Thursday, March 28, 2024

इटली की सांसद ने क्यों बोला बिल गेट्स को वैक्सीन अपराधी?

विश्व स्वास्थ्य संगठन के सबसे बड़े कोश दाताओं में से एक बिल गेट्स के टीकाकरण अभियान पर इधर सवाल उठने शुरू हो गए हैं। गेट्स फाउंडेशन कोविड 19 वैक्सीन की तैयारी में लग गया है और उसे उम्मीद है कि यह वैक्सीन वह शीघ्र ही बना लेगा। गेट्स फाउंडेशन ने इसके पहले, पोलियो, मलेरिया तथा अन्य संक्रामक रोगों की वैक्सीन विकसित की है और विश्व स्वास्थ्य संगठन की सहायता से दुनिया भर के गरीब देशों जिसमें एशिया और अफ्रीका के देश शामिल हैं, में सघन टीकाकरण अभियान चलाया है। लेकिन इन टीकाकरण अभियानों में एक बात यह भी खुल कर आयी कि, इस वैक्सिनेशन कार्यक्रम के दौरान, मेडिकल नैतिकता की भी खुल कर धज्जियां उड़ाई गयीं और बाद में संगठन ने अपनी कमियों को स्वीकार भी किया। 

अब सवाल उठता है कि फार्मा और अनिवार्य टीकाकरण, गेट्स फाउंडेशन के लिये लाभ ही लाभ की स्थिति है या इसका कुछ और मक़सद है ? एक साइंस मैगजीन में रॉबर्ट एफ कैनेडी जूनियर ने एक शोधपरक लेख में गेट्स के टीकाकरण अभियान के बारे में जो लिखा है वह बिल गेट्स के चेहरे से अरबों डॉलर खर्च कर के एक जनकल्याण या परोपकार का कार्य करने वाले देवपुरुष का चेहरा बेनकाब कर देता है। 

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प द्वारा हाल ही में डब्ल्यूएचओ की फंडिंग रोके जाने पर बिल ने आपत्ति भी जताई है। बिल गेट्स ने वैश्विक महामारी कोरोना वायरस (कोविड-19) के लगातार बढ़ते हुए संक्रमण के बीच अमेरिका की ओर से विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) की फंडिंग रोकने को खतरनाक करार दिया है। गेट्स ने बुधवार को ट्वीट कर कहा कि इस वैश्विक स्वास्थ्य संकट के दौरान डब्ल्यूएचओ की फंडिंग रोकना खतरनाक है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के सबसे बड़े फण्डदाता गेट्स ने कहा है कि, संगठन  की ओर से किए जा रहे कार्यों से कोविड-19 के संक्रमण को तेज गति से फैलने से रोकने में मदद मिली है ।यदि डब्ल्यूएचओ का काम रुक जाता है तो कोई दूसरा संगठन उसका स्थान नहीं ले सकता। उन्होंने कहा कि मौजूदा समय में विश्व को डब्ल्यूएचओ की पहले से कहीं अधिक आवश्यकता है।

समाज कल्याण के कार्यों की सूची में व्यापक टीकाकरण अभियान, लोककल्याण के कार्यों में बिल गेट्स की एक प्रिय रणनीति रही है । यह उनके वैक्सीन संबंधी शोध को प्रोत्साहन देने जैसे कार्यों से तो जुड़ी ही है, साथ ही वैश्विक स्वास्थ्य नीतियों को नियंत्रित करने की उनकी महत्वाकांक्षा को भी पोषित करती है।

गेट्स का टीकाकरण के प्रति बेहद लगाव उनकी इस धारणा के कारण भी है कि, उन्हें यह दृढ़ विश्वास है कि, तकनीक ही विश्व को सुरक्षित रख सकती है।

भारत के पोलियो उन्मूलन कार्यक्रम के कुल 1.2 बिलियन डॉलर के बजट में बिल गेट्स 450 मिलियन डॉलर का अंशदान करके, नेशनल टेक्निकल एडवाइजरी ग्रुप ( एनटीएजीआई ) के एक प्रकार से नियंत्रक बन जाते हैं, और पांच वर्ष तक के बच्चों के लिये पोलियो वैक्सीन या टीका की खुराक, सभी टीकाकरण कार्यक्रमों और सलाहों को नज़रअंदाज़ कर, पचास खुराक तक देने का निर्णय ले लेते हैं।

