Thursday, April 25, 2024

आखिर क्यों भाग रही है महिला आरक्षण विधेयक पारित कराने से सरकार?

चंद रोज़ पहले तालिबान के अफगानिस्तान पर क़ब्ज़े के बाद बनी नई सरकार के एक प्रवक्ता के बयान को भारत के अख़बारों ने प्रमुखता से छापा था – महिलाएं मंत्री बनाए जाने लायक़ नहीं हैं, उनका काम बच्चे पैदा करना है।

बीस साल पहले अफगानिस्तान अति रूढ़िवादी तालिबान से 2001 में आज़ाद हुआ था, जो उन्होंने शुरुआती संशोधन किए थे, उनमें एक 2005 में लागू किया गया संशोधन था – महिलाओं के लिए 27% सीट पर आरक्षण, जिसने अफगानिस्तान की महिलाओं को पोलिटिकल रिप्रेज़ेंटेशन में काफ़ी मदद की,  बदक़िस्मती से तालिबान के वापस क़ब्ज़े के बाद फिर से रूढ़िवादी ताक़तें ज़ोर पकड़ रही हैं, और महिलाओं पर बंदिशें लगती नज़र आती हैं, जिसकी निंदा किया जाना बहुत ज़रूरी है, लेकिन ऐसे बयान सुनने/जानने के लिए हमें हज़ार किलोमीटर यात्रा की ज़रूरत नहीं है, जब अपने देश में, ख़ास तौर पर उत्तर भारत में पितृसत्तात्मक सोच कूट कूट कर भरी हो। हममें से अधिकतर लोगों ने भारत के अनेक राज्यों के मुख्यमंत्रियों, सत्ता से जुड़े अनेक लोगों के बेहद आपत्तिजनक बयान सुने हैं, जो महिलाओं की प्रगति के प्रति उनकी कुंठा को दर्शाते हैं।

क्या आज़ाद भारत में भी एक तालिबान है, जो महिलाओं को उनके राजनैतिक प्रतिनिधित्व के अधिकार से वंचित रखना चाहता है,  क्या हमें हमारे देश के भीतर बैठे तालिबानियों को पहचान कर उनसे अपने हक़ के लिए लड़ना होगा।

अफगानिस्तान से नज़र हटा अगर हम बाक़ी पड़ोसी देशों पर भी नज़र डालें तो भारत के राजनैतिक पटल में महिलाओं की स्थिति साउथ एशिया में बदतर है। वर्ल्ड इकोनॉमिक फ़ोरम द्वारा प्रत्येक वर्ष ग्लोबल जेंडर गैप पर देशों की रैंकिंग की जाती है, जिसमें भारत लगातार साल दर साल निचले पायदान पर खिसकता जा रहा है।

India Ranking – Global Gender Gap – World Economic Forum

2006 – 98

2019 108

2020 112

2021 140 0ut of 156 countries

बीते एक साल में ही भारत की रैंकिंग में 28 अंक की गिरावट आई है। इसका मुख्य कारण साल दर साल राजनीतिक सशक्तिकरण में महिलाओं की स्थिति में लगातार गिरावट आना है।

बीते वर्ष में पोलिटिकल एम्पावरमेंट इंडेक्स में 13% की गिरावट दर्ज हुई है, एक अन्य सर्वे के अनुसार संसद में निर्वाचित महिला प्रतिनिधियों के प्रतिशत के आधार पर भारत 193 देशों में से 148वें स्थान पर है।

भारत की आज़ादी के 74 साल बाद महिलाओं की सदन में भागीदारी केवल 13 प्रतिशत है।

लोक सभा 78 out of 543 == 14 %

राज्य सभा 25 out of 245 == 10 %

कुल 13 %

जब महिलाओं को नीति निर्माण में भागीदारी का अवसर नहीं मिलेंगे, देश की आधी आबादी को नेतृत्व से, नीति निर्माण से दूर रखा जाएगा, अगर पोलिटिकल एम्पावरमेंट में महिलाओं की स्थिति में सुधार के बजाय लगातार गिरावट आएगी तो जेंडर गैप का बढ़ना स्वाभाविक है।

