चेन्नई में अन्ना यूनिवर्सिटी की एक छात्रा के साथ 23 दिसंबर की रात 8 बजे रेप की वारदात का मामला लगातार प्रदेश और राष्ट्रीय सुर्ख़ियों में बना हुआ है।
इस मामले का आरोपी दो दिन बाद 25 दिसंबर को गिरफ्तार किया जा चुका है, लेकिन इस मामले में मद्रास हाई कोर्ट, विपक्षी दल के नेता अन्नामलाई और अब महिला आयोग के साथ-साथ तमिल फिल्मों में आज के दौर सुपरस्टार विजय भी कूद पड़े हैं, जिन्होंने टीवीके नामक राजनीतिक दल को पिछले दिनों लांच किया है।
यह देखना काफी सुकूनदेह है कि दक्षिण के राज्य महिलाओं की सुरक्षा और गरिमा के लिए बेहद संवेदनशील नजर आते हैं। यह किसी भी समाज में जागरूकता और लोकतांत्रिक स्वरूप को दर्शाता है।
पिछले दिनों पश्चिम बंगाल में भी एक मेडिकल छात्रा के साथ जघन्य अपराध और हत्या के खिलाफ आरजी कर मेडिकल कॉलेज के छात्र-छात्राओं ने जो आंदोलन शुरू किया, उसके समर्थन में पूरे देश से मेडिकल बिरादरी से भरपूर समर्थन देखने को मिला।
तृणमूल कांग्रेस सरकार घुटनों पर आ गई थी, और लंबे संघर्ष के बाद आरोपी ही नहीं मेडिकल कॉलेज और प्रशासन के स्तर पर भी सरकार को व्यापक बदलाव के लिए मजबूर होना पड़ा।
इसी प्रकार, केरल में मॉलीवुड में महिला फिल्म कलाकारों के साथ यौन हिंसा के मुद्दे पर हेमा कमेटी की रिपोर्ट ने समूचे केरल राज्य में भूचाल की स्थिति ला दी है। केरल की वामपंथी सरकार के तहत गठित यह कमेटी भारतीय सिनेमा उद्योग में पहली कमेटी है, जिसके बारे में बॉलीवुड या अन्य किसी भी क्षेत्रीय फिल्म उद्योग जगत ने अभी तक सोचा तक नहीं है।
यदि इसी प्रकार की एक कमेटी मुंबई या भोजपुरी फिल्म इंडस्ट्री के लिए गठित कर दी जाये, तो बॉलीवुड से लेकर केंद्रीय राजनीतिक मंच तक पर इसका विनाशकारी प्रभाव पड़ने की पूरी-पूरी संभावना है।
अन्ना यूनिवर्सिटी की घटना के बारे में बताया जा रहा है कि घटना के दिन पीड़िता अपने पुरुष मित्र के साथ कैंपस की पुरानी बिल्डिंग में बैठी हुई थी। तभी उस सुनसान जगह पर आरोपी ज्ञानशेखरन आ धमका, और उसने दोनों की वीडियो बना डाला।
बता दें कि आरोपी कैंपस के बाहर फुटपाथ पर बिरियानी का कारोबार करता है, और उसके खिलाफ 2011 में भी एक लड़की के साथ रेप का मामला दर्ज है। उसके खिलाफ लूटपाट समेत कुल 15 आपराधिक मामले दर्ज हैं।
आरोपी ने लड़के को धमकाया और मारपीट कर भगा दिया। इसके बाद उसने पीड़िता के साथ बलात्कार को अंजाम दिया और उसका मोबाइल नंबर हासिलकर भविष्य में भी दुष्कर्म करने के लिए डराया।
इस मामले में नया मोड़ तब आया, जब आरोपी की तस्वीर डीएमके के उप-मुख्यमंत्री उदयनिधि स्टालिन के साथ होने की बात सामने आने लगी। भाजपा ने इस मुद्दे को तूल देना शुरू कर दिया, और पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष अन्नामलाई ने इस मुद्दे पर विरोध का अनोखा तरीका अपना लिया।
उन्होंने डीएमके मुख्यमंत्री, स्टालिन के इस्तीफे की मांग की है, और उन्होंने कसम खाई है कि जब तक वे डीएमके सरकार को अपदस्थ नहीं कर देते, तब तक नंगे पैर रहेंगे।
इतना ही नहीं कुछ दिन पहले उन्होंने कमीज उतारकर खुद को छह कोड़े भी मारे हैं। उनके मुताबिक, तमिलनाडु राज्य को डीएमके सरकार बर्बादी की कगार पर ले आई है। आज एक्टर विजय और महिला आयोग के जांच में कूदने के साथ यह मामला राष्ट्रीय महत्व का हो चुका है।
दक्षिण के राज्यों और पश्चिम बंगाल में मेडिकल छात्रा के साथ हैवानियत के मुद्दे पर बड़े पैमाने पर आक्रोश ने इन राज्यों में महिलाओं के मुद्दे पर बढ़ती संवेदनशीलता और आम लोगों एवं विपक्ष के तीखे तेवर की निश्चित रूप से सराहना की जानी चाहिए।
लेकिन इसी प्रकार की घटना उत्तर भारत में होती है, और इसकी तुलना में कई गुना होती है, पर ऐसी कोई प्रतिक्रिया देखने को क्यों नहीं मिलती?
