लोक सभा सामान्य निर्वाचन 2024, जो संवैधानिक लोकतंत्र के 75 वर्षों के इतिहास में सबसे महत्वपूर्ण चुनाव है। इस चुनाव में मायावती की राजनीति और रणनीति जहां पर राजनीतिक विश्लेषकों को आश्चर्यचकित कर रही है वहीं पर बसपा के मतदाताओं को दुःखी और निराश कर रही है। साथ ही साथ इगैलिटेरियन पॉलिटिक्स के समर्थक बुद्धिजीवियों व राजनेताओं को भी निराश कर रही है। 07 मई की रात 10 बजे बीएसपी के उत्तराधिकारी व नेशनल कोऑर्डिनेटर आकाश आनंद को सभी पदों से मुक्त कर देने की सूचना मायावती ने अपने एक्स हैंडल पर देकर सबको आश्चर्यचकित कर दिया।
वैसे बसपा से किसी नेता या कार्यकर्ता को निकालने का जो तरीका है, उसी तरीके से आकाश आनन्द को भी पार्टी की सभी जिम्मेदारियों से मुक्त् किया गया। लेकिन मुख्य धारा की मीडिया या सोशल मीडिया पर इस घटनाक्रम की जितनी चर्चा की जा रही है, वह शायद ही किसी अन्य घटना की हुई है। इसके बावजूद भी मायावती द्वारा अचानक आकाश आनंद को बीएसपी के सभी दायित्वों से मुक्त कर देने का वास्तविक कारण बताने में मीडिया अपने आप को समर्थ नहीं पा रही है। सभी चैनल यही कह रहे हैं कि मायावती ही वास्तविक कारण बता सकती हैं। यह ठीक भी है। मायावती के अलावा कोई और इस घटना का वास्तविक कारण कैसे बता सकता है। लेकिन कारण का पता परिणाम के विश्लेषण से लगाया जा सकता है।
आकाश आनन्द को बसपा के सभी पदों से मुक्त करने के कारणों पर विचार करने से पहले यह जानना जरूरी है कि आखिर आकाश आनन्द हैं कौन। वैसे तो आकाश आनन्द का सामान्य परिचय यह है कि वह मायावती के भाई आनन्द कुमार के बेटे हैं। अर्थात मायावती के भतीजे हैं। लेकिन आकाश आनन्द इससे अधिक बहुत कुछ हैं। आकाश आनन्द, उस आनन्द कुमार के बेटे हैं, जो मायावती के साथ ही स्वयं भी अपने घर से निकल गये थे। जब मायावती ने कांशीराम के साथ बहुजन आन्दोलन को आगे बढ़ाने के लिए अपना सम्पूर्ण जीवन समर्पित करने का निर्णय लिया और दिल्ली आकर रहने लगीं, तभी से आनन्द कुमार इनके साथ दिल्ली आकर रहने लगे। आनन्द कुमार साये की तरह मायावती के साथ रहते रहे हैं तथा अभी भी रह रहे हैं।
जिस प्रकार मायावती ने अपना जीवन बहुजन आन्दोलन के लिए समर्पित कर दिया था उसी प्रकार आनन्द कुमार ने भी अपना सम्पूर्ण जीवन मायावती के लिए समर्पित कर दिया था। आज भी आनन्द कुमार मायावती के साथ सेवा भाव से ही रहते हैं। एक और तथ्य का उल्लेख करना भी यहाँ पर जरूरी है। डा. अशोक सिद्धार्थ इस समय मायावती के काफी नजदीक हैं। अशोक सिद्धार्थ इस समय कई राज्यों के प्रभारी हैं। मायावती के बहुत पुराने सहयोगी हैं। मायावती ने इन्हें एमएलसी एवं एमपी राज्य सभा भी बनाया था। आकाश आनन्द की शादी अशोक सिद्धार्थ की बेटी डा. प्रज्ञा सिद्धार्थ से 26 मार्च 2023 को सम्पन्न हुई है। अतः आनन्द न केवल मायावती के भतीजे हैं बल्कि मायावती के अनन्य सहयोगी अशोक सिद्धार्थ के दामाद भी हैं। इसलिए आकाश आनंद, मायावती के जीवन में कांशीराम के पश्चात सबसे महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले व्यक्तियों के पुत्र और दामाद हैं।
