन्होंने हमें तभी जाने दिया जब उन्होंने सारे वीडियो डिलीट कर दिए।”

एनडीटीवी की रिपोर्टर मरियम अलवी को भी एक अन्य जगह भीड़ ने पीठ पर मारा। वहां वो पत्रकार श्रीनिवासन जैन के साथ रिपोर्ट कर रही थीं। उनके साथ के कैमरा पर्सन सुशील राठी भी घायल हुए। दंगाई नहीं चाहते थे कि उनकी तस्वीर आए। फुटेज डिलीट कर दी। जब उन्हें इस बात का पूरा यकीन हो गया कि उनके पास कुछ नहीं है तब उन्हें छोड़ा।

25 फरवरी को जब भगवा दंगाई भीड़ सौरभ और अरविंद पर हमला कर रही थी तो सीएनएन-18 की रुनझुन शर्मा भी उनके ही साथ थीं। रुनझुन कहती हैं, “वो लोग अरविंद को मारने लगे। उसके मुंह से खून बह रहा था। यहां तक कि इन लोगों ने सौरभ को भी पकड़ लिया और पीटने लगे। मैं इन लोगों से घिरी हुई थी। वे लगातार हमसे हमारी मजहबी पहचान पूछ रहे थे। हमें उनके सामने कई बार हाथ भी जोड़ना पड़ा कि हमें जाने दीजिए। हम लगातार विनती कर रहे थे।”

मुस्लिमों को मारने का आदेश ऊपर से आया है

इस्मत आरा, फर्स्टपोस्ट में अपने भयानक अनुभव के बारे में यूँ लिखती हैं, “वहां एक हिन्दू पुजारी कुछ लोगों को समझा रहे थे- “मुस्लिमों को मारने का आदेश ऊपर से आया है।” जब इन्होंने पुजारी के बारे जानने की कोशिश की तो भीड़ उनकी तरफ संदेह से देखने लगी और उनसे उनकी पहचान पूछने लगी। उन्हें अपनी धार्मिक पहचान को लेकर झूठ बोलना पड़ा, प्रेस कार्ड को छिपाना पड़ा और उनके सवालों का मनगढ़ंत जवाब देना पड़ा।

इसके बाद जब आरा अंदर एक सड़क पर गईं तो भीड़ में से कुछ लोग उनका पीछा करते हुए गए। उन्हें रोक कर उनसे पूछा, “मीडिया से हो तो बोलो न, झूठ बोलकर हमारे पंडित जी के बारे में क्यों पूछ रही हो? बताओ तुम मीडिया से हो और क्यों हमसे झूठ बोल रही थी और हमारे पंडित के बारे में पूछ रही थी?”

उन्होंने कहा, “जो लोग सड़कों को रोक रखे थे, उनके हाथों में लाठी, ईंटें, बैट, डंडा, रॉड और कुल्हाड़ी आदि था। पुलिस और सीआरपीएफ की गैरमौजूदगी में मौजपुर की सड़कों पर घूमती हुई भीड़ मुझे पकड़, मेरी पहचान जानकर, एक पत्रकार होने के नाते परेशान भी कर सकती थी, एक महिला होने के नाते छेड़खानी और एक मुस्लिम होने के नाते मुझे मार भी सकती थी।

हिंदुओ की लड़ाई है, साथ दीजिए

स्वतंत्र पत्रकार श्रेया चटर्जी ने आपबीती में बताया कि “मौजपुर में वो संवाददाताओं के साथ थीं जिन्हें रिपोर्टिंग करने से रोक दिया गया। नागरिकता कानून का समर्थन करने वालों ने उन्हें मारने के लिए धमकाया। वे कह रहे थे, “हिंदुओं की लड़ाई है, हमारा साथ दीजिये, रिकॉर्ड मत कीजिए, हम फँस जाएंगे।” 

श्रेया चटर्जी ने रायटर्स के दानिश सिद्दीकी पर भी रिपोर्टिंग के दौरान हमला होने की जानकारी दी।

टाइम्स नाऊ और इंडिया टीवी के पत्रकारों को भी  नहीं बख्शा भगवा दहशतगर्दों ने

दिल्ली हिंसा में टाइम्स नाऊ और रिपब्लिक टीवी, इंडिया टीवी जैसे भगवा भोंपू के पत्रकारों को भी भगवा दहशतगर्दों ने नहीं बख्शा। 

टाइम्स नाऊ की परवीना पुरकायस्थ अपनी आप बीती यूँ सुनाती हैं, “ मैं मौजपुर मेट्रो स्टेशन से रिपोर्ट कर रही थी। मैं एक सुरक्षित जगह से रिपोर्टिंग कर रहा थी और मैं अकेली नहीं थी। मैं सीएए समर्थकों और और एंटी-सीएए प्रदर्शनकारियों को भिड़ते देख सकती थी। अचानक प्रो-सीएए के प्रदर्शनकारियों ने मेरी तरफ इशारा किया और भीड़ से पांच से छह लोग लाठी-डंडे लेकर मेरी तरफ आए और ‘मारने’ के लिए धमकाने लगे। मुझे वहां पर बैठकर निवेदन करना पड़ा कि मुझे मत मारिये और जाने दीजिए।