भाजपा शासित राज्यों में महिलाओं के खिलाफ यौन हिंसा कोई मुद्दा क्यों नहीं?
चलिए मान लेते हैं कि अन्ना यूनिवर्सिटी और बंगाल में आरजी कर मेडिकल कॉलेज मामला चूंकि उच्च शैक्षणिक संस्थान से जुड़ा हुआ था, इसलिए इन दोनों मुद्दों पर मध्य वर्ग और मीडिया की ओर से कवरेज स्वाभाविक है।
लेकिन फिर बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू) कैंपस के भीतर भी तो पिछले वर्ष ऐसी ही घटना घटी थी। उस घटना पर तो मीडिया मुर्दा नजर आई। वहां पर भी छात्रा आईआईटी से संबद्ध थी। सबसे चौंकाने वाली खबर यह थी कि तीनों बलात्कारी, विश्व की सबसे बड़ी और संस्कारी पार्टी, बीजेपी के जिला आईटी सेल का कामकाज संभाल रहे थे।
बनारस संसदीय सीट से देश के यशस्वी प्रधानमंत्री, नरेंद्र मोदी आते हैं। उनके ही संसदीय क्षेत्र में, पावन गंगा नदी और भोले शिव की नगरी में इतना बड़ा दुष्कर्म हुआ और वो भी महामना मदन मोहन मालवीय द्वारा निर्मित बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के प्रांगण के भीतर?
शायद डबल इंजन की सरकार को इस घटना पर इतनी शर्म आई कि उसने इस मामले को दबाने में ही उक्त पीड़िता के लिए न्याय नजर आया। इतना ही नहीं, तीनों अपराधियों को चुपके से मध्य प्रदेश स्थानांतरित कर दिया गया।
मध्य प्रदेश में बीजेपी की बंपर जीत को संपन्न कराने के बाद उन्हें बनारस लाया गया और मीडिया की नजरों से छिपाकर गिरफ्तार कर लिया गया। अब सुनने में आ रहा है कि तीनों दुष्कर्मी जमानत पर छुट्टा घूम रहे हैं, और पीड़िता छात्रा को गवाही के लिए हर बार अदालत में पेश होना पड़ता है।
देश में अपराध के मामलों में चोटी के 10 राज्यों में से 7 राज्य डबल इंजन सरकार के अंतर्गत ही चल रहे हैं। इसमें पहले स्थान पर अपना उत्तर प्रदेश है, जहां हर 1 लाख आबादी पर 112.7 क्राइम दर्ज होते हैं।
वैसे योगीराज में पुलिस थानों में प्राथमिकी दर्ज कराना ही अपने आप में एक बड़ी उपलब्धि मानी जाती है। उत्तर प्रदेश के अलावा, महाराष्ट्र, बिहार, मध्य प्रदेश, राजस्थान, असम और गुजरात वे टॉप 10 राज्य हैं, जहां पर डबल इंजन सरकार राज कर रही है। इस सूची में तमिलनाडु, दिल्ली और केरल ही वे राज्य हैं, जहां पर विपक्ष का शासन है।
निर्भया के लिए आंदोलनरत उत्तर भारत में अब मुर्दा शांति
अक्सर यह सवाल रह-रहकर कौंधता है कि 2013 में दिल्ली की सड़कों पर निर्भया के लिए जैसा हुजूम उमड़ा था, और राष्ट्रीय मीडिया ने जिस पैमाने पर इस मुद्दे को तूल दिया था, वैसा फिर 11 वर्षों में एक बार भी देखने को क्यों नहीं मिला?