मायावती भी बचपन से आकाश आनन्द को बहुत ही प्यार दुलार करती रही हैं। इसलिए आकाश आनन्द को पार्टी की गतिविधियों से मुक्त करना तथा इनके पहले जय प्रकाश सिंह और कई अन्य नेताओं को पार्टी की गतिविधियों से मुक्त करने में बड़ा अन्तर है। इसके पूर्व मायावती जिन नेताओं को पार्टी से निकाला उनको नेशनल कोआर्डिनेटर, कई राज्यों का प्रभारी, उपाध्यक्ष आदि तो बनाया था, लेकिन किसी को अपना उत्तराधिकारी नहीं घोषित किया था। इसलिए आकाश आनन्द को बसपा की सभी जिम्मेदारियों से मुक्त करना बसपा के इतिहास की अकेली पहली घटना है। इसलिए आकाश आनन्द पर जो आरोप लगाकर पार्टी की सभी जिम्मेदारियों से मुक्त किया गया, वह आरोप इनके पूर्व किसी अन्य नेता पर नहीं लगाया गया। इनके पूर्व सभी नेताओं पर अनुशासनहीनता एवं पार्टी विरोधी गतिविधियों का आरोप लगाया गया जबकि आकाश आनन्द पर ‘पूर्ण परिपक्व’ न होने का आरोप लगाया गया।
अब यह स्पष्ट हो गया है कि आकाश आनन्द सामान्य व्यक्ति नहीं हैं न ही इनको उस तरह निकाला गया जिस तरह इनके पूर्व अन्य नेताओं को निकाला गया था। इन सब के बावजूद आकाश आनन्द को नेशनल कोआर्डिनेटर पद से मुक्त करने व उत्तराधिकारी से हटाने का जो तरीका मायावती ने अपनाया वह बहुत ही अपमानजनक, मान सम्मान को ठेस पहुँचाने वाला और मनोबल को तोड़ने वाला है। वास्तव में इस फैसले को सार्वजनिक करने की आवश्यकता ही नहीं थी।
आकाश आनन्द इतने आज्ञाकारी हैं कि यदि मायावती उनको अकेले में बुलाकर कह देतीं कि अभी तुम पार्टी की गतिविधियों से अपने आप को दूर रखो। आगे हम बतायेंगे कि तुमको कब क्या करना है। इतने से काम बन जाता। लेकिन मायावती ने ऐसा नहीं किया। मायावती ने आकाश आनन्द को ऐसी चोट दे दिया जो कभी नहीं भर पायेगा। इस चोट से आकाश आनन्द की मनःस्थिति और उनका व्यक्तित्व बहुत ही ज्यादा प्रभावित होगा।
अब थोड़ा मायावती के तर्कों पर बात कर ली जाए। मायावती ने अपने एक्स हैंडल पर डाली गयी पोस्ट में कहा कि ‘बीएसपी एक पार्टी के साथ ही बाबा साहब डा. भीमराव अम्बेडकर के आत्मसम्मान व स्वाभिमान तथा सामाजिक परिवर्तन का भी मूवमेन्ट है। वास्तव में बसपा कभी मूवमेन्ट थी, अब वह पार्टी भी नहीं रह गयी है। क्या मायावती बता सकती हैं कि पिछली बार कब बसपा ने किसी मुद्दे पर कोई आन्दोलन किया था। जबकि मान्यवर कांशीराम के नेतृत्व में बसपा कार्यकर्ता हमेशा सड़कों पर आन्दोलन करते थे। मण्डल आयोग को लागू करने के लिए वोट क्लब दिल्ली में 42 दिनों तक धरना प्रदर्शन एवं जेल भरो आन्दोलन हुआ था।
