50 साल के कर्मचारी अयोग्य हैं तो नेता कैसे योग्य ?

एक बुजुर्ग जो अभी स्वास्थ्य विभाग में सेवारत हैं 50 साल पार के राज्यकर्मियों को जबरन रिटायर करने के रोडमैप के तौर पर हो रही स्क्रीनिंग पर कहते हैं – सरकार के इस तानाशाही फ़रमान से कर्मचारी दहशत में हैं कि बुढ़ापे में कलंक के साथ, अपराधी होने के मुक़दमे के साथ नौकरी छोड़ना पड़ेगा। सरकार यदि भ्रष्टाचारी का टैग लगाकर निकालेगी तो फंड पेंशन सब फंस जायेगा। बची-खुची ज़िंदग़ी मुक़दमों की पैरवी में बीतेगी।

वर्षों तक सप्लाई इंस्पेक्टर के पद पर नौकरी करने वाले राधे श्याम मिश्रा कहते हैं – अधिकारी तय करेगा कि कौन सा कर्मचारी योग्य है कौन सा नहीं। यदि किसी ऑफ़िसर के मातहत कर्मचारी से अच्छे संबंध नहीं रहे हैं, या किसी मुद्दे पर असहमति रही है या वो कर्मचारी किसी दूसरे क़ौम या जाति का है तो ऐसे में उसे खामख्वाह ही उक्त अधिकारी का कोपभाजन बनना पड़ेगा। वो अपने उस मातहत कर्मचारी के रिपोर्ट पर कामचोर, भ्रष्ट, अक्षम्य आदि लिखकर सरकार या प्रशासन को भेज देगा।

ये लोग खुद के संस्कारी पार्टी होने का दंभ भरते हैं। लेकिन अपने घर के बुजुर्गों की क़द्र नहीं करते। उन्हें मार्गदर्शक मंडल (जहां न बोलने की आज़ादी होती है न कुछ करने की) के कूड़ेदान में डाल देते हैं। एक बुजुर्ग कहते हैं इनकी परंपरा यही रही है बुजुर्गों से छीनने की। अटल बिहारी वाजपेयी ने बुजुर्गों से उनके बुढ़ापे का आर्थिक सहारा पेंशन छीन लिया अब ये लोग 50 साल के पार नौकरी करने का अधिकार छीन रहे हैं। बुजुर्ग वैसे ही बेसहारा होते हैं। इस उपभोगवादी समय में बुजुर्गों की यात्रा पर कौन खर्च करता है पैसे। रेलवे द्वारा अभी तक बुजुर्गों को रियायती दर पर  यात्रा टिकट उपलब्ध कराया जाता था, इस क्रूर सरकार ने बुजुर्गों से वो भी छीन लिया। बताइये अब देश में यह दिन आ गये हैं कि बुजुर्गों का हक़ मारकर सरकार का ख़जाना भरा जाएगा। 

ग्राम विकास अधिकारी के पद पर वर्षों तक सेवारत रहे बजरंग बहादुर सिंह सरकार के नये फ़रमान पर रोष प्रकट करते हुए कहते हैं – दरअसल सत्ता में जिन लोगों की सरकार है उनका बुद्धि और तर्क से कोई लेना देना नहीं है। तभी तो जहां एक ओर वो 60-62 साल की उम्र में रिटायर हुये शिक्षकों को आधे वेतन में फिर से पढ़ाने के काम पर रख लेते हैं। दूसरी ओर जवान शिक्षा मित्रों से पढ़वाने के अलावा सारे सरकारी काम करवाते हैं लेकिन शिक्षक के बराबर पैसा देने के लिये अयोग्य बताते हैं। वहीं दूसरी ओर जो राज्यकर्मी 50 साल की उम्र पार कर रहे हैं उन्हें जबरिया नौकरी से निकालने की योजना को अंजाम देने जा रहे हैं। 

स्क्रीनिंग वाले एज ग्रुप में आने वाले एक नौकरीपेशा कहते हैं यदि इस बार स्क्रीनिंग में बच भी गया तो बाक़ी उम्र निश्चिंत होकर नौकरी नहीं कर पाऊंगा। बाक़ी उम्र नौकरी बचाने की फिक्र में लगा रहूंगा। एक लंबी सांस लेकर हताश स्वर में उन्होंने आगे कहा कि ईमानदारी से कहूं तो शायद अब कर्तव्यनिष्ठ होकर काम करने के बजाय अधिकारियों की जी हुजूरी में लग जाऊं क्योंकि मेरी नौकरी, पद प्रतिष्ठा सब उन्हीं के रहमों-करम पर होगी। हर समय इस ख़ौफ़ में रहूंगा कि कब मेरा नंबर आयेगा जब भ्रष्टाचारी, कामचोर का टैग लगाकर अपमानित करके नौकरी से निकाल दिया जाऊंगा। 