डॉक्टरों के अनुसार, इस निर्णय के कारण, बच्चों में विनाशकारी नॉन पोलियो एक्यूट फ्लैक्सीड पैरालिसिस (एनपीएएफपी) महामारी की शिकायत पायी गयी। इसके लिये बिल गेट्स के इस निर्णय को डॉक्टरों ने उत्तरदायी ठहराया। इस बढ़े हुए खुराक या अतिरंजित टीकाकरण से वर्ष 2000 से 2017 के बीच कुल 4,90,000 बच्चे प्रभावित हुए। सरकार ने जब इस महामारी की आहट सुनी तो, उसने बिल गेट्स के इस टीकाकरण कार्यक्रम को बंद कर दिया और बिल गेट्स तथा उनकी वैक्सीन नीति को देश से विदा कर दिया ।

हालांकि वर्ष 2017 में विश्व स्वास्थ्य संगठन ने दबाव में, यह तथ्य स्वीकार किया कि, दुनिया भर में जो पोलियो जन्य महामारी फैली थी वह इसी टीकाकरण की अनावश्यक बाध्यता और बढ़ी खुराक का परिणाम थी। पोलियो से जुड़ी, यह महामारी, कांगो, अफ़ग़ानिस्तान और फिलीपींस में फैली थी, और यह सब उसी वैक्सीन के कारण हुआ था। सच तो यह है कि साल 2018 तक विश्व के समस्त पोलियो के मामलों का 70 % मामला इसी वैक्सीन तनाव के कारण हुआ, जो अधिक मात्रा में कई कई बार बच्चों को दी गयी थी। 

गेट्स फाउंडेशन द्वारा वित्तपोषित कंपनी, ग्लैक्सो स्मिथ क्लिन ( जीएसके ) और मर्क द्वारा विकसित की गयी एचपीवी वैक्सीन को परीक्षण के रूप में, भारत के विभिन्न राज्यों में, वर्ष 2014 में, 23,000 लड़कियों पर आजमाया गया था। 

इस परीक्षण टीकाकरण के कारण, वैक्सीन के दुष्प्रभाव से, इनमें से लगभग 1,200 लड़कियां, गर्भाधान और ऑटोइम्यून जैसी समस्याओं से, पीड़ित हो गयीं। जिनमें से सात लड़कियों की मृत्यु हो गयी। इसकी जांच जब सरकार द्वारा कराई गयी तब यह तथ्य प्रकाश में आया कि, गेट्स द्वारा वित्तपोषित शोध कर्ताओं ने जानबूझकर कर व्यापक रूप से परीक्षण की नैतिकता और निर्देशों का उल्लंघन किया है। ऐसा उन्होंने इन लड़कियों का परीक्षण के लिये चयन करते समय इनके माता पिता को धमका कर, फ़र्ज़ी सहमति पत्र पर हस्ताक्षर करा कर किया है। परीक्षण के दौरान जो लड़कियां घायल या बीमार हो गयीं, उनके इलाज की समुचित व्यवस्था भी फाउंडेशन द्वारा नहीं की गयी।

इसी गेट्स फाउंडेशन ने जीएसके  द्वारा मलेरिया की वैक्सीन के तृतीय चरण के परीक्षण के लिये, वर्ष 2010 में धन दिया, जिसके परीक्षण के दौरान, 151 अफ्रीकी शिशुओं की मृत्यु हो गयी और कुल 5,949 शिशुओं, जिन पर इस टीका का परीक्षण किया गया था, में से, 1,048 शिशुओं को जकड़न, ऐंठन और तेज बुखार जैसी बीमारी होने लगी। 

अफ्रीका के निम्न सहारा क्षेत्रों में मेनअफ्रिवेक अभियान के अंतर्गत, वर्ष 2002 में, गेट्स फाउंडेशन ने मस्तिष्क रोग के वैक्सीन परीक्षण हेतु एक टीकाकरण का अभियान बलपूर्वक चलाया था। ऐसे 500 बच्चों में से, जिन्हें यह वैक्सीन दी गयी थी, 50 बच्चे लकवाग्रस्त हो गए। इस संबंध में एक दक्षिणी अफ्रीकी अखबार ने इस बलात टीकाकरण अभियान की शिकायत करते हुए लिखा था कि, ” हम दवा निर्माताओं के लिये गिनी पिग ( एक छोटा जानवर जिस पर दवाइयों के परीक्षण होते हैं ) बन गए हैं। ” प्रोफेसर पैट्रिक बांड जो दक्षिण अफ्रीका के पूर्व राष्ट्रपति नेल्सन मंडेला के वरिष्ठ आर्थिक सलाहकार रह चुके हैं, ने बिल गेट्स की इन समाज कल्याण के कार्यों को क्रूर और अनैतिक कहा है।  