अब कहाँ है वह आन्दोलन। अब स्वयं दलित समाज के नौजवान सड़कों पर उतरते हैं लाठियाँ खाते हैं, गोलियाँ खाते, जेल जाते हैं। 2 अप्रैल 2018 का आन्दोलन दलित नौजवानों का शानदार आन्दोलन था जिसमें बसपा ने कोई सकारात्मक भूमिका नहीं निभाई। कम से कम जो नौजवान शहीद हुए उनके परिवार वालों को सान्त्वना एवं जो जेलों में बन्द हुए उनके लिए कानूनी सहायता तो दी ही जा सकती थी। यदि बसपा दलित समाज के मुद्दों पर कार्य करती तो दलित नौजवानों को सड़क पर आना ही नहीं पड़ता।
मायावती के नेतृत्व में बसपा एक राजनीतिक दल नहीं बल्कि लिमिटेड कम्पनी बन गयी है। बसपा से भावनात्मक रूप से जुड़ी जनता मायावती की पूँजी है, हजारों की संख्या में बसपा में अपना राजनीतिक भविष्य तलाशते दलित नौजवान अवैतनिक कर्मचारी हैं। एक दूसरे से लड़ते-झगड़ते कोआर्डिनेटर मैनेजर हैं तथा बहन जी इस कम्पनी की मालिक हैं। आकाश आनन्द इसी कम्पनी के सी.ई.ओ. बनाये गये थे, जो मालिक की पसन्द नापसन्द पर खरे नहीं उतरे तो हटा दिये गये। चुनाव में खड़े होने वाले प्रत्याशी इस कम्पनी के शेयर होल्डर हैं। अगर कम्पनी ने अच्छा प्रदर्शन किया तो मुनाफा, नहीं तो घाटा। यही इस समय के बसपा की सच्चाई है।
अपने पोस्ट में मायावती ने मान-सम्मान का भी जिक्र किया है। प्रश्न उठता है कि क्या आकाश आनन्द के मान-सम्मान का ध्यान रखा गया। उन नेताओं के मान-सम्मान का ध्यान रखा गया जिन्हें मनमाने ढंग से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया। हजारों, लाखों बूथ स्तर के कार्यकर्ताओं का कोई मान-सम्मान होता है जो सैनिकों की तरह सीमा पर लोहा लेते हैं, उनके लिए बसपा ने क्या किया है। हाँ बसपा में केवल मायावती का ही सम्मान सुरक्षित है, शेष किसी का भी नहीं। यह कटु सत्य हैं जो सार्वजनिक रूप से सबको पता भी है।
मायावती ने एक्स हैंडल पर यह भी लिखा है कि बाबा साहब के आन्दोलन को आगे बढ़ाने के लिए नयी पीढ़ी को तैयार किया किया जा रहा है। मायावती का यह कथन हकीकत से कोसों दूर है तथा कोरी बकवास है। बसपा के कार्यकर्ताओं की कोई ट्रेनिंग नहीं होती है। मीटिंगों में बड़े नेताओं के भाषणों को सुनकर बसपा के कार्यकर्ता सीखते समझते हैं। बसपा का कोई मुखपत्र नहीं है। कोई पत्रिका नहीं निकलती है, बुद्धिजीवियों की टीम नहीं है। जिससे कार्यकर्ताओं को समसामयिक मुद्दों पर पार्टी लाइन का पता चले। किसी मुद्दे पर जब मायावती का ट्वीट या बयान आ जाता है तब कार्यकर्ता अपना मुंह खोलते हैं।
राजनीतिक दृष्टि से सबसे कम प्रशिक्षित कार्यकर्ता यदि किसी पार्टी के हैं तो वह बसपा के हैं। पता नहीं किस आधार पर मायावती कह रही हैं कि नई पीढ़ी को बाबा साहब के आन्दोलन को आगे बढ़ाने के लिए तैयार किया जा रहा है। हकीकत यह है कि मायावती ने पार्टी में किसी कार्यकर्ता या नेता को आगे बढ़ाने का कार्य ही नहीं किया। वे प्रारम्भ से ही मन बना चुकी थीं कि आकाश आनन्द को अपना उत्तराधिकारी बनायेंगी। उन्होंने बहुत पहले एक सम्मेलन में कहा था कि मेरा उत्तराधिकारी चमार बिरादरी का होगा और मुझसे 35 से 40 वर्ष छोटा होगा। आकाश आनन्द मायावती से 40 वर्ष छोटे हैं।
