Friday, March 29, 2024

दुनिया के पांच कट्टर दक्षिणपंथी शासित देश ही क्यों हैं कोरोना से सबसे ज्यादा प्रभावित

कोविड-19 संक्रमितों की संख्या के लिहाज से दुनिया के पांच सबसे ज्यादा प्रभावित देश हैं- यूएसए, ब्राजील, रूस, भारत और ब्रिटेन। इन पांचों देशों में कट्टरवादी दक्षिणपंथी पार्टियां सत्ता में हैं। अमेरिका दुनिया में कोरोना से सबसे बुरी तरह प्रभावित देश है जहां संक्रमितों की संख्या 22,63,651 है। और यहां अब तक 1,20,688 लोग संक्रमण से मर चुके हैं। अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप हैं जो कि रिपब्लिकन पार्टी का प्रतिनिधित्व करते हैं।

ब्राजील दुनिया का दूसरा सबसे प्रभावित देश है जहां कोविड -19 संक्रमितों की संख्या 9,83,359 है जबकि यहां 47,869 लोगों की संक्रमण के चलते मौत हो चुकी है। ब्राजील के राष्ट्रपति हैं जेयर बोल्सोनारो। जिनकी पार्टी का नाम है एलायंस फॉर ब्राजील।

रूस दुनिया का तीसरा सबसे प्रभावित देश हैं यहां कोविड-19 संक्रमितों की संख्या 5,61,091 है जबकि यहां 7,660 लोगों की संक्रमण से मौत हो चुकी है। राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन यूनाइटेड रसिया का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं। भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भाजपा का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं। वहीं ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन कंजर्वेटिव पार्टी ऑफ यूनाइटेड किंगडम का प्रतिनिधित्व करते हैं। 

दुनिया का चौथा सबसे प्रभावित देश भारत है। यहाँ संक्रमितों की संख्या 3,81,091 है। जबकि अब तक 12604 लोगों की मौत हो चुकी है। नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री हैं जो कि कट्टर दक्षिणपंथी भाजपा का प्रतिनिधित्व करते हैं।

दुनिया का पांचवां सबसे प्रभावित देश ब्रिटेन है। जहां अब तक 3,00,469 लोग कोविड-19 संक्रमित हैं जबकि संक्रमण से मरने वालों का आंकड़ा 42,288 है। ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन हैं जोकि कट्टरवादी दक्षिणपंथी कंजरवेटिव पार्टी ऑफ ब्रिटेन का प्रतिनिधित्व करते हैं।  

इन पांचों देशों के सत्ताधारियों के लिए कोविड-19 से लड़ाई पहली प्राथमिकता कभी नहीं रही 

अगर हम ध्यान से देखें तो एक चीज बहुत साफ दिखती है कि इन पांचों देशों के दक्षिणपंथी शासकों ने कोविड-19 वैश्विक महामारी को बहुत गंभीरता से नहीं लिया। अमेरिका के राष्ट्रपति ट्रम्प जहां आखिर तक लॉकडाउन न लगाने और कोविड-19 के गाइडलाइंस फॉलो करने के बजाय WHO को ही धमकाते रहे वहीं ब्रजील के राष्ट्रपति बोल्सोनारो कोविड -19 के लिए ज़रूरी सोशल डिस्टेंसिंग को ‘क्राइम’ और कोविड-19 को ‘लिटिल फ्लू’ बताते हुए मीडिया द्वारा इसकी भयावहता के प्रति आगाह किए जाने को मीडिया हिस्टीरिया कहकर खारिज कर दिया।

पूरी दुनिया जहां कोविड-19 का सामना करने के लिए ज़रूरी संसाधन जुटाने में लगी थी वहीं भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी नमस्ते ट्रंप के भव्य आयोजन, सीएए विरोधी जनांदोलनकारियों के जनसंहार और मध्यप्रदेश के कांग्रेस विधायकों को खरीदकर एक लोकतांत्रिक तरीके से चुनी हुई सरकार को पूंजी के दम पर गिराकर अपनी सरकार बनाने के काम में लगे हुए थे। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने कहा था कि वेंटिलेटर, सर्जिकल/फेस मास्क और मास्क/गाउन बनाने वाले सामान का भंडारण हो। इसके उलट भारत सरकार 19 मॉर्च तक इन्हें ज़्यादा दाम पर बेचती रही। चिकित्सा उपकरणों के बजाय इजरायल से 880 करोड़ रुपए में 16,479 लाइट मशीन गन (LMG) खरीदने में व्यस्त रही। 