विश्व स्वास्थ्य संगठन को, वर्ष 2010 में कुल 10 बिलियन डॉलर की धनराशि देते हुए गेट्स फाउंडेशन ने कहा था कि, ” हमें इस दशक को वैक्सीन के दशक के रूप में बनाना होगा।” एक महीने बाद ही ट्रेड टॉक शो मे गेट्स ने एक बातचीत में कहा था कि, ” नए टीके जनसंख्या कम करने में सहायक हो सकते हैं। ” केन्या के कैथोलिक डॉक्टर्स एसोसिएशन ने वर्ष 2014 में, विश्व स्वास्थ्य संगठन पर यह आरोप लगाया था कि, संगठन द्वारा न चाहते हुए भी लाखों केनियाई महिलाओं की  टिटनेस वैक्सीन अभियान के अंतर्गत टीकाकरण किये जाने से उनमें बंध्यता ( बाँहपन ) आ गया है।

इस वैक्सीन की जांच करने वाली कुछ स्वतंत्र प्रयोगशालाओं ने, वैक्सीन के अंदर गर्भधारण न हो सकने वाले एक पदार्थ की पहचान की, जिससे महिलाओं में बंध्यता होने की आम शिकायतें होती हैं । प्रारंभ मे तो विश्व स्वास्थ्य संगठन ने इन आरोपों को खारिज कर दिया पर, अंत में उसने यह स्वीकार कर लिया कि वे बंध्याकरण करने वाली वैक्सीन को भी पिछले एक दशक से विकसित कर रहे थे। इसी प्रकार के आरोप, तंजानिया, निकारागुआ,  मेक्सिको और फिलीपींस मे चलाये गए विश्व स्वास्थ्य संगठन के टीकाकरण अभियानों के संबंध में भी मिले हैं। 

मोरजेंसन 2017 के अध्ययन जो वर्ष 2017 में किया गया था, ने अपने शोध अध्ययन में यह पाया कि, विश्व स्वास्थ्य संगठन की लोकप्रिय वैक्सीन डीटीपी के टीके से जितने अफ्रीकी बच्चे मरे, उतने तो उन रोगों से भी नहीं मरते, जिन रोगों से बचाव के लिये वह वैक्सीन विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा बनाई और लगाई गयी थी। डीटीपी वैक्सीन से प्रभावित होकर मरने वाले बच्चों की संख्या, उन बच्चों की तुलना में, जिन्हें वैक्सीन नहीं दी गयी थी, दस गुना अधिक थी। यानी वैक्सीन से टीकाकृत बच्चे, उन बच्चों की तुलना में जिन्हें टीका नहीं लगाया गया था, की मृत्यु दर दस गुना अधिक है। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने इस जानलेवा वैक्सीन को वापस लेने से भी इनकार कर दिया जो हज़ारों लाखों बच्चों को इतने घातक परिणाम मिलने के बाद भी दी जा रही थी। 

दुनियाभर में जन स्वास्थ्य के पक्ष में अपनी आवाज़ उठाने वाले लोगों ने बिल गेट्स के खिलाफ, विश्व स्वास्थ्य संगठन को जन स्वास्थ्य के मूल मुद्दों, संक्रामक रोगों से बचाव, स्वच्छ पेय जल की सुविधा, स्वच्छता, स्वस्थ जीवन, पोषण, और आर्थिक विकास से जुड़ी परियोजनाओं से, भटका देने का आरोप लगाया है। गेट्स फाउंडेशन ने इन क्षेत्रों में निर्धारित 5 बिलियन डॉलर के बजट में से केवल 650 मिलियन डॉलर ही व्यय किया है। जन स्वास्थ्य के इन समर्थकों का कहना है कि, बिल गेट्स ने विश्व स्वास्थ्य संगठन के संसाधनों का दुरुपयोग किया है। संगठन की दिशा को, गेट्स ने अपनी उस सोच की ओर, कि, अच्छे स्वास्थ्य के लिये केवल टीकाकरण ही ज़रूरी है को प्रमाणित करने के लिये मोड़ दिया। 