अन्य जिन लोगों को समय-समय पर आगे बढ़ाने का जिक्र मायावती कर रही हैं, उनमें से किसी का भी नाम इन्होंने सार्वजनिक तौर पर घोषित नहीं किया था। डा. राजाराम, रामजी गौतम, जय प्रकाश सिंह सभी का नाम केवल चलाया जाता था। आकाश आनन्द के अतिरिक्त किसी को भी उन्होंने कोई प्रशिक्षण नहीं दिया था। वे केवल ताश के पत्ते की तरह बड़े नेताओं को कभी नेशनल कोऑर्डिनेटर बनाकर, कभी प्रदेश प्रभारी बनाकर, कभी उपाध्यक्ष बनाकर फेटती रहती हैं। जबकि आकाश आनंद को वे स्वयं प्रशिक्षित कर रही थीं, यह सत्य है। इसका प्रमाण आकाश आनन्द के व्यक्तित्व व भाषणों में झलकता है।
अब यह स्पष्ट है कि मायावती ने आकाश आनन्द को केवल इसलिए सभी पदों से नहीं हटाया कि वे अपरिपक्व हैं और न ही मायावती बाबासाहब का मिशन चला रही हैं, जिसको आकाश आनन्द कमजोर कर रहे थे। आकाश आनन्द को हटाने के बाद बहुजन समाज पार्टी के सदस्यों की जो प्रतिक्रिया आयी है उसमें शत प्रतिशत लोगों ने आकाश आनन्द के साथ सहानुभूति प्रकट की है। साथ ही साथ यह भी कहा है कि बहन जी का निर्णय सर आंखों पर। इसका अर्थ समझना जरूरी है। पिछले कुछ दिनों से आकाश आनन्द जिस शैली में अपने आपको जनता के बीच, विशेषकर दलित नौजवानों के बीच, स्थापित करने का प्रयत्न कर रहे थे, वह शैली काफी प्रभावशाली थी। बहुत ही कम समय में उनकी स्वीकार्यता भी काफी बढ़ गयी थी।
यहाँ यह भी उल्लेखनीय है कि उनकी लोकप्रियता और स्वीकार्यता केवल उत्तर प्रदेश में ही नहीं, बल्कि अखिल भारतीय स्तर पर बढ़ रही थी। उनके भाषणों एवं विभिन्न चैनलों पर दिये गये साक्षात्कारों से यह स्पष्ट है कि उनकी बहुजन विचारधारा पर पूरी पकड़ स्थापित हो गयी थी तथा अपनी बात जनता तक पहुँचाने में वे सक्षम हो चुके थे। उनको संगठनकर्ता के रूप में कार्य करने की अनुमति मायावती ने अभी नहीं दिया था इसलिए सांगठनिक क्षमता की परीक्षा अभी होनी थी। लेकिन जिस तरह नौजवान कार्यकर्ताओं, बड़े बुजुर्गों के प्रति उनका व्यवहार था उससे साबित होता है कि उनमें सांगठनिक क्षमता भी भरपूर है।
फिर मायावती ने आकाश आनन्द को क्यों हटाया। इसका पहला उत्तर तो यह है कि आकाश आनन्द की लोकप्रियता, स्वीकार्यता जिस तेज गति से बढ़ रही थी वह मायावती की कल्पना से परे थी। मायावती उनको एक कठपुतली की तरह इस्तेमाल करना चाहती हैं लेकिन आकाश आनन्द के तेवर से लग रहा था कि यह व्यक्ति कठपुतली नहीं बन सकता है। यदि समय रहते उचित कदम नहीं उठाया गया तो यह कठपुतली हाथ से निकल जायेगा ,जो स्वयं मायावती की एकात्मक सत्ता के लिए चुनौती बन सकता है। मायावती को सत्ता का बंटवारा स्वीकार नहीं है, यह उनकी पिछली कार्यशैली से पता चलता है।