बता दें कि आज यानी 31 जुलाई को उत्तर प्रदेश के 50 साल पार राज्यकर्मियों की स्क्रीनिंग की मियाद पूरी हो रही है। गौरतलब है कि उत्तर प्रदेश सरकार ने फैसला किया है कि वह अपने उन कर्मचारियों को रिटायर कर देगी जो पचास साल की उम्र पार कर चुके हैं। इसके लिये उत्तर प्रदेश के सभी विभागों में 31 मार्च, 2022 तक 50 वर्ष की आयु पूरी कर चुके कर्मचारियों की स्क्रीनिंग करने का काम उत्तर प्रदेश राज्य के मुख्य सचिव दुर्गा शंकर मिश्र ने सभी विभागों को शासनादेश जारी किया था। स्क्रीनिंग में कर्मचारियों की एनुअल कॉन्फिडेंशियल रिपोर्ट (ACR) भी देखी जाती है।

हास्यास्पद बात यह है कि खुद मुख्य सचिव जी रिटायरमेंट की उम्र पार हो चुके हैं और एक साल के एक्सटेंशन पर हैं। शासनादेश में कहा गया है कि राजकीय सेवा नियमावली के तहत नियुक्ति अधिकारी किसी भी समय किसी भी कार्मिक को पचास वर्ष की आयु पूरी करने के बाद बिना कोई कारण बताए तीन महीने का नोटिस देकर अनिवार्य रूप से रिटायर कर सकता है। मुख्य सचिव ने अनिवार्य रूप से रिटायर किए गए कर्मचारियों की सूचना 15 अगस्त तक कार्मिक विभाग को प्रस्तुत करने के निर्देश दिए हैं। शासनादेश में यह भी कहा गया है कि स्क्रीनिंग कमेटी यदि किसी कर्मचारी को बहाल रखने का फैसला करती है तो उस कर्मचारी को दोबारा स्क्रीनिंग से नहीं गुज़रना होगा।

बता दें कि साल 2018 से अब तक यूपी में 450 से ज्यादा कर्मचारियों को अनिवार्य रिटायरमेंट दिया जा चुका है। इनमें राजपत्रित अधिकारी भी शामिल हैं। पिछले साल मार्च में तीन आईपीएस अधिकारियों को भी अनिवार्य सेवानिवृत्ति दी गई थी जिनमें अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक स्तर के चर्चित अधिकारी अमिताभ ठाकुर भी शामिल थे। उनके अलावा राजेश कृष्णा और राकेश शंकर को अनिवार्य सेवानिवृत्ति दी गई थी।

इससे पहले केंद्र की मोदी सरकार ने साल 2019 में ऐसा एक आदेश पारित किया था, जिसके तहत 30 साल की नौकरी या 50 साल उम्र पार अधिकारियों को जबरिया निकालने (आवश्यक रिटायरमेंट) का खेल शुरू हुआ था। प्रचंड बहुमत के बाद दूसरे कार्यकाल में इसे केंद्र के समस्त कर्मचारियों पर भी लागू कर दिया। बता दें कि उत्तर प्रदेश में विभिन्न श्रेणियों में क़रीब 28 लाख सरकारी कर्मचारी हैं और ऐसे कर्मचारियों की संख्या काफी ज्यादा है जिनकी उम्र पचास साल से ज्यादा हो गई है। 

किन किनको निकाला जा सकता है 

स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति के विकल्प से तो कर्मचारियों को आर्थिक नुकसान नहीं होता था लेकिन अनिवार्य रूप से सेवानिवृत्त करेंगे तो उस पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाएंगे या फिर अक्षम बताएंगे जिससे कर्मचारियों को आर्थिक रूप से तो नुकसान उठाना ही पड़ेगा उन पर आरोप अलग लगेंगे। अधिकारी तय करेंगे कि किसे निकालना है किसे नहीं। जो कर्मचारी पचास साल के ऊपर का हो गया है, ख़तरनाक जगहों पर काम नहीं कर सकता है तो क्या उसे निकाल दिया जाएगा? 