अपनी लोक और समाज कल्याणकारी योजनाओं के लिए उन्होंने विश्व स्वास्थ्य संगठन ( डब्ल्यूएचओ ) यूनिसेफ, जीएवीआई, और पीएटीएच आदि वैश्विक संस्थाओं को अपने आर्थिक प्रभाव में लेने के बाद, बिल गेट्स ने वैक्सीन बनाने वाली एक फार्मास्युटिकल कंपनी में धन निवेश किया है और साथ ही 50 मिलियन डॉलर की धनराशि, अन्य 12 फार्मास्युटिकल कंपनियां, जो दवा बनाती हैं, को भी दिया है, ताकि वे कोरोना वायरस का संक्रमण रोकने के लिये वैक्सीन बना सकें। हाल ही में मीडिया से बात करते हुए उन्होंने यह विश्वास भी जताया है कि, कोविड 19 का यह संकट, उनके लिये बाध्यकारी टीकाकरण कार्यक्रमों को लागू करने के लिये एक अवसर के रूप में आया हैं जहां वह अपना यह टीकाकरण अभियान अमेरिकी बच्चों पर चला सकते हैं।

बिल गेट्स संगठन को अपनी महत्वाकांक्षी योजना का एक वाहक बना चुके हैं क्या, यह सवाल अक्सर अब विश्व के स्वास्थ्य सेक्टर में उठ रहा है। जब वे इतना अधिक धन एक संगठन को दे रहे हैं तो जाहिर है कि उन का हस्तक्षेप भी संगठन पर पड़ेगा। इस हस्तक्षेप पर भी आपत्ति इटली की एक सांसद ने की है। 

इटली कोरोना से सबसे ज्यादा पीड़ित और संक्रमित यूरोपीय देश है। यूरोप में सबसे अधिक संक्रमण की खबरें वहीं से आयीं। इटली का हेल्थकेयर इंफ्रास्ट्रक्चर भी सबसे अधिक विकसित है। उसी इटली में संसद की कार्यवाही के दौरान एक सांसद ने अचानक यह मांग कर डाली कि,  

” माइक्रोसाफ़्ट के संस्थापक बिल गेट्स को गिरफ्तार कर लिया जाना चाहिए क्योंकि वह मानवता के ख़िलाफ़ अपराध में लिप्त हैं। “

यह अनोखी और अप्रत्याशित मांग करने वाली सांसद हैं सारा कुनियल। उन्होंने बिल गेट्स को वैक्सीन अपराधी कहा। बिल गेट्स के वैक्सीन या टीकाकरण अभियान को उन्होंने एक प्रकार का अपराध कहा। 

सारा कुनियल ने कहा कि 

” यदि कोविड-19 के किसी भी वैक्सीन का अभियान चलाया जाता है तो सारे सांसदों को इसका विरोध करना चाहिए क्योंकि इस प्रकार के टीका अभियान भ्रष्टाचारी तत्व चला रहे हैं।”

सांसद का यह भी कहना है कि

” बिल गेट्स कई दशकों से दुनिया भर में आबादी घटाने और तानाशाही कंट्रोल की योजनाओं पर काम कर रहे हैं। “

कोविड 19 के भयानक संक्रमण को देखते हुए यह ज़रूरी है कि इसकी वैक्सीन विकसित हो। वृहद टीकाकरण अभियान जो भारत मे आज़ादी के बाद से चेचक, मलेरिया, पोलियो आदि रोगों के लिये चलाये जाते रहे हैं का लाभ भी मिला है। पर अब जिस प्रकार की आवाज़ें औऱ शंकाएं बिल गेट्स द्वारा फंडेड टीकाकरण योजनाओं में मिल रही हैं उनके बारे में भी भारत को सतर्कता बरतना होगा। रोग का निदान ज़रूरी है पर देश को वैक्सीन या टीकाकरण का अवैध परीक्षण का अबाध मैदान बना देना बिल्कुल अनुचित है। 

( विजय शंकर सिंह रिटायर्ड आईपीएस अफसर हैं और आजकल कानपुर में रहते हैं। )

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