क्या हम दावे के साथ इस बात को कह सकते हैं कि दिल्ली या उत्तर भारत में इस घटना के बाद महिलाओं के खिलाफ ऐसे जघन्य अपराध नहीं हुए? सरकार के खुद के आंकड़े इसकी गवाही नहीं देते।
एनसीआरबी के आंकड़ों के मुताबिक, वर्ष 2022 में अकेले उत्तर प्रदेश में 3120 रेप के मामले दर्ज किये गये थे, जिसमें 9 मामले तो पुलिस कस्टडी में हुए थे। इस हिसाब से सिर्फ यूपी में ही औसतन 10 रेप के मामले प्रतिदिन दर्ज किये जाते हैं, जो दर्ज नहीं किये जाते उनका हिसाब ही नहीं।
मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान, बिहार और उत्तर प्रदेश से निकलने वाले हिंदी अखबारों को ही यदि पाठक पढें तो हर पेज पर रेप, बलात्कार और हत्या से संबंधित खबरें ही छाई रहती है। ऐसा जान पड़ता है कि राजनीतिक पार्टियों को भले ही मस्जिद के नीचे की खुदाई में विकास निकलने वाला है, लेकिन असामाजिक तत्वों में से बड़ा हिस्सा जवान, बूढ़ी और बच्चियों के खिलाफ यौन हिंसा के एकमात्र लक्ष्य के साथ जी रहा है।
तमिलनाडु के अन्नामलाई या पश्चिम बंगाल के भाजपा नेता शुभेंदु अधिकारी अपने-अपने राज्यों में महिलाओं के खिलाफ होने वाली यौन हिंसा के मुद्दे पर बेहद संवेदनशील नजर आते हैं, जिसका स्वागत किया जाना चाहिए।
लेकिन इसके साथ ही जागरूक नागरिकों को यह भी ध्यान रखना चाहिए कि यह संवदेनशीलता अपनी सरकार बन जाने के बाद कहां हवा हो जाती है?
उल्टा, एक दो नहीं दर्जनों ऐसे मामले हैं जहां पर बीजेपी शासित राज्यों में देखने को मिला है कि महिलाओं को प्राथमिकी दर्ज कराने या न्याय की गुहार लगाने के लिए आत्मदाह तक करना पड़ा है, या इन राज्यों में बलात्कारी जमानत पर रिहा होने के बाद पीड़िता और परिवार के सदस्यों तक को जान से मार डालने का दुस्साहस कर चुके हैं।
देश को तो अब यहां तक गहराई से विचार करना पड़ सकता है कि रेप की शिकार महिलाओं की लड़ाई कौन लड़ रहा है, और इसके राजनीतिक निहितार्थ क्या हो सकते हैं?
महिला संगठनों के सामने भी यक्ष प्रश्न है कि कहीं महिलाओं के लिए न्याय की लड़ाई के नाम पर जिन राज्यों की संवेदनशील लेकिन अक्षम सरकार को आज अपदस्थ किया जा सकता है, कल को महिला सम्मान के नाम पर उनका स्थान ग्रहण करने वाली सरकार महिलाओं के खिलाफ अपराध पर लगाम लगाने की बात तो रही दूर, वह अपराध दर्ज करने से भी न कतराने लगे।
आखिर पिछले दस वर्षों में उत्तर भारत में यही तो हो रहा है, फिर तमिलनाडु या पश्चिम बंगाल में क्या इससे कुछ अलग होना है?
(रविंद्र पटवाल जनचौक संपादकीय टीम के सदस्य हैं)
+ There are no comments
Add yours