दरअसल किसी को भी अनिवार्य रूप से रिटायर करने का विधिक प्रावधान यह है कि यदि कोई व्यक्ति मानसिक रूप से अक्षम है और काम करना न तो उसके हित में है और न ही सरकार के हित में तो, ऐसी स्थिति में ही किसी को निकाला जा सकता है। इसके लिए न तो कोई मापदंड है और न ही कोई अर्हता तय की गई है, सिर्फ़ जनहित में किसी को निकाला जा सकता है। भ्रष्टाचार या अक्षमता का आरोप लगाकर अपनी नापसंद वाले लोगों को बाहर करने का एक तरीका भर है और योगी सरकार के इस नये फ़रमान से भ्रष्टाचार के अमरबेल सा नौकरशाही और फलेगी फूलेगी। स्क्रीनिंग में सूची में शामिल करने और न करने के नाम पर लूट-खसोट को बढ़ावा मिलेगा। कुल मिलाकर, नया सरकारी फ़रमान मनमाने ढंग से उन लोगों को निकालने का उपक्रम हो रहा है जो उनकी पसंद नहीं हैं।”

क्या रिक्त पदों को खत्म कर देगी सरकार

बिजली विभाग से सेवानिवृत्त हरि प्रसाद पांडेय सरकार के नये फ़रमान पर सवाल खड़े करते हुये दलील देते हैं कि यदि कोई सरकारी कर्मचारी भ्रष्ट है, अक्षम है या कामचोर है तो उसे नौकरी और व्यवस्था से बाहर निकालने के लिए 50 साल की उम्र का इंतज़ार क्यों करना है भाई? जब विभागों में पहले से ही भ्रष्ट और अक्षम कर्मचारियों को दंडित करने की एक पारदर्शी प्रक्रिया मौजूद है तो नए शासनादेश की ज़रूरत क्यों पड़ी ? हरि प्रसाद पांडेय के इस सवाल का जवाब हमें आयकर विभाग में बाबू के पद से सेवा प्राप्त बुजुर्ग देते हैं। वो कहते हैं सरकार इस नये फ़रमान के जरिये निजीकरण, ठेकाकरण की प्रक्रिया में तेजी लाना चाहती है। बड़ी संख्या में राज्यकर्मियों को सामूहिक रूप से नौकरी से निकालने के बाद रिक्त हुये उन पदों का सरकार क्या करेगी इसको लेकर कोई रोडमैप सरकार ने नहीं बताया है। आशंका है कि सरकार इन पदों को खत्म कर देगी या फिर इन्हें संविदा पर भरा जाएगा। 

भ्रष्टाचार की सामाजिक स्वीकृति को रेखांकित करते हुए वो बुजुर्ग व्यक्ति आगे कहते हैं कि – ” भ्रष्टाचार इस देश की संस्कृति में रची बसी हुई है। ऊपरी आमदनी (घूसखोरी) को समाज में ईश्वरीय देन माना जाता है। बेटी की शादी तय करते समय पूछा जाता है कि ऊपरी आमदनी कितनी होती है। लोग बाग अपनी खेत बारी गिरवी रखकर घूस देकर बेटों की नौकरी लगवाते हैं। घूसखोर भ्रष्टाचारी को समाज में कभी हेय दृष्टि से नहीं देखा जाता है बावजूद इसके भ्रष्टाचार के नाम पर जन समाज आंदोलित बहुत जल्द होता है। भ्रष्टाचार के नाम पर अन्ना हजारे के फर्जी आंदोलन का उल्लेख कर वो कहते हैं कि अन्ना आंदोलन ने केंद्र की सत्ता को ही बदलकर रख दिया।

इसलिये सरकार ने ये योजना बनाया है कि भ्रष्टाचार का टैग देकर नौकरी से लाखों कर्मचारियों को सामूहिक रूप से निकालने पर कहीं कोई जनाक्रोश या जनांदोलन का सामना उसे नहीं करना पड़ेगा। भ्रष्टाचार के मुद्दे पर आगे वो बुजुर्ग कहते हैं किसी भी राजनीतिक पार्टी के सांसद विधायक छोड़िये पार्षद के यहां छापे मार लीजिये करोड़ों रुपये नगद मिलेंगे अचल संपत्ति की तो बात ही क्या करें। आस-पास के गली मोहल्ले वालों को पता होता है, बस सरकार और आयकर, प्रवर्तन, सीबीआई को नहीं पता होता है। भाजपा पहले अपनी पार्टी, सरकार, और संगठन के भ्रष्टाचारियों की स्क्रीनिंग करवाये। 

(जनचौक के विशेष संवाददाता सुशील मानव की रिपोर्ट।)

सुशील मानव
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