24 फरवरी सोमवार को मौजपुर क्षेत्र में भगवा दंगाईयों ने इंडिया टुडे की जर्नलिस्ट तनुश्री पांडेय को धमकाया और छेड़छाड़ की। तनु ने आप बीती में लिखा, “ उन्होंने मुझसे कहा कैमरा बंद कर लो वर्ना गाड़ देंगे यहीं पे। इस दौरान 10 लोगों ने मुझे कमर और कंधे से कसकर पकड़े रखा। मैंने इतना आतंकित पहले कभी नहीं महसूस किया। कैमरा पर्सन बर्बरतापूर्वक लाठियों से पीटा गया। ” 

वहीं रिपब्लिक टीवी की पत्रकार शांताश्री सरकार भी 24 फरवरी को भगवा दंगाईयों के हमले पर ट्वीट किया, “ आज जब मैं भजनपुरा से रिपोर्टिंग कर रही थी। प्रो-सीएए प्रोटेस्टर्स जय श्री राम का नारा लगा रहे थे और ईंट पत्थर मार रहे थे। मुस्लिम टोपी (स्कल कैप) पहने हर व्यक्ति पर हमला कर रहे थे। क्या ये पक्ष लेने और मौजूदा सांप्रदायिक हिंसा को और भड़काने का समय है?”

एक दूसरे ट्वीट में शांताश्री ने 24 फरवरी को लिखा दिल्ली के मौजपुर में प्रो-सीएए प्रोटेस्टर्स दुकानों को तोड़ रहे हैं और वाहनों में आग लगा रहे हैं। इन सबके दौरान जर्नलिस्ट को फोटो वीडियो शूट नहीं करने दिया जा रहा है। वो कह रहे हैं- ‘आज आर-पार की लड़ाई है।’

मेरे शिश्न से हुई मेरी हिंदू नारिकता की पहचान

खुद मेरे यानि सुशील मानव और मेरे साथी अवधू आजाद के साथ मौजपुर की गली नंबर 7 में स्थानीय भगवा गुंडों ने लाठी, डंडे, लात मुक्के से मारा पीटा था। उन्होंने हमारी धार्मिक पहचान के लिए हमसे हनुमान चालीसा, गायत्री मंत्र सुनने के बाद तमंचे के बल पर हमारी पैंट तक उतरवाई थी। और हमारे शिश्न से हमारी हिंदू पहचान पुख़्ता करने के बाद ही हमारी जान बख़्शी थी।  

अब दो सवालों के जवाब ढूँढे जाने चाहिए 

पत्रकारों पर हमला करने वाले सभी हमलावर हिंदू समुदाय के ही क्यों थे? 

और पत्रकारों पर हुए सभी हमले हिंदू बाहुल्य क्षेत्रों में ही क्यों हुए?

(सुशील मानव जनचौक के स्पेशल करेस्पांडेंट हैं। और आजकल दिल्ली में रहते हैं।)

जनचौक से जुड़े

0 0 votes
Article Rating
Subscribe
Notify of
guest
0 Comments
Inline Feedbacks
View all comments

Latest Updates

Latest

साम्राज्यवाद के ख़िलाफ़ जंग का एक मैदान है साहित्य

साम्राज्यवाद और विस्थापन पर भोपाल में आयोजित कार्यक्रम में विनीत तिवारी ने साम्राज्यवाद के संकट और इसके पूंजीवाद में बदलाव के उदाहरण दिए। उन्होंने इसे वैश्विक स्तर पर शोषण का मुख्य हथियार बताया और इसके विरुद्ध विश्वभर के संघर्षों की चर्चा की। युवा और वरिष्ठ कवियों ने मेहमूद दरवेश की कविताओं का पाठ किया। वक्ता ने साम्राज्यवाद विरोधी एवं प्रगतिशील साहित्य की महत्ता पर जोर दिया।

Related Articles

साम्राज्यवाद के ख़िलाफ़ जंग का एक मैदान है साहित्य

साम्राज्यवाद और विस्थापन पर भोपाल में आयोजित कार्यक्रम में विनीत तिवारी ने साम्राज्यवाद के संकट और इसके पूंजीवाद में बदलाव के उदाहरण दिए। उन्होंने इसे वैश्विक स्तर पर शोषण का मुख्य हथियार बताया और इसके विरुद्ध विश्वभर के संघर्षों की चर्चा की। युवा और वरिष्ठ कवियों ने मेहमूद दरवेश की कविताओं का पाठ किया। वक्ता ने साम्राज्यवाद विरोधी एवं प्रगतिशील साहित्य की महत्ता पर जोर दिया।