कोविड -19 से लड़ने के बजाय जनता और विरोधियों से लड़ती रही सरकार  

कोविड-19 से लड़ने के बजाय इन देशों की सरकारें अपने देश के नागरिकों और विरोधी विचारधारा के लोगों से लड़ती रहीं। अमेरिका और ब्रिटेन में पुलिस और सरकार फिलहाल ‘ब्लैक लाइव्स मैटर’ आंदोलनकारियों से लड़ रही है जबकि ब्राजील के राष्ट्रपति बोल्सोनारो राष्ट्रपति से असहमति रखने वाले अपने कैबिनेट के लोगों को ही निपटा रहे थे। ब्राजील के राष्ट्रपति बोल्सोनारो सनकीपने में डोनाल्ड ट्रंप को भी मात देते हुए कोरोना काल में एक महीने के अंदर दो स्वास्थमंत्रियों और न्याय मंत्री को पद से हटा दिया। इतना ही नहीं उन्होंने फेडरल पुलिस चीफ को भी उनके पद से हटा दिया। कोविड-19 के खिलाफ जब उन्हें पूरी दृढ़ता से लगना चाहिए था बोल्सोनारो लगातार राजनीतिक अस्थिरता का माहौल बनाए रखे। इसके अलावा उन्होंने कोविड-19 क्राइसिस के दौरान ही अपने समर्थन में लोकतंत्र विरोधी प्रो-बोल्सोनारो रैलियां आयोजित करवाई।

इस दौरान जब पूरी दुनिया में कोविड-19 संक्रमण के ख़तरे को देखते हुए दुनिया भर के जेलों से कैदी छोड़े जा रहे थे जहां नहीं छोड़े जा रहे थे वहां उन्हें छोड़े जाने की बहस चल रही थी, वहीं इसके उलट भारत की नरेंद्र मोदी सरकार अपने विरोधियों को चुन-चुनकर गिरफ्तार करके जेल भेज रही थी। सिर्फ़ इतना ही नहीं अपने और तमाम पूंजीवादी मीडिया संसाधनों का दुरुपयोग करते हुए लगातार कोविड-19 का सांप्रदायीकरण करने में लगी हुई थी। सरकार की पूरी मशीनरी नई टर्मिनॉलॉजी ‘कोरोना जेहाद’ के जरिए दिन-रात ये सिद्ध करने में लगी रही कि भारत में अल्पसंख्यक मुस्लिम समुदाय जान बूझकर कोरोना फैलाने में लगा हुआ है। 

ज़रूरी समग्रता में संसाधनों का इस्तेमाल नहीं किया

हालाँकि ये बात ही बेमानी है। जब कोविड-19 इस सरकार की प्राथमिकता ही नहीं है तो ज़रूरी समग्रता में संसाधनों के इस्तेमाल का तो सवाल ही पैदा नहीं होता। फिर भी हम बात करेंगे। अमेरिका, ब्राजील से लेकर भारत तक स्थिति कमोवेश एक सी रही। भारत की बात करें तो यहां स्वास्थ्यकर्मी लगातार पीपीई किट के लिए चिल्लाते रहे। सरकारी अस्पतालों में ज़रूरी दवाइयां और वेंटिलेटर, टेस्टिंग किट व लैब की कमी लगातार महसूस की जाती रही लेकिन सरकार के कानों में जूं तक नहीं रेंगा।

सरकार स्वास्थ्यकर्मियों को पीपीई किट के बदले ताली-थाली से काम चलाने को विवश कर रही थी। सरकार अपनी कमियों को ढंकने के लिए कोरोना काल में जनता से अपील करके रोज एक न एक उत्सव फान रही थी। कभी ताली थाली की नौटंकी तो कभी दीया मोमबत्ती का ज़श्न। देश की अवाम को इमोशनल ब्लैकमेल करके उनसे पीएम केयर्स फंड में पैसा डालने की अपील की और फिर उस पैसे का प्रयोग ‘फे़क वेंटिलेटर’ की ख़रीददारी करके अपने दोस्तों के विकास में खर्च करके किया। जबकि इन फे़क वेंटिलेटर ने कई मरीजों की जान ले ली। 

आपदा को अवसर में तब्दील कर निजीकरण का एक्सीलरेटर बढ़ा दिया 

नस्लीय राष्ट्रवाद का फरेब रचकर ही इन पांचों देशों के वर्तमान प्रतिनिधि चुनकर सत्ता में आए थे। सत्ता में आने के बाद इन्होंने अपनी पूरी ताक़त और सार्वजनिक संसाधनों को दूसरी नस्ल और समुदाय के लोगों के दमन में लगाया। इसके लिए एकमुश्त पूंजी की ज़रूरत पड़ी, और एकमुश्त पूँजी कुछ बेचने से ही हासिल होती है। यही कारण है दक्षिणपंथी विचारधारा हमेशा कार्पोरेट के हितों को जनता हितों पर वरीयता देती है। कोविड-19 महामारी इनके लिए अपने कार्पोरेट सहयोगियों को आगे बढ़ाने का अवसर लेकर आया।