एक भारतीय होने के नाते हमें अपने देश पर गर्व होना स्वाभाविक है, लेकिन जब हम अन्य देशों से भारत की तुलना करते हैं, ये आँकड़े हमें शर्मसार करते हैं, इतने निचले पायदान पर होने के बजाय क्यों नहीं हमारे देश का नाम नॉर्वे , फ़िनलैंड, स्वीडन, निकारागुआ, न्यूजीलैंड, आयरलैंड, स्पेन, रवांडा, जर्मनी जैसे महिलाओं को बराबरी देने वाले दुनिया के टॉप 10 देशों में शामिल हो सकता।

इसमें सुधार कैसे हो, महिलाओं का प्रतिनिधित्व कैसे बढ़े,  इसके लिए या पोलिटिकल पार्टीज़ अपने अंदर स्वयं सुधार करें, जो लगभग असम्भव प्रतीत होता है, क्योंकि सत्ता में बैठे पुरुष महिलाओं को जगह देने को तैयार नहीं हैं, इसलिए देश की आधी आबादी के प्रतिनिधित्व को सुनिश्चित करने का केवल एक ही तरीक़ा है कि इसे संवैधानिक तरीक़े से महिला आरक्षण के ज़रिए लागू किया जाए, हमारे पड़ोसी देशों में अधिकतर ने महिलाओं के रिप्रेज़ेंटेशन को बढ़ावा देने के लिए रिज़र्वेशन को अपनाया है, विश्व के 100 से अधिक देशों ने महिलाओं को बराबरी के अवसर देने के लिए इस प्रकार के ज़रूरी कदम उठाए हैं।

“महिला आरक्षण बिल“ जिसे 108th कॉन्स्टीट्यूशन अमेंडमेंट के तौर पर भी जाना जाता है, कोई नई बात नहीं है, यह भारत की संसद में सबसे अधिक समय से लंबित विधेयकों में से एक है।

जब भारत आज़ाद हुआ था, और देश के संविधान निर्माण के लिए संविधान सभा का गठन हुआ, इस संविधान सभा में भी महिलाओं के प्रतिनिधित्व को बढ़ाने के लिए आरक्षण रखने पर बहस हुई, लेकिन तब कहा गया कि लोकतंत्र में समय के साथ इसका निवारण हो जाएगा,  महिलाओं का प्रतिनिधित्व बाद में बढ़ जाएगा । 1950 के दौर में तत्कालीन प्रधानमंत्री के लिखे हुए बहुत से पत्र हैं – जिसमें उन्होंने महिलाओं की राजनीति में भागीदारी को लेकर चिंता व्यक्त की है, इस वर्ष हम आज़ादी की 75 वीं वर्षगांठ पर आज़ादी का अमृत महोत्सव मना रहे हैं, लेकिन इतने वर्ष बीत जाने और लम्बे संघर्ष के बावजूद भी भारत की संसद में महिलाओं की स्थिति में कोई ख़ास बदलाव नहीं आया, पुरुषों ने सत्ता पर क़ब्ज़ा जमाए रखा।

एक लम्बे संघर्ष के बाद 1993 में 73nd and 74th amendment से महिलाओं को लोकल बाडीज़, पंचायत में 33% आरक्षण मिला, शुरुआती दौर में उनकी क़ाबिलियत पर काफ़ी संशय किया गया,  जिसके असर पर देश विदेश के रिसर्चर ने स्टडी किया, पहले साल जो स्टडी के नतीजे आए उसमें पाया गया कि जब महिलाओं को लोकल बाडीज़ में मौक़े दिए गए तो उन्होंने long टर्म पर बुनियादी स्तर के आठ प्रमुख विषय जैसे पानी, ट्वायलेट्स,  सीवर, राशन, सेल्फ़ हेल्प ग्रुप, नशे की समस्या, वेलफेयर स्कीम के संचालन पर अच्छा काम किया , पहले साल में पुरुषों से कुछ बेहतर किया, और पाँच साल आते आते उनकी गुणवत्ता में और अधिक निखार आया, नतीजतन आज देश के 20 राज्यों में लोकल बॉडीज़ में 50% आरक्षण देश की आधी आबादी के लिए है ।