दूसरा कारण यह है कि जिस प्रकार आकाश आनन्द विरोधी दलों पर विचारधारात्मक प्रहार कर रहे थे उससे बसपा के समर्थक भी बढ़ रहे थे तथा बसपा कार्यकर्ता भी उत्साहित थे। इसका परिणाम यह होता कि बसपा वास्तव में बाबासाहब के मूवमेन्ट को आगे बढ़ाने वाली पार्टी में परिवर्तित हो जाती और आकाश आनन्द सीईओ से नेता बन जाते। यह परिस्थिति भी मायावती को मंजूर नहीं है कि उनसे बड़ा कोई नेता बसपा में पैदा हो जाय। इन दोनों कारणों के अलावा एक और कारण है जिसे दो चरणों के चुनाव सम्पन्न होने के पश्चात बीजेपी के विरुद्ध बने माहौल से जोड़ कर देखा जा सकता है। जैसे ही दो चरणों के चुनाव सम्पन्न हुए, यह खबर मीडिया और आम जनता में चर्चा का विषय बन गयी कि भाजपा की सीटें कम हो रही हैं और इण्डिया गठबन्धन बढ़त बना रहा है।
इसके पश्चात बसपा शेष चरणों के लिए घोषित अपने उन प्रत्याशियों को बदलने लगी जिनके चुनाव जीतने की सम्भावना प्रबल थी या जिस प्रत्याशी के कारण भाजपा का प्रत्याशी चुनाव हार सकता था। इसमें जौनपुर से धनंजय सिंह की पत्नी श्रीकला सिंह और बस्ती के प्रत्याशी दयाशंकर मिश्र की स्थिति काफी मजबूत थी। इनको बदला गया। आजमगढ़ से भीम राजभर भाजपा की सीट को फंसा सकते थे। इसलिए सलेमपुर भेजा गया ताकि आजमगढ़ में संघर्ष आसान हो जाय और सलेमपुर में इण्डिया गठबन्धन प्रत्याशी रमाशंकर राजभर के सामने मुश्किल खड़ी हो जाय और भाजपा प्रत्याशी रविन्द्र कुशवाहा की लड़ाई आसान हो जाय।
एक तो बसपा का इण्डिया गठबन्धन में शामिल न होना और दूसरे ऐसे प्रत्याशी खड़ा करना जिसमें भाजपा का रास्ता आसान हो जाय, मायावती की मंशा पर सवाल उठाता है। यह परिवर्तन दो चरणों के चुनाव सम्पन्न होने के बाद आया है। प्रारम्भ में जब बसपा ने प्रत्याशियों की घोषणा शुरू की थी तो भाजपा और इण्डिया गठबन्धन दोनों के लिए मुश्किल खड़ी हो रही थी। लेकिन दो चरणों के चुनाव सम्पन्न होने के पश्चात भाजपा के पक्ष में प्रत्याशी बदले गये। इसका कारण स्पष्ट है। दो चरणों में भाजपा की हार थी चर्चा होने के पश्चात, भाजपा ने अपनी सारी ताकत उप्र की शेष सीटों पर लगाने की रणनीति बनायी। निश्चित रूप से भाजपा ने मायावती को डरा-धमकाकर अपने प्रत्याशी बदलने पर मजबूर किया।
साथ ही साथ आकाश आनन्द को भी रोकने का दबाव डाला होगा क्योंकि आकाश आनन्द के भाषणों से भाजपा विरोधी नैरेटिव बन रहा था। मायावती ने एक तीर से दो निशाना लगाया एक आकाश आनन्द के बढ़ते कद को कतर दिया तथा भाजपा से अपनी सुरक्षा का सौदा कर लिया। लेकिन इस महत्वपूर्ण चुनाव में, जहां पर संविधान संसदीय मर्यादाएं, लोकतन्त्र, गणतन्त्रवाद, संघवाद, मानवीय गरिमा जैसे मूल्य दांव पर लगे हों, और फासीवादी ताकतें बड़ी बेशर्मी से देश को आग में झोंकने के लिए आतुर हों, वैसे में बाबा साहब के विचारों पर मान्यवर कांशीराम द्वारा बनायी गयी पार्टी का इस देश की दलित, पिछड़ा, आदिवासी, अल्पसंख्यक जनता के पक्ष में न खड़े होना बड़ा ही दुर्भाग्यपूर्ण है। मायावती ने अपनी सम्पत्ति और बसपा पर एकछत्र कब्जा बचाने के लिए न केवल भाजपा को लोकसभा का चुनाव जितवाने के लिए परोक्ष रूप से मदद पहुंचाया बल्कि एक होनहार नौजवान के मान-सम्मान को भी रौंद डाला।
(डॉ. अलख निरंजन लेखक और दलित चिंतक हैं।)