अतः दक्षिणपंथी शासक लगातार सार्वजनिक संस्थाओं, निकायों, और सेवाओं की बोली लगाते रहे। यहां तक कि सुरक्षा और रक्षा जैसे बेहद संवेदनशील क्षेत्रों को भी इन्होंने निजी हाथों में सौंप दिया बिना इस बात पर विचार किए कि इससे देश की सुरक्षा और संप्रभुता संकट में पड़ सकती है। भारत की बात करें तो प्रधानमंत्री मोदी ने टीवी पर आपदा को अवसर में बदलने की बात की और उस नीति का अनुसरण करते हुए सामरिक सहित सभी सार्वजनिक कंपनियों को बेचने का खाका तैयार कर डाला।

इसका ऐलान भी राहत पैकेज के साथ किया गया ताकि आप ‘राहत’ के अलावा और कुछ कह सुन न सकें। कई क्षेत्रों में बची खुची सरकारी हिस्सेदारी को फटाफट बेचने की प्रतिबद्धता दोहराते हुए कोयला, मिनरल, डिफेंस प्रोडक्शन, सिविल एविएशन, पॉवर डिस्ट्रीब्यूशन, सोशल इन्फ्रास्ट्रक्चर, एटॉमिक एनर्जी क्षेत्र में भी निजी दांतों को गड़ाने की परमिशन दे दी गई। कोयला ब्लॉकों को तो फटाफट निजी हाथों में सौंप भी दिया गया।

लॉकडाउन में मरने के लिए छोड़ दिए गए ज़रूरतमंदों की सुधि तक नहीं ली गई

दक्षिणपंथ शासित और कोविड-19 से सबसे ज़्यादा प्रभावित पांचों देशों में लॉकडाउन को देर से और बिना किसी प्रॉपर तैयारी के थोप दिया गया। नतीजा ये हुआ की भूख और बेआसरा प्रवासी मजदूर शहर से गांवों की ओर भागना शुरु कर दिए। जिससे वो भूख और कोरोना के अलावा हजारों किलोमीटर पैदल चलकर जाने की बाध्यता और पुलिस की यातना का भी शिकार हुए। मध्यवर्ग जिसके पास अपनी ईएमआई वाली कार थी और जिनके पास नहीं थी वो निजी साधन बुक करके घर तक गए लेकिन उन्होंने कोई नार्म्स फॉलो नहीं किया। उसका सबसे बड़ा कारण ये था कि सरकार द्वारा टेंपरेरी तौर पर बनाए गए आइसोलेशन वॉर्ड और क्वारंटीन सेंटर में सुविधा के नाम पर खंडहर इमारतें भर खड़ी थीं, बस। 

निजीकरण के चलते ज़रूरतमंदों तक सार्वजनिक वितरण और सेवा पहुँचाने के रास्ते बंद थे

कोविड-19 से सबसे ज़्यादा प्रभावित सभी पांचों देशों में एक बात जो कॉमन है वो ये कि पिछले कुछ सालों में इन देशों में सार्वजनिक सेवाओं और सार्वजनिक वितरण का जो सिस्टम था उस सिस्टम को ही खत्म कर दिया गया। इसका नतीजा ये हुआ कि लॉकडाउन के समय ज़रूरतमंदों तक ज़रूरी सेवाओं और वस्तुएं नहीं पहुंच पाई। जिससे लोगों में अफरा-तफरी और भगदड़ के हालात बने। इसे वैश्विक स्तर पर हम चीन, दक्षिण कोरिया और न्यूजीलैंड के उदाहरण से समझ सकते हैं।

चीन अगर कोविड-19 संक्रमण को वुहान तक रोकने में और कोविड-19 से उबरने में कामयाब रहा तो उसमें उसके सार्वजनिक वितरण प्रणाली का बेहद अहम योगदान है। भारत के संदर्भ में इसे हम केरल मॉडल से समझ सकते हैं। जहां कोरोना ने सबसे पहले दस्तक दी। लेकिन केरल की सार्वजनिक वितरण प्रणाली और वामपंथी जनवादी सरकार ने जनता के साथ मिलकर कोविड-19 को मात दी।   

(जनचौक के विशेष संवाददाता सुशील मानव की रिपोर्ट।)

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