73rd amendment के आधार पर महिला आरक्षण parliament एवं स्टेट असेम्बलीज में लाने की माँग ने ज़ोर पकड़ा और 12 sept 1996 को पहली बार  इस बिल को संसद में पेश किया गया, जिस पर डिबेट की ओपनिंग लाइन थी –

This is a special day in the history of our country…”

तब से लेकर अब तक कई बार इस बिल पर चर्चा हुई,  बाहर से सबने हामी भरी लेकिन सत्ता का लालच और मंशा का अभाव रहा, इसी कारण चाहे कांग्रेस हो या भाजपा, बार बार अपने मैनिफ़ेस्टो में शामिल करने के बावजूद इसे पास करवाने और लागू करने में अक्षम रही हैं, ना ही अपना रुख़ साफ़ करना चाहती हैं,  और 25 साल बाद हम आज भी उस स्पेशल डे का इंतज़ार कर रहे हैं – जब महिलाओं को असल मायने में बराबरी का अधिकार मिलेगा। 

अगर हम देश का सुधार चाहते हैं तो देश की संसद में महिलाओं की भागीदारी सुनिश्चित करना बेहद ज़रूरी है, आप किसी भी पॉलिसी मैटर पर बात करें, सभी में कहीं ना कहीं जेंडर पर्स्पेक्टिव रहता है, लैंगिक समानता (जेंडर पैरिटी) Gender parity  sustainable development goals का अभिन्न अंग है ।

भारत के संविधान में, संविधान की प्रस्तावना में, मौलिक अधिकार, मौलिक कर्तव्य, निर्देशक सिद्धांत, सब में जेंडर इक्वलिटी को प्राथमिकता दी गई है

हाल ही में सांसद कनिमोझी द्वारा पूछे गए सवाल पर कि– क्या सरकार वीमेन रेज़र्वेशन बिल लाना चाहती है – मिनिस्ट्री ऑफ़ लॉ एंड जस्टिस का जवाब था कि यह संवेदनशील विषय है,  जिस पर विचार किए जाने की ज़रूरत है, और सभी पार्टियों के साथ आपसी सहमति की ज़रूरत है,  यह उस सरकार की तरफ़ से जवाब था जिसने बिना किसी सवाल जवाब के जाने कितने बिल गुपचुप तरीक़े से पास कर दिए। मेरा उस सरकार से कहना है कि आप यह बिल लाइए तो सही, वैसे भी आपने कब किस विषय पर सहमति का प्रयास किया है, अगर आपकी मंशा है, आप असल में अपने मैनिफ़ेस्टो में किए हुए वायदे पर काम करना चाहते हैं,  आपको यह बिल ज़रूर लाना चाहिए।

लोक सभा में भाजपा की स्वयं की मेजॉरिटी है 305/543, राज्य सभा में भी NDA बहुमत के बेहद क़रीब है, बहुत से सांसद स्वयं इस विषय की अर्जेन्सी को देख इस बिल की ज़रूरत को पटल पर उठा चुके हैं, इस बिल को पास करने और उसको लागू करने का सही समय आज है, हम आज़ाद भारत में महिलाओं को बराबरी देने में पहले ही लगभग सात दशक लेट हैं, अब और देर नहीं।

(लेखिका सीमा जोशी सामाजिक-राजनीतिक कार्यकर्ता हैं।)

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